Saturday, December 8, 2018

मणिकर्णिका घाट



आज अचानक उसे चार वर्ष पहले बनारस में बिताये दिनों की याद हो आई है, कोई न कोई कारण अवश्य होगा इसके पीछे, हो सकता है इसलिए कि एक और यात्रा पर अगले माह उन्हें जाना था, वह शायद सम्भव नहीं हो पायेगी. वे कोलकाता तक फ्लाइट से गये थे और उसके आगे कालका मेल से. सुबह उठे तो बिहार आ गया था, खेतों में सुनहरी फसल खड़ी थी, कहीं कट रही थी, कहीं कटने के इंतजार में. मीलों तक फैले खेत कहीं खाली पड़े थे. खेतों में नर-नारी दोनों काम कर रहे थे. मुगलसराय स्टेशन पर उतरे तो एक टैक्सी वाला सामने आ गया, उसके पास अम्बेसडर थी, कहने लगा एक-दो वर्षों में ये कारें दिखनी बंद हो जाएँगी, अब पार्ट्स नहीं मिलते. अगले दिन वे गंगा घाट गये. होटल बिलकुल घाट पर था, मीर घाट पर जो अपेक्षाकृत साफ-सुथरा था. कमरे में सामान रखकर दशाश्वमेध घाट पर शीतला माता के मन्दिर गये, आस-पास बहुत गंदगी थी, पर लोगों की कतार लगी हुई थी. गंदगी से जैसे उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था. मणिकर्णिका घाट का दृश्य विचित्र था. दस-बारह शव जल रहे थे, जैसे ही एक शव जलता, चिता पर पानी डालकर उसे ठंडा कर दिया जाता व फूल चुनकर वे लोग गंगा में बहा देते थे. सीढ़ियों पर लोग बैठे थे जिनके प्रियजन जल रहे थे, पर कोई रोना-धोना नहीं था. माहौल उत्सव सा ही लग रहा था, मृत्यु का उत्सव ! लकड़ियों के ढेर लगे थे और तेज हवा में चिताएं धू-धू कर जल रही थीं. पुआल में एक अंगारा रखकर चिता जलाने के लिए लाया जाता था. देखते-देखते ही नई-नई लाशें चिता पर रखी जा रही थीं. यह कर्म चौबीस घंटे चलता रहता है. कहते हैं काशी में मरने वालों को मोक्ष मिल जाता है. गंगा की धारा हजारों वर्षों से यहाँ बह रही है, मृतकों को अपने आश्रय में लेती आ रही है, लोग इसे पावनी गंगा मानते हैं. कुछ देर बाद उन्होंने भी एक दूसरे घाट से गंगा पार जाकर इसकी धारा में स्नान किया. अपने अंदर के कल्मष को दूर करने में यह अवश्य ही सहायक होगा इस भावना के साथ. पानी पहले तो ठंडा लगा फिर देह अभ्यस्त हो गयी. गंगा के पावन जल का स्पर्श अत्यंत सुखद था, पैरों के नीचे लोगों द्वारा छोड़े गये वस्त्र छूने में आ रहे थे. सफाई की बहुत आवश्यकता है यहाँ, पर लोगों की भीड़ अनवरत आती रहती है की सफाई के लिए अलग से समय निकलना कठिन होता होगा. वापसी में उन्होंने आरती का भी आनंद लिया. आरती भव्य थी, अद्भुत क्षण थे वे, परमात्मा की उपस्थिति का अनुभव हो रहा था. उसके बाद विश्वनाथ मंदिर भी गये थे वे, जहाँ पुलिस का सख्त इंतजाम था. देवी अन्नपूर्णा के दर्शन किये शनिदेव के और बड़े हनुमान के भी. विशालाक्षी मन्दिर तथा अन्य भी कई मन्दिर मार्ग में देखे. होटल लौटे तो चाँद आकाश में चमक रहा था और शीतल हवा बह रही थी. अगले दिन सुबह घाट पर ही होने वाले योगाभ्यास में भाग लिया. उसके बाद घर लौटते समय वारही देवी के दर्शन किये. एक गली में था मन्दिर. मूर्ति दर्शन भी विचित्र था. ऊपर से एक चौकोर छिद्र में से झांककर देखने होता था, नीचे जिस कक्ष में मूर्ति थी वहाँ जाना सम्भव नहीं था. बनारस की हर गली में कोई न कोई छोटा बड़ा मन्दिर है, अद्भुत नगरी है यह. कुछ देर एक चबूतरे पर बैठकर गंगा की लहरों से आती ठंडक तथा सूर्य की नव रश्मियों का स्पर्श करते हुए ध्यान भी किया. शाम को नगर में स्थित आयुर्वैदिक केंद्र में पहली बार शिरोधारा का अनुभव लिया. पडोस के घर में विवाह था, उसमें भी सम्मिलित हुए थे. बनारस से वे वापस कोलकता आये थे और बंगाली सखी की बिटिया के विवाह में सम्मिलित हुए थे.

रात्रि भोजन हो चुका है. नन्हा अभी तक नहीं आया है, शायद मार्ग में हो, लगभग बारह घंटे की उसकी ड्यूटी है. अपने काम के अलावा आजकल उसका कोई दूसरा शौक नहीं रह गया है. शाम को वे टहलने गये. दुकान से इडली के लिए सूजी खरीदी. आज अपेक्षाकृत ठंड ज्यादा है. सुबह छह बजे से थोड़ा पहले उठे. फूलवाली ने तब तक अपनी दुकान नहीं लगाई थी, जब वह प्रातः भ्रमण के लिए गयी, न ही सूर्य देवता ने दर्शन दिए जब छत पर गयी. हर दिन अन्य दिनों से कितना भिन्न होता है. उनकी भावनाएं भी भिन्न हों तो क्या बड़ी बात है. मन बदलता है, आत्मा सदा एक सी रहती है, द्रष्टा है, साक्षी है. जून ने कहा वह बहुत धीरे-धीरे खाती है. उसने इस बात को गम्भीरता से ले लिया, पल भर के लिए ही सही अपनी मूल स्थिति से डिग गयी, पर आत्मा को मंजूर नहीं है. वह एक बार अपने सिंहासन पर बैठ गयी है तो उसे अपनी गद्दी से उतरना मंजूर कैसे होगा.


Friday, December 7, 2018

द जंगल बुक



शाम के सात बजे हैं, पहली बार ऐसा हुआ है जब जून और वह घर में अकेले हैं. नन्हा दफ्तर गया है, और उसकी मित्र अपने किसी रिश्तेदार से मिलने. भांजा अपने हॉस्टल चला गया है. उसकी मित्र ने कहा है जब वे वापस घर जायेंगे, उसकी माँ उनसे मिलने आयेंगी. अगले वर्ष के आरम्भ में ही नन्हा और वह विवाह बंधन में बंध जायेंगे. सुबह भी पांच बजे उठे. नन्हे ने सभी के लिए दक्षिण भारतीय नाश्ता बाहर से मंगवा लिया था, इडली, डोसा, पोंगल तथा हलवा. आज PPT पर थोड़ा काम किया. जून का कहना है वह पूर्व निर्धारित तिथि को वापस नहीं जा रहे हैं, पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाने के बाद ही वह वापस जायेंगे. अगले माह पहले सप्ताह में प्लास्टर खुलेगा, उसके बाद जून की इच्छा के अनुसार सम्भवतः वे दुबई भी जा पायें. छोटी भांजी का मेल आया, वह भी दुबई जा रही है, सो बहुत खुश थी कि वहाँ उनसे भी मिलेगी. आज उसके पास समय है पर भीतर कुछ कहने को नहीं है. न ही कुछ जानने को है, जिसे जानकर सब कुछ जान लिया जाता है, उसे जानने के बाद भीतर कैसा मौन छा जाता है. इस संसार में यूँ तो जानने को बहुत कुछ है पर जो संसार एक स्वप्न से ज्यादा कुछ नहीं, उसे जानकर भी क्या लाभ हो सकता है. कुछ देर योग साधना करना ही सबसे उत्तम है !

रात्रि के आठ बजे हैं. आज सुबह नींद देर से खुली. प्रातः भ्रमण की जगह सांध्य भ्रमण किया. छत पर टहलने गयी तो सूर्यास्त होने ही वाला था. बादलों का रक्तिम रंग आकाश को अनोखे रंगों से दहकाता जा रहा था. वापस आकर बालकनी से देखा आकाश गुलाबी हो गया था. कैमरे से कुछ तस्वीरें लीं जो जून ने फेसबुक पर प्रकाशित कर दी हैं. आज रात्रि भोजन में काले चने की सब्जी बनाई है, जो नन्हे को बहुत रुचिकर है. दाल व मेथी की जो बड़ी वह साथ लाये थे उसे डालकर कुम्हड़े की सब्जी भी. साथ ही छोटी कटी सब्जियों का सादा सूप. आज से रसोइया छुट्टी पर जा रहा है, कल से दूसरा आएगा. दोपहर को छोटी बहन ने एक चित्र पूरा करके व्हाट्सएप पर भेजा, जो शायद वह कई दिनों से बना रही थी. टेक्नोलोजी ने दूरियाँ मिटा दी हैं. सुबह से एक बढ़ई घर में काम करता रहा, जो कल भी आएगा. नन्हे ने कलात्मक वस्तुओं से घर को सुन्दरता से सजाया है, खुला स्थान भी काफी है. आज सुबह नन्हे के साथ नेत्रालय भी गयी, डाक्टर ने परीक्षण किया पर PVD के कारण दायीं आँख के सामने जो काला घेरा दिखाई देता है, उसका कोई इलाज नहीं है, समय के साथ वह अपने आप ही कम हो जायेगा.

