Tuesday, July 15, 2014

पूसी का परिवार


आज उनतीस अप्रैल की सुबह नौ बजे वह पंच भूतों, समस्त देवी-देवताओं व परम सत्ता को साक्षी बनाकर एक घोषणा करना चाहती है. “मानवीय सद्गुणों में जो सर्वोत्तम है, जिसके कारण इस सृष्टि में सुन्दरता है, वही प्रेम समस्त प्रश्नों का हल है”. उसने सोचा, यदि मानव, मानव के प्रति प्रेम का भाव रखे तो इस संसार से सारे वैमनस्य, सारी क्षुद्रता पल भर में मिट जाये. प्रेम लेकिन सच्चा होना चाहिए, ऐसा प्रेम प्रतिदान नहीं माँगता, वही प्रेम जो सबके जीवन में एक न एक बार अवश्य उदित होता है, पर उसे कुचल दिया जाता है, ईर्ष्या, लोभ, मोह, और क्रोध जैसे अवगुण उसे ढक लेते हैं. वह बीती वस्तु बन कर रह जाता है और कभी-कभी लगता है कि प्रेम कहीं था ही नहीं, शायद वह भ्रम था, पर वह भ्रम नहीं था, वह सत्य था जो झूठ के नीचे दबा सिसक रहा होता है. यदि क्रोध सत्य हो सकता है तो प्रेम क्यों नहीं. जरूरत है तो बस उस कोमल पौधे को जीवित रखने की, आस-पास के झाड़-झंखाड़ साफ कर उसे सही पोषण देकर बड़ा करने की, वही प्रेम का पौधा जीवन में फलीभूत होगा और खुशियों के फल देगा.

यह डायरी उसकी आध्यात्मिक यात्रा का भी दस्तावेज है, वर्षों पहले उस यात्रा का बीज अंतर में प्रकृति ने बोया था, पर मौसम आते-जाते रहे, कभी अनुकूलता मिली, कभी प्रतिकूलता और अंकुर से पौधा बनने में इतना वक्त लग गया. आज भी यह एक पौधा है अर्थात यात्रा का आरम्भिक चरण, लेकिन अब इसे दिशा मिल गयी है. भारत के मनीषियों, ऋषियों, संतों और अवतारों के जीवन, उनके सदुपदेश ने इसे पानी और भोजन दिया है. कल जून कोलकाता होते हुए मुम्बई से यहाँ आ गये. वह दोपहर का खाना खाकर थोड़ा आराम कर रही थी, टीवी पर ‘दिल ही दिल में’, internet love पर फिल्म आ रही थी. जून थोड़ा थके हुए थे, जो स्वाभाविक ही है, पर खुश थे, उनका भाव वही पहले की तरह था छलकता हुआ. शाम को एक सखी आयी, बेटे के लिए हिंदी के प्रश्न पूछने. बाद में उसे एक सखी को बुलाना पड़ा, जिसे पेट्स का अनुभव है, पूसी अपने बच्चों को भूखा छोड़कर रात से ही गायब थी, भूख से व भीग जाने के कारण वे रो रहे थे, उसने बड़े प्यार से दूध पिलाया और सुखाया और तब वे सो गये. रात को पूसी आ गयी थी, शायद वह कहीं शिकार को गयी थी. नन्हे का आज विज्ञान का टेस्ट है, कह रहा था प्रोजेक्ट वर्क में व्यस्त रहने के कारण क्लासेस ही अटेंड नहीं कर पाया था,  अपने आप पढकर, समझकर, याद करना कठिन कार्य है लेकिन उसे मालम है नन्हे का टेस्ट हमेशा की तरह अच्छा होगा.

