भारत ने पाकिस्तान को पांच विकेट से हरा दिया, क्रिकेट का खेल
उनके दिलोदिमाग पर किस कदर छा गया है कि डायरी खोलते ही पहला वाक्य यही मन में
आया. कल शाम को ‘मैडिटेशन’ पुस्तक का एक अध्याय पढ़ते-पढ़ते मन एकाग्र हो गया और कुछ
मिनटों के ध्यान के कारण सारी शाम स्वयं को फूल सा हल्का महसूस किया. उसे लगा, पूर्वजों
ने जीवन के उद्देश्य, जीने के तरीके और आत्मिक उन्नति के द्वार योग के रूप में खोल
दिए हैं, अब यह उन पर निर्भर करता है कि पंक में सने रहें, सांसारिक मोह-माया और उलझनों
में ऊर्जा को व्यर्थ नष्ट कर दें अथवा मुक्त होकर अध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ें. सन्त
कहते हैं ज्ञानी के अनुभव को अपना अनुभव बना लेने पर ही बंधन कट सकता है. तब सुख-दुःख, मान-अपमान, यश-अपयश सभी
स्वप्नवत् प्रतीत होते हैं क्योंकि ये सभी आने-जाने वाले हैं और एक चैतन्य ही शाश्वत
है. उसी में विश्रांति मिल सकती है. अभी जो बुद्धि कंस की सेविका है जब कृष्ण की
सेविका हो जाएगी तभी उसका उद्धार सम्भव है. आज जून वह पत्र पोस्ट कर देंगे जो छोटी
बहन को कल रात उसने लिखा था कविताओं के साथ.
आज उसने सुना, “इच्छा पूर्ति
में पराधीनता है, जड़ता है, इच्छा निवृत्ति में स्वाधीनता व चेतनता है. निष्काम
होने का सुख बड़ा है, सकाम होने का दुःख उससे भी बड़ा. जो मन इच्छाओं से तपे वह कैसे
दर्पण की भांति अंतर की पवित्रता को दर्शा सकता है. ‘नाम जप’ इसमें सहायक होता है”.
सुबह जून ने धूप में बड़ी डालने में उसकी सहायता की, कल रात मेथी साफ़ कर दाल पीस कर
तैयारी कर रखी थी. जून उसके घर में रहने से पहले की तरह खुश रहने लगे हैं, उनके
स्वप्नों का घर फिर मिल गया है.
“मानस की गहराइयों में जाकर
सारे विकारों को दूर करने का काम ही विपशना है. इसके लिए मन को नियंत्रित करना
होता है, शील-सदाचार का पालन करना होता है और यह निरंतर होना चाहिए. सहज स्वाभाविक
रूप से साँस को देखते रहना मन को एकाग्र करने का सर्वोत्तम साधन है”. आज जागरण में
श्री गोयनका जी ने विपशना पर प्रवचन माला आरम्भ की है, अच्छा होगा यदि कल भी वे
आयें लेकिन यदि न भी आये तो उसे विक्षोभ नहीं होगा क्योंकि समभाव रहकर मन को
इच्छाओं से मुक्त रखने का प्रण श्रीकृष्ण के सामने लिया है. कल दोपहर उसने गीता को
पुनः पढ़ा, कल से पहले न जाने कितनी बार पढ़ चुकी है पर वह पढना मात्र पढ़ना ही था
उसका अर्थ समझने का सामर्थ्य उसमें बिलकुल नहीं था, कल उसका अर्थ अपने आप ही समझ
में आने लगा और उसे लगता है यह ईश्वर की कृपा का फल है वह तभी किसी के अंतर में
प्रकट होता है जब हृदय शुद्ध हो, भावनाएं उद्दात हों और निस्वार्थ भाव से मात्र ज्ञान
के लिए ज्ञान की आकांक्षा हो. नन्हा और जून दोनों घर पर नहीं हैं, वह भी चली जाती
थी तो उनका यह घर अकेला बंद रहा करता था, कितना सन्नाटा होता होगा यहाँ, अब इतने
दिनों बाद घर पर रहना अच्छा लगता है. जून का शुक्रगुजार होना चाहिए. उस रात उसने
जो कठोर वचन कहे थे वे सम्भवतः नियति ने ही कहलवाए थे. उसे लग रहा था कि सब कुछ
अस्त-व्यस्त हो रहा है, बिखर रहा है. जून की बातें तब समझ में नहीं आती थीं, अब
स्पष्ट हो रही हैं. उसका सही स्थान उनका घर ही है. मन की साधना करने के सारे उपाय
यहीं मिल सकते हैं.
अद्भुत संयोग है कि कल मैं गीता का वही हिस्सा सुन रहा था जिसमें मोह से क्रोध तक की यात्रा जो काम के मार्ग से होकर जाती है, बताया गया था. गीता की सबसे बड़ी उपलब्धि मेरे लिये व्यक्तिगत रूप से यह रही है कि इसने मेरा सम्पूर्ण व्यक्तित्व रूपांतरित कर दिया. सच है निष्काम होने का सुख निराला है.
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उसे गृहिणी के रूप में देखकर बहुत अच्छा लग रहा है, ख़ासकर तब और भी अच्छा, जब यह पता चला कि उसे अपना यह रोल अधिक पसन्द है और यह उसने अनुभव किया है बिना किसी दबाव के.
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मेथी की वड़ियाँ बनाने में भी जून का सहयोग... घर ऐसे ही बनता है, नहीं तो सब चले जाएँ तो बस मकान भर रह जाता है!
गीता पढ़ने से आपको इतनी बड़ी उपलब्धि हुई जानकर अच्छा लगा, सही कहा है आपने निष्काम होने से जो सुख मिलता है वह कामना पूर्ण होने के सुख से बहुत विलग है. आभार !
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