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Friday, June 14, 2019

वस्त्रों पर सिलवटें



आज उच्च स्तरीय कमेटी के लिए नये अतिथि गृह में विशेष भोज का आयोजन किया गया है. उन्हें भी जाना है. सभी उच्च अधिकारी भी उपस्थित होंगे. सुबह चार घंटे उनमें से एक विशिष्ट महिला अतिथि के साथ बिताये, साथ में क्लब की प्रेसिडेंट भी थीं और एक अन्य अधिकारी की पत्नी. उन्हें लेकर ड्रिलिंग साइट पर भी गये. तेल के कुँओं की ड्रिलिंग कैसे होती है, नजदीक से देखा, समझा. आज सुबह उनके लिए एक कविता लखी थी. उनके पति देश के जाने-माने वैज्ञानिक हैं, उनकी उम्र सत्तर पार कर चुकी है पर अभी तक कार्यरत हैं. क्लब की प्रेसिडेंट के साथ काम करना अच्छा लग रहा है, वह काफ़ी जानकारी रखती हैं और कम्पनी को अपने परिवार की तरह मानती हैं.

आज सुबह शीतल थी पर अब धूप निकली है. बंगाली सखी से बात हुई. वे लोग पुरानी बातों को दिल से लगाकर बैठे हुए हैं, कहने लगी, समय के साथ भी कुछ घाव भरते नहीं हैं. उसकी आवाज आज दो बार ऊँची हुई, एक बार फोन पर उस बात करते हुए दूसरी बार नैनी को समझाते हुए, जिसे 'हाँ' बोलने की आदत है, बिना बात को समझे 'हाँ' बोल देती है. उसे जो क्रोध अथवा रोष बंगाली सखी से बात करके हुआ संभवतः वही नैनी पर उतर गया और फिर मन खाली हो गया. स्वयं को जाने बिना कैसे रहते होंगे लोग, अब आश्चर्य होता है. कुछ देर पहले मृणाल ज्योति से आयी है, वहाँ एक नया दफ्तर बन गया है. अब नई कक्षाओं के लिए जगह मिलेगी. स्कूल आगे बढ़ रहा है, अल्प ही सही उसका कुछ योगदान है इसमें. अगले शनिवार को वे इस समय बंगलौर में होंगे, उसके बाद लगभग एक महीना एक स्वप्न की भांति बीत जायेगा. आज ब्लॉग पर अभी तक तो कुछ नहीं लिखा है. अब जो भी सायास होता है वह नहीं भाता, जो सहज ही होता है, वही ठीक है.

कल दिन भर व्यस्तता बनी रही. सुबह स्कूल, वापस आकर क्लब, शाम को पहले योग कक्षा, फिर क्लब. कार्यक्रम सभी बहुत अच्छे थे, वे जल्दी घर आ गये. जून ने दो बार फोन किया. परसों रात को स्वप्न देखा था, वह आँखें बंद करके उसके साथ चल रही है. एक स्थान पर जाकर आँख खोलती है तो घुप अँधेरा है. वह उससे कहती है, यह रास्ता ठीक नहीं है, वापस चलो. उसने हामी भरी. फिर वह उस पर भरोसा करके आँख मूंद लेती है पर जब वे लक्ष्य पर पहुंचते हैं तो वहाँ का दृश्य ही अलग है. वह पूछती है, मार्ग नहीं बदला था, वह कहता है, नहीं. यह स्वप्न क्या बताता है...

कल कुछ नहीं लिखा. आज यात्रा से पहले का अंतिम दिन है. जून आज घर जल्दी आ गये हैं. मौसम बदली भरा है. मौसम में फेरबदल तो चलता रहता है पर आत्मा का मौसम सदा एक सा रहता है. जैसे पानी पर लकीर हो उतनी ही देर यदि मन का मौसम बदले तो ही मानना चाहिए कि मन आत्मा में स्थित है. मन आत्मा में रहकर यदि व्यवहार करना सीख जाये तो मुक्त ही है. मन पहले से ज्यादा सजग है और दृढ़ भी. आवरण और विक्षेप घट रहे हैं, सतोगुण बढ़ रहा है. तमो और रजो गुण से मुक्त होकर सतोगुण से भी पार जाना है. आज एक स्वामी जी से सुना, वस्र्त्रों को प्रेस करने से न उन्हें कुछ मिलता है न कुछ खोता है. वस्त्र पर सिलवटें मिट जाती हैं. सिलवट जो कुछ भी नहीं हैं, मिट जाती हैं. आत्मा में न कुछ जोड़ा जा सकता है न कुछ घटाया जा सकता है. मन रूपी सिलवट मिट जाती है, जो है ही नहीं. आज नन्हे और सोनू से बात की. वे योग और आहार के द्वारा अपना वजन घटा रहे हैं.   

Thursday, June 13, 2019

जुकिनी की पौध





पौने तीन बजने वाले हैं, माली की प्रतीक्षा है. आज सुबह नर्सरी गयी थी, फूल गोभी, पत्ता गोभी, व ब्रोकोली की पौध लायी, शिमला मिर्च, बैंगन व जुकुनी की भी. उसे फोन किया, कहने लगा, आ रहा है. तीन बजे से योग कक्षा आरम्भ हो जाएगी. आज सुबह मृणाल ज्योति में भी बच्चों को योग कराया. नैनी ने बताया उसका पति गलत संगत में पड़ गया है. लोग अपना जीवन स्वयं ही बर्बाद करते हैं. एक बार कुसंगति में पड़ जाने पर उससे निकलना कितना कठिन होता है. आज नन्हे व सोनू के लिये लिखी कविता टाइप की है. अभी कुछ शेष है, उसे सुंदर फॉण्ट में प्रिंट करके ले जाना है. कल शाम को दो अध्यापिकाएं आयीं, टाइनी टॉट्स के स्वर्ण जयंती कार्यक्रम में निमंत्रित करने के लिए, एक डिनर तथा एक लंच भी है.

रात्रि के आठ बजे हैं आज 'टुबड़ी' है, गुरु नानक देव का जन्मदिन. सुबह पिताजी को उनके जन्मदिन की बधाई दी. छोटी भाभी ने बहुत अच्छी तरह से उनका जन्मदिन मनाया. केक बनाया, फूल और स्वेटर उपहार में दिए. व्हाट्स एप पर उनकी आवाज में बधाई का उत्तर दिलवाया. जून को एक सहकर्मी के यहाँ जाकर एक प्रेजेंटेशन तैयार करने का अवसर मिला. सभी पब्लिक सेक्टर्स की कम्पनी के अनुसन्धान विभागों को जोड़ने के लिए भूमिका बनाने का कार्य करने एक उच्च स्तरीय कमेटी कमेटी आ रही है. उसे ही देना है. आज वह कविता पूरी हो गयी, कुछ ज्यादा ही लम्बी हो गयी है, जून इसे प्रिंट करके ला देंगे. आज भी योग वसिष्ठ पर स्वामी अनुभवानंद जी का प्रवचन सुना. मन जब अपने स्वरूप में देर तक टिकने लगता है. एक सहज प्रकाश की नदी में डूबता-उतराता है और नील अम्बर में निर्बाध उड़ता है. जीवन मुक्त इसी को कहते हैं. आत्मा और परमात्मा का भेद भी है और अभेद भी, ज्ञान और भक्ति का अनोखा का संगम ! जीवन कितना सुखद हो सकता है, इसे आत्मज्ञानी ही जान सकता है !

शाम के सवा चार बजे हैं. नवम्बर की हल्की ठंडी शाम है. अभी से पश्चिम के आकाश में लालिमा छा गयी है, यहाँ दिसम्बर आते-आते तो चार बजे अँधेरा ही हो जाता है. महीनों बाद झूले पर बैठकर लिख रही है. जून अभी आये नहीं हैं, दोपहर को भी देर से आये, एक सरकारी कमेटी के कुछ लोग आने वाले हैं, उसी की तैयारी चल रही है उनके विभाग में. आज सुबह टहलने गये तो हल्का अँधेरा था, वापस आते-आते सुरमई उजाला हो गया, हवा में फूलों की गंध घुली थी. पहले गाँव के स्कूल गयी, बच्चों को संगीत की धुन पर व्यायाम करना अच्छा लगा, फिर मृणाल ज्योति. विवाह के कार्ड्स भी दिए. उसके बाद एक अध्यापिका के साथ 'विश्व विकलांग दिवस' के सिलसिले में चार स्कूलों में गयी, उन्हें तीन दिसम्बर पर लगाने के लिए बैज व बुक मार्क दिए. इससे मिलने वाले धन का उपयोग विशेष बच्चों के लिए किया जायेगा.   


