जून माह का प्रथम दिन ! आज सुबह नन्हा जल्दी उठा था, तब से कितनी ही बातों पर उसे गुस्सा दिला चुका है, सभी काम
धीरे-धीरे कर रहा है, कुछ ज्यादा ही धीरे..जिससे उसके अन्य काम रुक जाते हैं.
जानती है गुस्सा करने से कोई लाभ नहीं पर मन ही तो है अपने वश में नहीं रहता. ऊपर
से आज स्वीपर भी नहीं आया है. इस समय लिखने का अर्थ है अपने मन का गुबार निकालना, उसकी
एक मित्र ने कुछ सामान भिजवाना था वह भी नहीं आया. उसने भी कई बार निराश किया है.
अब वह भी उदासीन रहेगी. कल उन्होंने सभी पत्रों के जवाब लिखे. परसों जन्मदिन अच्छा
रहा पर कल इतवार कुछ अधूरा सा, क्योंकि “चाणक्य” नहीं दिखाया गया. नन्हे की साईकिल
में फिर कुछ खराबी आ गयी है वरना साइकिल चलाने के लिए तो वह हर काम जल्दी कर लेता.
पिछले वर्ष की तरह उसके
छोटे फुफेरे भाई ने जन्मदिन पर उसे याद किया है, कार्ड भेजा है, उसे जवाब देना है.
फूफाजी को दिल का दौरा पड़ा था, और उसका खुद का एक्सीडेंट हुआ, जब मुसीबत आती है तो
हर ओर से आती है, और एक वह है कि सब कुछ ठीक-ठाक है, कहीं कोई समस्या नहीं, पर मन
को चिंताओं का अखाड़ा बना लेती है. ऊपर से गर्मी का मौसम, तनाव में जैसे घी का काम
करता है. झुंझलाहट और हल्का सा सिर दर्द या बेचैनी, कभी नन्हे के बहुत ही
धीरे-धीरे भोजन व होमवर्क करने के कारण कभी माली, धोबी, या स्वीपर के कारण.
आज ‘विश्व
पर्यावरण दिवस’ है. रियो में पृथ्वी सम्मेलन आरम्भ हो चुका है. उसका मन शांत है जबकि मौसम
गर्म है इसका अर्थ तो यह हुआ कि मौसम असर डालता है तो बस एक हद तक ही. ट्रांजिस्टर
पर आशा भोंसले का एक अच्छा सा गाना बज रहा है- जिंदगी इत्तफाक है..कल भी इत्तफाक
थी, आज भी इत्तफाक है...कल रात जून आठ बजे क्लब गए, नन्हे को अच्छा नहीं लगा, पहले
वह नहीं जाने वाले थे, यह बात याद आने पर उसने लिखना बंद करके पत्र लिखना ज्यादा
ठीक समझा.
जून क्लब से लौटे तो स्वस्थ
नहीं थे, पेट में जलन और गैस की शिकायत थी, शायद वहाँ का भोजन पचा नहीं. पर यह सब
उन्होंने सुबह बताया, रात देर से लौटे थे, उसे कुछ भी समस्या हो झट बता देती है पर
यही अंतर है शायद स्त्री और पुरुष के स्वभाव में, स्त्रियां जिसे अपना मानती हैं
पूरी तरह अपना मानती हैं. जून ने शायद उसके लिए ही उसे न उठाया हो, खैर ! वह दफ्तर
तो गए हैं क्योंकि जीएम बहुत दिनों बाद आये हैं. कल उसने सोचा अंग्रेजी में खत लिखेगी
पर उसकी लिखाई बहुत बिगड़ गयी है और लगा कि जो कहना था वह कह नहीं पाई, जबकि ऐसा
होना तो नहीं चाहिए. नन्हा साइकिल लेकर गया है, आज अपेक्षाकृत गर्मी कम है, उसने
घर की सारी खिड़कियाँ खोल दी हैं, हर कमरे में चार खिड़कियाँ.. डेक पर गुलाम अली की
यह गजल आ रही है- ‘बिछड़ के भी तुझे मुझसे यह.....है, कि मेरी याद तुझे आनी है’.
जून कल क्लब की वार्षिक
सोविनियर ले आये, उसकी एक कविता, जिसका अनुवाद उसने खुद अंग्रेजी में किया था, उसमें
छपी है. कल सुबह इतनी व्यस्तता पता नहीं कहाँ से आ गयी थी, कुछ नहीं लिखा. परसों
वह अपनी पुरानी पड़ोसिन के घर गयी, वह अस्वस्थ थी, पहले की हँसती, उत्साह से भरी
सखी पता नहीं कहाँ खो गयी. उसकी नौकरानी ने कहा, कि उसे सुबह से मितली आ रही है, इन
लोगों को दिन, तारीख, महीने तक का ज्ञान नहीं है, डॉक्टर के पास जाने को कहा तो है
उसने.
बहुत कुछ समेटा है आपने इस पोस्ट में!
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