Wednesday, July 31, 2013

अभी मत जाओ भैया..


आज पूरे चार दिनों के बाद नन्हे का स्कूल खुला था और जून का दफ्तर भी, सो सुबह व्यस्त थी. कल दोपहर का भोज अच्छा रहा, उसकी सखी का घर कुछ बिखरा-बिखरा सा है और इसी तरह उसका मिजाज भी, शायद स्वास्थ्य के कारण, पर सदा ही वह अपने इर्द-गिर्द बुने एक दायरे में ही रहती है. इसके विपरीत एक दूसरी सखी अन्यों की बात सुनती है. तीन दिनों के बाद जून को फिर से जाना है, सो इस साथ को अधिक से अधिक खुशगवार बनाना है. मौसम ने अपना रुख वही रखा है, दिल्ली तथा उत्तर भारत में शीत लहर, कश्मीर में हिमपात और असम में बादल हैं. उनके बगीचे में कैलेंडुला खिल गये हैं, बहुत सुंदर लगते हैं और दो गुलाब भी, उस पौधे में जो मार्केट से लाकर उन्होंने पिछले साल लगाया था.

आज शाम को वे एक मित्र के यहाँ गये, एक शंख तथा ‘की रिंग’ लेकर, पहले किसी भी उपहार को देखकर उसकी सखी ने इतनी ख़ुशी जाहिर की हो, याद नहीं पड़ता, आज का उसका उत्साह देखते ही बनता था, उसे भी अंदर तक छू गया और आज की शाम अच्छी बीती, उसने मन लगाकर चाय बनाई और अपने आध्यात्मिक अनुभवों के बारे में बताया, आजकल वह स्वामी योगानन्द जी की किताब पढ़ रही है, पहली बार जब यह पुस्तक नूना ने पढ़ी थी अद्भुत असर हुआ था, उन दिनों जून अस्वस्थ थे, छोटी बहन की परेशानी भरी चिट्ठी आई थी और उसका मन शांत था, एक अपूर्व शक्ति का अनुभव होता था, ईश्वर पर विश्वास प्रगाढ़ हो गया था और प्रतिक्षण उसे उसकी निकटता का अनुभव होता था. आज भी यह पुस्तक पढ़ना उसे अच्छा लगता है. परमहंस योगानन्द जी जैसे साधकों के कारण ही भारत का स्थान विश्व में अनुपम है. यह एक ऐसा ज्ञान है जिसे हर व्यक्ति को चाहे वह वैज्ञानिक हो या सिपाही व्यापारी हो या विद्वान् सभी को आवश्यकता है. अपने आप को जानने का प्रयास और फिर अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास सभी को आगे ही ले जायेगा. प्रारब्ध में आये सभी कर्मों को निस्वार्थ भाव से किन्तु पूरे मनोयोग से करते जाना ही ज्ञानी का लक्षण है. सुख-दुःख, हानि-लाभ में सम भाव रखते हुए जीवन के मार्ग पर चले जाना उस ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का ज्ञापन है.

...और आज जून जाने वाले हैं, शाम चार बजे नाईट सुपर से, फिर कुछ दिन उसे ऐसे मिलेंगे जब अपने आप का साथ देना होगा, खुद से बातें करनी होंगी, थोड़ा अपने को बेहतर जानने का मौका मिलेगा और दूर रहकर जून को भी ठीक से देख पायेगी, मन की आँखों से, उनकी याद आएगी, ठीक है पर उदासी नहीं होगी, इसका उसे यकीन है. वह उन दिनों को भी उनकी खूबसूरती के साथ जियेगी. शाम को नन्हे के साथ घूमने जाना फिर उसकी बातें और उसके साथ पढ़ना-खेलना, बीच- बीच में यह कहते जाना, पापा यह कर रहे होंगे ! आज उसने सभी पत्रों के जवाब दे दिए. बुआ जी के यहाँ पोता हुआ है. उन्हें बधाई का पत्र भेजना है. कल शाम वे एक मित्र परिवार में गये, उनका छोटा सा बेटा नन्हे को छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं था, बड़ी मुश्किल से वे वापस लौटे.



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