Saturday, January 5, 2013

होमियोपैथिक दवा- मीठी मीठी सी



आज फिर बहुत दिनों के बाद डायरी खोली है, आज भी मूड नहीं था पर सोचा, नियम के अनुसार चलना चाहिए न कि मूड के अनुसार. सुबह से सब सामान्य रहा है, थोड़ा सा दूध आज भी उबल कर गिर गया, इस बार घर से बड़ा पतीला दूध के लिए अवश्य लायेंगे उसने मन ही मन तय किया. नन्हा कल दोपहर इंग्लिश वर्कबुक में गृह कार्य करना भूल गया था, आज सुबह उसने देखा, फिर किसी तरह पूरा किया. इतवार को उसे कला प्रतियोगिता में जाना है, वह बहुत उत्साहित है. घर से माँ का पत्र आया है, दीदी को विदेश में पत्र लिखने के लिए एरोग्राम मंगाना है. उन्होंने ‘नॉर्थईस्ट टाइम्स’ लेना शुरू किया है उग्रवादी संघठन के समाचारों से भरा रहता है.

शनिवार और रविवार व्यस्तता में बीते, जैसे हमेशा बीतते हैं. आज सोमवार है, उसे भारीपन महसूस हो रहा है, पता नहीं तन की वजह से मन में या मन की वजह से तन में, एक के बिना दूसरा स्वस्थ रह भी कैसे सकता है. लेकिन शीघ्र ही यदि इलाज न किया तो...खतरा हो सकता है. आज बल्कि अभी से इलाज शुरू कर देना चाहिए, उसने तय किया सबसे पहले पत्रों के जवाब देने हैं, इससे भी मन हल्का हो जायेगा. प्रियजनों की स्मृति ही कितना सुकून देती है.
पुनः एक अंतराल ! अभी याद ही नहीं आ रहा था कि आज कौन सी तारीख है, सभी दिन सभी तारीखें बराबर हैं उसके लिए...सर में हल्का दर्द है और पेट में कुछ...उसने सोचा, पहले कुछ खाकर आयेगी, न खाने से ही ऐसा लग रहा होगा, ऐसा ही हुआ, खाकर ठीक लग रहा है. आज उसने तीन सखियों से फोन पर बात की. मौसम आज भी बादलों भरा है, तेज धूप अब कभी-कभी ही आती है, सर्दियाँ अब निकट हैं. नन्हा स्कूल गया है, काफी समझदार हो गया है, बड़ी-बड़ी बातें करता है, खूब हंसाता है उन दोनों को. कल साइंस में उसे ट्रिपल स्टार मिले, स्कूल से आते ही बताया उसने, बेहद खुश था. जून कल एक पाकिस्तानी कामेडी कैसेट लाए थे, यूँ ही सा है. आज वह तिनसुकिया गए हैं, इस हफ्ते घरों को खत वे लिखेंगे. सो आज सोमवार होने के बावजूद उसे खत लिखने का काम नहीं करना है.

कल शाम वह डहेलिया की कटिंग्स ले आयी अपनी बंगाली सखी से, और गुलाब की असमिया सखी से,.जो बागवानी में दक्ष है. पर माली अभी तक नहीं आया है, सब एक ही जगह मिटटी में लगी हैं. इस घर में उन्हें नए सिरे से बगीचा लगाना है कितना काम पड़ा है यहाँ बगीचे में करने को.
सितम्बर का अंतिम दिन, अक्टूबर का महीना यानि यात्रा का महीना. पूरे एक वर्ष बाद सभी से मिलकर कैसा लगेगा, अच्छा..बहुत अच्छा, कुछ दिन पहले वह यात्रा के नाम से ही घबरा गयी थी, पर अब प्रतीक्षा है उस दिन की, तैयारी करनी है पर अभी बहुत समय है.

उन्हें यात्रा से वापस आए भी कुछ दिन हो गए हैं, पर कुछ लिखा नहीं, क्या कहे इसे, प्रमाद, मूर्खता या उदासीनता और या दुनियादारी, दुनिया भर  के दूसरे कामों के लिए वक्त है, निकल आता है पर अपने पास आने के लिए, खुद से बात करने के लिए वक्त नहीं है, शायद उसे डर लगता है, अपनी शिकायत अपने आप से करने में, शीशे के सामने खुद को खड़ा करने में..यह डायरी उसके मन का आईना ही तो है, उसका मन जो नित नई बेवकूफियां करता रहता है, खुद भी परेशान होता है और अन्यों को भी करता है...खैर यह सब लिखने से कोई लाभ नहीं क्योंकि कल फिर वही होगा..और परसों भी वही..अंत नहीं है इसका, अंत हो सकता है पर इसके लिए मेहनत करनी होगी. मस्तिष्क का प्रयोग करना पड़ेगा, जो सदा आराम करता है..दिमाग का प्रयोग न करने से वह जंग लगे हथियार की तरह हो जाता है जो वक्त पर काम नहीं आता...उसने रुककर निश्चय किया कल जो हुआ उसे भूलकर आज की बात करेगी, उन दीदी के परिवार को खाने पर बुलाया है, सिंधी कढ़ी बनाएगी, तरला दलाल की ‘आस्वादन’ में देखेगी, शायद कोई नई रेसिपी मिल जाये अच्छी सी..गुलाबी-गुलाबी ठंड पड़ने लगी है, नन्हे की तबियत अब सम्भली है, होमियोपैथिक दवा दी है उसे जुकाम के लिए, उन्होंने तय किया है की उसे कभी एलोपथिक दवा नहीं देंगे, खुद भी नहीं लेंगे, जब तक सम्भव हो.

   









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