Friday, July 11, 2014

स्वप्न का संगीत


गर्मियों के दिन थे, चारों ओर से खिड़की दरवाजे बंद, भारी पर्दों के कारण दिन में भी कमरे में खासा अँधेरा था, वह एयर कंडीशड कमरे में हल्का मखमली कम्बल ओढ़े लेटी थी. पास ही माँ भी सोयी थीं कि अचानक उसका छोटा भाई कमरे में एक आगंतुका को लेकर दाखिल हुआ और बोला, दीदी यह तुम्हारी मेहमान हैं, उसने कसमसाई आँखों से देखा, उनकी एक परिचिता थीं. वह सिर हिलाते हुए अभिवादन कर जब बाथरूम की ओर बढ़ी कि आँखें व चेहरा धो ले तब तक वह पलंग के एक किनारे पर बैठ चुकी थी. माँ ने कुर्सियों की ओर इशारा करते हुए कहा, वरुणा, यहाँ बैठो, वहाँ मिसेज राय बैठेंगी तो वह उठकर इधर आ गयीं. उसके छोटे भाई भी पीछे-पीछे आ गये जब वह चेहरे पर पानी के छींटे डाल रही थी, उसने झुंझलाते हुए कहा, मेहमान को बाहर के ड्राइंग रूम में बैठाया जाता है कि सीधा अंदर के कमरे में ले आते हैं, भाई चुप रहा शायद उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था. पर अचानक उनके कानों में कई आवाजें पड़ने लगीं तो झांककर देखा. कमरे में कई महिलाएं आ चुकी थीं और बैठ चुकी थीं. माँ सबको बैठा रही थीं. तब उसे सूझा कि माँ की ‘महिला सभा’ आज उनके यहाँ होने वाली थी, पर माँ ने तो इसके लिए कोई तैयारी नहीं की थी. कम से कम उसकी जानकारी में तो नहीं, देखते ही देखते उनका विशाल कमरा जो बीच का दरवाजा खोल दिए जाने के कारण और बड़ा हो गया था, लोगों से भर गया. माँ ने एक गान शुरू किया तो कुछ महिलाओं ने उनका साथ देना शुरू कर दिया. अब आने वालों में पुरुष भी शामिल हो गये थे. वह भी एक तरफ बैठ गयी थी, तभी एक लड़की ने जो उसकी ही उम्र की रही होगी सबको सम्बोधित करते हुए कहा, अब आपको कुछ शब्द दोहराने हैं, जो अरबी भाषा में थे पर वे धार्मिक अर्थ नहीं रखते थे. इसके बाद की घटनाओं को याद करके अब भी वह सिहर उठती है.

सभी लोग मनोयोग से कार्यक्रम में भाग ले रहे थे तभी शहनाई वादन की घोषणा हुई, वह माँ की चतुराई की प्रशंसा किये बिना न रह सकी, वह सारा इंतजाम पुख्ता करवा चुकी थीं. वादक जन-समूह से गुजरता हुआ सामने मंच की तरफ बढ़ा, शहनाई के सुर हवा में गूंज रहे थे, वह कुछ देर के लिए उन सुरों में खो गयी थी जब होश आया तो देखा शहनाई उसके हाथ में है और वह पूरी दक्षता से बजा रही है, आयोजकों में से एक ने शहनाई लगभग उससे छीन ही ली, वह इतना ही कह सकी, यह उसके पास कैसे आई ? अगला कार्यक्रम शुरू होने से पूर्व कुछ और घोषणाएं हुईं फिर अख़बार के जैसे कुछ पेपर लोगों को वितरित किये जाने लगे. उसने फिर देखा अपने आप ही उसके हाथों में एक पेपर था, फिर दूसरा और जैसे ही वितरक किसी को पेपर पकड़ाता वह किसी अदृश्य ताकत के बल से उसके हाथों में खिंचा चला आता, आयोजक घबरा गया और टीवी स्क्रीन की ओर सभी का ध्यान आकर्षित करने लगा. उसे भी उसने पढ़ने से मना कर दिया पर न चाहने पर भी उसके हाथ उठने लगे, जिन्हें वह सप्रयास रोकन लगी, कई बार की कोशिश के बाद अचानक हाथ ढीले पढ़ गये और तब उसे लगा कि अब चाह कर भी वह पेपर नहीं पढ़ पायेगी और इस चेतना के होते ही वह फूट-फूट कर रो पड़ी, यह कहते हुए कि उसने इसे हमेशा के लिए खो दिया, कुछ क्षणों के लिए दैवी शक्ति उसे मिली थी पर असावधानीवश उसने उसे खो दिया था. उस पेपर में जाने कौन सा संदेश लिखा था जो प्रकृति उसे सिखाना चाहती थी. उस पल के बाद से उसकी यह कोशिश रहती है कि प्रकृति से दान में मिली प्रतिभा को निखरे उसे व्यर्थ न जाने दे.

कितना अद्भुत स्वप्न उसने कल रात देखा और सुबह उठते ही लिख लिया.    


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