Monday, June 10, 2019

जीवन का अंत



दो दिनों का अन्तराल ! परसों लक्ष्मी पूजा का अवकाश था, वे सुबह-सुबह फोटोग्राफी के लिए निकट के एक गाँव में गये. जून ने कमल के फूलों के सुंदर चित्र लिए. आज शनिवार है. सुबह टाइनी टॉटस की मीटिंग में शामिल हुई, शाम को क्लब में मीटिंग है. प्रेसिडेंट बहुत अच्छा बोलती हैं, पर कुछ अधिक ही. वह निरंतर काम में व्यस्त रहती हैं, ऊर्जावान हैं. दोपहर को प्रेस जाना है. मृणाल ज्योति से फोन आया, 'विश्व विकलांग दिवस' के लिए पेपर कार्ड या बुक मार्क बनाने के लिए सुझाव माँगा है. एक परिचिता की माँ अस्पताल में दाखिल हैं, एक के पति की ओपन हार्ट सर्जरी हुई है दिल्ली में.  जून को यात्रा से लौटने के बाद से सर्दी लगी है व गले में खराश है. उसे भी आज पाचक लेना पड़ा है. कल लोभ के कारण खान-पान  में परहेज नहीं रखा. मिठाई खाई, स्कूल में प्रसाद भी लिया और लाल चाय. क्लब में भी औपचारिकता वश कुछ खाना पड़ा. शरीर किसी का भी हो बद परहेजी उसे जरा भी नहीं भाती. नैनी आज अपनी बेटियों के स्कूल की मीटिंग में गयी. सरकारी स्कूल में पढ़ाई को लेकर माता-पिता व शिक्षक पहले से सजग हुए हैं. मोदी सरकार की पहल से कई सुधार देश में हो रहे हैं.  

आज सुबह तैरने गयी. कोच ने आज दोनों हाथों को लगातार चलाने के लिए कहा. तैरना अपने आप में एक सुखद अनुभव है. नाक से पानी आ रहा है, पर कुछ देर में अपने आप ठीक हो जायेगा. वापस आई तो जून ने उपमा लगभग बना ही लिया था. आज बगीचे में गोबर की खाद डलवाने का दिन था. ड्राइवर अपनी बड़ी गाडी लेकर आया था. दोनों माली अन्य दो मजदूरों को लेकर सुबह से शाम तक चार बार में पूरे वर्ष के लिए गोबर ले आये हैं. मृणाल ज्योति के एक कर्मचारी के द्वारा एक दुखद समाचार मिला, स्कूल के एक अध्यापक ने आत्महत्या कर ली है, जो कई दिनों से अस्वस्थ था और छुट्टी पर था. उस क्षण उसका यह वाक्य जैसे असत्य प्रतीत हुआ. मन उसे स्वीकारने को तैयार नहीं था. पर खबर देने वाले ने कहा, मृतक की भाभी ने उन्हें यह सूचना दी है. उसने भाभी का नम्बर लिया, बात की. उसने कहा, सुबह वे उठे तो अध्यापक बिस्तर पर नहीं था. आज उसके भाई उसे लेकर स्कूल आने वाले थे. उसे ढूँढ़ते हुए वे गाय बाँधने के स्थान पर गये तो  वह मृत अवस्था में मिला. पुलिस आयी, शव को पोस्टमार्टम के लिये ले जाया गया है. पिछले कई महीनों से वह अस्वस्थ था. पहले उसकी आँख में कुछ समस्या हुई थी फिर मोटरसाईकिल से गिर जाने के कारण हाथ की हड्डी टूट गयी, यहाँ इलाज भी ठीक से नहीं हुआ. पटना जाकर दुबारा ऑपरेशन हुआ, शायद वह भी ठीक से नहीं हो पाया हो. दुखी होकर उसने अपनी जान ही लेली. स्कूल की सभी अध्यापिकाएं और अध्यापक दुखी हैं और शायद वे भी यही सोच रहे होंगे की काश समय रहते बात कर लेते और उसका दुःख बाँट लेते. उसने लगभग एक वर्ष पूर्व अपनी समस्याओं से उसे अवगत कराया था. उसके बाद ही सभी अध्यापकों के लिए एक कार्यक्रम भी हुआ था, वह खुश था. ऐसा उसने जाहिर भी किया था. पर वह शायद स्कूल में अलग-थलग पड़ गया था. स्कूल में हो रहे बदलावों को भी स्वीकार नहीं पाया था. जो भी हुआ हो पर अब वह उनके मध्य नहीं है. उसने प्रार्थना की, वह जहाँ भी रहे, परमात्मा उसे शांति प्रदान करें.   
 
आज भी धूप तेज है. मृणाल ज्योति से फोन आया, एक अध्यापिका दो सौ दीये बिक्री के लिए उनके घर रखवाना चाहती है, उसने 'हाँ' कह दी है. दीपावली तक अथवा तो उसके पूर्व ही बिक जायेंगे. कोई आये या जाये, संसार अपनी गति से चलता रहता है. दोपहर को बड़ी ननद का फोन आया. उसकी बड़ी बिटिया को ससुराल में कुछ समस्या हो गयी है. बात बढ़ गयी है. वह कह रही थी, नन्हा उसे जाकर ले आये. जून ने मना कर दिया पर बाद में पता चला नन्हा और सोनू दोनों उसे लेने गये थे. उनसे ही बात की, वे लोग घर पहुँच गये थे. भांजी के जीवन में जो भी उलझन है शायद अब उसका कोई हल निकल आये. अब व्हाट्स एप पर संदेश भेजने का मन नहीं होता. इतने सारे ग्रुप हो गये हैं और इतना समय भी व्यर्थ ही जाता है. कल जून ने विवाह के कार्ड्स पर पते के लेबल चिपकाये. अभी कुछ दिनों तक यह कार्य चलेगा. बंगलूरू से वापस आने पर वे कार्ड्स वितरण का कार्य आरंभ करेंगे.

Wednesday, June 5, 2019

वैदिक गणित का अभ्यास

वैदिक गणित का अभ्यास 




आज का इतवार भी बीत गया. सुबह चार बजे से पहले ही उठे, गर्मी बहुत थी. प्रातः भ्रमण के समय सूर्योदय का सुंदर दृश्य दिखा. जून को 'विश्वकर्मा पूजा' के लिए दफ्तर जाना था. उनके जाने के बाद कुछ देर के लिए ध्यान में बैठी पर घंटी बजी और बीच में ही उठना पड़ा. आज नरेंद्र मोदी जी का जन्मदिन है. पेट्रोल के दाम आसमान छू रहे हैं, अब प्रधानमन्त्री के पद पर वह स्वयं हैं, किससे अपील करेंगे. दोपहर को बच्चों को गणित पढ़ाया. स्वयं वैदिक गणित का अभ्यास किया, कई वर्ष इसकी पहले पुस्तक खरीदी थी. शाम को योग कक्षा में आने वाली एक परिचिता से मिलने अस्पताल  गयी, अब ठीक हो रही है. उसका आपरेशन ठीक हो गया है. वापस आकर गुरूमाँ का 'मुद्रा ध्यान' किया, फिर टीवी चलाया, भारत-आस्ट्रेलिया का एक दिवसीय मैच वर्षा के कारण बीच में रुक गया है. जून गोभी पुलाव बनाने चले गये हैं रात्रि भोजन के लिए. वर्षों बाद पंजाबी दीदी व उनके पतिदेव से फोन पर बात की, अगले महीने जब एक मित्र की बेटी के विवाह में जायेंगे तब उनसे भी मिलेंगे. नन्हे से भी बात हुई, उसके यहाँ उसका एक मित्र आया है, वह भी उसी  सोसाइटी में घर देख रहा है, जब तक घर नहीं मिलता उसके साथ ही रहेगा.

पिछले दो दिन कुछ नहीं लिखा, आज फुर्सत ही फुर्सत है. शाम को क्लब जाना है, सुबह फोन आया ड्रेस कोड है हैंडलूम की साड़ी. महिला क्लब की कमेटी में उसे शामिल कर लिया गया है. उसने सोचा, कोलकाता एअरपोर्ट पर खरीदी बंगाल की साड़ी पहन कर जाएगी. अभी तक एक बार ही पहनने का अवसर मिला है. उस सखी से बात हुई जिसकी बिटिया के विवाह में शामिल होने उन्हें जाना है, उसने बताया, तैयारी जोर-शोर से चल रही है. जून ने दफ्तर में आज पहली बार वार रूम में होने वाली वीडियो कांफ्रेसिंग में भाग लिया. स्कूल की पत्रिका का काम आगे बढ़ रहा है. परसों एक अध्यापिका के घर गयी, वह एक अन्य अध्यापिका से किसी बात पर नाराज थी, उसे समझाया तो अब ठीक है.

