Tuesday, July 30, 2013

शंख और सीपियाँ


सुबह उठते ही दादा वासवानी का प्रवचन सुना. कितनी अच्छी बातें कहीं उन्होंने, ‘’हर रात्रि विश्राम से पहले तथा सुबह शैया त्यागने से पूर्व शांति पाठ करना चाहिए, सबके लिए भेजी गयी शुभकामना लौट कर हमारे ही पास आती है. हर घंटे पर कुछ क्षणों के लिए स्मरण करें’’. आज इस मौसम की सबसे ज्यादा ठंड है, सुबह से ही वर्षा हो रही है, मद्रास में तो धूप होगी और गर्मी भी. सफाई का काम लगभग समाप्त हो गया है, कल अंतिम काम फ्रिज की सफाई करेगी. रजाई के कवर उसने अकेले ही चढ़ाये और सिल भी दिए, जून होते तो चार-पांच बार याद दिलाते तब वह सिलती.

आज लोहरी है, पिछले साल उन्होंने पारंपरिक विधि से लोहरी मनायी थी. आज नन्हे का अवकाश है वे असमिया सखी के यहाँ गये चार घंटे वहाँ बिताये. वहाँ उसने गाजर का हलवा बनाया, उसकी सखी का इस बात में पूरा विश्वास है कि जब खाना है तो बनायें भी वे क्यूं न, यहाँ तक की काली गाजरें भी उसी से छिलवायीं, सुबह ही उसने हाथ अच्छी तरह साफ़ किये थे, जो वापस आकर फिर से किये, उसकी सखी बहुत प्रेक्टिकल है, उसना सोचा. शायद आज जून का फोन आए, या न भी आये क्योंकि कल वे आ रहे हैं, उनके साथ उसका प्रेम है और उसके साथ उनका विश्वास.

लेकिन आज वे नहीं आ सके, दोपहर को उनके बॉस ने फोन पर  बताया, फ्लाईट छूट जाने के कारण वे गोहाटी जा रहे हैं. और कल आएंगे. सुनते ही उसे रुलाई सी आने को हुई, नन्हे को बताया तो वह भी उदास हो गया, उसकी सखी को पता चला तो वे उन्हें अपने घर ले गये, कुछ देर उनो खेला, फिर उपमा खिलाई, उसकी सखी उपमा बहुत अच्छी बनती है. वापस आकर नन्हे को आग जलाने का शौक हुआ, नैनी के लडके ने लकड़ियाँ इकट्ठी कर दीं और उन्होंने लोहरी के दूसरे दिन लोहरी मनायी.

आज भी छुट्टी थी नन्हे की, पर वह सुबह उस वक्त जग रही थी जब साढ़े पांच बजे जून का फोन आया, वह आ गये हैं और कार का इंतजार कर रहे हैं, एक मित्र उन्हें लेने गये थे. उनके फोन के बाद पन्द्रह मिनट में उसने इतने सारे काम कर लिए. वह बेहद खुश थी. उन्होंने चाय पी और फिर आधे एक घंटे बाद उन्होंने अपने साथ लाये उपहार दिखाने शुरू किये, सुंदर से कई शंख व सीपियों से बनी ‘की रिंग्स’ और स्वीट होम लिखी एक बड़ी सी कौड़ी. नन्हे के लिए ग्लोब, स्केल, वीडियो गेम और उसके लिए दो साड़ियाँ, जिनमें से एक का रंग समुद्री या आकाशी नीला है जिसमें सुनहरा काम किया हुआ है तथा दूसरी सूती है, दोनों मद्रास की सबसे बड़ी दुकानों से खरीदी हुई, नेल्ली और कुमार सिल्क ! पर जून ने अपने लिए कुछ भी नहीं लिया. नन्हा भी थोड़ी देर में उठ गया, वीडियो गेम में व्यस्त हो गया. इतवार को उसका ड्राइंग टेस्ट ठीक रहा था और पढ़ाई के मूड में वह जरा भी नहीं था. जून कुछ देर के लिए सो गये और उन्होंने इतने दिनों बाद साथ-साथ लंच लिया. शाम को दो मित्र परिवार मिलने आये, अगले दिन भी बीहू का अवकाश था, सो तय हुआ कि एक जगह सब इकट्ठे होकर ‘बीहू भोज’ करेंगे, उसे गोभी मुसल्लम तथा आलू का रायता बनाना है.

आज सुबह उठकर जून ने कहा, इतने दिनों बाद वे अच्छी तरह सोये, और उसे भी कल दोपहर इतने दिनों बाद गहरी नींद आई ऐसे मदहोश कर देने वाली नींद जिसमें आँखें खुलने का नाम ही नहीं लेतीं, जून के घर आने से वे तीनों खुश हैं वरना शामें खाली-खाली लगती थीं और खास तौर पर बेहद ठंडे मौसम में हीटर के सामने अकेले बैठे रहने पर ठंड कम ही नहीं होती. यूँ ठंड का मौसम उसे पसंद है, चेहरे को स्पर्श करती शीतल हवा बहुत भली लगती है, अंदर तक ठंडक पहुंच जाती है वह कहते हैं न कलेजे को ठंडक पहुंच गयी. मिजाज भी जल्दी गर्म नहीं होता और यूँ भी डायरी के इस पन्ने के नीचे लिखी बात सच है.

Winter wind is not so unkind as man’s ingratitude.


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