आज फिर बढ़ई आ गया है. शाम तक काम चलेगा. जून कुछ देर के लिए विश्राम करने शयन कक्ष में गये हैं. सुबह काफी देर तक वह दफ्तर का काम करते रहे. उन्हें घर बैठे खरीदारी करने का साधन ‘जॉप नाउ’ मिल गया है, अमेजन तो है ही. सुबह तिल भूने, अभी मूंगफली भूननी है गुड़ भी मंगाया है, वे गजक बनाने वाले हैं. कल रात देर तक ‘द जंगल बुक’ देखी, जिसका थोड़ा सा शेष भाग आज सुबह देखा. बहुत अच्छी फिल्म है. छोटा मोगली एक सखी की बिटिया की याद दिला रहा था, उसके हाव-भाव में कुछ समानता तो अवश्य है. उसके पास पढ़ने के लिए इस समय कोई प्रिय पुस्तक नहीं है. यहाँ रखी एक पुस्तक The deep work पढ़ना शुरू करेगी और करना भी. समय को व्यर्थ ही गंवाया जाये अथवा उसका सार्थक उपयोग किया जाये यह तो उन पर ही निर्भर करता है. दोपहर के बारह बजने को हैं. आजकल उसे ऐसा लगने लगा है उसे कुछ भी ज्ञान नहीं है, न ही कुछ जानने को शेष रह गया है. भीतर कैसा सन्नाटा है, पर ऊर्जा जो मौन के रूप में प्रकट होती है वही तो मुखरित होगी और वह ऊर्जा तो अनंत है, चाहे जितना उपयोग करें उसका. परसों बड़े भाई का जन्मदिन है, उनके लिए एक कविता लिखेगी.



Wednesday, December 5, 2018

आकाश में लाल गेंद



छह दर्शनों में एक हैं सांख्य दर्शन. योग तथा सांख्य का एक जोड़ा है, न्याय और वैशेषिक का एक युग्म है और पूर्व तथा उत्तर मीमांसा एक साथ रखे जाते हैं. सांख्य दर्शन मोक्ष का दर्शन है. महर्षि कपिल इसके रचियता हैं. सांख्य का अर्थ है सम+आख्य, ठीक से अपने विचारों को रखना ही सांख्य है. इसे सम्यक ख्यान या विवेक ख्याति भी कहते हैं. आज सुबह भी योग-प्राणायाम करते समय आचार्य सत्यजित को सुना. इस समय साढ़े ग्यारह बजे हैं, सुबह का काम समाप्त हो गया है, नैनी सफाई करके गयी और रसोइया भोजन बनाकर चला गया है. नन्हा दफ्तर चला गया है.

आज वे दुबारा अस्पताल गये, डाक्टर ने कहा, प्लास्टर दुबारा लगाना होगा. दस दिन बाद फिर बुलाया है. सुबह नींद देर से खुली, कल रात नन्हे को देर से आना था, मन में कहीं पीछे विचार चल रहा था कि अभी तक आया या नहीं, सो गहरी नींद नहीं आ रही थी. सुबह छत पर सूर्योदय देखने गये, बहुत सुंदर दृश्य था. रक्तिम शोख रंग का सूर्य एक लाल गेंद की तरह लग रहा था. वापस आकर प्राणायाम किया, नाश्ते में वेजरोल बनाये. लंच में इडली, सांबर व चटनी. अभी-अभी असम में नैनी से बात की, वहाँ सब ठीक है.

नव प्रातः नव दिवस उगा
शुभ रूप धरे नव गगन सजा

मौसम सुहाना है. आज सुबह भी उगते हुए बाल सूर्य की तस्वीरें उतारीं और फेसबुक पर पोस्ट कीं. छत पर हवा ठंडी थी और स्वच्छ भी, सोचा, कल से प्राणायाम वहीं करेगी. मीनाक्षी मन्दिर के बाहर बैठी मालिन से बेला के फूलों की माला खरीदी, तो लाल गुलाब के फूल उसने अपने आप ही दे दिए. कल सेक्रेटरी का फोन आया, उसे हिंदी का आलेख भेजा, उसे PPT के लिए तस्वीरें भेजने को कहा. उम्मीद तो है कि अगले महीने के दूसरे सप्ताह में वे घर पहुंच जायेंगे. उसके तत्काल बाद ही क्लब का वार्षिक कार्यक्रम है, वह शामिल हो पायेगी. भविष्य ही बतायेगा क्या होने वाला है.

उसने गुरूजी को एक पत्र लिखा, उन बीसियों पत्रों की तरह जो कभी प्रेषित नहीं किये गये, क्योंकि लिखते ही भीतर शांति के रूप में उनका जवाब उसे सदा ही मिलता रहा है. उसके पास बहुत समय है पर इस समय को व अपने भीतर की ऊर्जा को सार्थक रूप देने की सामर्थ्य नहीं है. भीतर एक मौन है, जिसमें से कुछ भी नहीं छलकता. यह मौन इतना पवित्र है और इतना अचल कि अति प्रयास करके भी इसे तोड़ा नहीं जा सकता. यह वहीमौन है जिसकी चाहना उसने की थी. भीतर कोई कामना नहीं है, कोई दुःख नहीं, कोई उद्वेग नहीं और शायद साहित्य रचने के लिए यही सब चाहिए. इसीलिए अब न तो कविता बनती है न ही कविता रचने के लिए भीतर प्रेरणा ही उदित होती है. उसे अपने समय का और कोई उपयोग आता भी तो नहीं. उसने गुरूजी से राह दिखाने को कहा.

बिछड़ गयी है कविता या

छोड़ दिया है शब्दों का खजाना
नदी के उस तट पर
मंझदार ही मंझदार है अब
दूसरा तट कहीं नजर नहीं आता
एक अंतहीन फैलाव है और सन्नाटा
किन्तु डूबना होगा सागर की अतल गहराई में
जहाँ मोती-माणिक भी हैं और शैवाल भी
अभी ऊर्जा शेष है जिसे ढालना है सौन्दर्य और भावना में
वक्त के इस विराम को वरदान में बदलना है
जीवन की इस सौगात को
यूँही नहीं लुटाना है
अभी हाथों में कलम है
और दिल में शुभ भावना है 




Tuesday, November 27, 2018

गैस भरा गुब्बारा



कल रात्रि वे बारह घंटों से भी कुछ अधिक लंबी हवाई यात्रा के बाद बंगलूरू पहुंचे. कोलकाता में काफी देर रुकना पड़ा. नन्हा उन्हें लेने आया था. घर पर दोनों ननदों के बच्चों ने स्वागत किया. इस समय दोपहर का लंच तैयार है, दोनों भाई-बहन किसी संबंधी के यहाँ गये हैं. वे दोनों नन्हे के आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं. कल रात्रि विचित्र स्वप्न देखा. जिस जगह पर कोई सोता है, उस स्थान का असर भी स्वप्नों पर पड़ता है. हर जगह का वातावरण भिन्न प्रकार की ऊर्जाओं से भरा होता है. एक स्वप्न में देखा, गुब्बारा फुलाने की एकल प्रतियोगिता हो रही है. नारंगी रंग का एक गुब्बारा उसके पास भी है, जो सबसे ज्यादा फूल जाता है. उसका गुब्बारा सबसे बड़ा है पर गाँठ नहीं लगी थी. एक बच्चा जीत जाता है, तभी विजेता के लिए एक बहुत बड़ा हॉट एयर बैलून हवा में छोड़ा जाता है. जो पहले ऊपर जाता है, फिर किसी ऊंची मंजिल पर स्थित घर से टकरा जाता है. वहाँ कुछ टूट-फूट भी होता है. रंग, रौशनी और उत्सव का स्वप्न अंत में विनाश पर समाप्त होता है. एक स्वप्न में सड़क पर नृत्य करते युवा दिखते हैं.

सुबह पांच वे बजे उठे, पांचवी मंजिल से उतरकर नीचे टहलने गये भी गये. हवा ठंडी थी और झूमते हुए फूल मोहक प्रतीत हो रहे थे. साढ़े नौ बजे अस्पताल गये, लौटते-लौटते तीन बज गये. जून के पैर में आज प्लास्टर लग गया है. अब उन्हें दो हफ्ते बाद फिर से अस्पताल जाना है. जहाँ पुनः एक्सरे होगा तथा पता चलेगा प्लास्टर कब काटा जायेगा. यहाँ मौसम अच्छा है, शीतल पवन लगभग दिन भर बहती रही. शाम हो गयी है, नीचे से बच्चों के खेलने की आवाजें आ रही हैं.

