उन्हें यहाँ आये ग्यारह दिन हो गये हैं और अब घर की याद आने लगी
है, सभी से मिलना भी हो गया, कुछ से बिछड़ना भी हो गया. जून का भी मन अब यहाँ नहीं
लग रहा है. जमीन खरीदने की जो योजना थी वह पूरी होती नजर नहीं आ रही. गर्मी के
कारण व बार-बार बिजली चले जाने के कारण भी तथा थोड़ा सा भी एकांत न होने के कारण भी
यहाँ अब और रहना रुच नहीं रहा है. माँ की तबियत अब काफी संभल गयी है, वह थोड़ी ही
दूर पर स्थित भाई के घर रह रही हैं, पिता को इस घर से उस घर कई बार चक्कर लगाने
पड़ते हैं, उम्र भी हो गयी है, थकान के कारण या अपने स्वभाव के कारण कभी-कभी परेशान
हो जाते हैं. जून ने कल उसके जन्मदिन पर सभी को ‘मेरीडियन होटल कम ढाबा’ में डिनर
पार्टी दी बाद में मिठाई भी खिलाई. कल वर्षों बाद वह उस स्थान पर भी गयी जहाँ पिता
रिटायर्मेंट से पहले रहा करते थे, अपना पुराना घर व लाइब्रेरी देखकर बहुत अच्छा
लगा, वे पेड़-पौधे और रास्ते सभी कितने जाने-पहचाने थे. आज सुबह दोनों बहनों से फोन
पर बात की. इस समय सुबह के साढ़े नौ बजे हैं, कल रात भयंकर आंधी-तूफान में तो बिजली
चली गयी थी पर इस वक्त आ गयी है. नन्हा नहाने गया है, जून बड़े भाई को स्टेशन छोड़ने
गये हैं. वापसी में ऋषिकेश जाने वाली बस या टैक्सी के समय आदि का जायजा लेने भी,
वे पहाड़ों पर घूमने जाने का कार्यक्रम बना रहे हैं. पिता जी आज पेंशन लेने डाकघर
गये हैं.
उत्तर काशी, सुबह के पांच
बजे हैं, वे गंगोत्री जाने के लिए तैयार हैं. जो यहाँ से लगभग सौ किमी दूर है. कल
सुबह साढ़े छह बजे वे घर से निकले और शाम चार बजे यहाँ पहुंच गये. यात्रा आरामदेह
थी सिवाय उन ढाई घंटो के इंतजार में, जो उन्हें ऋषिकेश में ड्राइवर को यात्रा
परमिट दिलवाने में बिताने पड़े. शाम को वे “नेहरु इंस्टीट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग”
देखने गये जो इस टूरिस्ट रेस्ट हाउस से पांच किमी की दूरी पर है. उसके बाद वे काशी
विश्वनाथ मन्दिर तथा भागीरथी नदी देखने गये, जो उत्तरकाशी की जीवन रेखा है. नदी का
पाट चौड़ा है और तीव्र गति से बड़ी-बड़ी चट्टानों व् पत्थरों को लांघती हुई बहती है.
उनका ड्राइवर जिसका नाम मुहम्मद जाकिर हुसैन है एक खुशदिल इन्सान है. पिछली रात
उन्होंने इसी रेस्ट हाउस के रेस्तरां में भोजन किया, ठीकठाक सा था, नन्हे को पसंद
आया. कल यात्रा के दौरान वह ज्यादातर समय सो रहा था, पर आज वे तीनों पहाड़ी दृश्यों
का आनन्द लेंगे. जून ने पिता को फोन करके उनका हालचाल लिया और बताया कि वे ठीक
हैं. कल शाम ही वे घर पहुंच जायेंगे.
‘होटल एकांत’ ! अपने नाम के
अनुसार यह होटल एकांत में ही स्थित है. उत्तरकाशी शहर की भीड़भाड़ से दूर, शहर से दस
किमी पहले ही गंगोत्री मार्ग पर स्थित यह होटल देखकर वे रुक गये और यहाँ एक कमरा
भी ले लिया है, कमरा खुला-खुला है, सामने की दीवार पर शीशे की खिड़की है जिसमें
सामने विशाल हिमालय की पर्वत श्रृंखला दृष्टि गोचर हो रही है. जिसपर सीढ़ी नुमा खेत
बने हैं तथा घाटी में भागरथी शोर मचाती हुई बह रही है. सड़क के इस ओर उनका यह कमरा
है और सडक के उस ओर नदी व पहाड़, कुछ दूर पहले ही नन्हा नदी तक जाने का रास्ता देख
कर आया है. वे सभी स्नान करके वहाँ जाने वाले हैं. गंगोत्री होकर वे वापस लौट आये
हैं, उन्हें आश्चर्य हुआ जब बसों की लम्बी कतारें वहाँ देखीं, लोगों का एक हुजूम
वहाँ आया हुआ था, जैसे कोई सामान्य धार्मिक स्थल हो, लेकिन नदी का बर्फ सा शीतल जल
और एक निशब्द कर देने वाली निस्तब्धता भी थी, कुछ लोग उसी बर्फीले पानी में नहा
रहे थे, उन्हें तो पानी छूते ही कंपकंपी होने लगी. मन्दिर में भी बहुत भीड़ थी,
उन्होंने कुछ समय आसपास भ्रमण करते हुए बिताया फिर उत्तरकाशी के लिए लौट पड़े. वर्षों
बाद गढवाल आने का सुअवसर उसे मिला है, इसके ऊंचे पर्वतों, गहरी घाटियों और तेज
तूफानी नदियों ने पहले भी मोहा था आज भी मोह लिया है. पहाड़ की छोटी पर सरों, देवदारों
(या अन्य कोई उसी आकार के ) वृक्षों की कतारें हैं तथा डूबते सूरज की रोशनी से
बादलों के पीछे सुनहरी चमक अभी शेष है, कुछ देर पूर्व अचानक बौछार पड़ने लगी थी पर
अब थम गयी है. वे चाय पीने नीचे गये, चाय गुजराती तरीके से बनी थी, मसालेदार और
गाढ़ी भी. रह रहकर उसे घर का ख्याल आता है, वहाँ सभी ठीक होंगे. जून का मन वहाँ
नहीं लग रहा था, सो तीन दिनों के लिए वे घर से दूर आ गये, पर अब बाकी के दिन वह
माँ के साथ ही बिताएगी.
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