Wednesday, December 11, 2013

उदय पुर - झीलों का शहर


उदयपुर में यह उनकी दूसरी सुबह है, मौसम अच्छा है और कल की वर्षा के कारण हवा में ठंडक है. कल दोपहर वे चित्तौडगढ़ देखने गये जो यहाँ से १२५ किमी दूर है. बूढ़ा बस ड्राइवर बड़ी सावधानी से गाड़ी चला रहा था तथा गाइड का काम भी कर रहा था. वहाँ राजा रतन सिंह तथा रानी पद्मिनी का महल देखा. जय स्तम्भ, कीर्ति स्तम्भ, राणा कुम्भा पैलैस, मीरा तथा कृष्ण के मन्दिर देखे. एक संग्रहालय भी था जो वे देख नहीं पाए. काली माता का एक ८०० साल पुराना मन्दिर भी वहाँ था, जिसका सहन बहुत बड़ा था. कुछ जैन मन्दिर भी थे. वे जय स्तम्भ के  ऊपर तक चढ़े. पास में ही एक विशाल पीपल का वृक्ष था जिस पर सैकड़ों श्वेत लंगूर थे, छोटे, बड़े, मोटे, पतले हर तरह के लंगूर बेहद आराम से वहाँ झूल रहे थे. वापसी की यात्रा में एक अद्भुत  दृश्य देखने को मिला, उनकी सड़क के किनारे एक खेत से उगता हुआ इंद्र धनुष दूसरी ओर के खेत को छू रहा था, मानो स्वागत के लिए कोई द्वार हो. एक अन्य हल्का इन्द्रधनुष उससे थोड़ा आगे भी था. दो को एक साथ देखने का यह पहला अनुभव था, उन्होंने फोटोग्राफी भी की. एक जगह चाय पीने रुके तो कुछ पनिहारिनें पानी भर रही थीं, एक बहुत सुंदर थी और सिर पर दो मटके (एक सुनहरा, एक रुपहला) एक के ऊपर एक रखे तथा एक काली मटकी हाथ में लिए आराम से चल रही थी. होटल पहुंचते पहुंचते पौने न हो गये थे, ‘सैलाब’ का थोड़ा सा भाग देखा, पर नायक-नायिका को रोते हुए देखना अच्छा नहीं लग रहा था.

कल रात्रि भी वर्षा हुई पर इस वक्त आकाश नीला है. सुबह के सात बजे हैं, धूप खिली है. शाम सात बजे की ट्रेन से उन्हें अहमदाबाद जाना है, उससे पूर्व उदयपुर के दर्शनीय स्थानों पर जाना है. उसके आसपास की कुछ महत्वपूर्ण स्थान उन्होंने कल देखे, आठ बजे रवाना होकर ग्यारह बज रणकपुर के मन्दिर पहुंच गये, एक विशाल प्रांगण में बना २९ मन्दिरों का समूह, संगमरमर का यह विशाल मंदिर है, जिसमें पत्थर पर अद्भुत कलाकृतियाँ उकेरी हुई हैं. मन्दिर ट्रस्ट की ओर से ही भोजन की भी व्यवस्था थी, अल्प मूल्य में इतना स्वादिष्ट प्रसाद जैसा भोजन पाकर सभी हर्षित हुए. वहाँ से कंकरोलीराज समंद गये, जहाँ द्वारकाधीश का मन्दिर तथा एक विशाल सुंदर झील है, झील में हजारों की संख्या में मछलियाँ थीं, जिनको उन्होंने आटे की गोलियां खिलायीं. चतुर्भुज जी का एक मन्दिर एक गली में से होकर था, जहाँ स्वर्ण व चांदी का बहुत प्रयोग हुआ है. तथा छत पर शीशा लगा था व मीनाकारी भी थी. इसी तरह नाथ द्वारा मन्दिर तथा एकलिंगी मन्दिर भी देखे, वर्षा बहुत तेज हो रही थी सो भीगते-भीगते नाथद्वारा जी के दर्शन किये. काले पत्थर की सजी हुई मूर्ति थी, सोने-चांदी की चक्की, मीरा माँ का मन्दिर और घी का कुंड आदि भी गाइड ने दिखाए. एक लिंगी जी का मन्दिर ८वी शताब्दी का है. चांदी के दरवाजे और सोने की प्रतिमा, कहानियों में पढ़ी बातें सच में देखने को मिलीं. टैक्सी की हालत अच्छी नहीं थी, एक-दो बार जून को धक्का भी लगाना पड़ा और एक बार तो सडक से छींटे भी अंदर आये, इन दिक्कतों को छोडकर यात्रा अच्छी रही.

अहमदाबाद- आज सुबह सात बजे वे यहाँ पहुंच गये थे, कल सुबह नौ बजे उदयपुर दर्शन के लिए निकले, भारतीय लोक कला मंडल में कठपुतली नृत्य देखा. और राज्य की विभिन्न कलाओं के चित्र आदि भी. फतेह सागर लेक में मोटरबोट से नेहरु स्मारक देखने गये. सिटी पैलेस में गाइड ने महाराणा प्रताप के हल्दी घाटी युद्ध के बारे में विस्तार से बताया, शीशे पर पच्चीकारी का काम, मोती महल तथा दरबार दर्शनीय थे. चौथी मंजिल से पिछौला झील में जल महल देखा, जिसमें आजकल एक पांच सितारा होटल खुल गया है. वर्मा उद्यान तथा गुलाब बाग के दर्शन बाहर से ही कर लिए, धूप बहुत तेज थी. सबसे अच्छा स्थान लगा प्रताप स्मारक जहां महाराणा की एक विशाल प्रतिमा है, उद्यान है, एक धूप घड़ी है और उनके सेनापति की एक मूर्ति भी थी. शाम के साढ़े पांच बजे उन्होंने होटल छोड़ दिया मित्रों से विदा लेने का वक्त आ गया था, सहयात्री परिवार का गन्तव्य अब उनका घर था और जून अपनी बहन से मिलने जा रहे थे. बिछड़ते समय दोनों परिवारों का मन भारी हो गया था. उनकी ट्रेन डेढ़ घंटा लेट थी, रात आराम से गुजरी, सुबह स्टेशन पर वे लोग लेने आये थे. घर काफी खुला-खुला सा है, हाइवे पर है इसलिए शोर ज्यादा सुनाई देता है.  




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