ग्यारह बज गये हैं, जून को आने में आज देर होगी. नैनी से पैंट्री की सफाई करवाई, उसने भी दिल लगाकर काम किया. सब कुछ चमक रहा है जैसे. ब्लॉग पर दो पोस्ट्स प्रकाशित कीं. ग्रीन टी पी. इन्द्रियों से परे मन है, मन से परे बुद्धि, बुद्धि से परे आत्मा..जिसे कोई भौतिक वस्तु नहीं चाहिए. मन भी अशरीरी है, चाय जाती है देह में, कुछ रसायनों के कारण देह में संवेदना होती है, जिसे मन अनुभव करता है, अंततः आत्मा अनुभव करती है. देह के लिए जो वस्तु हानिकारक है, उसे भला इन्द्रियां क्यों चाहेंगी, जब तक मन प्रेरित न करे. संस्कार के वशीभूत हुआ मन ही अपने लिये हानिप्रद परिस्थतियों का भी चयन कर लेता है, उन्हें चाहने लगता है. यही तो माया है. बुद्धि की धृति शक्ति जब कमजोर होती है तो मन पर बुद्धि का नियन्त्रण नहीं रहता, मनमानी करता है मन जिसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ता है. आज सुबह क्लब में फोटो सेशन था. कमेटी में उसे जो पद मिला है इस कारण. जो भी सहज रूप से प्राप्त होता है, उसे स्वीकारना और अस्तित्त्व का धन्यवाद करना, यही साधक के लिए उचित है.

Wednesday, September 27, 2017

शिलांग की सुन्दरता


रात्रि के साढ़े आठ बजे हैं. आज नेहू में दूसरा और अंतिम दिन है. प्रातः भ्रमण के समय श्वेत जंगली फूलों के चित्र लिए. कैम्पस के अंदर जंगल में चीड़ के वृक्षों के अनेकों छोटे-छोटे पौधे उग आये हैं, उनमें से कुछ साथ ले जाने के लिए पानी और मिट्टी सहित एक छोटे से गिलास में रखे, हो सकता है उनमें से कोई बच जाये. यह अतिथि गृह पुराने तरीके का है. लकड़ी का फर्श है और बड़ा सा बैठक खाना है. जिस कमरे में वे ठहरे हैं वह नया बना है. नौ बजे वे बायो टेक्नोलॉजी विभाग में गये, जहाँ विभागाध्यक्ष ने स्वागत किया. एक छात्रा ने अपना अध्ययन प्रस्तुत किया. बाद में उनका पुस्तकालय भी देखा, जहाँ हिंदी की भी सैकड़ों पुस्तकें थीं.दोपहर का भोजन कालेज की कैंटीन में हुआ. उसके बाद शिलांग के दर्शनीय स्थान देखने निकले. सर्वप्रथम डॉन बोस्को संग्रहालय देखा, जो पूरे उत्तर-पूर्व भारत की तस्वीर पेश करता है. वहाँ से शिलांग की सबसे ऊँची चोटी पर गये, जहाँ कई दुकानें खुल गयी हैं तथा मार्ग भी पहले की तरह हरा-भरा व सुनसान नहीं रहा है. उसके बाद एलिफेंटा झरना देखा. वापसी में त्रिपुरा भवन भी गये. गोल्फ मैदान में कुछ तस्वीरें लीं, झील को दूर से निहारते हुए आगे बढ़े. पोलिस बाजार का एक चक्कर लगाया. जून के एक सहकर्मी जो साथ गये थे, उनकी ससुराल शिलांग में है, वहाँ गये. उनका घर भी लकड़ी का बना है और बहुत पुराना है. जहाँ अति स्नेह से उन्होंने नाश्ता कराया. वापस आकर कुछ देर टहलते रहे. कल सुबह सात बजे गोहाटी हवाई अड्डे के लिए निकलना है.  

कल दोपहर ढाई बजे वे घर लौट आये. घर की सफाई कराते-कराते शाम हो गयी फिर भोजन बनाते-बनाते रात. सुबह उठी तो स्कूल जाना था, बच्चों को सूर्य नमस्कार का अभ्यास कराया, जो उन्हें स्कूल के वार्षिक कार्यक्रम में प्रस्तुत करना है. लौटकर दोपहर का भोजन बनाया और अब समय मिला है कुछ देर बैठकर खुद से बात करने का. दोपहर को सोते समय लगा, वह स्वयं को सोते हुए देख रही है. अभी कुछ देर पहले दो सखियों से बात की, भाई-भाभी से भी, कल पिताजी से की थी. छोटी बहन से व्हाट्सएप पर बात हुई. दीदी से अभी रह गयी है, व्हाट्सएप पर छोटे से वीडियो में उन्हें व्यायाम करते देख उनके नाती को थिरकते देखा, बहुत अच्छा लगा. यात्रा विवरण भी लिखना है, फेसबुक पर तस्वीरें भी लगानी हैं. आज भी ब्लॉग पर कुछ नहीं लिखा, इस वर्ष की तीसरी यात्रा से लेखन में कुछ दिनों का व्यवधान पड़ा है. अभी भी पूरा मुँह खोलने में थोड़ी असुविधा होती है, ठीक एक सप्ताह पहले दांत निकलवाया था. डाक्टर ने मुँह का व्यायाम बताया था. तन और मन को जो भी हो आत्मा तो सदा एक रस है, वही सत्य है, शेष तो सब कुछ बदल रहा है. नन्हा पूना में है, आज रात वापस जायेगा या कल सुबह. उसने नया घर देख लिया है. अच्छी जगह पर है, और एक मित्र के साथ वह उसमें रहेगा. उसे फोन किया पर वह व्यस्त था.


आज सुबह भी नींद समय पर खुल गयी. कोई कह रहा था, वासना दुष्पूर्ण है अर्थात इसका कोई अंत नहीं. आज एक कविता लिखी. मृणाल ज्योति गयी. स्कूल की संस्थापिका की बाँह में दर्द है, उन्हें गर्दन के पास रीढ़ की हड्डी में भी दर्द रहता है. जीवन में कितना दुःख है, पर सभी मानव ने खुद ही एकत्र किया है. बगीचे में सफेद गुलाब की झाड़ी बहुत बढ़ गयी है, उसके लिए द्वार जैसा एक आधार बनवाना है, जून से कहा है बांस मंगवाने के लिए. किचन के बाहर का नल खराब हो गया है, उसकी शिकायत दर्ज करवानी है. बगीचे में तुलसी पुदीना के पौधे बहुत शीघ्र बढ़ रहे हैं, पत्तों का आकार तुलसी जैसा पर सुगंध पुदीने जैसी है. एक सखी का फोन आया, वैदिक गणित सीखने के लिए कह रही थी. जून से उसने पूछा तो उन्होंने कहा पहले ही इतनी व्यस्तता है, हर दिन कम से कम तीन-चार घंटे निकालने होंगे, उसका खुद का भी विशेष मन नहीं है, एक पुस्तक के द्वारा जो अब भी उसके पास है, कुछ वर्ष पहले कई सूत्र सीखे थे. आज स्कूल में फिर एक उड़ता हुआ भंवरा आया और उसकी बाँह पर बैठ गया. मन-प्राण भीतर तक एक उपस्थिति से भीग गये. चेतना हर जगह है, वही तो है, जो विभिन्न रूपों में प्रकट हो रही है !   

Sunday, November 30, 2014

तुलसी की रामायण


आज की सुबह बेहद व्यस्त थी, नन्हे को स्कूल भेजा, उससे पहले जून का फोन आया, उन्होंने उसके लिए ड्रेस तो खरीद ली है पर महंगा होने के कारण दूसरी फरमाइश पूरी नहीं की, अब चाँदी का होगा तो महंगा तो होगा ही...खैर ! नाश्ता कर रही थी कि टीचर का फोन आया, आने को कह रही थीं. नैनी, स्वीपर दोनों का पता नहीं था सो घर बंद करके गयी. एक घंटे बाद लौटी तो दोनों आये, सब मैनेज हो गया और अभी कपड़े प्रेस करके ‘पाठ’ किया, ‘ध्यान’ अभी शेष है. इसी बीच दो फोन आये. एक में पता चला असम के मुख्यमंत्री ‘श्री तरुण गोगोई’ शनिवार को आ रहे हैं सो इस हफ्ते उन्हें विशेष पुष्प सज्जा भी करनी होगी, आज शाम पांच बजे वह एक और महिला के साथ जाएगी, एक नया अनुभव होगा उस दिन भी, क्लब में कितनी ही बार कितने कलात्मक ढंग से पुष्प सज्जा देखी है, पर इस बार स्वयं करने का अनुभव होगा. जून ने कहा है वहाँ रोज शाम को छह बजे से रात दस बजे तक बिजली गायब रहती है, जब सबसे ज्यादा बिजली की जरूरत होती है. परसों वह चल रहे हैं और सोमवार सुबह उनके साथ होंगे !

