Friday, July 4, 2014

भावातीत ध्यान- महर्षि की देन



आज दो महान हस्तियों का जन्मदिन है, एक स्वामी विवेकानन्द और दूसरे महर्षि महेश योगी, जिनका जन्मदिन आज वे स्कूल में वार्षिक उत्सव के रूप में मनाने वाले हैं. यह डायरी जून ने उसे तब दी जब वे अपनी यात्रा से लौटे थे, पर यह इतनी सुंदर है और जून के दफ्तर से मिली है सो वह इसमें लिखने से झिझक रही थी पर आज जब उसे लगा कुछ लिखना ही है तो इसने उसे लुभाया और उसने तय किया है आज के बाद यह पूरे वर्ष यह उसके साथ रहेगी. नया साल गोवा में आया. वे वापस उस दिन लौटे जब उनके विवाह की वर्षगाँठ थी. अज दस जनवरी है, सब ठीक है बस सिवाय कभी-कभार एक उड़ते हुए से बेचैनी के ख्याल के..उसे पता नहीं क्यों, जानने का न तो प्रयास ही किया न ही समय ही मिला कि इस बेचैनी के कारण तक पहुंचे.

आज बीहू का अवकाश है, यूँ तो कल भी छुट्टी थी, परसों वार्षिक उत्सव अच्छा रहा. अब सोमवार को पुनः स्कुल खुलेगा. जून आज कोलकाता गये हैं, वहाँ से मुम्बई और फिर पनवल, जहाँ दो दिन की कांफ्रेंस है. कुल एक हफ्ता लग जायेगा. आज बहुत दिनों के बाद वह संगीत के अभ्यास के लिए गयी, टीचर ने एक बंगला गीत सिखाया बड़े ही धैर्य पूर्वक. एक गाना लिखने को भी दिया कैसेट से ही. सुबह से वर्षा हो रही थी, इस वक्त थमी हुई है पर बाहर अँधेरा है और ठंड भी. चारों तरफ एक अजीब सी ख़ामोशी है. नन्हा फाइनल परीक्षा के लिए पढ़ाई कर रहा है. दफ्तर में छुट्टियाँ शुरू हो गयी हैं. लोग वर्षा की वजह से या त्योहार के कारण अपने-अपने घरों में बंद हैं. वह थोड़ी देर बाद सांध्य भ्रमण के लिए जाना चाहती है, पर बेहतर होगा अपने लॉन का ही उपयोग किया जाये, हफ्तों बाद अकेले शाम को टहलने जाना कुछ अटपटा सा लगेगा. क्लब की पत्रिका छपकर आ गयी है.

कल रात और आज सुबह भी जून का फोन आया, वे ठीक हैं और आज किसी सम्बन्धी से मिलने जा रहे हैं. सुबह-सुबह पिता का फोन भी आया, उन्हें लग रहा था, मुम्बई से वे घर भी जायेंगे, सो कुछ दवाइयां मंगवानी थीं. जरूर जून के मित्र को भी उनका इंतजार होगा, खैर आज के माहौल में व्यक्ति इतना समझदार होता जा रहा है कि अपने व्यक्तिगत कार्यों को छोड़कर और कहीं जाने आने का न तो समय है न सामर्थ्य, न इच्छा !

आज अवकाश का अंतिम दिन है, कल से स्कूल जाना है, पूरे एक महीने बाद क्लास में जाना कुछ नया सा लगेगा. जून का फोन आज नहीं आया सम्भवत वह यात्रा में होंगे. मौसम खिला-खिला सा है, लॉन में सफाई की गयी है सो बहुत सुंदर लग रहा है. कल शाम एक सखी मिलने आई, बहुत खुश थी, पर पता नहीं यह ख़ुशी कब तक टिकेगी. कल एक दूसरी सखी ने फोन किया पता नहीं क्यों उसे अब पहले सा उत्साह नहीं होता. इस यात्रा में इतने निकट से एक दूसरे को देखकर वे पास आने के बजाय दूर हुए हैं. उसे पता है जून ऐसे में क्या कहते, समय सब ठीक कर देता है, दो, तीन, चार बार बात करने के बाद फिर पहले की सी निकटता हो जाएगी. सब धूल-धवांस झर जाएगी.