आज उन्हें यहाँ आये चौथा दिन है. अभी-अभी वह बच्चों के साथ नीचे टहलकर आई है. सभी ने मिलकर योगाभ्यास भी किया. जून को प्लास्टर के कारण अभी तक तो ज्यादा परेशानी नहीं हो रही है. बड़े भांजे को अगले हफ्ते नौकरी ज्वाइन करनी है. दो हफ्ते तक कंपनी का घर मिलेगा फिर अपने लिए वहीं आसपास कोई घर खोजेगा. आज भांजी भी नौकरी के लिए ऑन लाइन आवेदन पत्र भर रही है. कम से कम सौ जगह आवेदन करेगी तो दो-तीन जगह से जवाब मिलगा. नौकरी मिलना इतना आसान नहीं है. देश भर से बच्चे अपनी किस्मत आजमाने बंगलूरू आते हैं आजकल. नन्हा आज जल्दी घर आ रहा है. रसोइये ने लौकी व बड़ी की सब्जी बनाई है. जून द्वारा किसी बात पर टोके जाने पर उसे अपनी नकारात्मकता आज सुबह स्पष्ट दिखाई दी. पुराने संस्कार घाव की तरह होते हैं, जो हल्की सी चोट लगने से ताजा हो जाते हैं. साधना के द्वारा उन्हें पूरी तरह नष्ट करना होगा !

सुबह के साढ़े दस बजे हैं. इस समय घर में चहल-पहल है. भांजी घर वापस जाने के लिए तैयार है. भांजा अपना नियुक्ति पत्र लेने के लिए पोस्ट ऑफिस से होकर आया है. नन्हा भी काम पर जाने के लिए तैयार है. जून सुबह का सब कार्य निपटा कर सोफे पर अपनी निश्चित जगह पर बैठे हैं. रसोईघर से तरह-तरह के मसालों की ख़ुशबू घर में फ़ैल रही है. मोबाईल पर आचार्य सत्यजित सां ख्य दर्शन पर चर्चा कर रहे हैं. यहाँ नेट की स्पीड काफी तेज है, बिना रुके ही यू ट्यूब पर वीडियो चलता है. नन्हे की मित्र दांत के डाक्टर के पास गयी है. उसकी जॉब पक्की हो गयी है. वह बहुत सन्तोषी है और सबका ध्यान रखने वाली है. उसके चाचा की कुछ माह पहले मृत्यु हो गयी, उसी के बारे में जो बातें उसने बतायीं, उससे पता चला उसे परमात्मा पर पूर्ण विश्वास है. आज मौसम अच्छा है, न ठंड न गर्मी. इसी बात के लिए तो बंगलूरू प्रसिद्ध है. दिन भर जैसा मौसम है, रात को भी वैसा ही रहता है.   


Wednesday, November 21, 2018

गुलदाउदी की कलियाँ



नवम्बर की सुहानी सुबह ! जून बाहर धूप में बैठे हैं, जैसे कभी पिता जी बैठते थे, जब वह छड़ी लेकर चलते हैं तो माँ का स्मरण हो आता है. पहले से बेहतर हैं. आज ही के दिन वे गोहाटी से आये थए, एक सप्ताह उन्हें विश्राम करते हो गया है. अभी कुछ देर में वे बाहर जाने वाले हैं, बैंक, दफ्तर तथा बाजार. नवम्बर का मध्य आ गया है पर अभी भी पंखा चला कर रहना पड़ रहा है. रात्रि में देखे स्वप्न अब याद नहीं रहते, दिन में खुद पर नजर रखने वाला मन रात्रि को भी सजग रहता है. अन्य के संस्कारों के साथ निबाह करना ही सबसे बड़ी साधना है. वे स्वयं के संस्कारों को बदल नहीं सकते और उम्मीद करते हैं कि दूसरे अपने संस्कारों को बदल लेंगे. वे अपने स्वभाव से जैसे ही हटते हैं, खाई या खड्ड में गिरते हैं. हर समस्या का हल आत्मा में है और हर समस्या का जन्म आत्मा से हटने पर है. अभी-अभी जून के पुराने ड्राइवर का फोन आया, उनका हाल-चाल लेने के लिए. नैनी को सुबह आकर ‘हरे कृष्णा’ बोलना सिखाया पर वह भूल जाती है. उसका यह संस्कार नहीं है, परमात्मा का नाम सहज ही अधरों पर आ जाये, इसके लिए कोई प्रयास न करना पड़े तभी सार्थक है. आत्मा में रहना भी ऐसा ही सहज हो जाये तभी बात बनती है.

दोपहर के ढाई बजे हैं. महीनों बाद झूले पर बैठकर लिखने का सुअवसर मिला है. धूप पेड़ों से छनकर आ रही है. हवा में हल्की धुंए की गंध है, कहीं किसी माली ने पत्तों को सुलगाया होगा. बगीचा साफ-सुथरा है, आज के बाद इसे तीन हफ्ते बाद देखेंगे वे, पौधे बड़े हो जायेंगे तब तक, अभी जो नन्हे-नन्हे हैं. गेंदे के फूल शायद तब तक मुरझा जाएँ जो इस समय पूरे निखार पर हैं, गुलदाउदी कलियों से भर जाए. जून इस समय ऑफिस गये हैं. आज उनके यहाँ एक कर्मचारी की विदाई थी. लंच वहीं था. उनको चलने में तकलीफ होती है फिर भी दफ्तर जाते हैं. उनमें जीवट बहुत है, अपने अधिकारों के प्रति भी सजग हैं और कर्त्तव्यों के प्रति भी. आज आचार्य सत्यजित को सुना. कह रहे थे, कोई जिनसे ज्ञान लेता है, उनके पुण्य बढ़ते हैं और लेने वाले का कर्माशय क्षीण होता है. यदि वह उस ज्ञान का उपयोग करे और बांटे तो उसके पुण्य भी बढ़ सकते हैं. मन को सदा समता में रखना तथा आत्मा में स्थित रहना सबसे बड़ी साधना है. जिसे ध्यान में रहना अधिक भाता है, उसके भीतर कैसी सी शांति बनी रहती है किन्तु यदि इस शांति का भी भोग करना उसने आरम्भ कर दिया तो पुण्य क्षीण ही होने लगेंगे. इसे भी साक्षी भाव से स्वीकारना होगा’. कल उन्हें यात्रा पर निकलना है. घर से बाहर ज्यादा सजगता की आवश्यकता है और ज्यादा समझदारी की भी !   

Tuesday, November 20, 2018

वाकिंग स्टिक



जून को छड़ी मिल गयी है, उनके एक सहकर्मी गोहाटी जा रहे थे, उसने उनके साथ भेज दी थी, एक प्रेरणात्मक पत्र भी भेजा उसने, उन्हें अच्छा लगा पढ़कर. छड़ी की सहायता से वह चल पा रहे हैं. घर आने के बाद वह शीघ्र ही ठीक होने लगेंगे. इन्सान को कुछ सिखाने के लिए ही विकट परिस्थितियाँ जीवन में आती हैं. अहंकार का नाश होता है यदि कोई सजग होकर देखे तो और व्यर्थ की भाग-दौड़ से भी बच जाता है. आत्मा को संतुष्ट होने के लिए क्या चाहिए, केवल अपने भीतर डुबकी लगानी है और संतुष्टता उनका जन्मसिद्ध अधिकार ही है. आज वर्षा हो रही है, सम्भवतः इतवार की योग कक्षा में बच्चे कम संख्या में ही आ पायेंगे.

आज सुबह फिर एक विचित्र स्वप्न देखा. जून ट्रेन के एक डिब्बे में हैं. खिड़की पर जाली वाली लकड़ी का दरवाजा है, जिसमें से अंदर देखा जा सकता है. वह देखती है सुंदर लाल वस्त्र पहने छोटा सा बच्चा उनकी गोद में है फिर वह उसे सीट पर बिठाकर उठने लगते हैं और तब मन में एक विचार बार-बार कौंधता ही जाता है. उनकी इच्छा से ही भीतर इच्छा का जन्म होता है तो उससे मुक्त होना है. मुक्ति का मन्त्र जैसे भीतर बज रहा हो. तब स्वर्ग, नर्क, राम राज्य और रावण राज्य सभी कुछ स्पष्ट होने लगता है. उनके मन के विकार ही नर्क के कारण हैं तथा मन की शुद्धता ही स्वर्ग का कारण है. जीवन कितना सुंदर हो सकता है यदि विकारों से मुक्त हो और स्वर्ग मरने के बाद नहीं इसी जीवन में अनुभव किया जा सकता है. कुछ देर पहले जून व नन्हे से बात हुई. उन्हें अपना फोन भी मिल गया है. उससे पूर्व बगीचे में पौधे लगवाये, अभी एक बार और नर्सरी जाना होगा, कुछ पौधे कम पड़ गये हैं. सुबह बंगाली सखी का फोन आया, वह सहानुभूति जता रही थी. उसे लगता है, सकारात्मक सोच रखते हुए प्रेरणा ही देनी चाहिए, पर इसके लिए भीतर आत्मशक्ति का जागरण होना चाहिए. आज सुबह का नाश्ता नैनी ने ही बनाया, शाम को भी उसे कह सकती है, वैसे स्वयं भी कुछ और काम तो नहीं है, सिवाय ‘ध्यान’ और लिखने-पढ़ने के !

पिछले चार दिन डायरी नहीं खोली. सोमवार को नन्हा जून को लेकर आ गया और आज शुक्र की सुबह वापस चला गया. उसने एक आदर्श पुत्र की भूमिका बखूबी निभाई. जून पहले से बेहतर हैं. आज तो नेट पर दफ्तर का काम भी कर रहे हैं. कल शाम उनका चश्मा भी बनकर आ गया है. सोमवार से उनके दफ्तर के लोग एक-एक कर मिलने आ चुके हैं. अगले हफ्ते वह ऑफिस जाने का विचार रखते हैं यदि सब कुछ ठीकठाक रहा तो.

