आज गोवा में उनका प्रथम दिन है, सुबह आठ बजे वे निकट के स्टेशन लोंडा पहुंच गये,
जहाँ से चार घंटों में ओल्ड गोवा स्थित टूरिस्ट होटल. शाम के चार बजे रिवर क्रूज
के लिए गोवा की राजधानी पंजिम पहुंचे. अन्य कई यात्रियों के साथ सेंटा-मोनिका बोट द्वारा मांडवी तथा जुआरी नदियों के खाड़ी में
गिरने के संगम स्थल तक की एक घंटे की यात्रा का आनन्द उठाया. नौका पर संगीत व
नृत्य का आयोजन था, गोअन तथा पुर्तगीज धुनों पर नाचते कुछ जोड़े बहुत मोहक लग रहे
था. कुछ बच्चे सांता क्लाज के साथ नाच रहे थे. नदी में अनेक सजी हुई नावें तथा
जहाज आ जा रहे थे. उनकी नाव भी रंग-बिरंगे बल्बों से जगमगा रही थी. मांडवी की
लहरों पर की इस यात्रा ने उनके चारों ओर उमंग और उल्लास का एक आवरण ओढ़ा दिया है.
गोवा के समुद्र तटों के बारे में एक उत्सुकता सभी के दिलों में थी, अगला दिन
उन्हीं तटों पर घूमते हुए बिताया. अगले दिन दक्षिण गोवा के चार सौ साल पुराने दो
चर्च देखे. सेंट कैथरीना व से-कैथेड्रल दोनों विशाल एवं भव्य चर्च हैं. प्राचीन
गोवा के रहन-सहन को दिखाता एक गाँव भी देखा. मीरामार तट पर सूर्यास्त का आनन्द
लिया. गोवा में भगवान शिव व दुर्गा के भव्य मन्दिर भी हैं.
आज वर्ष के अंतिम दिन वे ‘विलेज दर्शन टूर’ पर निकले. जहां विभिन्न पेड़-पौधों
के बारे में नई-नई जानकारियां मिलीं. कभी गोवा उनके लिए एक सुखद स्वप्न हुआ करता
था. वे जहाँ भी गये पर्यटकों का मेला दिखा. यहाँ की हवा में कुछ ऐसा है जो तनमन को
हल्का कर जाता है. मस्ती की गंध के साथ-साथ मछलियों. समुद्री जीवों और खारे पानी
की गंध भी यहाँ कण-कण में घुली हुई है.
आज नव वर्ष का प्रथम दिन है. पूर्व रात्रि को वे मास प्रेयर के लिए चर्च गये,
वहाँ सारा कार्यक्रम पुर्तगाली भाषा में हो रहा था. सारा हॉल लोगों से भरा था. बारह
बजते ही बाहर कुछ लोग पटाखे चलाने लगे, कुछ नाच रहे थे. उन्हें दोपहर को ही मुम्बई
के लिए विदा लेनी है
मुम्बई के नये-नये फ़्लाईओवर्स पर उनकी कार जब दौड़ती हुई गुजरी तो ऐसा लग रहा
था मानो वे भारत में नहीं किसी आधुनिक देश में हैं. दिन भर एसल वर्ल्ड, गेटवे ऑफ़
इण्डिया, मैरिन ड्राइव की सैर के बाद सभी अगले दिन के लिए ऊर्जा जुटाने के लिए
विश्राम करना चाहते थे. स्वप्न में उसने दूधिया रौशनी में नहाये रस्तों के किनारे
लहराता सागर देखा.
बच्चों को नेहरु म्यूजियम तथा नेहरु प्लेनेटोरियम में बहुत कुछ सीखने को मिला.
वाकई मुम्बई दुनिया के चुन्निदा खुबसूरत शहरों में से एक है. कल उन्हें ट्रेन से
कलकत्ता जाना है जहाँ से फ्लाईट द्वारा परसों वापस असम.
हमारी स्मृतियों में बसे गोवा का दुबारा ब्रमण कर लिया हमने... सब कुछ ऐसा लगा जैसा हमने देखा था... एक बात हमेशा दिमाग़ में घूमती है... उसकी यादों में हमेशा नया साल कैसे आ जाता है. मुझे लगता है दर्ज़न भर पोस्टों में से आधा दर्ज़न में तो नये साल का ज़िक्र रहा ही होगा.. यहाम भी है! :)
ReplyDeleteफिर फिर आता है नया साल
ReplyDeleteजैसे कोई नया फूल
या नन्हा शिशु
अथवा आषाढ़ का पहली बारिश
पुनर्जीवित होता है जैसे बार-बार प्रेम
सारी दुश्चिंताओं को धकेलता
नई सम्भावनाओं के द्वार खोलता...
फिर फिर आता है नया साल
मनुष्यत्व में परम के विश्वास को दृढ करता हुआ...