आज उसे पांच बजे उठ जाना था ताकि नन्हा समय पर स्कूल जा सके. पर सुबह पंछियों की आवाजें सुनकर उसे लगा अभी बहुत जल्दी है. वह स्वप्न देखने लगी और जब नींद खुली तो बहुत देर हो चुकी थी, नन्हे ने कहा वह सिटी बस से चला जायेगा. जल्दी से उसने टिफिन बनाया और पड़ोसी ने उसे बस स्टैंड तक छोड़ दिया. वह अपने स्कूल गयी और अभी एक घंटा पहले लौटी है, इस दौरान उसे नन्हे का ख्याल आता रहा. वह सोचती रही, स्कूल से आकर वह यही कहेगा सब ठीक रहा. आज उसका एक टेस्ट भी था. उसे खुद पर आश्चर्य भी हुआ कैसे समय पर नहीं उठ सकी, उसके मन, बुद्धि और भावनाओं तीनों ने उसे धोखा दिया. वह वास्तविकता से दूर कल्पनाओं और स्वप्नों में खोयी थी जबकि समय भाग रहा था. आज की घटना उसे यह भी याद दिलाएगी कि jun’s absence was not incident free”, it was never.

फिर कुछ दिनों के बाद उसने डायरी खोली है. जब जून यहाँ नहीं थे तो वह बेहद व्यस्त थी और जब वे आये तो उनके साथ और ज्यादा व्यस्त हो गयी. आज बहुत दिनों बाद जागरण भी सुना, कोई कथा चल रही थी पर उसे कहानियाँ सुनना पसंद नहीं है. छब्बीस जनवरी को वे दोपहर को लंच पार्टी करंगे. सुबह उसे परेड भी देखनी है, स्कूल बंद होने के बावजूद वह दिन भर व्यस्त रहेगी. परसों स्कूल में हेड मिस्ट्रेस ने उसे घर आने के लिए कहा, शनिवार को उनके घर गयी तो उन्होंने मैडिटेशन के बारे में बात की, उनका विचार था कि छुट्टी से पहले हर क्लास में कुछ मिनट के लिए ही सही अध्यापिकाओं को ध्यान कराना चाहिए. वह उनकी बात से पूरी तरह सहमत है.

She read a beautiful Swedish proverb- “Those who wish to sing always find a song”.  She wrote- …And I wish to sing the song of love and love is ‘God’. I wish to sing the songs of all things that are beautiful and good, a song of life and  song of death also.





2 comments:

  1. कभी कभी वो मुझे बिल्कुल अपने जैसी लगती है.. जैसे नई डायरी वाली बात. नई डायरी में लिखना मुझे भी अच्छा नहीं लगता था. आज भी मेरी आलमारी में कई डायरी बिल्कुल नई की नई पड़ी हैं जिनके डिब्बे भी जस के तस हैं. लिखना अब बिल्कुल छूट गया है.
    जून की बात बिल्कुल सही लगी कि दो चार रोज़ लगातार बातें करो तो धूल हट जाती है. कुछ बहुत अच्छे दोस्त जब पटना जाता हूम तो मिलते हैं, लेकिन बात शुरू करने के पहले लगता है बातों पे बर्फ़ जमी है. हटते-हटते हट जाती है.
    संगीत, प्रेम और ईश्वर पूरी सृष्टि में व्याप्त हैं. मैंने तो अनुभव भी किया है!

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  2. सही कहा है आपने..अनुभव करने के बाद कोई संदेह रह ही नहीं जाता

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