इतवार की शाम, मौसम सुहावना है, बाहर चौदहवीं का चन्द्रमा आकाश में खिला है और नीचे बगीचे में रात की रानी. कल ‘टुबड़ी’ है अर्थात गुरूपर्व या गुरू नानक जयंती. कल बाल दिवस भी है जो उसने बच्चों की दोपहर की कक्षा में आज ही मनाया. इसी शनिवार को उन्हें बंगलूरू की यात्रा पर निकलना है, जहाँ से आगे दुबई भी जाना है. आज पैकिंग का कार्य भी आरम्भ किया. कल ही दुबई ले जाने वाला सूटकेस तैयार किया था. इस बार छुट्टी थोड़ी लम्बी है. आज ही के दिन अगले माह वे वापस आयेंगे. छोटी भांजी भी बंगलूरु पहुंच रही है, और उससे एक दिन पूर्व बड़ा भांजा भी. नन्हे के घर में रौनक होने वाली है. उससे बात हुई तो बताया कि शायद वह दुबई नहीं जा पायेगा, भविष्य ही बतायेगा, क्या होता है. जून का पैर पहले से काफी ठीक है. परसों से वे नियमित ऑफिस जायेंगे और उससे पूर्व कल एक बार कुछ देर के लिए जाकर देखेंगे, कि कितनी परेशानी होती है. कुछ देर पहले बड़ी बुआ जी का फोन आया, वह भी जून का हालचाल ले रही थीं. छोटी ननद को चिकनगुनिया हो गया है, वह अपने बैंक से चार सप्ताह की छुट्टी पर है. बड़ी ननद और ननदोई आए थे उसके यहाँ, आज वापस जा रहे हैं. आज दो हजार का नया नोट भी देखा. काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक होने से बहुत लोगों को परेशानी हो रही है, किन्तु इसका परिणाम अवश्य ही अच्छा होने वाला है. बगीचे में आज काफी काम हुआ, फूलों की पौध अब लग चुकी है, देखभाल की जरूरत है.

Friday, November 16, 2018

फूलों की पौध



शाम के साढ़े पांच बजे हैं. वह ध्यान कक्ष में बैठी है. हल्की सी गंध आ रही है. अब पता नहीं यह गंध कहाँ से आती है, क्यों आती है ? यह कोई रोग है या अस्तित्त्व का प्रसाद...जैसे जो धुन सुनाई देती है वह कोई..सब कुछ एक रहस्य में डूबा हुआ है. आज गैराज से लेकर पीछे के गेट तक का रास्ता बन गया है, काफी टूट-फूट गया था. शायद कल माली कमल कुंड को ठीक करेगा, जिसमें आजकल पानी ठहरता नहीं है, शायद किनारे की दीवार में कोई दरार आ गयी है. नन्हे का फोन जो माह के प्रथम दिन खो गया था, आज मिल गया है. कल उसकी मित्र से बात की. उसने अपने घर में बता दिया है पर वहाँ से कोई जवाब नहीं आया है. आजकल वह नया जॉब भी खोज रही है. जून आज स्टार्टअप इंडिया की मीटिंग में भाग लेने गये हैं, वह कितने सरे कार्यों से जुड़े हुए हैं. उनको इस तरह काम करते देखकर बहुत अच्छा लगता है. आज बहुत दिनों बाद ‘श्रद्धा-सुमन’ ब्लॉग में पोस्ट प्रकाशित की. ‘सिया के राम’ में राम का महाप्रस्थान आज होने वाला है.! सुबह टहलने गयी, ज्ञान, भक्ति तथा कर्मयोग पर चिन्तन करते हुए प्रातः भ्रमण किया. परमात्मा उन्हें कितना प्रेम करता है. उसकी कृपा का अनुभव हर पल होता है ! एक सखी से बात की, छोले-भटूरे बना रही है, दही-बड़े भी जन्मदिन पर !

आज मृणाल ज्योति गयी. महीनों पहले जो स्वप्न देखा था, उसे साकार करने अर्थात टीचर्स के लिए एक वर्कशॉप करने का स्वप्न अंततः सम्पन्न हो गया. जिसका बीज उस दिन पड़ा था जब एक अध्यापक अपनी समस्या लेकर आया था. सभी ने उत्साह से भाग लिया. सुबह पौने नौ बजे वह गयी थी और दोपहर बाद चार बजे लौटी. वापसी में नर्सरी से फूलों की पौध भी ली. कैलेंडुला, कॉसमॉस, डहेलिया, स्टॉक और वरबीना के फूलों से उनका बगीचा अवश्य सुंदर लगेगा. माली कल सुबह लगाएगा. नन्हे से बात हुई, वह अगले हफ्ते जोधपुर व जयपुर जा रहा है, एक मित्र के विवाह में. अगले वर्ष वह भी विवाह बंधन में बंध जायेगा अगर अल्लाह ने चाहा तो..जो भी होगा अच्छा ही होगा. बाल दिवस पर दिगबोई जाना है, विश्व विकलांग दिवस के लिए कुछ स्कूलों में बैज बांटने है. जब वे समाज के लिए कुछ काम करते हैं तो भीतर जिस शांति का अनुभव होता है, वह अनोखी है.

जून का आज शाम को लगभग चार बजे गोहाटी में छोटा सा एक्सीडेंट हो गया. जहाँ पुल समाप्त होता है, वह सड़क पार करने वाले थे, सामने आ रही बस काफी दूर थी, तभी पीछे से एक मोटरसाईकिल आ गयी और वह टकरा कर गिर गये. उनका चश्मा व फोन दोनों टूट गये. कान के पास चोट लगी, एक टांका लगा है तथा पैर में भी चोट आई है घुटने के नीचे. फ्रैक्चर नहीं है, वह किन्हीं अज्ञात लोगों की सहायता से एक क्लीनिक में पहुंचे, जहाँ प्राथमिक चिकित्सा दी गयी, फिर अस्पताल आये. याद नहीं पड़ता पहले कभी उन्हें इस तरह अस्पताल में रहना पड़ा हो. नन्हे से उनकी बात हुई है, वह कल गोहाटी आ रहा है. मना करने कर भी उसका मन नहीं मान रहा. अभी-अभी जून से बात हुई. डाक्टर साहब देखने आये हैं. उनके दो मित्र वहीं बैठे हैं जो रात को वहीं रहने वाले हैं. जीवन में जो भी परेशानी आती है वह कुछ न कुछ सिखाने के लिए ही आती है. उस दिन ग्रे रंग से बात शुरू हुई और उन्होंने ने गोहाटी में उसी रंग की पेंट सिलने दे दी. उसी को लेने गये थे जब यह दुर्घटना हुई. वैसे वह आवाज से ठीक लग रहे हैं. परसों घर आ जायेंगे. कुछ दिन आराम करेंगे तो ठीक हो जायेंगे, चश्मा नया बनवाना पड़ेगा.

Thursday, November 15, 2018

सरदार पटेल की जयंती




आज धनतेरस है, कोऑपरेटिव जाकर नैनी के लिए कुकर खरीदना है तीन लिटर का, आज के दिन  दिन बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है. अपने पास अब इतना सामान है कि लगता है, जितना जीवन बचा है आराम से गुजर जायेगा. सुबह सवा चार बजे आँख खुली, अब दिन देर से निकलने लगा है. प्रातः भ्रमण के लिए निकले तो बाहर हल्का कोहरा था. रात्रि को भीतर आग की लपट दिखी. अध्यात्म के साथ-साथ कहीं इसका संबंध स्वास्थ्य से तो नहीं है. दाहिने कान में एक रुनझुन सी ध्वनि  सुनाई दे रही है, कितने आश्चर्यों से भरा है जीवन..आज ही वे घर को कल के लिए सजा रहे हैं, वैसे भी आज से पांच दिनों का उत्सव आरम्भ हो गया है. दोपहर बाद मृणाल ज्योति जाना है. कल शाम योग कक्षा में कितना अनोखा अनुभव था, देह जैसे महसूस ही नहीं हो रही थी. कल दोपहर उस सखी से मिलने गयी जो पति के न रहने पर सदा के लिए अपने गृह स्थान को जा रही है.

आज सरदार पटेल की जयंती है और इंदिरा गांधीजी की पुण्य तिथि ! टीवी पर सुबह से विशेष कार्यक्रमों का प्रसारण हो रहा है. सरदार पटेल ने देश की एकता बनाये रखने के लिए महान योगदान दिया है. महापुरुषों के जीवन को नई पीढ़ी के सामने रखना चाहिए. १९३० में उन्होंने महिलाओं के आरक्षण की बात कही थी. गाँधी जी ने उनके बारे में कहा है कि अहमदाबाद म्युनिसिपल कारपोरेशन में कौन बैठा है यह इस बात से पता चलता है कि विक्टोरिया गार्डन में किसका राज है, जहाँ तिलक की मूर्ति उन्होंने लगाई थी. मोदी जी की वक्तृत्व क्षमता अद्भुत है. सरदार साहब के जीवन के अनोखे प्रसंग वे सुना रहे हैं. वह कह रहे हैं, हर भारतीय को अपना विस्तार करना चाहिए, यह सारा देश उनका है. उन्हें हर प्रदेश की भाषा सीखनी चाहिए, एक-दूसरे से और भी बहुत कुछ सीखना चाहिए. सुबह उठी तो कान फिर बंद था, अस्पताल गयी, मोम जम गया है, इसी वजह से भारी था. कम्प्यूटर भी खराब था जो जून इस समय मकैनिक के साथ बैठ कर ठीक करवा रहे हैं.

