Monday, September 15, 2014

यादों की परछाइयाँ




 ध्यान वह स्थिति है जहाँ मन नहीं रहता अथवा तो मन समाहित हो जाता है, न भूतकाल की चिंता न भविष्य की कल्पनाएँ ! संसार समय की बदलती हुई स्थिति को दर्शाता है. ध्यान समय, संसार और विचार तीनों से पार ले जाता है. ध्यानस्थ मन ही ज्ञान का अधिकारी हो सकता है. ध्यान एक तरह से मन का स्नान है, मन उज्ज्वल होता है, हल्का होता है, स्वस्थ होता है अर्थात स्व में टिक जाता है, स्वच्छ होता है अर्थात निर्मल होता है. आज बाबाजी ने कितनी सुंदर बातें कहीं, जगत का अभिन्न उपादान ईश्वर है, जो इस जगत को ईश्वरमय जान लेता है उसका ध्यान टिकता है. आज सुबह छोटी बहन से बात की उसे इसी माह पुनः फील्ड ड्यूटी जाना है, अगले माह ही पूरा परिवार पुनः मिलेगा. कल शाम जून ने उसकी डायरी पढ़ी, वर्षों बाद उन्होंने ऐसा किया है. नन्हे की आज बायोलॉजी की प्रयोगात्मक परीक्षा है. कल रात खाने के समय उसका मनपसन्द कार्यक्रम टीवी पर देखने को नहीं मिला तो कैसे चुप हो गया था, हरेक के पास नाराजगी जाहिर करने का कोई न कोई उपाय है.

इस क्षण ऐसा लग रहा है, सब ठीक है. आज से दो हफ्ते पहले आज ही के दिन वे कितने उदास थे. एक बार पढ़ा था कि जब भी किसी दुःख या विपत्ति का सामना करना पड़े तो उसे दो हफ्ते या दो महीने बाद कल्पना में देखना चाहिए कि उस वक्त उसका क्या प्रभाव पड़ रहा होगा. दुःख की घड़ी में बुद्धि भ्रमित हो जाती है, सही निर्णय लेना तो दूर सही वार्तालाप भी नहीं कर पाते. अब माँ की यादें ही उनके साथ रह गयी हैं, वह स्वयं पूर्ण विश्रांति पा चुकी हैं. उसने याद करने की कोशिश की, पिछले वर्ष या पिछले महीने आज के दिन वे किस मनः स्थिति में थे. दुःख या सुख का अनुभव किया होगा किन्तु कुछ याद नहीं आया, वह समय बीत गया परन्तु वे फिर भी हैं ऐसे ही आज के सुख-दुःख भी बीत जाने वाले हैं. वे साक्षी भाव में उसे देखते चलें. उसमें डूब कर अपनी मानसिक, आत्मिक व शारीरिक ऊर्जा का हनन न करें. सन्त कहते हैं, सारा संसार सपना  है और जो उसे देखने के योग्य बनाता है वह परमात्मा ही अपना है. कल उसने बैक डोर पड़ोसिन के यहाँ, जो घर में ही पार्लर चलाती है, हेयर कट करवाए. बहुत अच्छे तो नहीं कटे पर जून ने कहा ठीक हैं, और उसके जीवन की नैया की पतवार तो उनके ही हाथ में है. गुजरात में कल फिर भूकम्प के झटके महसूस किये गये, भयभीत और पीड़ित लोग और घबरा गये. ईश्वर इतनी परीक्षा क्यों ले रहा है. धीरे-धीरे वहाँ जीवन सामान्य होता जा रहा था. पुनर्निर्माण का कार्य भी शुरू हो चुका है.

कल सुबह जून को उसने जब परेशान होकर कहा कि छोटे भाई ने फरवरी में आने के लिए मना किया था अपने बच्चों की परीक्षाओं के कारण और इस विषय में बहनों से ही उसकी बात हुई है तो वे सोच में पड़ गये. उन्होंने भी तो नन्हे की परीक्षाओं को महत्व देते हुए उनके बाद ही यात्रा करने का निर्णय लिया था. दोनों का ही दिन सोच-विचार में बीता, पर शाम होते-होते उन्होंने निर्णय ले लिया कि अब इस बात को यहीं छोड़कर आगे बढ़ने का वक्त आ गया है. बड़े भाई का फोन आया, उन्हें उसकी फ़िक्र है ऐसा लगा, उन्होंने पुनः फोन करने को कहा है. कल रात वे ठीक से सो पाए, फिर भी एक स्वप्न तो उसने पिछली कई रातों की तरह देखा जो माँ से जुड़ा था. अभी अभी ससुराल से फोन आया वे लोग इस महीने के अंत तक नये मकान में चले जायेंगे.

कल रात छोटे भाई का फोन आया, उसके अनुसार उन्हें इस बात का आभास नहीं था कि आने को मना करना इतना बुरा लगेगा. उन्होंने सामान्य तौर पर यह बात कही थी. छोटी बहन ने माना कि उसने ही पिता को इसके बारे में बताया था. जून ने भी सभी से बात की, इतने दिनों का उहापोह खत्म हो गया. उसने दीदी को भी धन्यवाद देने के लिए फोन किया जिन्होंने भाई को नूना की मनः स्थिति से परिचित कराया पर वह पूजाघर में थीं, उसने जीजाजी को संदेश दे दिया.  

आज सुबह बहुत दिनों बाद वे आराम से उठे, क्यों कि रात आराम से बीती. कल ‘जनगणना’ कार्यालय के कर्मचारी आये, उसने उनके प्रश्नों के उत्तर दिए. उनका घर जाना अब तय हो गया है. मन जैसे हल्का हो गया है. इस दौरान उन्हें भाई व दीदी के शहर भी जाना है. हो सका तो एक दिन के लिए मामीजी से मिलने उनके शहर भी जाना है. बड़ी बुआ जी के साथ भी एक दिन बिताना है. पैतृक निवास पर भी जाना होगा. चचेरी बहन से मिलना है. फुफेरी व ममेरी बहन से फोन पर बात करनी है. छोटी बुआ से भी वह बात करेगी, हो सका तो रास्ते में मासी के घर भी जाएगी. वह उन सब के साथ मिलकर माँ की उन यादों को बांटना चाहती है जो उनके मध्य साझी हैं. इसके अलावा अपनी किताब के लिए प्रकाशक की तलाश करनी है.   


1 comment:

  1. ध्यान के विषय में कितनी महत्वपूर्ण बात कही है. सचमुच ध्यान एक ऐसी ही अवस्था है. मैंने कई बार चेष्टा की, लेकिन पता नहीं क्यों मेरा मन बहुत विचलित रहता है. कई बार मित्रों को कहता भी हूँ कि अब शांति शायद मरने के बाद ही मिलेगी.

    परिवार से मिलना और उसके पहले की स्थिति बड़ी थ्रिल्लिंग होती है. हमें भी छठ में पटना जाना है और घर पर बही से तैयारियाँ शुरू हो गई हैं.

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