“जो कुछ नहीं करते वे
कमाल करते हैं” ! और
“जिसको देखो वह मुस्कुराता है,
कौन बेकस पे रहम खाता है “
बहुत दिनों के बाद पीटीवी पर रोशन पाकिस्तान में यह
शेर सुना. नन्हे ने उसे टीवी का स्विच ऑन करते देखा तो मुस्कुराते हुए पूछा, पी और
उसे ख्याल आया की वाकई कभी पी उसकी पहली पसंद हुआ करती थी. उसकी एक सखी किसी
परिचिता के एक रिश्तेदार के लिए जो किसी भयानक रोग से ग्रसित है, चंदा इकट्ठा कर
रही है, उसका फोन आया तो उसने कहा वह यकीनन एक अच्छा काम कर रही है, मुसीबत में
पड़े लोगों की उन्हें मदद करनी ही चाहिए, यानि की सिद्धांतत वह इस बात से सहमत है,
पर न तो जून और न ही उसकी पड़ोसिन ने सकारात्मक जवाब दिया, वह खुद भी उसकी विशेष
सहायता नहीं कर पायेगी पर कम से कम नैतिक समर्थन तो दे ही सकती है. कल उसने फोन
नहीं उठाया तो पूर्वाग्रह से ग्रसित उसके मन ने इसका गलत अर्थ लगाया, उसे भास होने
लगा है कि कथनी और करनी में कितना बड़ा भेद है और कितने पूर्वाग्रहों से मन ग्रसित
है.
अभी सुबह के नौ भी नहीं बजे हैं और धूप इतनी तेज हो
गयी है, गर्मियां बस चार कदम की दूरी पर खड़ी हैं. कल रात फिर सपने देखती रही, कल सुबह
टीवी पर सुना था सपने हमारे चरित्र को दर्शाते हैं, इस तरह देखें तो उसके सपने कुछ
विशेष नहीं दर्शाते, अजीबोगरीब से सपने मन की आधी-अधूरी इच्छाओं को जरुर दर्शाते
हैं. कल रात एक के बाद एक तीन बार घंटी बजी फोन की, नींद टूटी, फिर आई, फिर टूटी. नींद
भी ऐसी शै है जो अगले दिन तक असर रखती है. सुबह उठी तो अचानक ख्याल आया कि सुबह की
शुरुआत संगीत से होनी चाहिए, शास्त्रीय संगीत का कैसेट बजाय, फिर बाहर से टमाटर
तोड़े, शिमला मिर्च के पौधों को सहलाया, फूलों से गुफ्तगू की. जून के लिए नाश्ता बनाया जो बाद में नन्हे और उसने भी
खाया. कामवाली को आने में आधे घंटे की देर क्या हो गयी, संशयी मन धड़कने लगा. कल एक
भंगेड़ी का फोन क्या आया, आने वाले हर फोन से पहले आशंका होने लगी मन को संयत रखना
बहुत टेढ़ा काम है.
आज सुबह वह उठी तो फिर यही लगा कि स्फूर्ति नहीं
है, कल रात नन्हा भी ठीक से सो नहीं पा रहा था. आज से शुरू होने वाली परीक्षा के
कारण वह थोड़ा घबरा रहा था और उसे देखकर नूना भी परेशान हो गयी. सुबह वह उठा तो कहने
लगा रात भर सपने देखता रहा बस छूटने के और पेपर न कर पाने के, और वाकई बस छूट गयी
पर उन दोनों के मददगार ever present, ever helpful जून हैं जो उसे स्कूल ले गये. ताजा
महसूस करने के लिए उसने किताब उठा ली जो शनिवार को पढ़ती रही थी. सुबह-सुबह सारे
काम छोडकर किताब पढने का यह पहला अवसर नहीं था, खैर सारे काम भी हो गये व्यायाम को
छोडकर, जो यूँ तो किताब से ज्यादा जरूरी है पर शारीरिक न सही मानसिक व्यायाम तो हो
ही गया. नायिका आखिर अपनी मंजिल पा ही लेती है. अब अगली किताब नन्हे की परीक्षाओं
के बाद शुरू करेगी. आज बहुत दिनों बाद असमिया सखी का फोन आया, उसकी आवाज से लगा वह
इस बात से थोड़ा उदास थी. कल रात फिर वर्षा हुई और मौसम सुहाना हो गया. कल एक परिवार
मिलने आया उनका छोटा सा बेटा बहुत जिद करता है, उसे लगा वह माता-पिता दोनों के बस
से बाहर हो गया है. उसने घड़ी की ओर देखा जून के आने का वक्त हो रहा था.
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