गीता का एक सुंदर श्लोक है, जिसका अर्थ है, वैश्वानर अग्नि के रूप में ईश्वर उनके द्वारा खाए अन्न को
पचाने में मदद करता है. ईश्वर तो हर तरह से उनकी सहायता करता है. सोचने, समझने के
लिए बुद्धिबल दिया है, आत्मोद्धार के लिए आत्मबल. कल दोपहर बाद से वे व्यस्त रहे
एक मित्र परिवार के साथ, जो यहाँ से जा रहे हैं. आज शाम को भी उन्हें भोजन के लिए
बुलाया है. जागरण में आज की बात उसे पसंद नहीं आई. भूत-प्रेत की बातें बताकर
लोगों को अन्धविश्वासी बना रहे हैं ऐसा लगा, चमत्कार की बात ही करनी है तो इस
सुंदर सृष्टि की रचना अपने आप में क्या कम चमत्कार है ? आज नैनी की जगह उसकी भांजी
काम करने आई है, धीरे-धीरे काम करती है वह. नन्हे और जून के जाने के बाद उसने
नाश्ता किया कुछ देर टीवी देखा. स्कूल की एक टीचर का फोन आया, एक छात्रा के पिता
को संदेह है कि उसकी कापी ठीक से जांची नहीं गयी सो री-चेक करवानी होगी. स्कूल
छोड़ने के बाद भी सभी खबरें मिलती रहती हैं, कल एक टीचर ने बताया कि एक फेल हो गये
बच्चे के पिता ने भूख हड़ताल करने की धमकी दी है, यदि उसे पास न किया गया. पड़ोसिन
के बगीचे में कैंडीटफ्ट के फूल हो रहे हैं, उनका सुंदर गुलदस्ता उसने बनाकर दिया.
उनकी जीनिया की पौध में से आठ-दस पौधे पूसी नष्ट कर चुकी है. उसने नाराज होकर उसे
कुछ भी नहीं दिया, सोचकर कि वह यहाँ से चली जाये पर वह पूरे श्रद्धा भाव से टिकी
रही और आज उसे उस पर दया आ गयी. ऐसे ही ईश्वर उनकी लगन चाहता है.
“उठ जाग मुसाफिर भोर भयी, अब
रैन कहाँ जो सोवत है”. अब उसके भी जागने का वक्त आ गया है. हर क्षण मन पर नजर रखकर
अतीत या भावी का चिन्तन न कर वर्तमान को सही परिप्रेक्ष्य में देखकर इस जागृति का
अनुभव किया जा सकता है. उसके बिना कोई आधार नहीं, बुद्धि भी हार जाती है एक सीमा
तक तर्क करके. इस जग का नियंता जो भी है वही उनके मार्ग को प्रशस्त कर सकता है.
मानव उसका ही प्रतिबिम्ब है, जब वे उसे प्रसन्न करेंगे तो स्वयं भी प्रसन्न हो
जायेंगे. क्योंकि प्रतिबिम्ब में परिवर्तन करने के लिए वस्तु में ही परिवर्तन करना
होगा. उसे प्रसन्न करने का उपाय अपने अंदर सद्गुणों को विकसित करना व उससे प्रेम
करना है. सद्गुणों का तो वह भंडार है, मानव उसका चिन्तन करेंगे तो वे गुण भी उनके
भीतर आ जायेंगे. इतनी सी बात उसकी समझ में नहीं आती थी जो आज सुनी. दीदी इतनी बार
राम का जाप क्यों करती हैं व लिखती हैं, आज स्पष्ट हुआ है.
एक लम्बा अन्तराल ! पिछले
दिनों कुछ नहीं लिख पायी, एक-दो बार पेन हाथ में लिया पर बात नहीं बनी. जून आज
जल्दी आकर जल्दी चले गये थे, वह जरा सुस्ताने लेटी तो खुमारी छा गयी, नींद से जागकर
कुछेक छोटे-मोटे काम किये कि नन्हा आ गया, फिर जून और शाम का सिलसिला शुरू हो गया.
माँ-पिता, ननद-ननदोई जी और दो प्यारे बच्चे आये और चले भी गये. उनके घर जाने में
भी मात्र एक महीना रह गया है. कल शाम वे पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार एक
मित्र के यहाँ गये, दिन भर धूप में फील्ड ड्यूटी करने के बाद जून के सिर में दर्द था,
पर वे, “जो वादा किया है निभाना पड़ेगा”...में यकीन करते हैं. फिर वे जल्दी ही लौट
आये. अगले हफ्ते उन्हें मुम्बई जाना है, off shore well के सिलसिले में. नन्हा आज
छुट्टी के दिन भी स्कूल गया है, कुछ दिन बाद उसके स्कूल में science exhibition है.
उसे याद आया दोनों घरों को पत्र भेजने हैं, और भेजने से पूर्व उन्हें लिखना पड़ता
है. पिछले दो-एक दिन से food for health से पढकर चेहरे पर आलू व खीरे का रस लगा
रही है. क्रीम बंद, देखें इस प्राकृतिक इलाज का क्या असर होता है. कल रात स्वप्न में
देखा, स्कूल फिर से ज्वाइन कर लिया है, अर्थात वासना अभी तक मिटी नहीं, उस दिन एक
परिचिता को कैसेट न देकर भी यह सिद्ध हो गया कि लोभ की जड़ें बड़ी गहरी हैं मन में,
ईश्वर जो अपना आप बन कर बैठा है सब देखता है और मुस्काता है कि उसका नाम लेने वाले
भी किस तरह सन्सार में फंसे हैं !
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