Jun called in the morning, he was so loving and caring on phone as always. Last evening they went to club and then to book exhibition. She bought “Tulsi Ramayan” it is nine a.m., two friends called then she talked to two friends, could not concentrate what Guru ma and babaji were saying in today’s discourse but she knows they were talking about God, values and love. She loves this world and its maker, she loves all around her, her friends, relatives, country and its citizen, her son and husband and also she loves herself. She is grateful to God and all which bear her, she is grateful that this beautiful world has been the source of inspiration, joy and love.


पिछले दो दिन डायरी नहीं खोल सकी, शनिवार को सुबह संगीत कक्षा में गयी वहाँ से लौटकर क्लब. शाम को एक सखी के यहाँ. कल सुबह इतवार की विशेष सफाई करने में बीती, दोपहर को ‘यादें’ देखी, शनि की दोपहर भी एक फिल्म चल रही थी. आज सुबह जून आ गये, उसकी नींद चार बजे से भी पहले खुल गयी थी, बाहर के गेट का ताला खोलकर पुनः सोने की कोशिश की, वह ठीक पांच बजे आ गये, उनके वस्त्रों से ट्रेन की गंध आ रही थी, जो दो-तीन दिन की यात्रा के बाद भर जाती है. फिर उन्होंने उसके लिए लाये वस्त्र दिखाने शुरू किये, पहले गुलाबी, फिर नीला और फिर पीला - बेहद सुंदर और बेहद भव्य ! गुलाबी पर सफेद से कढ़ाई है, उसने उन्हें कहा यह उसे पसंद नहीं है पर जब बाकी दो देखे तो वह भी भा गया. उसके मन की वह इच्छा जो उस दिन डायरी के पन्नों पर जाहिर की थी अपने आप ही पूरी हो गयी. ईश्वर हर क्षण उनके साथ है यह विश्वास और भी पक्का होता जाता है. जून समय से दफ्तर भी चले गये पर थोड़ा पहले आ गये, खाना जरा कम खाया, सफर से आकर एकाध दिन तो एडजस्ट होने में लगेगा ही. आज नन्हा अपनी क्लास-सिस्टर्स के लिए चाकलेट्स ले गया है, कल नौ लडकियों ने उसे राखी बाँधी थी. आज सुबह ढेर सारे कपड़े प्रेस करने थे सो अभ्यास नहीं हुआ. अभी करेगी, दो बजे हैं, नन्हा तीन बजे तक आता है, पर जून हिंदी की दो पत्रिकाएँ भी लाये हैं, ‘हंस’ और ‘उदय जागरण’, एक साहित्यिक है तो दूसरी राजनीतिक. छोटी ननद की राखी आ गयी है, अच्छा सा पत्र भी लिखा है.  

Friday, September 19, 2014

बादल और सूरज


कल रात फिर माँ को सपने में देखा. वे सभी थे. पिता, सभी भाई-बहन. वह काम कर रही थी, जैसे कि सशरीर हों, वास्तव में वह नहीं थीं, फिर वह पलंग पर बैठ जाती हैं और पानी मांगती हैं. वे उन्हें पानी नहीं दे पाते क्योंकि उनका भौतिक अस्तित्त्व नहीं है. मंझला भाई बोतल से उन्हीं के सामने पानी पी रहा है और वह गिड़गिड़ाती हैं, फिर दुःख और क्रोध से कहती हैं कि उन्हें पानी न देकर क्या वे सब जीवित रह पाएंगे? कैसा अजीब सा स्वप्न था, पर स्वप्न का अर्थ ही है अजीब...इसके बाद ही वह जग गयी और यही सोचती रही कि उसके ही मन ने इसे गढ़ा होगा, वास्तव में ऐसा नहीं होगा कि माँ को अंतिम समय में पानी की जरूरत रही हो और वह उन्हें न मिला हो. पर अब इन बातों का कोई अर्थ नहीं है, जाने वाले एक बार जाकर वापस नहीं आते. कल जून ने “बस इतना सा सरमाया” की spiral binding भी करवा दी. नन्हे ने उस दिन कवर पेज भी कम्प्यूटर पर प्रिंट कर दिया था. माँ की कृतज्ञ है कि न होने पर भी उन्होंने उसे इतना बल दिया. कल शाम वे उड़िया मित्र के यहाँ गये. सखी की तबियत ठीक नहीं थी पर उसने अच्छी आवभगत की अब वापसी पर घर आने का निमन्त्रण भी दे दिया है. आज सुबह से सूरज निकला है अभी पैकिंग का कुछ काम शेष है. जून के आने से पहले समाप्त हो जाने से अच्छा है वरना वह बहुत जल्दी परेशान हो जाते हैं.

आज सुबह पिता से बात की, ठंड वहाँ कम हो गयी है सो ज्यादा गर्म कपड़े ले जाने की आवश्यकता नहीं है. इस समय फिर आकाश बादलों से ढका है, धूप निकलती है तो सब कितना स्पष्ट दिखाई देता है ऐसे ही जब मन पर अज्ञान के बादल छाये हों तो कुछ भी स्पष्ट नहीं सोच पाता. ज्ञान की एक किरण ही कितना प्रकाश भर देती है. सुबह बंगाली सखी ने उसकी कविताओं की तारीफ की उसने अपने पति से उनके बारे में सुना था. कल दो और मित्र परिवारों ने भी पांडुलिपि देखी. एक रचियता के लिए सबसे सुखद पल वे होते हैं जब कोई उसकी रचना को पढ़े व समझे.    

मार्च का मध्य आ गया है. फरवरी के अंतिम सप्ताह में वे यात्रा पर निकले थे. उस दिन के बाद आज पहली बार डायरी खोली है. वे तीन दिन पहले वापस आ गये थे, आने के बाद सफाई आदि के कार्य से निबट कर पुनः पुस्तक के काम में जुट गयी है. अभी भी आठ-दस दिनों का काम शेष है. नन्हा सुबह सोकर उठा तो पेट दर्द की शिकायत कर रहा था, उसे सम्भवतः अपच हो गया है. सुबह एक सखी से बात हुई उसने कहा, वह कहानियाँ भी लिखे, एक बार पहले भी उसने यह बात कही थी. उसकी अगली पुस्तक कहानियों की हो सकती है, विचार बुरा नहीं है. अज सुबह छोटी बहन से बात की, वह थोड़ी चुपचुप लगी, परिवार से दूर होने के कारण या वे उससे मिलने नहीं गये शायद इस बात का मलाल हो या उसका वहम् भी हो सकता है. आज नन्हे को नई किताबें लेने स्कूल जाना है जून उसे दोपहर को ले जायेंगे.




Monday, July 14, 2014

विज्ञान प्रदर्शनी की रौनक


जून को सम्भवतः सोमवार को मुम्बई जाना पड़े, एक सप्ताह नन्हा और उसे अकेले रहना पड़ेगा, अपने स्वार्थ के कारण नूना ने कहा, भगवान करे ट्रिप कैंसिल हो जाये पर अब वह ऐसा नहीं चाहती यदि जून का जाना आवश्यक है, कम्पनी का लाभ है तो उन्हें वहाँ अवश्य जाना चाहिए.

जून कल चले गये, कल रात उनका फोन काफी देर से आया, वह कुछ देर पूर्व ही सोयी थी, पर नींद गहरी नहीं थी, जून के बिना पहली रात को ऐसा ही होता है, बाहर का गेट, गैराज का गेट और बरामदे का गेट बंद करके भीतर आकर दरवाजा बंद करते करते एक ख्याल कहीं न कहीं से आ जाता है सब ताले ठीक से लग गये न. नन्हा आज स्कूल से देर से आने वाला है, उसके पास आठ घंटे हैं जिन्हें उसे व्यवस्थित ढंग से बिताना है. मौसम ठंडा है, गर्मियों में ऐसा मौसम रहे तो गर्मी का अहसास ही नहीं होता. कल शाम वह अकेले टहलने गयी. जून के न रहने से इस बार उसे उदासी का ज्यादा अहसास हो रहा है, ज्यों-ज्यों उनका साथ बढ़ता जा रहा है, निकटता भी बढ़ रही है, उनका एकनिष्ठ स्नेह नूना को अंदर तक भिगो गया है. she loves him and misses him ! लेकिन वह उदास नहीं है, साधक कभी उदास नहीं होता, उसे अपनी भावनाओं को उचित दिशा देनी होगी, ढेर सारे काम भी हैं. पत्र लिखने हैं, सिलाई करनी है और दोपहर को संगीत क्लास में भी जाना है.