वर्ष का ग्याहरवाँ महीना, मौसम अभी भी गर्म है. दो हफ्ते बाद ही ठंड शुरू होगी. सुबह वे समय पर उठे, प्रातः भ्रमण के लिए गये, आकाश पर तारे चमक रहे थे. लोगों के घरों में अभी भी प्रकाश की झालरें लगी थीं. सभी को भाईदूज के संदेश भेजे. मृणाल ज्योति ले जाने के लिए उपहार एकत्र किये. कैलेंडर बदले, शरीर का वजन लिया और इस महीने आने वाले मित्र-संबंधियों के जन्मदिन व विवाह की वर्षगांठ के दिनों का पता लगाया. इस महीने दो सखियों का जन्मदिन है और एक भांजी का, ननद के विवाह की वर्षगांठ भी है. जून परसों गोहाटी जा रहे हैं, उन्हें एक मीटिंग में भाग लेना है. उसे शनिवार को मृणाल ज्योति में प्रोजेक्टर आदि स्वयं ही मैनेज करना होगा. आज कम्प्यूटर भी ठीक हो जायेगा. भाई दूज पर भेजे टीके सम्भवतः अभी नहीं मिले, छोटे भाई ने कहा, उसे भेजने की जरूरत नहीं है, पर दिल है कि मानता नहीं. दोपहर को नर्सरी जाना है, चार तरह की गोभी की पौध लानी है, हरेक के लिए दो क्यारियां हैं. शिमला मिर्च की पौध, आलू व लहसुन के बीज भी लाने को माली ने कहा है.  

उसका कान खुल गया है पर अभी भी पूरी तरह से आवाज सुनाई नहीं देती. दीवाली पर खायी मिठाई और नमकीन का असर है या मन्दाग्नि का, भीतर कफ सूख गया है, कुछ दिन लगातार नेति करने से ठीक हो जायेगा. कम्प्यूटर ठीक हो गया है, पीपीटी भी बन गया है, जून ने वीडियोज के लिंक भी उसमें डाल दिए हैं. आज शाम को एक बार अभ्यास करना ठीक रहेगा. माली वह पौध लगा रहा है जो वह कल लायी थी.

आज बृहस्पतिवार है, साढ़े तीन बजे हैं दोपहर के, जून आज गोहाटी गये हैं, सोमवार को लौटेंगे. तब तक उसे अपने समय व ऊर्जा का भरपूर उपयोग करना है. कुछ देर में बाजार जाना है, शायद ड्राइवर आ गया हो. नन्हे ने लिखा है, उसका फोन कार में छूट गया था, आज मिल जायेगा.


Monday, October 29, 2018

माजुली का सौन्दर्य




सुबह के चार बजे हैं. दो दिन पहले वे काजीरंगा आये थे, एक रिजॉर्ट में ठहरे हैं. जून को कम्पनी की तरफ से ‘तनाव प्रबंधन’ के किसी कार्यक्रम में भाग लेना है, कोर्स में जितने सदस्य भाग लेने वाले थे, उनमें से एक किसी कारणवश नहीं आ पाया, सो भाग्यवश उसे भी स्थान मिल गया है. उसने सोचा, निकट भविष्य में मृणाल ज्योति के कार्यक्रम के आयोजन में उसे इस कोर्स से कुछ सहायता मिल सकती है. आज के वातावरण में कौन तनाव से ग्रस्त नहीं है. आज कार्यक्रम का अंतिम दिन है. अभी कुछ ही देर में वे हाथी पर बैठ कर एक सींग वाला गैंडा देखने जायेंगे. कल उन्होंने स्मृति चिह्न के रूप में लकड़ी का एक बड़ा सा गैंडा खरीदा. तीन वर्षों के बाद जब असम से उन्हें विदा लेनी होगी तब नये घर में यह उन्हें यहाँ बिताये अद्भुत वर्षों की याद दिलाएगा.

काजीरंगा से लौटते हुए कल नाव के द्वारा ब्रह्मपुत्र को पार करके वे ‘माजुली’ गये थे. यह नदी से बना विश्व का सबसे बड़ा द्वीप है. और असम में शंकर देव द्वारा चलाये गये वैष्णव धर्म का केंद्र भी है. तीन सत्र देखे, पहले सत्र में जाकर असीम शांति का अनुभव हुआ. वातावरण में पवित्रता जैसे झर रही थी. एक जगह मुखौटे बनानेवाले कलाकारों से भेंट हुई, उन्होंने अभिनय भी दिखाया. काजीरंगा में किये डेढ़ दिन के कोर्स में भी कई बातें सीखीं. अब उन्हें सिलसिलेवार लिखकर जीवन में उपयोग के लिए तैयार करना है. जून और उसने एक सुंदर समरसता का अनुभव किया इस कार्यक्रम के दौरान. दोपहर के दो बजने को हैं. अभी कुछ देर पूर्व वह बाजार व पोस्ट ऑफिस से आयी है. यहाँ पहली बार रजिस्ट्री करवाई, भाईदूज का टीका भेजा है सभी भाइयों को. पत्र लिखने का अभ्यास छूटता ही जा रहा है, क्या लिखे, कुछ समझ नहीं आ रहा था, जल्दी में पत्र लिखे, समय से पहुंच जायेंगे ऐसी उम्मीद रखनी चाहिए. सुबह उठी तो हृदय शांत था. भीतर चाँद, तारे, आकश, सूर्य सभी के दर्शन हो रहे थे, कितना अद्भुत है भीतर का संसार और परमात्मा ! नहाकर बाहर गयी तो दो छोटी काली तितलियाँ बरामदे तक आकर छूकर चली गयीं, परमात्मा की कृपा असीम है. सुबह लिखा हुआ भी देखा भीतर ‘स्वधर्म’, आत्मा में निवास करना ही उसका स्वधर्म है. योग में स्थित हुआ ही अपने धर्म में स्थित रह सकता है. चार दिन बाद दीपावली का त्यौहार आने वाला है, ढेर सारी तैयारियां करनी हैं.
आज सुबह योग कक्षा के लिए स्कूल गयी, एक नन्ही बालिका ने एक पुष्प दिया, उसका मुखड़ा चमक रहा था और आँखों में कैसा अनोखा भाव था. कक्षा एक का एक छात्र बहुत अच्छी तरह ध्यान करता है. परमात्मा किस रूप में किसको अपनी तरफ खींच लेता है, कोई नहीं जानता. कल स्कूल में विज्ञान प्रदर्शनी है, उसे बुलाया है. आज दीपावली के लिए ढेर सारी खरीदारी की. दो दिन बाद ही घर में भोज है. कल छोटी बहन व उसके शेफ पतिदेव से बात की, उन्होंने दो-तीन नये पकवान बनाने की विधि बताई. सिया के राम के दो एपिसोड देखे, जो यात्रा के दौरान नहीं देख पायी थी. अंतिम विदाई से पूर्व सीता ने लव-कुश तथा राम को भी भोजन कराया ताकि उस भोज की स्मृति उन्हें उसके वियोग के दुःख के समय सांत्वना दे. आज के अंक में वह धरती में समा जाने वाली है. वह अपने पिता से भी मिलकर आती है तथा रानी के वस्त्र पहने भूमि में समाने वाली है. रामकथा की तरह सीता की कथा में भी लेखक अपनी कल्पना से नये रंग भरते रहते हैं. कौन जाने वास्तव में क्या हुआ था ? उसे ब्लॉग पर कुछ प्रकाशित किये कितने दिन हो गये हैं. अभी-अभी आकाश के चित्र फेसबुक पर प्रकाशित किये.
  

