आज फिर वही व्यस्तता..जो उसे बहुत अच्छी लगने लगी है.
नन्हे का स्कूल बंद है, साथ-साथ वे नाश्ता करते हैं, फिर वह पढ़ाई करता है थोड़ी
बहुत और पहले रामायण का पाठ सुनता है. फिर अपने मित्र के यहाँ जाता है अथवा कभी वह
आ जाता है. बच्चों को बड़ों के साथ से ज्यादा हमउम्र का साथ प्रिय होता ही है.
ग्यारह कैसे बज जाते हैं पता ही नहीं चलता. कल दोपहर उसने अपनी ड्रेस सिलनी शुरू
की है, आज भी करेगी, सिलाई करना उतना मुश्किल तो नहीं है जितना उसने सोचा था. कल
जून बेहद खुश थे, पहले के जैसे उत्साहित और स्नेह से भरे..व्यर्थ ही वे बाहर की
घटनाओं से उदास हो गए था..नीरस जीवन जिए जा रहे थे..नीचे प्यार की धारा बह रही थी
पर वे उससे अनजान ही थे.
कल सत्यजित रे की प्रसिद्ध
फिल्म “पाथेर पांचाली” देखी, जिसने उसे रुला ही दिया. ‘चारुलता’ भी लाए हैं जून, अभी
अंत नहीं देखा, यह भी बहुत अच्छी फिल्म है. कल जून एक हास्य फिल्म का कैसेट भी लाए
थे. आज क्लब में फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता है, सोनू भाग ले रहा है. वह जेम्स बॉण्ड
बन रहा है.
उसे लगता है, लिखने का यह
समय ठीक नहीं क्योंकि मन तो घर-गृहस्थी के कार्यों में उलझा रहता है, विचार स्थिर
हो ही नहीं पाते. यह छूट गया, यह करना था, यही सब.. आज सुबह उसने जून को समय पर
नहीं उठाया..क्यों किया ऐसा ? उन्हें जल्दी-जल्दी तैयार होकर जाना पड़ा. क्या
प्रमाद उसके भीतर इतनी गहरी जड़ें जमा चुका है..इतना आसान हो गया है माथे पर बिना
कोई शिकन लाए, बिना गाल लाल हुए..उसे इस ओर सचेत रहना होगा. कल रात स्वप्न में
दंगे और कर्फ्यू को देखा अपनी खिड़की के बाहर जैसे बनारस में देखा था. नन्हा बोला,
अब वह छुट्टियों से बोर हो गया है, कुछ विशेष करने को कहो तो अकेले कर भी नहीं पाता जब तक कि कोई साथ न रहे, और वह
चाहकर भी ज्यादा समय नहीं दे पाती, अब ध्यान रखेगी.
नन्हे को चित्रकला प्रतियोगिता
में पुरस्कार मिला है, उसने भी एक प्रतियोगिता में अपनी कवितायें भेजी हैं. कल रात
स्वप्न में उसका गला खराब लगा सुबह उठी तो वाकई गले में खराश थी...कभी-कभी सपना और
हकीकत एक हो जाते हैं. वर्षा का मौसम आ गया है या कहें कब से आ चुका है. आज सुबह
से ही टपटप पानी बरस रहा है ऐसे में टीवी पर ‘सुमित्रा नन्दन पंत जी’ की कवितायें
और उन पर एक कार्यक्रम बहुत अच्छा लगा, साथ ही ‘सच्चिदानन्द भारती जी’ पर एक
कार्यक्रम देखा. कितनी पुरानी यादें पहाड़ों के वास की सजीव हो उठीं शायद छोटे भाई
ने भी देखा हो यह कार्यक्रम. उसे खत में लिखेगी उसने तय किया. जून को हल्की सर्दी
लगी हुई है, जैसे कल उसे लग रहा था, कल वे अस्पताल भी गए थे, डॉ बरुआ ने ढेर सारी
दवाएं दे दीं पर उसने ली एक भी नहीं है, दोपहर को जून के हाथ वापस भिजवा
देगी.
परसों वह एक परिचित के
यहाँ गयी थी, कपड़ों का एक सौदागर आया, उसने एक पीली तांत की साड़ी खरीदी हरे बॉर्डर
वाली, जून को घर पर आए सेल्समैन से कुछ खरीदना अच्छा नहीं लगता, पर यहाँ बहुत लोग
घर पर कपड़े आदि खरीदते हैं. आज टीवी पर “नेहरु ने कहा था” कार्यक्रम के अंतर्गत
पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति उनके विचार सुनाये गए. आज के बच्चों के लिए नेहरु एक
कहानी के पात्र ही रह गए हैं. उसके बचपन में आधुनिक भारत के निर्माता नेहरु कितने
निकट जान पड़ते थे. राजीव गाँधी की प्रथम पुण्य तिथि के अवसर पर टीवी पर उन्हें भी कई
बार देखा, हजारों लोग उन्हें भरे मन से याद करते हैं.
उसका जन्मदिन है आज,
भाई-बहनों व ननद के बधाई कार्ड्स मिले हैं, नन्हे ने भी उसके लिए एक कार्ड खुद
बनाया है, वह उसके लिए एक उपहार भी लाया है जो अभी तक दिखाया नहीं है. जून ने उसे
एक साड़ी दी है और ढेर सारा प्यार. आज शाम को वह मैंगो शेक व ब्रेड रोल बनाएगी, केक
तो होगा ही, खाने में पनीर की सब्जी. जन्मदिन पर खुशी क्यों होती है ? क्या इसलिए
कि बचपन से इस दिन खुश होना सिखाया जाता है या इसलिए कि वे शुक्र गुजार होते हैं
दुनिया में आने के लिए. गरीब लोग जन्मदिन मनाते होंगे, मनाते भी होंगे तो खुश नहीं,
उदास होते होंगे, यह बात उसने क्यों लिखी. कल रात को ‘सलीम लंगड़े पे मत रो’ फिल्म
देखी. फिल्म काफी देर से शुरू हुई पर उसने इंतजार किया और उस इंतजार का परिणाम
अच्छा ही रहा. फिल्म काफी अच्छी और सच्ची थी, मुसलमानों का दर्द उभर कर आया है,
लेकिन ऐसा क्यों है? गरीबी, अशिक्षा और संकुचित विचारधारा के कारण ही तो. देर से
सोयी तो सुबह नींद भी फिर देर से खुली.
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