Tuesday, December 24, 2013

ए सूटेबल ब्वॉय


आज फिर मन बादलों के साथ अम्बर में उड़ रहा है, जीवन के प्रति नया विश्वास कायम हो गया है और यह मिला है पौधों के सामीप्य से, नन्हे और बड़े पौधे या पेड़, अगर उन्हें थोड़ा सा प्यार से संवार दें तो कितना कुछ दे जाते हैं. उनका स्पर्श कितना सुकून देता है. पेड़-पौधे मानव के सच्चे साथी हैं जो सिर्फ देना जानते हैं और सिर्फ थोड़े से रखरखाव की मांग करते हैं. आज सुबह नींद एक स्वप्न के कारण खुली, उसके गले की चेन जब फंस जाती है तब कोई चौंकाने वाला स्वप्न आकर जगा देता है. नन्हा आज बहुत दिनों के बाद जल्दी उठ गया, अपने से दुगने वजन के मित्र को साइकिल पर पीछे बैठा कर जब कम्प्यूटर क्लास के लिए जा रहा था, उसे देखकर अच्छा लगा, He has a helping nature. कल उसके बचपन के साथी का जन्मदिन है, उसके लिए जन्मदिन कार्ड बनाएगा, पिछले दिनों उसने एक इंजन बनाया लकड़ी का, जिसे बनाते-बनाते पिछले इतवार को वह बहुत परेशान हो गया था कि रो ही पड़ा था.

इस बार लाइब्रेरी से अच्छी किताबें मिली हैं, एक है विक्रम सेठ की Suitable Boy, बहुत रोचक किताब है, पेज हैं १३४९, काफी दिन लगेंगे इसे पूरा खत्म होने में. इतवार को तो उसने उठते ही पढ़ना शुरू कर दिया था, जब तक जून और नन्हा सो रहे थे. इस किताब ने किसी हद तक उसे बांध लिया है, लता मन के पास रहने लगी है और कबीर पर कभी कभी...खैर. एक किताब किसी मित्र के यहाँ से लाये थे, Cosmic coincidence, कल शाम उन्होंने ‘सपने’ देखी, मन को गहराई तक छू जाने वाली फिल्म..

गालों को सहलाती पलकों को छू जाती
सतरंगी सपने आँखों को दे जाती
नगमे सुनाती, गाती रेशमी हवा

पेड़ों की डालें कभी तो लहराएँ
पीपल के पत्ते धीरे से सरसराएँ
जादू सा जगाये रेशमी हवा..
कुछ ऐसे ही गीत थे फिल्म में.

कल दोपहर को एक छात्रा हिंदी पढ़ने आई, उसे शुरू में थोड़ी सी परेशानी हुई पर धीरे-धीरे शब्द दिमाग में आते गये, अलंकर, छंद आदि का अधिक ज्ञान तो नहीं है, न ही विशेष पढ़ा था, फिर कितने वर्ष हो गये हैं हिंदी साहित्य स्कूल में पढ़े हुए, आज भी वह आएगी, शांत है और लिखाई भी अच्छी है. कल उसने पिछले एक साल से रखे हुए तकिये के गिलाफों पर पेंटिग की, एक फिल्म देखी ‘आस्था’, किसी आस्था टूटी किसकी कायम रही कुछ समझ में नहीं आया, अजीब सी कहानी और अजीब सी फिल्म थी.

आज फिर वर्षा हो रही है, बादल कभी झमझम और कभी रिमझिम बरस रहे हैं, सुमित्रा नन्दन  पन्त ने वह कविता ऐसे ही किसी भीगे दिन में लिखी होगी. चारों ओर हरियाली ही हरियाली और सभी कुछ धुला-धुला सा भीगा-भीगा...गर्मी का नाम भी नहीं, ऐसा मौसम उसे बहुत भाता है. आज भी हल्का दर्द है, यूँ जून ने कल पूछा था कि कल तो वह बिलकुल ठीक हो जाएगी, उन्हें उसका बिखरा-बिखरा सा रहना पसंद नहीं है, कल रात वह ठीक से सो नहीं पाए सुबह उठे तो ठंड की शिकायत की. भाव उनके थे शब्द उसके थे, अनजाने में वे एकदूसरे की भाषा बोलने लगे हैं. नन्हे को आज सुबह जब प्यार से उठा रहे थे तो.. बहुत अच्छा लगा. He has a golden heart !  

कल जून मोरान गये थे, शाम को लगभग सव छह बजे लौटे तो बहुत खुश थे, डिब्रूगढ़ से ढेर सारे आम लाये हैं, मीठे और रस भरे आम. दिन में उसने किताब पढ़ी और सखियों से फोन पर बात की, दोस्ती की खुशबू मन को हल्का कर देती है. कल उनकी लेन की एक परिचिता ने अपने बगीचे के आड़ू भिजवाये, उन्हें फोन पर thanks कहा तो वह अपने बेटे द्वारा की गयी तारीफ करने लगीं, बातों से खुश करना कितना आसान है और वह उसी में कंजूसी कर देती है.    








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