कल शाम उसने नन्हे के स्कूल में बितायी, बच्चे बड़े उत्साह से अपने-अपने प्रोजेक्ट के बारे में बता रहे थे. नन्हा भी खुश था. सुबह एक सखी से बात हुई, वह अपने पुत्र के भविष्य की बारे में उसी तरह चिंतित थी जैसे जून के एक मित्र अपने पुत्र के भविष्य के बारे में, लेकिन उसे नन्हे के भविष्य के बारे में चिंता करने की आवश्यकता महसूस नहीं होती न ही जून को. उसे समझाना, रास्ता दिखाना उनका काम है लेकिन वह कौन सा रास्ता चुनेगा यह समय स्वयं बतायेगा. आज उन्हें दो मित्रों के यहाँ जन्मदिन और विवाह की वर्षगाँठ के लिए जाना है. दोनों के यहाँ से निमन्त्रण आया है, इसके अलावा तीन और सखियों से बात हुई, एक महिला ने फोन पर पूछा उनके यहाँ सफाई कर्मचारी आया या नहीं, फिर स्कूल की एक टीचर से बात हुई, स्कूल बंद हो गया है.. नन्हे के स्कूल की हेड मिस्ट्रेस  से कल कुछ पल बात हुई. उसे लगा, इन सब बातों को अगर ध्यान से देखें, परखें तो पता चलता है मूलतः सभी इन्सान एक हैं, सभी के कुछ आदर्श हैं, कुछ इच्छाएं हैं, कुछ सपने हैं और सभी उस पूर्णता की तलाश में हैं, जिसे पाने के बाद कुछ पाना शेष नहीं रहता, जिसे जानने के बाद कुछ जानना शेष नहीं रहता !


एक सुहानी सुबह ! वर्षा रुक गयी है और अपना सुखद प्रभाव सब ओर छोड़ गयी है. सब कुछ धुला-धुला और शीतल प्रतीत हो रहा है. पंछी नहा धोकर चहक रहे हैं. नन्हा स्कूल गया तो वह कुछ देर बगीचे में ही टहलती रही. कल वे दोनों जगह गये, दोनों जगह सखियाँ थकी हुई लगीं, जबकि वह भीतर तक तरोताजा महसूस कर रही थी. जून का फोन आया था, इस बार वह ढेर सारे उपहार लाने वाले हैं. पिछले दिनों उसने एक किताब पढ़ी “speed post” जो बहुत रोचक और ज्ञान वर्धक भी है. लेखिका एक संवेदनशील, समझदार और वात्सल्यमयी माँ है, उनके लिखने का तरीका और सोच भी उसे अच्छी लगी. आज जागरण में भूत-प्रेतों के बाद गन्धर्वों के अस्तित्त्व के बारे में बताया जा रहा है, उसे इन सब बातों में विश्वास नहीं है, उसे लगता है मनुष्यों को ज्यादा प्रैक्टिकल होना चाहिए और जमीनी हकीकत से जुड़ा रहना चाहिए. मनुष्येतर जीवों के बारे में जानकर या देवों की पूजा करके वे महान नहीं बन सकते. उसने टीवी ही बंद कर दिया और सोचा कि उसे दिन भर में किये जाने वाले कार्यों की एक सूची ही बना लेनी चाहिए लिखित नहीं तो मानसिक रूप से ही सही. जिस भाव के साथ उसने यह पेज खोला था वह न जाने कहाँ चला गया है, भाव भी असम के मौसम की तरह हैं पल में धूप तो पल में वर्षा, जैसे कल शाम हुआ.

Sunday, July 6, 2014

शिवरात्रि का उत्सव


There was a time when  mind was full of despair and there was a time when  mind was full oh hope. In fact both were not real.

फरवरी आरम्भ हुए अठारह दिन हो गये हैं और आज प्रथम बार डायरी खोलने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ है, पिछले दिनों काफी कुछ घट गया जिसमें उसका यह निश्चय स्पष्ट हो गया कि अगले सत्र से वह स्कूल नहीं जा रही है. जून की अस्वस्थता का कारण उसका घर से बाहर जाना ही था. आजकल वह ठीक हैं, पर यहाँ तक पहुंचने के लिए उन दोनो को ही तनाव और घुटन के माहौल से गुजरना पड़ा. उन दिनों डायरी खोलते हुए भी डर लगता था कहीं मन की पीड़ा कटु शब्दों का रूप न धर ले. नन्हे की परीक्षाएं ठीक चल रही हैं, आज उसका संस्कृत का इम्तहान है. उसका स्कूल आज बंद है. पिछले दिनों वहाँ भी काफी कुछ बदल गया है. हेड मिस्ट्रेस ने इस्तीफा दिया, एक सीनियर टीचर को उनका कार्यभार सौंपा गया. अभी तक दिसम्बर की भी पे टीचर्स को नहीं मिली है. वार्षिक परीक्षाएं पहली मार्च से आरम्भ होनी हैं. स्कूल में तैयारियां ठीक हो रही हैं पर टीचर्स में पहले का सा उत्साह नहीं है. उसका सेकंड सिग्नेट्री होना भी किसी-किसी को खटक रहा है पर उसने अब मन से अपने को स्कूल से पूरी तरह अलग कर लिया है सो किसी बात का असर नहीं पड़ता. वैसे भी सदा उसका प्रयास यही होता है कि मन को मुक्त रखे, जिससे उच्चता की ओर उन्मुख हो सके. पिछले दिनों जिन्दगी ने एक और पाठ सिखाया है कि आपका प्रिय से प्रिय पात्र भी अथाह दुःख का कारण हो सकता है. यह बात तो वह पहले से मानती थी कि व्यक्ति को अपना रास्ता स्वयं तय करना पड़ता है उस दिन जून को अपने मन की बात बताकर उस मार्ग का पता भी चल गया, उसका मार्ग सहज है.. सरल भी और जून और नन्हा दोनों के मार्गों को छाया और स्नेह से पूर्ण करने वाला.

आज फरवरी का अंतिम दिन है. पुनः वह अपना लेखन का अभ्यास जारी नहीं रख पायी. कल से स्कूल में परीक्षाएं आरम्भ हो रही हैं. उसके बाद कापी जांचने का काम शुरू होगा, रिजल्ट मार्च के अंत में दिया जायेगा. इसका बाद ही वह त्यागपत्र दे देगी और पुनः स्वतंत्र हो जाएगी अपने समय को अपने अनुसार बिताने के लिए. संगीत, किताबें और बागवानी में. राज्य के एक मंत्री की मृत्यु के विरोध में आज ‘एजीपी’ ने असम बंद का आह्वान किया है. सभी को पैदल ही दफ्तर जाना पड़ा है. लंच में जून घर देर से आएंगे. आज उसने बहुत दिनों बाद दो पत्र लिखे. बढ़ई ने नन्हे की स्टडी टेबल में रैक्स लगा दिए हैं, बहुत सुंदर और सफाई से काम किया है उसने. नन्हा अपने मित्रों के साथ क्रिकेट खेलने चला गया है. कल रात्रि उसने स्वप्न में सुंदर स्थान देखे, मनोहर बगीचे और झील, झरने आदि. कल पड़ोसी मिलने आये थे, उन्होंने यात्रा के फोटोग्राफ्स उन्हें दिखाए और इसी बहाने स्वयं भी पुनः देखे, वही स्वप्न में एक बार फिर. जून और नन्हा आयें इससे पहले, अभी वह कुछ देर भगवद् गीता पढ़ेगी, फिर कुछ मिनट का ध्यान और रियाज. मौसम आज खिला हुआ है जो उसके दिल के करीब है.

आज शिवरात्रि का उत्सव है. अभी कुछ देर पूर्व वह बैक डोर पड़ोसिन के यहाँ गयी, उसके स्कूल छोड़ने की बात वह पहले से ही जानती थी. जून आज आ रहे हैं, परसों वह शिवसागर गये थे. नन्हे और उसे अब अकेले रहने का अभ्यास हो गया है सो अकेलेपन के अलावा और कोई दिक्कत नहीं हुई. परीक्षा की कापियां जांचने में कल तो उसे समय का पता ही नहीं चला, अभी कुछ दिन और चलेगा यह सिलसिला, फिर सिलाई के काम में व्यस्त रहेगी और तब मेहमानों के आने की तैयारी व उनके साथ कुछ दिन बेहद व्यस्त बीतेंगे. बैसाखी पर उनके जाने के बाद घर की सफाई, स्वेटर आदि धोकर रखना. फिर मई में उनके खुद के जाने की तैयारी यानि जून में जाकर वे कम व्यस्त होंगे, फिर नन्हे के स्कूल खुलने का वक्त आ जायेगा और जिन्दगी का सफर यूँ ही चलता चला जायेगा.






