Monday, January 7, 2013

दांत का दर्द



उसकी बंगाली सखी का जन्मदिन आने वाला था, जिसे बागवानी में बहुत रूचि थी. उसने सोचा एक कविता लिखेगी उसके लिए-
फूलों सा हो मन उसका
कलियों जैसी ऑंखें,
खुले पलक तो रंग-बिरंगी
मुस्कानें बिखरा दे !

पात-पात से बात करे
ऐसी भाषा उसकी हो
पंखुरी-पंखुरी ओस बिछी जो
ऐसी हँसी बिखेरी हो !

सुरभि कुसुम की बने भावना
विचार पराग बना हो,
वायु सुवासित ज्यों उपवन की
जीवन प्रमुदित उसका हो !

लहरा कर ज्यों झूमा करतीं
कुसुम कतारें विकसित हो,  
सहला दे हर मन की उलझन
पवन झकोरा प्रमुदित हो !

आज उन्हें साथ-साथ चलते हुए पूरे सात साल हो गए हैं. उसक मन भरा है भावों से और उन स्मृतियों से जब उन्होंने प्रेम के अमृत का घूंट पहली बार पिया था...जब पहले-पहल उन्होंने एक-दूसरे को चाहा था. तब से कितनी बार..कितनी ही बार महसूस हुआ है की जितना प्रेम वह उससे करता है उतना किसी ने किसी को नहीं किया होगा..क्या उसे भी कभी ऐसा लगा है ? और अब तो वे एक-दूसरे में इतना रच-बस गए हैं कि एक के बिना दूसरे का अस्तित्व ही नहीं..कुछ साल पहले उसने अपनी डायरी की शरुआत सात जनवरी से की थी और आज भी इस साल का पहला पन्ना है. कल रात एक स्वप्न देखा कि वे लोग यहाँ से जा रहे हैं..इतनी जल्दी में कि किसी से मिल भी नहीं सके, सामान पैक हो गया है बस कार का इंतजार है, हो सकता है यह स्वप्न उस बातचीत के कारण हो जो सोने से पूर्व उन्होंने की थी, वे उसकी छोटी बहन की शादी में जाने की बात पर चर्चा कर रहे थे.

कल व परसों नहीं लिख पायी, दांत में दर्द ज्यादा था, बांया गाल फूलकर गोलगप्पा हो गया है...चार-पांच दिन पूर्व ही उसने सोचा था कि अब वह पूर्ण स्वस्थ है कुछ भी नही होता..और ऐसा सोचना ही शायद पूर्वाभास था कि अब कुछ होने वाला है. डेंटिस्ट को अभी दिखाया नहीं है, पर दिखाना जरूरी है यहाँ या तिनसुकिया जाएँ शायद कल. कल से दवा शुरू की है, पता नहीं कब पूरी तरह ठीक होगा. कल उनकी ट्रेन व फ्लाईट की टिकट हो गयीं. उसने गलती से एक दिन पहले के पेज पर लिख दिया है..हालात क्या इतने बिगड़ गए हैं...

मौसम इस तरह बदले हैं अब के बरस
बरसात आ के चली गयी खबर ही न हुई

कल टीवी पर एक बेहद अच्छा कार्यक्रम देखा, आधुनिक उर्दू शायर मोयद्दीन पर, शेर कैसे होता है ? कितना अच्छा जवाब था उतने ही अच्छे सवाल का, एक बेचैनी सी होती है..कैफियत सी ..फिर शेर होता है खुदबखुद, बेइरादा. जून को यह प्रोग्राम पसंद नहीं...अगर वह भी साहित्य में दिलचस्पी लेता तो शायद ...मगर उसे इन बातों से कोई खास या आम कोई असर नहीं होता, उसका मन जल्दी पिघलता नहीं है जैसे वह कोई पंक्ति पढकर या सुनकर भावुक हो जाती है...फिर भी तो वह उसकी जान है, उसके होने से ऐसा लगता है जैसे अब कोई डर नहीं वह सब कुछ सम्भाल लेगा.. सम्भाल ही लेगा, और नन्हे की भी अपने पापा के बारे में कुछ यही राय है.





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