Today again she has to go for second sitting of rct but now she is prepared to
ask the doctor for putting less medicine. Today again it is raining like
yesterday and day before yesterday.
Nanha is reading a novel “Frankenstein” these days and she is reading “seven
habits” they are accounts of the turmoil and struggle of ordinary people
against themselves, society and illness. They give an insight to hearts of those
persons. She thinks , she should also write her mission statement and should live
more meaningfully on this earth, in their small family.
Today is the fourth
sitting of rct now she does not mind that horrible taste of medicine which
dentist puts in her tooth cavity. It is dry today so weather is somewhat hot
and humid. Talked to father in the morning, mother is doing well. Babaji said, “each one of us can get the ultimate truth if
we do sadhna, but ultimate truth can be
understood by self not by body or mind, self is the seer, if we pay our whole
attention to body and mental whims and not to our self, we can not reach there”
didi called in the morning, she liked her letter. All others also must have
received them also. Nanha went to school today after summer vacations.
जून ने अभी तक फोन नहीं
किया, शायद वह अब तक नाराज हैं. उसने फोन किया तो मिले नहीं. इस वक्त सुबह की घटना
पर विचार करें तो आश्चर्य होता है, कितनी छोटी सी बात कितना बड़ा रूप ले लेती है.
उन्होंने guided meditation किया सात बजने ही वाले थे पर जून ने पिता को फोन करने
को कहा, उसने उन्हें मना भी किया पर उसे फोन पकड़ा कर वह पीछे कमरे में ही टहलने
लगे उसकी हर एक बात व हरकत पर नजर रखते हुए, अब जैसा कि उसके साथ होता है फोन पर बात
करते वक्त उसका सारा ध्यान उधर ही होता है अपने आस-पास तक की खबर नहीं रहती, जब
उसने माँ से कहा अच्छा रखते हैं तो उनके फोन रखने का इंतजार करने लगी जब उन्होंने
रखा, ऐसा उसे लगा तो उसने भी फोन रख दिया लेकिन तब तक भी उसका सारा ध्यान उनके साथ
हुई बातचीत पर ही केन्द्रित था तभी बीच में जून की क्रोध से भरी छि सुनाई दी तो वह
वास्तविकता में आयी, सचेत हुई उन्होंने पूछने पर बताया कि ‘फोन रखते हैं’ कहने और
रखने के मध्य आधा मिनट लगा, सो पहले ही फोन काट देना चाहिए था, पर उस वक्त जो वह
महसूस कर रही थी, जो सोच रही थी उसमें इन दुनियावी छोटी-छोटी बातों के लिए जगह ही
कहाँ थी. हाथ अपना काम कर रहे थे पर मन अब भी वहीं था. कई बातें आँखों से देखने की
नहीं होतीं मन से महसूस करने की होती हैं.
आजकल उसकी मनोस्थिति उतनी
शांत नहीं है जैसे घर जाने से पूर्व थी. शायद अस्पताल के चक्कर लगाने के कारण, आज
सुबह उठी तो neck भी stiff थी. मन में कई संकल्प-विकल्प उठ रहे हैं. बगीचे में भी
काम पेंडिंग हो गया है, माली रेगुलर नहीं आ रहा है और नैनी से कार्य करवाने में
उसने ही आलस्य दिखाया, घर की सफाई भी जो आने के बाद ८० प्रतिशत हुई थी उतनी ही है.
गुलदाउदी के गमले तैयार करने हैं. कल जून लंच पर आये तो सामान्य थे जैसे कुछ हुआ
ही न हो, वह व्यर्थ ही सोचती रही. कल life में कई अच्छे लेख पढ़े मन की डगमगाती नाव
को कुछ ठौर मिला. सुबह दायें तरफ की पड़ोसिन को बाएं तरफ की पड़ोसिन से किसी दिन मिलने
जाने के लिए बात की.
ये छोटी-छोटी नोंक-झोंक या कंफ्यूज़न परिवार को मज़बूत बनाने में मदद करते हैं! मगर दाँतों का दर्द, उफ़्फ़ ! बस वो जल्दी से नॉर्मल हो जाए! क्योंकि दवा की कड़वाहट न तो उसे साधना करने देती होगी, न ध्यान!!
ReplyDeleteसही कहा है
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