Friday, July 4, 2014

भावातीत ध्यान- महर्षि की देन



आज दो महान हस्तियों का जन्मदिन है, एक स्वामी विवेकानन्द और दूसरे महर्षि महेश योगी, जिनका जन्मदिन आज वे स्कूल में वार्षिक उत्सव के रूप में मनाने वाले हैं. यह डायरी जून ने उसे तब दी जब वे अपनी यात्रा से लौटे थे, पर यह इतनी सुंदर है और जून के दफ्तर से मिली है सो वह इसमें लिखने से झिझक रही थी पर आज जब उसे लगा कुछ लिखना ही है तो इसने उसे लुभाया और उसने तय किया है आज के बाद यह पूरे वर्ष यह उसके साथ रहेगी. नया साल गोवा में आया. वे वापस उस दिन लौटे जब उनके विवाह की वर्षगाँठ थी. अज दस जनवरी है, सब ठीक है बस सिवाय कभी-कभार एक उड़ते हुए से बेचैनी के ख्याल के..उसे पता नहीं क्यों, जानने का न तो प्रयास ही किया न ही समय ही मिला कि इस बेचैनी के कारण तक पहुंचे.

आज बीहू का अवकाश है, यूँ तो कल भी छुट्टी थी, परसों वार्षिक उत्सव अच्छा रहा. अब सोमवार को पुनः स्कुल खुलेगा. जून आज कोलकाता गये हैं, वहाँ से मुम्बई और फिर पनवल, जहाँ दो दिन की कांफ्रेंस है. कुल एक हफ्ता लग जायेगा. आज बहुत दिनों के बाद वह संगीत के अभ्यास के लिए गयी, टीचर ने एक बंगला गीत सिखाया बड़े ही धैर्य पूर्वक. एक गाना लिखने को भी दिया कैसेट से ही. सुबह से वर्षा हो रही थी, इस वक्त थमी हुई है पर बाहर अँधेरा है और ठंड भी. चारों तरफ एक अजीब सी ख़ामोशी है. नन्हा फाइनल परीक्षा के लिए पढ़ाई कर रहा है. दफ्तर में छुट्टियाँ शुरू हो गयी हैं. लोग वर्षा की वजह से या त्योहार के कारण अपने-अपने घरों में बंद हैं. वह थोड़ी देर बाद सांध्य भ्रमण के लिए जाना चाहती है, पर बेहतर होगा अपने लॉन का ही उपयोग किया जाये, हफ्तों बाद अकेले शाम को टहलने जाना कुछ अटपटा सा लगेगा. क्लब की पत्रिका छपकर आ गयी है.

कल रात और आज सुबह भी जून का फोन आया, वे ठीक हैं और आज किसी सम्बन्धी से मिलने जा रहे हैं. सुबह-सुबह पिता का फोन भी आया, उन्हें लग रहा था, मुम्बई से वे घर भी जायेंगे, सो कुछ दवाइयां मंगवानी थीं. जरूर जून के मित्र को भी उनका इंतजार होगा, खैर आज के माहौल में व्यक्ति इतना समझदार होता जा रहा है कि अपने व्यक्तिगत कार्यों को छोड़कर और कहीं जाने आने का न तो समय है न सामर्थ्य, न इच्छा !

आज अवकाश का अंतिम दिन है, कल से स्कूल जाना है, पूरे एक महीने बाद क्लास में जाना कुछ नया सा लगेगा. जून का फोन आज नहीं आया सम्भवत वह यात्रा में होंगे. मौसम खिला-खिला सा है, लॉन में सफाई की गयी है सो बहुत सुंदर लग रहा है. कल शाम एक सखी मिलने आई, बहुत खुश थी, पर पता नहीं यह ख़ुशी कब तक टिकेगी. कल एक दूसरी सखी ने फोन किया पता नहीं क्यों उसे अब पहले सा उत्साह नहीं होता. इस यात्रा में इतने निकट से एक दूसरे को देखकर वे पास आने के बजाय दूर हुए हैं. उसे पता है जून ऐसे में क्या कहते, समय सब ठीक कर देता है, दो, तीन, चार बार बात करने के बाद फिर पहले की सी निकटता हो जाएगी. सब धूल-धवांस झर जाएगी.

आज उसे पांच बजे उठ जाना था ताकि नन्हा समय पर स्कूल जा सके. पर सुबह पंछियों की आवाजें सुनकर उसे लगा अभी बहुत जल्दी है. वह स्वप्न देखने लगी और जब नींद खुली तो बहुत देर हो चुकी थी, नन्हे ने कहा वह सिटी बस से चला जायेगा. जल्दी से उसने टिफिन बनाया और पड़ोसी ने उसे बस स्टैंड तक छोड़ दिया. वह अपने स्कूल गयी और अभी एक घंटा पहले लौटी है, इस दौरान उसे नन्हे का ख्याल आता रहा. वह सोचती रही, स्कूल से आकर वह यही कहेगा सब ठीक रहा. आज उसका एक टेस्ट भी था. उसे खुद पर आश्चर्य भी हुआ कैसे समय पर नहीं उठ सकी, उसके मन, बुद्धि और भावनाओं तीनों ने उसे धोखा दिया. वह वास्तविकता से दूर कल्पनाओं और स्वप्नों में खोयी थी जबकि समय भाग रहा था. आज की घटना उसे यह भी याद दिलाएगी कि jun’s absence was not incident free”, it was never.

फिर कुछ दिनों के बाद उसने डायरी खोली है. जब जून यहाँ नहीं थे तो वह बेहद व्यस्त थी और जब वे आये तो उनके साथ और ज्यादा व्यस्त हो गयी. आज बहुत दिनों बाद जागरण भी सुना, कोई कथा चल रही थी पर उसे कहानियाँ सुनना पसंद नहीं है. छब्बीस जनवरी को वे दोपहर को लंच पार्टी करंगे. सुबह उसे परेड भी देखनी है, स्कूल बंद होने के बावजूद वह दिन भर व्यस्त रहेगी. परसों स्कूल में हेड मिस्ट्रेस ने उसे घर आने के लिए कहा, शनिवार को उनके घर गयी तो उन्होंने मैडिटेशन के बारे में बात की, उनका विचार था कि छुट्टी से पहले हर क्लास में कुछ मिनट के लिए ही सही अध्यापिकाओं को ध्यान कराना चाहिए. वह उनकी बात से पूरी तरह सहमत है.

She read a beautiful Swedish proverb- “Those who wish to sing always find a song”.  She wrote- …And I wish to sing the song of love and love is ‘God’. I wish to sing the songs of all things that are beautiful and good, a song of life and  song of death also.





Thursday, June 26, 2014

शाकाहारी भोजन



दिसम्बर माह का प्रारम्भ हुए तीन दिन हो गये हैं पर न इन दिनों न ही पिछले कितने दिनों उसे लिखने का समय मिला, उस तरह, जैसे वह चाहती है. इधर-उधर के कार्यों में ही समय गुजरता गया. स्कूल में अभ्यस्त हो गयी है कहना ठीक नहीं होगा क्योंकि अभी भी क्लास वन के बच्चों को पढ़ाने में कुशल नहीं हो पाई है, हरेक बच्चा बोर्ड पर लिखा हुआ अपनी कापी में लिख ले इसकी जाँच करने में कुछ न कुछ छूट जाता है, एक को ज्यादा ध्यान दे तो अन्य ध्यान बंटाते हैं, खास-तौर पर पिछले दो दिनों से गला खराब है, तेज आवाज में बोलना अच्छा नहीं लगता. कुछ बच्चे ज्यादा ही शरारती हैं, कोर्स पूरा करना है, यही सोच कर वह और अन्य अध्यापिकाएं पढ़ाने जाती हैं, पर उन्हें समझाने सुधारने का समय नहीं मिल परता. आज भी घर लायी है स्कूल का काम, क्लास फाइव में सब ठीक चल रहा है. इसी महीने उन्हें दक्षिण-पश्चिम भारत की यात्रा पर भी निकलना है. ऊर्जा संरक्षण पर भी कुछ लिख कर देना है. आज अपेक्षाकृत गला ठीक है सो शाम को वे घूमने जायेंगे, व्यायाम की आदत छूटती जा रही है. इस बार यात्रा में मुम्बई से योगासन करने के लिए विशेष ड्रेस लेगी. पिछले कई दिनों से खत न लिखे न ही कोई पत्र आया. अभी कुछ देर में नन्हा स्कूल से आ जायेगा और फिर जून भी, उनकी शाम का शुभारम्भ हो जायेगा, कुछ देर बागवानी, डिनर की तयारी, अध्ययन और फिर टीवी. कल दो वर्ष पूर्व की डायरी में एक कविता पढ़ी, मन को छू गयी, अपनी ही लिखी एक कविता !