Monday, October 15, 2018

लहर और बादल



आठ बजने को हैं. आज भी मौसम ठंडा ही रहा. बदली बनी रही. वे अभी-अभी बाहर टहल कर आये हैं. आकश पर सफेद बादलों के मध्य पूर्णिमा से एक दिन पूर्व का सुंदर चाँद चमक रहा था. कल यहाँ लक्ष्मी पूजा का उत्सव है, उत्तर भारत में दीपावली के दिन यह उत्सव होता है. यहाँ उस दिन काली की पूजा होती है. सुबह वह मृणाल ज्योति गयी, चाइल्ड प्रोटेक्शन कमेटी की मीटिंग थी. बच्चों द्वारा रंगे कुछ सुंदर दीए खरीदे. कम्प्यूटर ठीक हो गया है, ब्लॉग पर नई पोस्ट प्रकाशित की. कल सुबह डिब्रूगढ़ डाक्टर के पास जाना है, जून के घुटने में दर्द है.
शनिवार व इतवार कैसे बीत गये पता ही नहीं चला. इस समय शाम के चार बजे हैं. जून एक दिन के लिए आज देहली गये हैं, देर शाम तक पहुंचेंगे, परसों लौटेंगे. परसों शाम उन्होंने यूरोप के सभी चित्र टीवी की बड़ी स्क्रीन पर दिखाए, भव्य इमारतें और सुंदर बगीचे. कल शाम को वह थोड़ा परेशान हो गये थे जब उसने कहा कि काजीरंगा जाने का समय वह केवल अपने लिए तय कर सकते हैं, अन्यों के लिए नहीं. बाद में उसे समझ में आ गया कि अपने-अपने संस्कारों के वशीभूत होकर वे क्रिया-प्रतिक्रिया करते हैं. उसके बाद उनके मध्य पुनः सकारात्मक ऊर्जा बहने लगी. ऊर्जा का आदान-प्रदान सहज होता रहे, यही तो साधना है. सुबह वे घर में ही कुछ देर टहले, डाक्टर ने उन्हें दो दिन आराम करने को कहा है, आज वह अपना घुटना आराम से मोड़ पा रहे थे. उनकी कम्पनी और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान कितना सहायक सिद्ध हुआ है, उसका मन कृतज्ञता से भर गया. कुछ देर पहले मृणाल ज्योति से ईमेल आया, टीचर्स की जानकारी थी. अब वे उनके लिए भली-प्रकार योजना बना सकते हैं. वे इस समय जहाँ खड़े हैं, वहाँ से उन्हें आगे लेकर जाना है. उसने क्लब की एक परिचित सदस्या को, जो असमिया लेखिका भी है, प्रेरणात्मक वक्तृता के लिए कहा है.
आज सुबह वह उठी तो आँखें खुलना ही नहीं चाहती थीं, कुछ देर के लिए ऐसे ही बैठ गयी, बाद में सुदर्शन क्रिया करते समय भी अनोखा अनुभव हुआ. शांति की अनुभूति इतनी स्पष्ट पहले कभी नहीं हुई थी. वह इस देह के भीतर प्रकाश रूप से रहने वाली एक ऊर्जा है जिसके पास तीन शक्तियाँ हैं, मन रूप से इच्छा शक्ति, बुद्धि रूप से ज्ञान शक्ति तथा संस्कार रूप से कर्म करने की शक्ति. यदि ज्ञान शुद्ध होगा, तो इच्छा भी शुद्ध जगेगी, और उसके अनुरूप कर्म भी पवित्र होंगे. उनके पूर्व के संस्कार जब जगते हैं और बुद्धि को ढक लेते हैं तब मन उनके अनुसार ही इच्छा करने लगता है. हर संस्कार भीतर एक संवेदना को जगाता है, उस संवेदना के आधार पर उनका मन विचार करता है. यदि संवेदना सुखद है तो वह उस वस्तु की मांग करने लगता है, यदि दुखद है तो द्वेष भाव जगाकर विपरीत विचार करता है. अपने संस्कारों के प्रति सजग होना होगा तथा नये संस्कार बनाते समय भी जागरूक होना होगा. वे स्वयं ही अपने भाग्य के निर्माता हैं. वह ऊर्जा ही इस देह पुरी का शासन करने वाली देवी है, उसे स्वयं में संतुष्ट रहकर इस जगत में परमात्मा की दिव्य शक्ति को लुटाना है.
आज स्कूल जाने के लिए तैयार हुई पर ‘बंद’ के कारण नहीं जा सकी, बच्चे शायद उसकी प्रतीक्षा करते होंगे, सोचकर एक पल के लिए मन कैसा तो हो गया पर ज्ञान की एक पंक्ति पढ़ते ही स्मृति आ गयी और शांति का अनुभव हुआ. वे स्वयं को ही भूल जाते हैं और व्यर्थ के जंजाल में पड़ जाते हैं. जीवन उनके चारों और बिखरा है और वे उसे शब्दों में ढूँढ़ते हैं. करने को कितना कुछ है, दीपावली का उत्सव आने वाला है, एक सुंदर सी कविता लिखनी है.

सागर की गहराई में शांति है,
अचल स्थिरता है, हलचल नहीं..
लहरें जो निरंतर टकराती हैं तटों से,
उपजी हैं उसी शांति से..
भीतर उतरना होगा मन सागर के
आकाश की नीलिमा में भी बादल गरजते है,
टकराते हैं, उमड़ते-घुमड़ते आते हैं और खो जाते हैं !
आकाश बना रहता है अलिप्त.
पहचानना है लहर और बादल की तरह मन के द्वन्द्वों को
जो जीवन का पाठ पढ़ाते हैं.
लहर और बादल को मिटने का दर्द भी सहना होगा
अवसर में बदलना होगा चुनौतियों को
और पाना होगा लक्ष्य-शाश्वत सत्य !   

Saturday, September 29, 2018

अंतर्दीप का प्रकाश



पिछले दो-तीन दिनों से कम्प्यूटर में कुछ दिक्कत आ रही थी. आज तो कोई भी फाइल खुल नहीं रही है. उसे यदि कम्प्यूटर पर काम करना है तो जून के आने की प्रतीक्षा करनी होगी. कुछ वर्ष पहले यदि ऐसा हुआ होता तो उसकी प्रतिक्रिया होती, भगवान ने ऐसा जानबूझ कर कराया है, ताकि वह अपने समय का और अच्छा उपयोग करने का तरीका सोच सके, किन्तु अब यह ज्ञात है कि भगवान कुछ नहीं कराते, वे ही प्रतिपल अपने भाग्य की रचना करते हैं. भगवान तो हर परिस्थिति का सामना करने की शक्ति देते हैं, ज्ञान देते हैं, वह प्रेम भी देते हैं. कभी आज हल्की बदली छायी है. स्कूल बंद है, अब पूजा के बाद खुलेगा. मृणाल ज्योति में टीचर्स ट्रेनिंग का कार्यक्रम होना वाला है. सम्भवतः तीसरे हफ्ते में होगा. आज एक सखी से इस बारे में बात की. उसे भी एक दिन की वर्कशॉप का आयोजन करना है. अच्छी तरह तैयारी करनी होगी. सबसे आवश्यक है उन सबके मध्य सहयोग की भावना को पैदा करना, वे अपनी कितनी ऊर्जा एक-दूसरे की कमियां बताने में ही खर्च कर देते हैं. अपने विचारों को बदलने से ही उनका जीवन बदल सकता है. सबके भीतर अंधकार व प्रकाश दोनों हैं, कभी-कभी गुणों का प्रकाश अहंकार के अंधकार से ढक जाता है, वे जिनसे भी मिलें उनके गुणों पर दृष्टि रहेगी तो उनका जीवन भी गुणों से भरता जायेगा ! उन्हें यह मानकर चलना होगा कि वे सभी एक ही धरती के वासी हैं, एक ही देश के, एक ही राज्य के, एक ही शहर के वासी हैं. उनकी एक ही पार्टी है, वे विरोधी पक्ष के नहीं हैं, जहाँ एक-दूसरे को बिना किसी कारण के ही गलत सिद्ध करना होता है. उनका एक ही लक्ष्य है, एक ही लक्ष्य के कारण एक-दूसरे के सहयोगी हैं. कल वे देवी दर्शन के लिए जायेंगे, आज शाम को प्राण प्रतिष्ठा होगी. आश्रम में भी नवरात्रि का कार्यक्रम हो रहा है, आज वह यू ट्यूब पर देख सकती है.

पूजा का उत्सव सोल्लास सम्पन्न हो गया. आज जून पुनः दिगबोई गये हैं. तीन दिन पूर्व वे एक रात्रि के लिए वहाँ गये थे, गेस्ट हॉउस में रुके. जिस दिन पहुंचे शाम को एक-एक कर सारे पूजा पंडाल देखे. अगले दिन नाश्ता करके वापस. मौसम आज भी बादलों भरा है. उसका गला परसों से थोड़ा सा खराब है, इतवार तक पूरी तरह ठीक हो जायेगा. अगले हफ्ते काजीरंगा जाना है. स्ट्रेस मैनेजमेंट पर किसी कार्यक्रम में जून को भाग लेना है. अगले माह होने वाली टीचर्स वर्कशॉप में उसे कुछ क्रियाएं करानी हैं, जिससे टीचर्स एक दूसरे को अच्छी तरह जानें, स्वयं को जानें. वे खुद को भी कहाँ जानते हैं. उनकी कमियां और खूबियाँ, दोनों से ही अपरिचित रह जाते हैं. उसने सोचा वह दो अध्यापकों को आमने–सामने बैठकर अपनी पांच-पांच कमियां और खूबियाँ बताने को कहेगी. सभी की पीठ पर एक पेपर पिन से लगा दिया जायेगा, सभी को उसकी खूबियाँ उस पर लिखनी हैं. कार्यक्रम आरम्भ होने पर सबसे पहले वह उन्हें एक कोरा कागज देगी जिस पर उन्हें कुछ भी अंकन करना है, एक चित्र कार्यक्रम की समाप्ति पर भी.  

दीवाली आने वाली है, साल भर वे इस उत्सव की प्रतीक्षा करते हैं. दशहरा आते ही दिन गिनने लगते हैं. घर की साफ-सफाई में जुट जाते हैं. पर्दे धुलवाए जाते हैं, पुराने सामान निकले जाते हैं. घर के कोने-कोने को चमकाया जाता है. दीवाली का उत्सव कितने संदेश अपने साथ लेकर आता है.  अहंकार रूपी रावण के मरने पर ही भक्ति रूपी सीता आत्मा रूपी राम को मिलती है, वैराग्य रूपी लक्ष्मण इसमें साथ देता है और प्राणायाम रूपी हनुमान परम सहायक होता है. भक्ति को लेकर आत्मा जब लौटती है तो भीतर प्रकाश ही प्रकाश भर जाता है.

