Monday, September 1, 2014

योग वशिष्ठ - महारामायण


कल शाम से ठंड एकाएक बढ़ गयी है, अभी तक कोहरे ने सूरज को ढक रखा है. ऐसी शीतलता पहाड़ों पर लोग रोज ही महसूस करते होंगे. कल दुबारा डायरी नहीं खोल सकी. दोपहर को चार पत्र लिखे, शाम को वे टहलने गये, क्लब जाने का उत्साह नहीं हुआ. अभी-अभी पड़ोसिन का फोन आया, उसे लगा था सम्भवतः अस्वस्थता के कारण वे क्लब नहीं जा रहे हैं, फिर उस बातूनी सखी का फोन आया, उसे अपने बेटे के लिए एक ऐसी ट्यूटर चाहिए जो होमवर्क करा सके. दोपहर को वह कुछ समय निकाल सकती है और क्लास वन के बच्चे का साथ यकीनन अच्छा रहेगा, सो उसने हाँ कर दी है. जून को भी इसमें कोई आपत्ति नहीं होगी. कल वह जा रहे हैं, उन्हें इतवार को किये जाने वाले कार्य आज ही कर लेने हैं जिसमें बालों में मेंहदी लगाना भी शामिल है. कल रात उसने जून से पूछा कि विवाह की वर्षगाँठ मनाने का उनकी नजर में क्या औचित्य है, उन दोनों के सोचने का ढंग एक ही निकला. उसे भी हर दिन उतना ही खास लगता है जितना वह दिन !

कल शाम अंततः वे क्लब गये और वहाँ का माहौल बेहद खुशनुमा लगा. हर तरफ फूलों की बहार ही बहार थी. सामने के बरामदे को बेहद कलात्मक ढंग से सजाया गया था. पीछे स्टेज था तथा शामियाना लगाया गया था. आग तपने के लिए भी इंतजाम था. लोग आकर्षक पोशाकों में थे.

सुबह जून से बात हुई, कल शाम गन्तव्य पर पहुंच कर भी उन्होंने समाचार दे दिया था. कल रात कई बार उसकी नींद खुली, स्वप्न भी देखे जो परेशानी को बढ़ाने वाले थे. उनके जाने पर पहली रात ! सुबह सवा छह बजे उठी, नैनी कल बिना कहे दिन भर नहीं आयी, इस समय काम कर रही है, उसने अपनी गलती मान ली और उसकी फटकार का कोई विरोध नहीं किया जैसा कि वह पहले करती है. इधर कुछ दिनों से उसमें बदलाव आया है. कल क्लब गये थे वे, नीली साड़ी सुंदर लग रही थी, जून होते तो फोटो खींचते. नन्हा लिख रहा है, सुबह उसे नॉवेल पढने पर कुछ दिनों के लिए रोक लगाने को कहा तो बुरा मान गया. ‘नसीहत’ पचाना आसन काम नहीं है. आज ‘योग वशिष्ठ’ की कथा प्रारम्भ हुई है, कहानी में कहानी कहने की संस्कृत साहित्य में अनोखी प्रथा है. आज गोयनका जी भी आये थे, विपासना के बारे में आरम्भिक व्याख्यान दिया. मन को ऊपरी सतह पर शांत कर लेना तो सहज है पर भीतर का पता तो वक्त पड़ने पर ही चलता है. उस दिन ट्रेन में यात्रियों की भीड़ देखकर वे विचलित हो गये थे. आज सभी के फोन आये सभी ने एनिवर्सरी की मुबारकबाद दी.

आज सुबह सवा छह बजे चिड़ियों की चहचहाहट सुनकर नींद खुली. उठते ही जून के होटल का नम्बर लगाया, वे भी उठ चुके थे. रात को दस बजे सो गयी थी, पर कुछ देर बाद बड़ी भाभी का फोन आया, वे परसों शुभकामना देना भूल गयी थीं, भाई से भी बात हुई. जून दिल्ली में उनसे मिलने जायेंगे. कल एक परिवार को लंच पर बुलाया था, वे लोग सुबह ही तिनसुकिया मेल से आये थे. एक और सखी तभी घर की चाबी देने आई, वे मुम्बई जाने के लिए एयरपोर्ट जा रहे थे. उन्हें इतनी जल्दी थी कि एक मिनट भी नहीं बैठे. जून की समय की पाबंदी की आदत के कारण वे लोग यात्रा पर निकलने से आधा घंटा पहले ही पूरी तरह से तैयार होकर बैठ जाते हैं.





2 comments:

  1. होमवर्क कराने के लिये ट्यूटर.. सलाह दीजिये "बातूनी सखी" को कि बातों से थोड़ा समय निकाल लें तो वो ख़ुद होमवर्क करवा सकती हैं, वो भी क्लास वन के बच्चे का!!
    दरसल हमारे लिये तो हर वर्षगाँठ या विशेष दिवस स्पेशल नहीं होता. मेरे विचार में शायद हम उसे अपने लिये कम और समाज के लिये अधिक स्पेशल मानकर मनाते हैं!

    सॉरी के साथ - "कल क्लब गये थे वे, नीली साड़ी सुंदर लग रही थी"

    नसीहत बच्चों को तो बिल्कुल अच्छी नहीं लगती.. मेरी बेटी दो दिन से मुँह फुलाए बैठी थी, बातचीत बन्द! कल जाकर प्यार किया तो रोते हुये गले से लग गई!

    गोयनका जी का नाम भूल गया था पिछली पोस्ट पर कमेण्ट करते समय.. मुझे बिड़ला जी याद आ रहे थे! :(

    अंत में, विवाह वार्षिकी की बधाई, शुभकामनाएँ और शुभेच्छा!!

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  2. सही कहा है आपने, माँये अगर थोड़ा क्म बातें करें तो बच्चों की बहुत सारी समस्याएं हल हो सकती हैं. आभार !

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