Friday, April 22, 2016

दीवाली - प्रकाश पर्व


कल दीवाली है, उसे एक संदेश लिखना है !
फैले चारों ओर उजाला
स्वच्छ बनें घर-आंगन अपने,
दीप मालिका के उत्सव पर
लक्ष्मी पूर्ण करें सब सपने !

आज दीपावली का उत्सव है, यूँ तो उन्होंने कल भी मनाया था, आज शाम को भी घर पर मेहमान आयेंगे, अच्छा लगता है दीपों का यह प्रकाश पर्व, यह परंपरा न जाने कितनी पुरानी है, लाखों वर्ष पुरानी ! वे भी न जाने कितनी बार इसे मना चुके हैं पर हर बार यह नया उत्साह भर जाता है. सभी से बात भी हुई, कुछ से फोन पर कुछ से sms द्वारा. अभी कुछ देर पूर्व जून की इक्कीस वर्ष पूर्व की डायरी पढ़ी, वह उन्हें पढ़ाती थी, ऐसा लिखा है !
आज सुबह वे छह बजे उठे, रात देर से सोये थे, दीवाली का भोज, पटाखे, दिए और मोमबत्तियां ! शाम को एक सखी के यहाँ जाना है. सुबह ध्यान में अद्भुत अनुभव हुआ. भीतर कितना सुख है, लूट मची है और वे हैं कि उस ओर देखते तक नहीं ! जीवन कितना अद्भुत है यह बात वही जान सकता है जिसने एक बार भी आत्मा का अनुभव किया हो, अन्यथा शेष सभी एक मोह की नींद में असत्य को ही सत्य मानकर दुःख-सुखी होते रहते हैं. आत्मदर्शी के लिए जगत में रहना कितना सहज हो जाता है जैसे कोई पंछी अप्रयास गगन में उड़ता है, जैसे कोई मीन अनायास ही जल में तैरती हो, जैसे कोई नवजात शिशु सहज ही अपने मुँह खोल अंगड़ाई लेता हो जैसे सुबह अपने आप हो जाती है और रात भी तारों व चाँद सहित आकाश में अपना साम्राज्य सजाती हो !
आज दोपहर पन्द्रह मिनट के अंदर-अंदर गोहाटी, बारपेटा, कोकराझार तथा बोगाईगाँव में ग्यारह बम विस्फोट हुए. आतंकवादियों का एक और हमला, कितने मरे कितने घायल कोई हिसाब नहीं. लोगों के मनों में डर भर गया है. हालात दिनोंदिन बिगड़ते जा रहे हैं. यह शांतिकाल तो नहीं कहा जा सकता, युद्ध की विभीषिका से भी भयानक है यह काल. लोग धरा पर बोझ हो गये हैं क्या जो..महाभारत के युद्ध में लाखों मरे थे, आज भी आये दिन लोग मर रहे हैं, कभी बम का शिकार होकर तो कभी भूकम्प या बाढ़ का.

आज घर जाना है, यूँ तो घर यहीं है पर वे हजारों साल परदेस में रहने पर भी परदेसी ही बने रहते हैं. कल पुस्तक मेले में किताबों का दुकानदार यही तो कह रहा था. कल गोहाटी में जो हादसा हुआ है, कितना भयानक था, आज न जाने कितने घरों में मातम मनाया जा रहा होगा, कितने घरों में मौत का सन्नाटा होगा, कुछ सिरफिरे आतंकवादियों ने लोगों का शांति से जीना मुश्किल कर दिया है. आज शाम को वे यात्रा पर निकलेंगे, मौसम खुला-खुला है, धूप में अब पहले की सी तेजी नहीं रह गयी है. उसने आवश्यकता से अधिक सामान रख लिया है, शायद अधिक दिन रुकना पड़े. एक व्यक्ति को जीने के लिए कितना चाहिए पर वे कितनी-कितनी वस्तुएं जुटा लेते हैं. वापस आकर वह अपने जीवन में परिवर्तन करने वाली है. ओशो कहते हैं मनुष्य कभी अपने वर्तमान से संतुष्ट नहीं होता, वह सदा एक सुखद कल की आशा में खोया रहता है.  

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