आज उनकी गंगोत्री यात्रा का अंतिम दिन है, शाम तक वे घर पहुंच
जायेंगे. इस समय प्रातः काल है, नन्हा अभी सोया है, जून तैयार हो रहे हैं. सामने
के पर्वत शिखरों पर धूप पड़ने से चमक है, हवा में हल्की ठंडक है. उनका ड्राइवर जो
रात को अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ चला गया था आ गया है, वह थोड़ा अक्खड़ जरुर है
पर कुशल ड्राइवर है. आज वे NIM नेहरु माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट का संग्रहालय देखने जायेंगे, फिर ऋषिकेश होते हुए
घर.
आज विश्व पर्यावरण दिवस
मनाया जा रहा है. जून ने कल ‘टाइम्स ऑफ़ इण्डिया’ के संपादक को एक पत्र लिखा.
जिसमें गंगोत्री यात्रा के दौरान हुए पर्यावरण प्रदूषण के अनुभव का जिक्र किया है.
इस समय ग्यारह बजने वाले हैं, धूप काफी तेज है पर सुबह से बिजली नहीं गयी है सो
पंखा व कूलर दोनों चल रहे हैं. कमरा काफी ठंडा है. कल शाम से माँ यहाँ आ गयी हैं.
भाई के यहाँ उनकी अच्छी देखभाल हुई सो अब काफी ठीक हैं. कल वे अपने पैतृक घर में
भी गये, मंझले चाचा के बिन माँ के बच्चे अपनी दुनिया में खुश हैं, पिता का होना भी
न के बराबर है. छोटी चाची ने भी अपना सिलाई-कढ़ाई का काम काफी बढ़ा लिया है, उसे एक
कढ़ाई वाला सूट का कपड़ा उन्होंने दिया, स्लेटी रंग पर लाल व हरे रंग की कश्मीरी
कढ़ाई है. उससे पहले छोटी ननद की ससुराल भी गये जहाँ उसके छोटे देवर-देवरानी से
मिलकर अच्छा लगा. जून उसके साथ हर जगह जाते हैं, यहाँ पर भी सभी से बहुत सहयोग व
सत्कार की भावना से मिलते-जुलते हैं, कभी-कभी उनकी ओर देखकर लगता है उन्हें रुच
नहीं रहा पर उसकी खातिर वह खुश रहते हैं, कल उसकी एक बात से थोड़ा सा नाराज हुए पर
यह स्वाभाविक है.
आज सुबह से वर्षा हो रही है,
हवा ठंडी है और पौधे ज्यादा हरे हो गये हैं. पौने नौ बजे हैं. सबका स्नान व नाश्ता
हो चुका है. कौशल (यहाँ काम करने वाली औरत) बर्तन धोते समय बहुत शोर कर रही है. माँ सो रही
हैं और पिता छोटी बुआ और उनके बच्चों से बात कर रहे हैं जो कल दोपहर की ट्रेन से
ही माँ से मिलने आयी हैं.
वर्षा की झड़ी आज भी सुबह से
लगी है, ठंड भी बढ़ गयी है. परसों उन्हें जाना है. सुबह से फोन भी खराब है वरना दीदी
से बात हो सकती थी. कल वह उनसे मिलने आ रही हैं. कल छोटी बहन का फोन आया था,
हिमाचल में भी ठंड बढ़ गयी है, उसके घर के सामने के पहाड़ जब बादलों से ढक जाते हैं
तब सब ओर सफेदी छा जाती है और हवा से जब बादल उड़ते हैं तो पहाड़ दिखने लगते हैं और
दृश्य बहुत सुंदर लगता है. मंझला भाई परिवार के साथ देहरादून गया है. छोटी भाभी
सदा किसी न किसी काम में व्यस्त रहती है.
कल सुबह साढ़े आठ बजे वे घर
से चले थे, भाई अपने कार में स्टेशन लाया, दीदी भी साथ छोड़ने आयीं, नन्हे के लिए
उन्होंने एक पत्रिका लेकर दी. घर से जब वे निकले सभी घर से बाहर तक उन्हें छोड़ने आये, उसका हृदय इस
स्नेह और प्रेम के आगे कृतज्ञता से भर जाता है. माँ अब ठीक हैं, पर प्रसन्न और
संतुष्ट नहीं. पिता सदा की तरह थे, सबसे ज्यादा संतुष्ट व सक्रिय दीदी लगीं. अगले
कुछ दिनों तक वे सब भी उन्हें याद करेंगे जैसे वे इस यात्रा को भुला नहीं पाएंगे.
उनकी ट्रेन बरौनी स्टेशन पर पिछले आधे घंटे से खड़ी है. जून और नूना घूमने गये,
लीची खरीदी, यह फल पहले उसे पसंद नहीं था, पर अब खाने लगी है. कल वे घर पहुंच
जायेंगे ठीक चौबीस घंटे बाद. यदि ट्रेन समय पर चलती रही. घर जाकर बहुत से काम करने
हैं. नये उत्साह और नये जोश के साथ, हर बार कुछ दिन घर से दूर रहने के बाद घर आना
अच्छा लगता है. उस दिन जब यात्रा की शुरुआत की थी वर्षा हो रही थी, कल भी देहली
स्टेशन पर उतरते ही वर्षा ने उनका स्वागत किया. असम का एक परिवार स्टेशन पर मिला,
मित्र के पिता की मृत्यु हो गई है, सिर के बाल नदारद थे, अकेले ही वापस जा रहे
हैं.
मैं ज़रा बीच में लापता हो गया. कारण फिर कभी बताऊँगा. अच्छा लगता है यह फ़ैमिली रि-युनियन भी!! कभी कभी लगता है रिश्तों को नयी पहचान दिलाने के लिये यह आवश्यक है. मेरी बिटिया तब पैदा हुई जब हमने घर छोड़ा (कोई ख़ास बात नहीं - नौकरी के सिलसिले में पोस्टिंग हर तीन साल पर अलग अलग जगहों पर होती रही).. लेकिन शुरू शुरू में उसे वीडियो पर शादी या अन्य फंक्शन की रोकॉर्डिंग दिखाकर रिश्तेदारों की पहचान करवाता था. और जब हम पटना जाते थे तो उसे किसी को भी पहचानने में कोई दिक्कत नहीं होती थी!
ReplyDeleteपीछे जो छूट गया उसे भी देखता हूँ समय निकालकर!!
स्वागत व आभार !
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