Thursday, January 31, 2013

प्रतीक्षा स्कूल बस की



कल जुलाई का प्रथम दिन था, नन्हे का नए स्कूल में प्रथम कक्षा में प्रथम दिन ! सारी सुबह उसी में व्यस्त रही वह, पहले उसे तैयार करने में फिर उसके स्कूल भी गए वे. नन्हा खुश था, स्कूल से आकर भी बहुत सी बातें बतायीं उसने. इस समय सुबह के साढ़े दस बजे हैं, उसका मन शांत नहीं है इस समय, कारण वही उसकी नैनी...लक्ष्मी प्रसंग..लेकिन अब लगता है कि उसे इनके मामलों में ज्यादा उलझना ही नहीं चाहिए. मुश्किल तो यह है कि उसका मन कठोर नहीं है, खैर..सब लिख देने से मन कुछ हल्का होगा.

ढूँढते ढूँढते उसकी आँखें थक गयी थी
बोझिल हो गए थे पैर
दिल एक सवाल की तरह हर श्वास से यही
पूछ रहा था
कहाँ ? किधर ? कब ? कौन ?
लेकिन कोई जवाब नहीं होता कुछ सवालों का...

उसे याद आया कल घर से पत्र आया है, पिताजी ने लिखा है..’वह उसके विचार और सुझाव पढ़कर आनन्दित हुए’. आज शाम को उनके यहाँ एक असमिया परिवार आने वाला है, उसकी सखी की बहन, जीजा जी, तथा माँ आए हुए हैं, यहाँ परिवार से इतने दूर रहने पर किसी के भी यहाँ मेहमान आने पर ऐसा लगता है कोई अपना ही आया है.


अभी-अभी कहीं जाने के लिए घर से बाहर निकली पर जून के आने का समय हो गया है, आज सुबह से वर्षा हो रही है, नन्हे की स्कूल बस जब आई तो वर्षा काफी तेज थी. जून ने फोन करके मना कर किया उसे स्कूल भेजने के लिए, पर वह तैयार था और उसका मन भी उदास हो गया उसे उदास देखकर, स्कूल जाना ही चाहिए, पड़ोस का बच्चा उसकी ही कक्षा में पढ़ता है, वह भी गया. फिर जून उसे कार से छोड़ने गए. कल शाम वे लोग मेहमानों की प्रतीक्षा ही करते रहे, पर वे नहीं आए, तिनसुकिया चले गए थे.

उलझ गए सब मन के धागे
गुलझे तार हृदय वीणा के
कैसे उर का बोझ संभालूं
कैसे मन की गिरहें खोलूं
बंध कर गांठ हृदय पर बैठी
जैसे सर्प उठाये फन हो
फिर कैसे होगा मन हल्का
कैसे खिलेगा अंतर उपवन
रहूँ दूर गर जग प्रपंच से
बस अपने में अपने में बस
न कुछ लेना न कुछ देना
जीवन है इक ऐसी दलदल
गए निकट तो धंसना होगा
छीटें फिर अपने आंचल पर
बादल काले अपने मन पर छाने होंगे

दूर से आयी है हवा खुश्बुयें समोए हुए
कितनी खामोश है नदी साये डुबोए हुए

कल वह  किताब आ गयी, “हजार वर्ष की हिंदी कविता”, जो उन्होंने पिछले महीने मंगाई थी. जून ने कहा यह किताब इतने पैसों की नहीं लगती, उन्हें डाक का खर्च भी देना पड़ा था, लेकिन पैसों से नहीं आंकी जा सकती कीमत इन कालजयी कविताओं की. एक सौ पचासी कवियों की कविताएँ हैं इसमें. कुछ पढ़ी हैं उसने, इतनी सारी कवितायें एक साथ..कुछ तो इतनी अच्छी हैं कि मन में कहीं अंदर तक छू जाती हैं. आज उसके पास काफी वक्त है, नन्हा आज जल्दी उठ गया था सो सभी काम जल्दी जल्दी हो गए, कल उसकी स्कूल बस छूट गयी थी, कितना रोया था वह, कितना प्यारा है वह और कैसी बड़ी-बड़ी बातें करता है, स्कूल जाना उसे बहुत अच्छा लगता है. और अब शब्दों का खेल- यानि एक प्रयास- विषय क्या होना चाहिए, हाँ ‘कविता’ का विषय भी कविता ही होना चाहिए
कविता रस की धार जो प्रस्तर में भी बहा करती है
कविता मीठी कटार जो दिल में गहरे चुभा करती है
कविता इक आधार जिस पर मन पीड़ा आश्रय बनाती है
कविता इक संसार जिसे स्वप्नों की धूप जगाती है
कविता मन का प्यार जिसे पा बगिया खिल जाती है



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