पल में बदली पल में सूरज
पल-पल मौसम रूप बदलता
हवा उड़ा ले जाती बादल
आंचल ज्यों माथे से सरकता
सूर्य रश्मियाँ प्राण फूँकती
मेघा नमी पवन को देता
हवा बिखेरे मादक सौरभ
धरती भर देती मोहकता
खिड़की से झांकता बसंत
महक उठे हैं दिग दिगंत
ज्यों करवट ली कलियों ने
फूलों ने ली अंगडाई
कोंपल कोंपल में हरीतिमा
नव पल्लव धर मुस्काई
कल महीनों बाद मन में कविता उगी, बसंत के आगमन से
कोई दिल अछूता रह भी कैसे सकता है, गेट पर खड़ा वह श्वेत फूलों से भरा वृक्ष इतना
सुंदर दखता है. हवा में आम के बौर की खट्टी-मीठी खुशबू, सब कुछ इतना मोहक हो जाता
है इस मौसम में और इसी मौसम में तो आता है रंगों का त्योहार होली ! वे इस बार होली
पर जयपुर में होंगे. आज नन्हा समय पर तैयार हो गया था, उसका भी काम हो गया है, अभी
दस ही बजे हैं, एक बार सोचा किसी सखी से फोन पर बात कर ले, पर अगले ही पल रुक गयी,
क्या बात करेगी, सिवाय हाल-चाल पूछने के, यूँ मौसम पर भी बात हो सकती है और कुछ
अन्य भी, पर उसे लगता है दिन भर में वे गम्भीर बातें मुश्किल से पांच प्रतिशत ही
करते होंगे, ज्यादातर इधर-उधर की बातें ही तो करते हैं, तो क्यों न फोन पर एक
सार्थक, थोड़ा गम्भीर किस्म का वार्तालाप किया जय, लेकिन विषय क्या हो? आज पड़ोसिन
से थोड़ी देर बागवानी पर बात की, फूलों और पौधों पर, उसने सोचा अगले हफ्ते उनकी
यात्रा से पहले के अंतिम पत्र लिखेगी, बहुत महीनों से बल्कि वर्षों से छोटी बुआ का
कोई पत्र नहीं आया है, वापस आकर उन्हें भी लिखेगी. मौसम आज भी भीगा-भीगा है, आकाश
पर सलेटी रंग के बादल एकसार फैले हैं, सूरज का कोई अता-पता नहीं है.
मुल्कराज आनन्द की बचपन की यादें रोचक हैं, seven
summers कल से पढ़ना शुरू किया है, कई ऐसे शब्द हैं जिनके अर्थ उसे नहीं पता, लेकिन
डिक्शनरी खोल कर पढ़ने से वह आनन्द कहाँ जो बिना रुके पढ़े जाने में है. अपने बचपन
की कई यादें मन में कौंध गयीं. बस्ती में बड़ी बहन की सहेली शैला के साथ गुड़ की चाय
बनाना, नल में उसके दायें हाथ की अंगुली कटना, मकान मालिक के लड़के का अपनी सांवली बहन
की गुड़िया पेड़ पर टांग देना, उनके यहाँ भोजन करने जाना, उस दाल-चावल की खुशबू आज
तक उसे नहीं भूली. मकान मालिक के लडके की खिलौनों से सजी आलमारी, पेड़ के नीचे
चारपाई पर लेट कर आंवले खाना और मकान मालकिन की बेटियों, गौरी व मुन्नी की मोटी-मोटी
चोटियाँ, बड़ा सा बगीचा, मंझले भाई का पांच रूपये का नोट लेकर चना मुरमुरा खरीदने
आना, उसे नंगा बाबा कहकर चिढ़ाया जाना और तेज वर्षा में छोटे भाई का बादलों से आना,
रोने पर भूत और हौआ से डराया जाना. घोड़े के मुख वाले भिखारी का भीख मांगने आना,
ऐसी न जाने कितनी और छोटी-छोटी यादें होंगी जो मन के किसी कोने में पिछले इतने
बरसों से दबी पड़ी होंगी. शाहजहाँपुर की यादें और स्कूल की यादें, उसे भी इन यादों
को कहानी की शक्ल में ढालने का काम करना चाहिए. बचपन की उस रात को बिल्लियों की
आवाजें, भूत के पैरों की छम छम, अमराई में लोगों को उलटे पैरों वाली डायन का
दिखना, कितनी अजीब और रोचक यादें हैं न !
No comments:
Post a Comment