Thursday, September 27, 2018

महालया अमावस्या


आज महालया है. नवरात्रि का समय संधिकाल है, संधि बेला है. ग्रीष्म खत्म होने को है सर्दियां शुरू होने को हैं. गुरूजी कह रहे हैं, इन दिनों में यदि कोई श्रद्धा से उपासना करेगा, तो गहन तृप्ति के रूप में उसका लाभ उसे अवश्य मिलेगा. इष्ट के प्रति एकनिष्ठ होकर यदि कोई नवरात्रि का अनुष्ठान करता है, भोजन को प्रसाद मानकर ग्रहण करता है, तब सहज आनंद के रूप में उसे पूजन का लाभ मिलेगा. मानव की देह मिली है तो उसका पूर्णलाभ लेना होगा. भावना और श्रद्धापूर्वक किया गया नवरात्रि पूजन उन्हें तृप्त कर देता है. साधक को ज्ञान प्राप्त करना है फिर सब कुछ छोड़कर शरण में आ जाना है.
आज प्रथम नवरात्र है. मन में एक विचित्र शांति का अनुभव हो रहा है. मन जैसे पिघलना चाहता है. अस्तित्त्व के चरणों में बह जाना चाहता है. परमात्मा इतना उदार है और अपार है उसकी कृपा..उसके प्रति प्रेम की हल्की सी किरण भी सूरज की खबर ले आती है एक न एक दिन.
आज मौसम गर्म है. नैनी घर की सफाई में लगी है, अभी यह हफ्ता लगेगा पूरा घर साफ होने में. आज तीसरा नवरात्र है. दोपहर को अयोध्या काण्ड में आगे लिखना आरम्भ किया पर पूरा नहीं किया. कुछ देर पतंजलि योग सूत्र पर एक सखी से कल लाई किताब पढ़ी. जून की यूरोप से लायी काफी पी.
जीवन को सुंदर बनाने के लिए दो वस्तुओं की आवश्यकता होती है. ज्ञान तथा ऊर्जा, इसीलिए वे शिव और शक्ति दोनों की आराधना करते हैं. दुर्गापूजा के नौ दिनों में प्रथम तीन दिनों में काली की पूजा होती है, जो तमोगुण का प्रतीक है, फिर अगले तीन दिन लक्ष्मी की तथा अंत में सरस्वती की, जो रज तथा सत गुण की प्रतीक हैं. उनके भीतर की ऊर्जा तीनों गुणों से प्रभावित होती है ! कभी वे तमोगुण के शिकार हो जाते हैं, तो कभी सतो या रजोगुण से. ज्ञान की देवी सरस्वती की कृपा तभी होगी जब तमोगुण से मुक्त होकर वे क्रियाशील बनते हैं, सौन्दर्य का सृजन करते हैं. अस्तित्त्व प्रतिपल अपना सौन्दर्य लुटा रहा है, वही सृजन उसका ज्ञान है, ज्ञान से ही प्रकटा है और ज्ञान इसके बाद भी अक्ष्क्षुण है. जड़ता को हटाकर क्रियाशील होने के बाद जो विश्रांति का अनुभव होता है, वही तृप्त करने वाला है !
आज स्कूल जाना है. ग्रैंड पेरेंट्स डे पर कुछ बातें जो उस दिन लिखी थीं, उनके साथ बांटने के लिए. बातें जो वे सब जानते हैं पर समय आने पर याद नहीं रहतीं. दादा-दादी के महत्व को कौन नकार सकता है एक बच्चे के जीवन में, पर यह बात माता-पिता को समझ में नहीं आती. उन्हें लगता है बच्चे पर पूर्ण रूप से उनका ही अधिकार है और उसकी परवरिश से जुड़ा हर फैसला केवल वे ही ले सकते हैं. जब समझ आती है तब बहुत देर हो चुकी होती है. जिसकी बुद्धि खुल गयी है, जो सभी को अपना अंश मानता है, वह तो प्रेम के किसी भी रूप का सम्मान करेगा. प्रेम बाँटने और और प्रेम स्वीकारने में कंजूसी करते हैं जो, वे उस महान प्रेम को महसूस नहीं कर पाएंगे. माता-पिता के प्रति कृतज्ञता जब तक भीतर महसूस नहीं होगी, तब तक उनके स्नेह की धारा में वे भीग नहीं सकते. जीवन उन्हें चारों और से पोषित करना चाहता है. उनके पूर्वजों का रक्त उनके भीतर बह रहा है. वे बहुत संकुचित दृष्टिकोण रखते हैं और तात्कालिक हानि-लाभ को देखते हैं, अपने अतीत और भविष्य की तरफ जिसकी नजर होगी, वह पूर्वजों का सम्मान करेगा. आज की उसकी वक्तृता यकीनन दिल से ही बोली जाएगी. कागज पर लिखा वहीं का वहीं रह जायेगा.

Tuesday, September 25, 2018

जय हनुमान ज्ञान गुणसागर



शाम के पांच बजे हैं. सुबह सवा ग्यारह बजे नींद छाने लगी, कुछ देर सोयी. दोपहर बाद बैठे-बैठे कमर में दर्द सा महसूस हुआ. मकर आसन में लेटकर एक सखी से फोन पर कुछ देर बातचीत की और दर्द गायब, प्रकृति सारे उत्तर अपने भीतर ही छिपाए है. सखी ने बताया, उसकी बाहरवीं में पढ़ने वाली बेटी को वह अगले वर्ष हॉस्टेल में रखकर पढ़ाना चाहते हैं वे लोग, पर वह घर पर रहकर पढ़ना चाहती है. कल छोटी भांजी का जन्मदिन है, कविता लिख कर भेजी है उसके लिए. जून का फोन आया, उसके लिए नया सूटकेस खरीदा है, पुराना निकाल देना चाहिए. दीवाली की सफाई भी शुरू करनी है परसों से. सुबह भ्रमण के लिए गयी तो भीतर वाले की बात सुनी. अब कुछ भी याद नहीं है. परमात्मा बहुत धीरे बोलता है, उन्हें चुप होकर उसे सुनना है. उसका साथ शक्ति से भर देता है, उससे योग लगाकर वे प्रेम, शांति और आनन्द का अनुभव करते हैं. उस शक्ति और ज्ञान का उपयोग फिर जगत में करना है, जो भी मिले उसे शुभ भावनाएं देकर.. उसके प्रति शुभकामना हृदय में भरकर ! यदि कोई आत्मस्थ रहे तो सहज ही उससे शुभ तरंगें निकलेंगी. उनके हाथों से से निरंतर ऊर्जा प्रवाहित हो तरही है, यदि मन शांत होगा स्थिर होगा तो प्रेम की तरंगें प्रवाहित होंगी वरना..
आज सुबह कितनी अनोखी थी, ठीक चार बजे थे, एक आवाज आई जो किट से मिलती-जुलती थी, फिर भीतर शब्द कौंधा, हनुमान या अनंत..या ऐसा ही कुछ, हनुमान तो स्पष्ट था. एक अद्भुत भावना से तन-मन स्पन्दित हो गया. हनुमान रामभक्त हैं तथा राम के भक्तों की सहायता करते हैं, एक सखी का स्मरण हो आया, उसने कहा था, वह हनुमान को मानती है और हनुमान चालीसा का पाठ करती है, उस समय उसे कहा था, भगवद गीता भी पढ़ा करो, हनुमान चालीसा तो ठीक है. मुरारी बापू का भी स्मरण हो आया, वह अपनी कथा के आयोजन में हनुमान का विशाल चित्र लगते हैं, राम का नहीं. परमात्मा कितने-कितने उपायों से उन्हें जगाने आता है, वह उन्हें प्रेम करता है. आज स्कूल में हनुमान आसन कराया बाद में ध्यान भी. वापस आकर दो नई पोस्ट लिखीं. भीतर कोई प्रेरणा दे रहा था जैसे. जून लौट आये हैं, उनका स्वास्थ्य अभी भी पूर्ण रूप से ठीक नहीं हुआ है, काम बढ़ गया है, अपने लिए बिलकुल समय नहीं निकाल पाते. शाम को महिला क्लब की मीटिंग है. अभी एक घंटा ध्यान करना है और स्वयं को ऊर्जा से भरना है.

आज सुबह उठने से पूर्व आज्ञा चक्र पर ज्योति दिखाई दी, जलती हुई लौ, परमात्मा हर रोज कोई न कोई उपहार देकर उठाता है. वह उनके सच्चा सुहृद है, सच्चा मीत है. आज आयल के अस्पताल की तरफ से आयोजित वाकाथन में गयी. हर समय कोई न कोई सुगंध साथ रहती है, कभी जाने-पहचानी कभी नामालूम सी सी कोई खुशबू...परमात्मा एक रहस्य है और जो उसे प्रेम करे, उसे भी एक रहस्य बना देता है. आज ओशो का विज्ञान भैरव से लिया एक ध्यान किया. किसी वस्तु को प्रेम से देखो और उस वस्तु में ही सत्य की झलक मिलती है. वे कहने को तो स्वयं से प्रेम करते हैं पर अपनी देह के साथ कितनी नाइंसाफी करते हैं. न खाने योग्य पदार्थ खाकर वे उसे सताते हैं. देह की हर कोशिका एक प्रेम भरी दृष्टि की प्रतीक्षा में है. उनका मन भी विश्राम चाहता है, पर वे किसी न किस उधेड़बुन में उसे लगाये रखते हैं. चौबीस घंटे धडकता हुआ उनका हृदय भी सुकून ही तो चाहता है. पेट की मांग है, शीतलता, वह मिर्च-मसालों से जल रहा है. प्रेम की धार यदि निरंतर बहनी हो तो चाह के पत्थर मार्ग से हटाने होंगे.

