कल इतवार था यानि लिखने का भी अवकाश, सुबह तो सारी टीवी
के कार्यक्रमों में निकल जाती है, दोपहर को उन्होंने आर्गन्डी के कपड़े से फूल
बनाये, पहले उन्हें अलग अलग रंगों में रंगा, फिर स्टार्च लगाया और तब अलग अलग आकार के फूल बने. शाम को फिल्म देखी.
नन्हे का आज विज्ञान का टेस्ट है, उसको सुबह बिस्तर से उठाना बड़ा मुश्किल है, ठंड
भी काफी थी आज, पर अब धूप निकल आई है. कल शाम वह बेवजह उदास हो गयी ,कभी-कभी होता
है ऐसा उसके साथ, पता नहीं क्यों ? जून उसे गाइड करते, उसे कुछ सिखाते, उससे
ज्यादा रूचियाँ होतीं तो....शायद यही कारण है, उन्हें ऑफिस के काम के अलावा दुनिया
की किसी वस्तु में दिलचस्पी नहीं है और अगर जरूरी न हो तो शायद..., हो सकता है कि
वह कुछ ज्यादा ही सोच रही है पर यह बात सच है किसी हद तक..नन्हे के लिए उन्हें एक
आदर्श होना चाहिए जो उसे मार्गदर्शन दे सके, उसे उत्साहित कर सके...पर उसे उनसे
इतनी अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि वह स्वयं ही उनकी अपेक्षाओं पर खरी नही
उतरती. शायद कोई भी इंसान ऐसा नहीं जो अपनी अपेक्षाओं को पूर्ण कर पाता हो. लेकिन
वह कोशिश तो करती है, उनके प्रति जागरूक तो है, पर वह तो उदासीन हैं जैसे...मस्त
अपने आप में. गेंदे की जो पौध उन्होंने लगाई थी उसमें अच्छे फूल नहीं आ रहे हैं,
सब खिल जायेंगे तब शोभा बढ़ेगी, वैसे हर फूल की अपनी सुंदरता होती है, आज वह अपनी
कही हर बात काट रही है, शायद यह मौसम का असर है, खिली-खिली धूप का उजास मन को
स्थिर रहने ही कहाँ दे रहा है. कुछ देर पहले वह उन पंजाबी दीदी को फोन करने की सोच
ही रही थी कि उनका फोन आ गया, उनकी नौकरानी के यहाँ कल रात लड़ाई हो गयी, खून खराबे
तक बात पहुंच गयी. पहले दिन से लेकर इस सृष्टि पर कितना खून बहा होगा इस धरती
पर...पर समुन्दर अभी तक लाल नहीं हुआ..भगवान ?
कल लिखना शुरू ही किया था
कि जून आ गए. और फिर दो दिन बीहू का अवकाश..वे बहुत घूमे, कार से, वैन से.. पैदल
चलना, मीलों निकल जाना दूर-दूर.. यहाँ सम्भव नहीं है. हरे-भरे पेड़ों के बीच घूमना,
काँटों भरे रास्तों पर, ऊबड़खाबड़ पगडंडियों पर ...जैसे उस दिन वे म्याऊं में घूम
रहे थे, जो अरुणाचल प्रदेश में है, उसे बहुत अच्छा लगा था प्रकृति के बिल्कुल करीब
होना. उसकी तीन कवितायें क्लब की वार्षिक पत्रिका में छपी हैं. सोचा था उसने एक तो
अवश्य होगी. मौसम फिर बदली-बदली हो गया है, नन्हा जब स्कूल जा रहा था वर्षा भी हो
रही थी. उन्हें घर जाने में बहुत कम दिन रह गए हैं.
परसों उन्हें जाना है,
आश्चर्य है घर से न कोई पत्र न कार्ड आया है, वे लोग शादी की तैयारियों में इतने
व्यस्त हो गये हैं कि...शायद आज आए. सिर्फ दो दिन के लिए जाना है उन्हें पर सर्दी
की वजह से सामान काफी हो गया है, तैयारी लगभग हो गयी है, यात्रा करने से पूर्व जो
उत्सुकता, उत्साह और थोड़ी घबराहट सामान्यतः होती है, शुरू होने लगी है. आस्ट्रेलिया
और भारत के बीच फाइनल मैच खेला जा रहा है.
कल भारत छह रन से हार गया.
शाम को दीदी मिलने आई थीं, उन्हें विदा करते समय दस-पन्द्रह मिनट वह बाहर खुले में
खड़ी थी ओस टपक रही थी, उसे सुबह-सुबह दो तीन छींकें आयीं. नन्हे की चम्पक भी आई कल,
बहुत खुश था.
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