ईश्वर पर विश्वास करो तो सब कुछ कितना सहल हो जाता है. आज मई महीने का दूसरा दिन है. उसके जन्मदिन का महिना. इस बार वह उस दिन अपने जन्मस्थान में होगी, जहाँ उन्होंने एक घर भी बनाया है भविष्य में रहने के लिए. वर्षों पहले जब वह बीस की हुई थी, सोच रही थी बहुत बड़ी हो गयी है, उस उम्र में बीस का होना भी बहुत बड़ा होता है. यह भी सोच रही थी कि इतने वर्षों में अपने जीवन का, ऊर्जा का, मानसिक शक्ति का सदुपयोग नहीं किया किन्तु आज वह मलाल नहीं है. जिन्दगी ने उसे बहुत कुछ दिया है और भरसक प्रयत्न करके उसने ईश्वर के मार्ग पर चलने का प्रयास जारी रखा है, क्योंकि वही एकमात्र सत्य है और हर मानव का अंतिम उद्देश्य है सत्य की प्राप्ति. आज सुबह जून ने उसे उठाया, वह और नन्हा दोनों उसके स्नेह के पात्र हैं, ऐसे स्नेह के जो निस्वार्थ, निष्काम और शुद्ध है, जो स्नेह के लिए स्नेह है, love for the sake of love क्योंकि सत्य के साथ ईश्वर प्रेम भी है. आज ‘जागरण’ में सुना सुख-दुःख आदि अवस्थाएं आती रहती हैं, इन्हें साक्षी भाव से देखने वाला आत्मा इनसे अलिप्त रहता है तो उसे यह प्रभावित नहीं करतीं. कल लाइब्रेरी से चार नई किताबें लायी है. आज से योगासन करते समय सचेत रहेगी, क्योकि ध्यानयुक्त होकर आसन करने से ही उसका लाभ मिल सकता है. आज नन्हे के स्कूल में extempore speech का टेस्ट है. नानाजी की दी एक डायरी से उसने सहायता ली है, कुछ साल पहले पिता ने ये डायरी उसे दी थी, जिनमें विभिन्न विषयों पर जानकारी है.






2 comments:

  1. "यदि मानव, मानव के प्रति प्रेम का भाव रखे तो इस संसार से सारे वैमनस्य, सारी क्षुद्रता पल भर में मिट जाये. प्रेम लेकिन सच्चा होना चाहिए"
    यदि प्रेम है तो सच्चा ही होगा - झूठा हुआ तो वो प्रेम कभी था ही नहीं भ्रम था. ओशो कहते हैं कि रहीम का दोहा
    रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय,
    तोड़े से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाए!
    बड़ा प्यारा है.. लेकिन इसका उत्तरार्द्ध ही. क्योंकि बात सच्ची है कि प्रेम एक रेशम सा मज़बूत धागा है जो इंसान को बाँधकर रखता है. और इसीलिये वो कहते हैं कि इसे कभी भी टूटने मत दो. लेकिन रहीम की दूसरी लाइन का कोई औचित्य नहीं, क्योंकि जब उसे तोड़ ही दिया तो प्रथम वह प्रेम रहा ही नहीं होगा, और टूटने के बाद गाँठ लगाकर धागे को तो जोड़ा जा सकता है हृदय को नहीं!
    .
    हँसी आ रही है कि आज फिर से वही "आलमारी में काग़ज़ बिछाकर सोने" वाली घटना की पुनरावृत्ति हो रही है.
    "कल जून कोलकाता होते हुए मुम्बई से यहाँ आ गये."
    मैं चौंक गया कि कोलकाता होते हुए मुम्बई से असम किस रास्ते से जाया जा सकता है.. तब कल की बात याद आई कि जून तो मुम्बई में हैं, इसलिये मुम्बई से कोलकाता होते हुए असम आए होंगे.
    मगर गिफ़्ट की बात छिपा गयी... अपने नहीं तो कम से कम नन्हे के लिये जो गिफ़्ट आए होंगे उसको क्यों छिपाया!! :)
    प्रेम, सत्य और ईश्वर... इन तीनों को मिलाकर सचमुच जो दौलत हासिल होती है उसका नाम है आ-नं-द!! शांति!!! सत्यम, शिवम, सुन्दरम सा!

    पुनश्च:अपनी पोस्ट के शीर्षक का चयन कैसे करती हैं आप?? मुझे बहुत अच्छा लगता है, किंतु यह एक रेयर एक्सपेरिमेण्ट है, इसलिये पूछा! :)

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  2. सही कहा है आपने, प्रेम केवल प्रेम होता है सच्चा या झूठा नहीं, वरना प्रेम के नाम पर मोह, एकाधिकार और न जाने क्या क्या होता है. पर वह यह बात नहीं जानती थी.
    आपकी टिप्पणी पढकर मुझे भी बहुत हँसी आयी, मुंबई से कोलकाता होते हुए असम आये यही ठीक है, और गिफ्ट की बात छिपाने का कोई खास कारण नहीं है...खाने पीने का सामान, कुछ वस्त्र और घर के लिए कुछ सामान यही सब रहा होगा..

    पोस्ट के शीर्षक को चुनने में एक पल लगता है जो बात दिल के करीब हो वही...यहाँ तो सब दिल का ही मामला है.

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