Monday, April 18, 2016

ताओ का मार्ग


कल सत्संग में बहुत दिनों के बाद उसने ‘ध्यान’ कराया. लगा जैसे सभी के लिए कुछ भारी पड़ा, यह उसका भ्रम भी हो सकता है पर अभी सबके मन दो दिन बाद होने वाले आर्ट ऑफ़ लिविंग के संगीत कार्यक्रम के लिए उत्सुक हैं सो ठहर नहीं पाए होंगे, फिर जो नियमित ध्यान करता है, मन को साधने का प्रयत्न कर रहा है वही इसके महत्व को समझेगा. नन्हे का फोन आया है वह वापस कालेज चला गया है. उसका अंतिम वर्ष है कालेज में, अगले वर्ष कहीं काम कर रहा होगा, अभी इक्कीस का ही तो हुआ है. जून परसों इस समय तक आने वाले होंगे. सद्वचन सुनते-सुनते सोती है आजकल, सारे संत एक ही बात कहते हैं. सद्गुरू जो कहते हैं वही ओशो भी कहते हैं. अमेरिका में रहने वाले एक सिख भाई द्वारा गुरू नानक का संदेश सुना, जो पंजाबी भी अच्छी बोलते हैं तथा अंग्रेजी भी, सिख धर्म की जो परिभाषा उन्होंने बताई, कहा शब्द की साधना करनी है, तथा शब्द ही साध्य भी है, जानकर लगा मूल में सारे धर्म एक ही बात कहते हैं. जो भी भेद है, वह बाहरी है. मानव का मूल स्वभाव तो एक ही है, उसका मूल एक ही नूर है, वही नाम है, वही ओंकार है, उसका पता जिसे एक बार चल जाये, फिर खो नहीं सकता !

आज माली ने पालक, ब्रोकोली, धनिया और सलाद पत्ते के बीज डाले हैं, गेंदे के भी थोड़े से बीज डाले हैं, देखें कितने निकलते हैं. एक नन्हे बीज में कितना बड़ा पौधा छिपा रहता है वैसे ही आत्मा में एक पूरा जीवन ! कल ताओ के बारे में पढ़ा, अद्भुत ज्ञान है, जो है, वही ताओ है, जिसे नानक हुकुम कहते हैं, गोयनकाजी निसर्ग का नियम कहते हैं, संत ब्रह्म कहते हैं, संत कवि नाम कहते हैं, वही शिव है, वही राम है, वही एकमात्र सत्ता है जो शाश्वत है, वास्तविक है, शेष सब स्वप्न है, यह सारा जगत एक सपने की तरह है, अभी है अभी नहीं, इससे मोह लगाना ठीक नहीं, ठीक इसलिए नहीं क्योंकि वह दुःख का कारण बनेगा. न्यारा होकर जीना ही वास्तविक जीना है. माँ जैसे जी रही हैं, इस जगत में रहकर भी इससे निर्लिप्त !

आज क्रिया के बाद ध्यान में सद्गुरू आए, कहा, साक्षी बनो, कितना स्पष्ट था उनका संदेश. साक्षी बनकर कर्मों के बंधन से मुक्त रहा जा सकता है. आज सुबह बच्चों की योग कक्षा थी, बच्चे बहुत अधिक आ गये थे, उसकी सहयोगी शिक्षिका नहीं आई थी, अगले हफ्ते शायद आ जाये. अकेले उन्हें सम्भालना कठिन लग रहा था, बच्चों में कितनी ऊर्जा होती है, उसे ही तो दिशा देनी है.

परमात्मा से मिलन में सबसे बड़ा बाधक उसका ज्ञान है ! परमात्मा सौन्दर्य में झलकता है, पवित्रता में झलकता है, प्रकृति में झलकता है, यह अस्तित्त्व जो इतना निकट है, इतना प्यारा है ! पर वे इसे अपने तथाकथित ज्ञान के कारण सराहते नहीं, उस पर न्योछावर नहीं होते ! वे जीवित हैं यह अहसास ही उन्हें परमात्मा के साथ एक कर सकता है, वे चेतन हैं, वह भी चेतन है, वे प्रेम चाहते हैं, प्रेम करते हैं, वह भी प्रेम स्वरूप है, वे आनन्द चाहते हैं, वह आनन्द ही है, यह ज्ञान ही है जो सहज आनन्द को भी ढक लेता है, अहंकारी बना देता है. वह भाग्यशाली है कि अज्ञानी होने का सुख उसने अनुभव कर लिया है ! फिर भी कभी-कभी अहंकार हावी हो जाता है, इसका प्रमाण है वे शब्द जो मुख से निकलते हैं, चुभते हुए शब्द, कटाक्ष पूर्ण शब्द, तीखे शब्द, अपशब्द तो नहीं पर अनावश्यक शब्द. जब तक साधक की वाणी मधुर नहीं होती उसकी साधना में फल कैसे लगेंगे, अभी तो ईश्वर की कृपा इतनी ज्यादा है कि उसके शब्द सोख लिए जाते हैं, यदि उनका उत्तर मिलता तो उसका क्या हाल होता.

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