फिर एक अन्तराल, आज शाम उन्हें एक पार्टी में जाना है, जून के दफ्तर के एक उच्च अधिकारी के यहाँ, उसने सुबह से ही तैयारी शुरू कर दी है. उन्होंने पूरे विभाग को बुलाया है. वे भी उनकी तरह शाकाहारी हैं, सो यकीनन उसे वहाँ भोजन पसंद आएगा, वरना तो अक्सर उसे गंध के कारण बहुत जगह दिक्कत होती है. लौटने में जरूर आधी रात हो जाएगी पर ऐसे में नींद कहाँ आती है. उसने आज सुबह भी ‘जागरण’ सुना था, आत्म चिन्तन ही असली दर्पण है जिसमें अपना वास्तविक रूप झलकता है. दूसरा कोई दर्पण दिखलाये तो अहं को चोट लगती है सो स्वयं को दर्पण खुद ही दिखाओ ऐसा सन्त कह रहे थे. मौन रहकर अपनी भावनाओं और विचारों को इतना प्रबल बनाया जा सकता है कि मन प्रसन्न रहे, क्योंकि प्रसन्नता में ही मधुरता है और मधुरता में ही मौन है. मौन में ही आत्म नियन्त्रण आता है. उसने सोचा कितना सही कहा है, आत्म नियन्त्रण रहे तो अहं भी सिर नहीं उठाएगा. मन अपनी हुकुमत चाहता है, अपनी कमियां देखना नहीं चाहता पर इसे समझाने में यदि कोई समर्थ नहीं है तो...क्रोध उपजेगा ही और क्रोधी मन विवेकहीन हो जाता है. छोटा मन स्वयं को ढकने के लिए कितने सरंजाम जुटता है पर बड़ा मन कुछ न कुछ देना चाहता है. देने की स्थिति में ही मन सुखी रह सकता है मांगने की स्थिति में तो सदा शंकित रहेगा. सो मन का मौन बड़ा तप है, मौन ही इन्सान को बनता है, उसकी सुबहों और संध्याओं को सजाता है, इसी सोच-विचार में वह बाहर आई तो लगा दैवीय संगीत चारों ओर बिखरा हुआ है. वर्षा की बूँदों का संगीत, पंछियों और पत्तों का संगीत.. वैसा ही संगीत शायद भीतर भी छिपा हुआ है. मौन में वही संगीत अद्भुत शांति बनकर प्रकट होता है.







स्कूल की पत्रिका



आज स्कूल में बहुत काम था, एक दो शिक्षिकाओं की अनुपस्थिति के कारण उसे पूरे आठों पीरियड लेने पड़े, इस समय थकान महसूस कर रही है. एक अध्यापिका ने उससे विज्ञान के प्रश्नोत्तर के बारे में पूछा तो वह टाल गयी, बाद में लगा बता देना चाहिए था, कल स्कूल जाकर सबसे पहला काम यही करेगी. आज भी कक्षा में बच्चे बहुत शोर कर रहे थे, एक सीनियर  अध्यापिका की कक्षा के सामने से गुजरी तो देखा बच्चे शांत बैठे थे, उसका भी यह स्वप्न है शायद कल ही ऐसा हो.

आज स्कूल गयी तो मन में शुभेच्छा थी और ढेर सारा कम्पैशन, एक अध्यापिका अनुपस्थित थी उसकी कक्षा में जाकर स्वयं ही उसने कविता प्रतियोगिता के बारे में बच्चों को बताया. स्टाफ रूम में सभी अभी से आने वाले वर्ष की बातें कर रहे थे. नई शताब्दी दस्तक दे रही है. उसके कदमों की आहट दिलों की धड़कन बढ़ा रही है. कैसी होगी नई शताब्दी की प्रथम सुबह, क्या उस दिन गगन ज्यादा नीला होगा, हवा कुछ अधिक शीतल, पक्षी का स्वर मधुरतर, लोगों के दिल मिले हुए. पर इतना तो तय है पवन में आशाओं की खुशबू मिली होगी, करोड़ों लोगों के दिलों की आशाओं की खुशबू ! 

आज दो किताबें वह असावधानी वश स्कूल में ही छोड़ आई है, ध्यान उधर जाता है. संस्कृत में एक अध्यापिका ने कुछ पूछा तो व्यस्ततता के कारण ठीक से बता नहीं पायी, खैर यह जरूरी तो नहीं कि सदा वह सही ही रहे. स्कूल में रोज नई-नई बातें पता चलती हैं, पहले पता चला प्रोबेशन पीरियड लम्बा चलेगा, दूसरी बात यह कि छुट्टियों की पे नहीं मिलेगी. इन सब बातों का असर उस पर तो पड़ता नहीं क्यों कि पैसे के लिए न उसने काम किया है न कभी करेगी. उसे ध्यान आया, आज जून ने जब कहा वे यात्रा में खरीदारी नहीं करंगे तो आग्रह क्यों कर बैठी, नहीं जी, वे कुछ न कुछ तो लेंगे ही. यह आग्रह करने की मनः स्थिति जब तक रहेगी तब तक चैन नहीं है. जो कुछ उसके पास अब है वही सारी उम्र के लिए काफी है फिर और की आशा क्यों ? आशा करनी ही हो तो मन को विशाल बनाने की करनी चाहिए. जिससे सारे बच्चों को इतने स्नेह दे सके कि उन्हें उस पर भरोसा हो. बुद्धि में सामर्थ्य हो और अपने आप से शर्मिंदा न होना पड़े. आदमी क्या है यह उसके कपड़ों से नहीं उसकी आत्मा से पता चलता है, आत्मा बेदाग हो कबीर की चदरिया की तरह, अपने कर्तव्यों के प्रति सजग और अपनी उन्नति के लिए प्रयत्नशील !

कल क्लब से फोन आया, वार्षिक पत्रिका के लिए उसे लिखना भी है और हिंदी के अन्य लेखों की एडिटिंग भी करनी है. स्कूल की पत्रिका के लिए भी एक अधपिका के साथ उसे प्रेस जाना है. यदि सबकुछ ठीक रहा तो अगले बीस-पचीस दिन उसे साहित्यिक गतिविधियों में सलंग्न रखेंगे. आज उन्हें नौ बजे स्कूल जाना है, पहले गुरुद्वारा समिति की ओर से चित्रकला प्रतियोगिता है फिर पेरेंट-टीचर मीटिंग.




Wednesday, June 25, 2014

उड़ीसा की बाढ़



पिछले दो दिन फिर स्कूल से आकर भी स्कूल का कार्य करती रही. आज ‘असम बंद’ के कारण सभी स्कूल भी बंद हैं सो हफ्तों बाद वह अपनी पुरानी दिनचर्या का पालन कर पा रही है. अभी-अभी कपड़े देने आये धोबी ने आकर बताया, बायीं तरफ के पड़ोसी के घर के सामने एक कार दुर्घटना हुई है, पता चला एक उड़िया साहब के बच्चों ने (जो खुद ही ड्राइविंग सीख रहे थे) एक पेड़ में टक्कर मार दी. बंद के कारण कोई कार लेकर दफ्तर नहीं गया था, पैदल या साइकिल पर ही जाना पड़ा. बच्चों को घर में रखी कार व खाली सडकें देखकर मन में इच्छा हुई होगी. सुबह छोटे भाई का फोन आया, सभी के बारे में ढेर सारे समाचार मिल गये. कल रात नन्हे ने कहा था सुबह उसे न उठाया जाये, वह स्वयं ही उठा पर साढ़े नौ बजे. कल एक सखी के यहाँ बेटे के जन्मदिन की पार्टी थी, अच्छी रही, उसने पनीर व मिक्स्ड वेज अच्छी बनायी थी. कार्ड पर उसने वह कविता लिख दी थी जो वर्षों पहले छोटी बहन ने नन्हे को उसके जन्मदिन पर लिख भेजी थी. सभी को अच्छी लगी. आज उसे वे सभी पत्रिकाएँ भी देखनी हैं जो पिछले दिनों व्यस्तता के कारण नहीं पढ़ सकी.  

जून के दफ्तर के एक अधिकारी की अचानक हुई मृत्यु से सारा वातावरण दुखमय हो गया है. मृत्यु एक पल में सबकुछ छीन कर ले जाती है. उसके फंदे से कोई नहीं बच पाया, जीवन की डोर मृत्यु के हाथ में है. सारा संसार देखता रह जाता है और प्राणी किसी अज्ञात सफर की ओर चल पड़ता है, कौन जानता है कब उसकी मृत्यु होगी. कौन सा क्षण ईश्वर ने बनाया है जब वह अंतिम श्वास लेगा, परिवार जनों को असहाय रोता-बिलखता छोड़कर बंजारा अपना साजो-सामान समेट  लेता है. जब सभी जानते हैं, एक दिन बिछड़ना है तो क्यों इतने बंधन बाँधते हैं. तभी तो सन्त-महात्मा मोह-माया त्यागने की बात कहते हैं. जो यह सत्य जानता है कि जिसकी मंजिल आ गयी, वह उतर गया, जिसे आगे जाना है वह स्टेशन पर उतर गये लोगों के लिए आंसू नहीं बहता, दुखी नहीं होता.

