शनिवार और इतवार गुजर गए, अच्छे दिनों की
तरह. शनि की शाम को वह थोड़ा सा घबरा गयी
थी, जून डिब्रूगढ़ गए थे, आने में काफी देर कर दी, कार खराब हो गयी थी, पर फिर सब
ठीक हो गया. इतवार शाम वे पड़ोस में एक बच्चे के जन्मदिन पार्टी में गए. आज सुबह ही
पंजाबी दीदी ने फोन किया, वह उस समय खिड़कियों के लिए नेट के पर्दे सिल रही थी. उनके
पास पंजाबी गीतों का एक कैसेट है, वह चाहती हैं वे उसे टेप कर दें. उसने कहीं पढ़ा
कि डायरी लिखना चरित्र विकास में अत्यंत सहायक है. अपनी गलतियों तथा अपने सद्विचारों
को परखने का माध्यम है. वह गलतियाँ तो हर पल न जाने कितनी करती है पर डायरी में
लिखती नहीं. कल शाम को जून को कितना कुछ कह गयी, यह सबसे बुरी आदत है ज्यादा
बोलना, किसी बात को कम से कम शब्दों में कहने से उसका असर बढ़ता ही है कम नहीं
होता. जून कितने धैर्यवान हैं जरा भी बुरा नहीं मानते मगर वह जानती है यदि वह उसे
ऐसे ही कुछ कह दें तो उसे कितना खराब लगेगा....नन्हे को प्यार वह भी उससे कम तो
नहीं करते. और दूसरी कमजोरी है उसकी, कोई कार्य करके पछताना, पहले उत्साह में या
कहें जल्दबाजी में कुछ करना और फिर सोचते रहना कि ऐसा न करके वैसा किया होता.
तीसरी गलती है अपेक्षाएं रखना, इस दुनिया में अगर सही अर्थों में सुखी रहना है तो
किसी से भी कोई भी अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए, क्योकि ज्यादातर मामलों में लोग निराश
करते हैं और जहां नहीं करते हैं वहाँ उनकी और ध्यान नहीं जाता अर्थात हम खुश कम
होते हैं और उदासी ज्यादा ओढते हैं.
मार्च का अंतिम दिन यानि
वसंत को विदा और गर्मी का आगमन. आज भी कैसी उमस है इस कमरे में, अभी साढ़े नौ ही
हुए हैं, बिना पंखा चलाए यहाँ बैठना मुश्किल है. अब सुबह अपने आप ही नींद खुल जाती
है और सर्दियों की तरह उठने में देर भी नहीं लगती. नन्हे का आज पहला पेपर है,
अंग्रेजी का, अच्छा होगा क्योंकि उसे सब याद है, कितना खुश था सुबह, बच्चे हर वक्त
खुश, खिले-खिले पता नहीं कैसे रह लेते हैं...तभी तो वे बच्चे हैं ! उसकी एक परिचित
का कई दिनों से फोन नहीं आया, उसे लगता है कि सम्बन्ध थोपे नहीं जा सकते, यदि सम्बन्ध
जरूरत पर ही टिके हैं तो ठीक है जरूरत होने पर ही वह भी बात करेगी.
यह उसकी नितांत व्यक्तिगत
पूंजी है
उसका ईश्वर सदा उसके पास
है
आज बहुत दिनों बाद गीता
पढ़ी, और अब अपने निकट आने का सुअवसर भी प्राप्त हुआ है. अप्रैल के महीने में दूसरी
बार. इतने दिनों जैसे किसी स्वप्नलोक में जी रही थी. नन्हे के इम्तहान हुए, वे
तिनसुकिया गए, मित्र परिवार को खाने पर बुलाया. छोटी बहन का पत्र आया. बड़ी बुआ के
बेटे की शादी का कार्ड आया. छोटी भांजी कविता लिखती है, मालूम हुआ, और न जाने
कितनी बातें.. कुछ लोगों से पहली बार मुलाकात हुई, चादर के तीन हिस्से पूरे हो गये.
लेकिन बार-बार मन आहत होता है क्योकि अपेक्षाएं लगा बैठता है जो पूरी नहीं होती
सकतीं..क्योकि वे दूसरों पर आश्रित होती हैं. अपना काम स्वयं करो संतुष्ट रहो, यही
पाठ तो गीता में पढ़ती है फिर...आमतौर पर लोग निस्वार्थ नहीं होते..और पहले अपनी
सुविधा फिर दूसरे का काम, यही रवैया अपनाते हैं...और जितनी जल्दी यह बात समझ में आ
जाये..उतना ही अच्छा है.
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