Saturday, January 19, 2013

कभी खुशी कभी गम



अयोध्या में निर्माण तोड़ने पर लोकसभा में हंगामा, यूपी सरकार को चेतावनी..वही राममंदिर बाबरी मस्जिद विवाद. कल बहुत दिनों के बाद उन्होंने घर के कोर्ट में बैडमिंटन खेला और सांध्य भ्रमण को भी गए. मौसम सुधरा था पर रात इतनी तेज वर्षा हुई कि लॉन की हालत देखी नहीं जाती, माली भी नहीं आया है, सुबह तीन बजे के करीब जोरों का तूफान आया था और शायद ओले भी गिरे थे, आवाज से ऐसा लग रहा था और इस समय भी सूर्य देव आंखमिचौली खेल रहे हैं. सुबह उठते ही उसे गले में हल्की चुभन महसूस हुई, लिपटन का टी बैग शायद कुछ राहत दे.

उल्फा नेता परेश बरुआ हथियार समर्पण को तैयार नहीं. कल शाम लगभग साढ़े पांच बजे  फोन आया और साढ़े सात बजे जब वे क्लब से वापस आए, उनकी कार वे लोग ले गए. एक ही लड़का था, उम्र भी कुछ खास नहीं थी, उसने गुस्से में या आवेश में कुछ बातें कह दीं, जो उसे नागवार गुजरीं, और उसे लगता है कि जल्दी वह कार वापस नहीं करेगा. कल उस समय से कितनी ही बार मन में वे सारी बातें स्पष्ट हो आयी हैं, कितना दूसरी बातों में मन लगाये पर ध्यान उसी ओर चला जाता है, अब जब तक कार वापस नहीं आ जाती, ऐसा ही होगा.

आज तीसरा दिन हो गया. कल दिन भर आँखें दरवाजे पर लगी रहीं और कान आहटों को पहचानने में, पर कार वापस नहीं आयी. अब तो इंतजार करना छोड़ दिया है, आ जायेगी अपने आप. जून के चेहरे से हँसी ही गायब हो गयी है, आँखों में एक अजीब सा सन्नाटा. कुछ दिन पहले बल्कि पिछले हफ्ते आज ही के दिन तो वे कितने खुश थे, होली थी उस दिन. ठीक ही कहा है किसी ने-
मुरझा जाती हैं कुछ कलियाँ, सारी कलियाँ कब खिलती हैं?
इस दुनिया में सारी की सारी खुशियाँ किसको मिलती हैं ?

एक पल खुशी का तो दूसरा उदासी भरा, उसकी आँखें किसी भी पल बरसने को तैयार हैं, अंदर ही अंदर कोई घुटन सी खाए जा रही है जैसे, पर जानती है रोने से कुछ होने वाला नहीं है, इसी घुटन को अपनी हिम्मत बनानी है. ऐसे में जिन्हें वे अपना हित चिंतक समझते हैं तथाकथित मित्र गण भी कैसे चुपचाप बैठ जाते हैं..जैसे उनसे कोई परिचय ही न हो. वह ही मूर्ख है जो...पर यह सब लिखकर वह कोई अच्छा कार्य तो नहीं कर रही. इस दुनिया की यही रीत है हरेक को रोना अकेले ही पड़ता है, जबकि साथ हँसने के लिए कई साथी मिल जाते हैं.

कल रात आठ बजे कार मिल गयी. आज मन हल्का है और स्वास्थ्य भी ठीक है. कल कितनी कमजोरी महसूस कर रही थी, जून का भी यही हाल था कल शाम तक. अब सब पूर्ववत् हो गया है, हाँ वे कुछ और करीब आ गए हैं, दुःख व्यक्तियों को जोड़ता है और असली-नकली दोस्तों की पहचान भी कराता है. वे थोड़े गम्भीर भी हो गए हैं इस घटना के बाद..पता नहीं कितने दिनों तक.



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