अभी कुछ देर पूर्व क्लब से आते समय देखा उस घर के सामने बहुत भीड़ थी, आज चौथा है, उसने मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना की. टीवी पर आजकल चुनाव परिणामों की चर्चा है, बीजेपी अपने सहयोगी दलों के साथ सरकार बनाने के लिए पूर्ण बहुमत जुटा चुकी है. कल से स्कूल में अर्ध वार्षिक परीक्षाएं शुरू हो गयी हैं.

परीक्षाएं समाप्त हुईं और पूजा का अवकाश आरम्भ हो गया. पिछले तीन दिन मौसम बादलों के कारण भीगा-भीगा सा था, आज धूप निकली है. पिछले दिनों वे पूजा पंडाल देखने गये, विशेष व्यंजन बनाये और कुछ मित्रों के घर भी गये. उसे परीक्षा की कापियां जांचनी हैं, काम करके उसे सदा ही एक ख़ुशी का अहसास होता है, जीवन को एक अर्थ मिला हो जैसे. उसे पत्र भी लिखने है, और वे सारे काम जो स्कूल खुलने पर नहीं हो पाएंगे. सम्भवतः बाढ़ के कारण कुछ दिनों के लिए  गौहाटी से डिब्रूगढ़ के लिए रेल चलनी बंद हो गयी थी, इस कारण माँ-पिता यहाँ नहीं आ पाए.

स्कूल में फिर से पढ़ाई शुरू हो गयी है और उसने जान लिया है कि पढ़ाना ही उसे पसंद है, टेस्ट, यूनिट टेस्ट और परीक्षाएं ये सब कतई पसंद नहीं, पर ये सब भी शिक्षण का ही अंग हैं. आज खेल का पीरियड भी था, क्लास दो के बच्चे खासतौर पर लडकियाँ पीटी बहुत एन्जॉय करती हैं, लडकों को भागने-दौड़ने वाले खेल ही पसंद हैं. सिलाई का कुछ काम कई दिनों से टल रहा था उसने आज करने की ठानी. नन्हे के घर आने में अभी आधा घंटा शेष है. आजकल वह सुबह उठने में बहुत देर करता है. आज जून डिब्रूगढ़ गये थे, दिसम्बर की उनकी दक्षिण-पश्चिम भारत की यात्रा के लिए टिकट बुक करवाने. आज सुबह उसने जागरण में एक प्रवचन सुना, जिसमें मन की तुलना झरने से की गयी थी जो निरंतर ताजगी लिए रहता है. उन्होंने यह भी कहा, “व्यक्ति को जीवन में प्रतिपल उत्साह बनाये रखना चाहिए ताकि उसमें नीरसता न आ जाये. योगी विचारों से ही पुष्ट होता है और पोषण करता है. मन में लगातार प्रेरणादायक विचारों का प्रवाह चलता रहे तो जीवन खिला रहता है”. उड़ीसा में भयंकर बाढ़ आयी है, वहाँ के लोग भूख-प्यास  से  भले ही पीड़ित हों, तूफान व बाढ़ ने भले ही उन्हें कितना दुःख दिया हो लेकिन जिजीविषा उन्हें पुनः समर्थ बनाएगी. वे फिर खड़े होंगे. दीवाली का त्योहार आने वाला है, जून नन्हे के लिए पटाखे ले आये हैं. उन्होंने सभी को कार्ड्स भी भेज दिए हैं. दीवाली पर एक भोज का आयोजन करने भी विचार है, ईश्वर उनके साथ है.



Tuesday, June 24, 2014

धरती पर स्वर्ग


Today school is closed, so she cleaned the wardrobes in the morning. Earlier they talked to father, mother and  bhabhi on phone, they were worried that nuna has to to duty for seven long hours. Jun came around eleven and they took lunch of dal-raice and parval cooked in butter. Jun thinks wishing people on phone and sending them cards is not necessary but she thinks just opposite, anyway, now onward she will not depend for these things, she will be self sufficient. Nanha had drawing exam today, he had to draw and paint one basket of fruits and one design. Life is such an uncertain thing that one keeps wondering what way it will take. She is feeling low may be not physically fit but it may be due to mental state, both are interdependent.

Today she got a letter from middle brother. He wrote about his journey from leh to shri nagar. The letter gives a good description of the way and atmosphere of the place. It is tense and people are scared. They have to pay the price of living in paradise on earth. It is about to  5, they will go out in the  evening. Practiced music and have to cook, feeling well. Jun is also alright today, he was yesterday also and she made him sad. She thinks that happiness of whole house depends more or less on her and her own happiness also depends on her only.

Today they did lot of house jobs. Cleaning the fridge, putting all the mattresses in the sun, arranging  Nanha’a wardrobe. Jun went to market and Nanha went to collect money with one of his friend for helpage asked by his school.

One new teacher came to their school today. Jun has not come yet, he went for a training programme in the morning, came for lunch, prepared ‘Roti’ for himself, she had cooked dal and sabji in the morning.  it is 6.25 in the evening. School was ok, she could not keep her class sober and calm except class five. Checked copies at home, did some riyaz and walked for few minutes after coming  from school. Today in the morning jun talked to father, they are coming in Puja holidays for two weeks. Nanha got his result , he got highest marks in exams in all three sections. They are proud of him but know he can do better.





Wednesday, June 18, 2014

बच्चों का शोर


It is afternoon, she has come back from school and waiting for Nanha. He will be on the way from Digboi. He must  have written his chemistry test well this time. Yesterday he prepared for it. Today in the school again she got stuck while talking to one other teacher about the mother of a child, who had come to meet her in the morning. Children are very very energetic and sometimes she wonders what to do to calm them, all of them speak at the same time and make a quite class noisy in one second.  Anyway  she has to face it.

जब से स्कूल जाना शुरू किया है, लिखना छूट ही गया है  किन्तु आज उसने वे सभी कार्य स्कूल से लौट कर किये जो सुबह के वक्त करती थी. पूरे दो हफ्ते बाद व्यायाम किया जो सांध्य भ्रमण तक ही सीमित रह गया था, फिर संगीताभ्यास भी, तन कैसा हल्का-हल्का लग रहा है व्यायाम के बाद और आत्मा संगीत के बाद और स्वाभाविक है मन होगा लिखने के बाद. सुबह-सुबह तैयार होकर स्कूल जाना अच्छा लगता है, बच्चों के बीच रहना और जब टीचर्स रूम में रहो तो इधर-उधर की बातें सुनना, सभी कुछ. आज जून देर से आये, अब उन्हें दोपहर को अकेले भोजन  करने की आदत हो गयी है, नन्हे को भी उसका स्कूल जाना अखरा नहीं बल्कि अच्छा लग रहा है. खतों के जवाब टलते ही जा रहे हैं, फोन पर ही सबको बताया. अभी-अभी एक विद्यार्थी की माँ का फोन आया, उनका बेटा क्लास में कुछ करता नहीं है, उसकी तरफ ध्यान देने की जरूरत है, उसे भी और उसकी माँ को भी. उसका काम सिर्फ पढ़ा देने भर तक ही खत्म नहीं हो जाता बल्कि तब तक चलता है जब तक कि उनका गृहकार्य या कक्षा कार्य पूरा नहीं हो जाता. कल शाम भी एक माँ का फोन आया था उसने ज्यादा गृहकार्य दिए जाने की शिकायत करके जैसे उसे चेता दिया. संस्कृत में present टेंस तथा present continuous टेंस का अंतर एक अध्यापिका ने पूछा. 

Today again she felt helpless among children they were making noise and were very naughty. She felt same chaos in next period also. Class five is much better but some times they are also out of control. Rest of the day was normal, in the morning sweeper did not come. Yesterday she got a letter from younger sister, it was good to know that Nuna’s kargil poem was going to publish in ‘Jat’ magzine. Tomorrow is going to start 4th week of her job. Last three weeks were full of three incidents, one was her speech, 2nd the teaching method for class five and 3rd not giving the test date and portion for class 1. Hopes that 4th week passes without ant untoward incident. Yesterday they had Hindi handwriting competition, she selected the first three entries from each class. Some children write very beautifully.

Today is the last day of the month. They remembered great thinker, poet and saint of Assam Madhav dev, he was disciple of Shanker dev, another great man of Assam. Yesterday she read a story from chicken soup for soul to Nanha and today jun is again reading it. she wished, let tomorrow bring a bright day.