Friday, September 21, 2018

दादा-दादी दिवस



आज सुबह टीवी पर सुंदर वचन सुने थे. ज्ञान रत्नों से आत्मा को अपना श्रृंगार करना है, फिर उस  ज्ञान का उपयोग करना है. सुने हुए को यदि व्यवहार में नहीं लाया, अपना संस्कार नहीं बनाया, तो सुनना व्यर्थ ही है. योग की शक्ति से ही ज्ञान को भीतर स्थिर किया जा सकता है, अन्यथा स्वंय को छलना ही कहा जायेगा. परमात्मा से यदि संबंध जुड़े तो आत्मा पवित्र बन जाती है, पवित्रता की शक्ति स्वतन्त्रता की शक्ति है. पवित्र आत्मा को कर्मों के बंधन नहीं बांधते. पञ्च तत्वों से बना यह तन भी तब आत्मा को बंधन नहीं लगता, वह इसका आधार लेकर जगत में लीला करती है. वह देह में रहकर भी अशरीरी ही रहती है. ऐसी स्थिति में दुःख का नाम भी नहीं रहता. इसी खुशी में आत्मा शरीर से मोह निकाल देती है. यदि देह से ममत्व है तो आत्मा बंधन में है, जब तक पवित्र नहीं बने हैं, तथा कर्मातीत अवस्था नहीं हुई है, तब तक विदेह भाव सिद्ध नहीं होता. देह सहित सब वस्तुओं से ममत्व हटा देना है. जब देह इस स्थिति में नहीं है कि आत्मा स्वयं आनंद में हो और अन्यों को आनन्द बांटे तो नई देह लेने का वक्त आ गया है, तब आत्मा नई राह पर निकल पडती है. मक्खन से ज्यों बाल निकल जाता है, वैसे ही देह से आत्मा आराम से निकल जाती है, यदि देह में ममत्व नहीं है.
स्कूल में दादा-दादी दिवस मनाया जा रहा है, उसे एक भाषण देने के लिए कहा है. दोपहर को कुछ लिखने बैठी तो बचपन के कितने ही चित्र सम्मुख आने लगे. दादी से सुनी कहानियाँ और दादा के यूनानी दवाघर से खाए स्वादिष्ट चूर्ण. लगभग दस वर्षों तक वे सब साथ रहे. उसके बाद भी समय-समय पर मिलते रहे. आजकल कम ही बच्चों को दादा-दादी का साथ मिल पाता है.

रात्रि के आठ बजे हैं. चार दिनों के बाद आज कलम उठाई है. ब्लॉग पर आज कुछ भी पोस्ट नहीं किया, फेसबुक पर तस्वीरें अवश्य पोस्ट कीं. कल बड़े भाई चले गये, जाते समय उनका भी मन भर आया था, दिन भर मन थोड़ा उदास रहा, पर वक्त के साथ भावनाएं अपने आप ही सम्भल जाती हैं. उन्हें यकीनन यहाँ रहना अच्छा लगा होगा. जून जब से आये हैं, उन्हें सर्दी-जुकाम की शिकायत है, ठंडे देशों से ही शायद यह सौगात मिली है. उन्हें नीचे बैठने में दिक्कत हो रही है, सो कुछ देर कुर्सी पर बैठकर प्राणायाम किया. दोपहर को एक सखी के घर गयी उसकी सासुमाँ का श्राद्ध था. उसके बाद बच्चों की योग कक्षा में, अगले हफ्ते गाँधी जयंती मनाने के लिए उनसे कहा है. कुछ सार्थक होना ही चाहिए. स्वच्छता अभियान के लिए कुछ करे ऐसा भी मन में आता है. अपने समय और शक्ति का पूरा उपयोग करना होगा उसे, एक-एक क्षण का उपयोग करना होगा. जून कल से दो दिनों के लिए गोहाटी जा रहे हैं. कल से दीवाली की सफाई भी आरम्भ करनी है. पुब्लिक लाइब्रेरी से आयुर्वेद पर एक किताब भी लायी है, उस दिन भाई को लाइब्रेरी दिखने ले गयी थी, वहीं मिली थी. काफी अच्छी किताब है.
मौसम आज भी सुहाना है. पिछले दिनों लेखन व साधना में जो गतिरोध उत्पन्न हुआ, उसे पटरी पर लाने का सुंदर अवसर मिला है. सुबह स्कूल गयी. बच्चों को योग सिखाया. कुछ बच्चे वाकई करना चाहते हैं, पर अन्यों के कारण कर नहीं पाते. शिक्षिकाएं यदि अपनी-अपनी कक्षा के बच्चों पर थोड़ी नजर रखें तो सभी शांत रह सकते हैं. उसने सोचा अगली बार यदि ऐसा हुआ तो वह स्कूल इंचार्ज से कहेगी. प्रधानाध्यापिका कुछ दिनों के लिए बाहर गयी हैं. उनकी माँ वृद्धा हैं, उन्हें भूलने का रोग हो गया है. भाई विदेश में रहते हैं. समाचारों में सुना, प्रधानमन्त्री ने पाकिस्तान के विरुद्ध कड़ा रुख अपनाने का निर्णय लिया है.


Thursday, September 20, 2018

सिस्टर शिवानी का कार्यक्रम



शाम के चार बजकर दस मिनट हुए हैं. आज भी क्लब में मीटिंग है. कल बड़े भाई आ रहे हैं, वह उन्हें लेने जाएगी. सुबह वह मृणाल ज्योति गयी थी, शिक्षक दिवस का कार्यक्रम था, क्लब की तरफ से व अपनी तरफ से भी उसने सभी अध्यापिकाओं को उपहार दिए. उनके द्वारा पेश किया कार्यक्रम भी अच्छा रहा. सुबह नींद जल्दी खुल गयी, कुछ देर ध्यान किया बाद में फिर नींद आ गयी, किसी ने आवाज दी उस नाम से जिसमें उसे जून बुलाते हैं. कैसा रहस्यमय यह संसार, कौन है जो बिना मुख के बोलता है, कौन है जो बिना हाथों के छूता है, उस दिन कंधों पर जो स्पर्श किसी ने किया था, वह अभी तक सिहरन पैदा कर देता है. पिछले कुछ दिनों से एक गंध हर समय साथ रहती है. कैसी है यह गंध, क्या है इसका स्रोत..कुछ पता नहीं. आज कई दिन बाद फोन ठीक हुआ, शायद दो-तीन दिन बाद ब्लॉग पर लिखा. कविता कई दिनों से नहीं लिखी, समय भी तो चाहिए और एक भिन्न भाव दशा, अब मन स्थिर हो गया है.

कल भाई की फ्लाईट समय पर थी. दोपहर बाद वे हवाई अड्डे से घर वापस आ गये थे. सुबह भ्रमण के लिए गये. भाई को यहाँ अच्छा लग रहा है. दिन भर कुछ न कुछ क्रिया-कलाप होता है. शाम को क्लब जाना था, वापस आकर भोजन करते और सोते काफी देर हो गयी. आज भी सुबह स्कूल गयी, शाम को क्लब में एक परिचित परिवार का विदाई समारोह था. अच्छा रहा, लौटने में देर हो गयी. भाई तब तक जगे ही थे. अखबार में सुडोकू हल कर रहे थे.

पिछले दो दिन कुछ नहीं लिखा. समय जैसे तीव्र गति से भाग रहा है. आज वे ड्राइवर के साथ दूर तक घूमने गये, भाई को पाइप ब्रिज दिखाया. उन्होंने ही बाजार से सब्जी भी खरीदी. शाम को योगनिद्रा का अभ्यास किया. लगभग रोज ही एक बार सिस्टर शिवानी को सुनने का क्रम भी बन गया है. वह अस्पताल गयी, एक सखी की सासुमाँ वहाँ भर्ती हैं. उसे देखकर वह प्रसन्न हुई. प्रेम से किया गया छोटा सा कृत्य भी किसी को राहत दे जाता है.

शाम के साढ़े पांच बजे हैं. बाहर से जंगली काली मुर्गी की आवाज लगातार आ रही है, जो अपने पूरे परिवार के साथ बांस की हेज में रहती है. जब बगीचे में कोई नहीं होता तब घूमती फिरती है और शोर मचाती है, बाहर जाकर देखें तो छुप जाती है. अभी कुछ देर पूर्व वे बगीचे में थे. भाई ने एक तस्वीर ली, आंवले के वृक्ष पर बैठी गिलहरी की. आकाश पूर्व में गुलाबी हो रहा था. कल शाम वे भ्रमण पथ पर जाकर आकाश की तस्वीर उतारेंगे. आज जून इटली के शहर ट्यूरिन में हैं, उन्हें वापस आने में चार-पांच दिन और हैं. कल फेसबुक पर एक वरिष्ठ लेखक ने प्रश्न किया, वह फेसबुक पर क्यों है, सहज ही उत्तर लिख दिया, पर उन्होंने उसे टैग करके पोस्ट कर दिया, कितने ही लोगों ने पढ़ा, उसकी एक तस्वीर भी पोस्ट कर दी, कब किस मार्ग से लोगों से जुड़ना होगा, कौन जानता है. विचार किस प्रकार उनका भाग्य बनाते हैं, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण आज देखा. उन्हें मनसा, वाचा, कर्मणा कितना सजग रहना होगा.