Thursday, July 25, 2013

नये वर्ष में पिज़ा पार्टी

आज का दिन कुछ इस तरह व्यस्तता में गुजरा कि नये वर्ष के प्रथम दिन न तो वे ढंग से सुबह का नाश्ता ही खा सके न लंच. सुबह देर से उठे क्योंकि रात बारह बजे तक जगना था नये वर्ष का स्वागत करने के लिए. देर से उठने पर कैसा तो आलस्य छा जाता है, थोड़ा सा कुछ खाकर एक मित्र के यहाँ कैसेट लेने निकले वे मिले नहीं, बाजार होते हुए दूसरे मित्र के यहाँ पहुंच गये, वहाँ से बारह बजे लौटे तो शाम की पार्टी का कार्यक्रम बनाकर. वापसी में फिर पहले मित्र के यहाँ गये वापस आये दो बजे, उन्हें लंच पर आने का निमत्रंण देकर, पहले तहरी बनाई, फिर कैरम खेला, उनके जाने के बाद शाम की पिज़ा पार्टी की तैयारी, जो खत्म हुई रात के दस बजे. सो पहला दिन रहा मित्रों के नाम. पिज़ा ठीक बना था बस बेस थोड़ा पतला था जिससे कड़ा हो गया था, मित्रों के मध्य वेज, नॉन  वेज को लेकर थोड़ी बहस भी हो गयी, बात उसने ही शुरू की थी पर यहाँ तक फ़ैल जाएगी अंदेशा नहीं था. नन्हे ने दोस्तों के लिए कार्ड बनाये हैं, उसे मिले भी हैं, उसे पिज़ा भी पसंद आया, उसने अपनी लिखी कविता भी सबको सुनाई.
 आज बहुत दिनों बाद नन्हे का स्कूल खुला है, सुबह से वही पुरानी दिनचर्या शुरू हो गयी. उसे इतवार को धुले कपड़े भी प्रेस करने थे और रात की पार्टी के बाद किचन में फैले सामान को भी. काम तो सभी हो गया जून के आने से पहले, फिर खाना खाते वक्त उन्होंने वह कैसेट भी देख लिया जो कल लेने गये थे, ‘सिलसिला’ फिल्म उसे तो अच्छी नहीं लगी किसी भी लिहाज से. अभी एक और फिल्म ‘नमक हराम’ जो उसकी सखी ने उनके लिए रिकार्ड की है, भी देखनी है, पर समय कहाँ है, आज शाम से क्लब में क्लब मीट के कार्यक्रम आरम्भ हो गये हैं, वे लोग देर से पहुंचे तब तक ‘टी’ लगभग समाप्ति पर थी. कुछ देर बैडमिन्टन का मैच देखते रहे फिर एक कटलेट और चाय ली, ठंड बहुत थी. दोपहर को वह savey पढ़ती रही, ऋचा दत्त का इन्टरव्यू पढ़ा, कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से ग्रसित होने पर भी वह इतनी आशावान है, दुःख इन्सान को साहसी बना देता है. और एक वह है जो छोटी-छोटी बातों से घबरा जाती है. यूँ थोड़े बहुत परिवर्तन उसमें भी आये हैं, मसलन अब वह बीमार पड़ने पर या सिरदर्द होने पर उतनी परेशान नहीं होती. नन्हे पर झुंझलाती भी कम है और जून से नाराज हुए तो महीनों बीत जाते हैं, वैसे वह इतना ख्याल रखते हैं कि ऐसा मौका ही नहीं दते, पहले-पहल वह यूँ ही बहस करने लगती थी पर अब न तो वक्त है न ही energy. रोजाना के काम से थोड़ा सा ज्यादा काम किसी दिन हो जाये तो सिर में दर्द हो जाता है, फिर ऐसे में गुस्सा करके सरदर्द मोल ले ऐसा मूर्ख कौन होगा ?  




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