Tuesday, September 25, 2018

जय हनुमान ज्ञान गुणसागर



शाम के पांच बजे हैं. सुबह सवा ग्यारह बजे नींद छाने लगी, कुछ देर सोयी. दोपहर बाद बैठे-बैठे कमर में दर्द सा महसूस हुआ. मकर आसन में लेटकर एक सखी से फोन पर कुछ देर बातचीत की और दर्द गायब, प्रकृति सारे उत्तर अपने भीतर ही छिपाए है. सखी ने बताया, उसकी बाहरवीं में पढ़ने वाली बेटी को वह अगले वर्ष हॉस्टेल में रखकर पढ़ाना चाहते हैं वे लोग, पर वह घर पर रहकर पढ़ना चाहती है. कल छोटी भांजी का जन्मदिन है, कविता लिख कर भेजी है उसके लिए. जून का फोन आया, उसके लिए नया सूटकेस खरीदा है, पुराना निकाल देना चाहिए. दीवाली की सफाई भी शुरू करनी है परसों से. सुबह भ्रमण के लिए गयी तो भीतर वाले की बात सुनी. अब कुछ भी याद नहीं है. परमात्मा बहुत धीरे बोलता है, उन्हें चुप होकर उसे सुनना है. उसका साथ शक्ति से भर देता है, उससे योग लगाकर वे प्रेम, शांति और आनन्द का अनुभव करते हैं. उस शक्ति और ज्ञान का उपयोग फिर जगत में करना है, जो भी मिले उसे शुभ भावनाएं देकर.. उसके प्रति शुभकामना हृदय में भरकर ! यदि कोई आत्मस्थ रहे तो सहज ही उससे शुभ तरंगें निकलेंगी. उनके हाथों से से निरंतर ऊर्जा प्रवाहित हो तरही है, यदि मन शांत होगा स्थिर होगा तो प्रेम की तरंगें प्रवाहित होंगी वरना..
आज सुबह कितनी अनोखी थी, ठीक चार बजे थे, एक आवाज आई जो किट से मिलती-जुलती थी, फिर भीतर शब्द कौंधा, हनुमान या अनंत..या ऐसा ही कुछ, हनुमान तो स्पष्ट था. एक अद्भुत भावना से तन-मन स्पन्दित हो गया. हनुमान रामभक्त हैं तथा राम के भक्तों की सहायता करते हैं, एक सखी का स्मरण हो आया, उसने कहा था, वह हनुमान को मानती है और हनुमान चालीसा का पाठ करती है, उस समय उसे कहा था, भगवद गीता भी पढ़ा करो, हनुमान चालीसा तो ठीक है. मुरारी बापू का भी स्मरण हो आया, वह अपनी कथा के आयोजन में हनुमान का विशाल चित्र लगते हैं, राम का नहीं. परमात्मा कितने-कितने उपायों से उन्हें जगाने आता है, वह उन्हें प्रेम करता है. आज स्कूल में हनुमान आसन कराया बाद में ध्यान भी. वापस आकर दो नई पोस्ट लिखीं. भीतर कोई प्रेरणा दे रहा था जैसे. जून लौट आये हैं, उनका स्वास्थ्य अभी भी पूर्ण रूप से ठीक नहीं हुआ है, काम बढ़ गया है, अपने लिए बिलकुल समय नहीं निकाल पाते. शाम को महिला क्लब की मीटिंग है. अभी एक घंटा ध्यान करना है और स्वयं को ऊर्जा से भरना है.

आज सुबह उठने से पूर्व आज्ञा चक्र पर ज्योति दिखाई दी, जलती हुई लौ, परमात्मा हर रोज कोई न कोई उपहार देकर उठाता है. वह उनके सच्चा सुहृद है, सच्चा मीत है. आज आयल के अस्पताल की तरफ से आयोजित वाकाथन में गयी. हर समय कोई न कोई सुगंध साथ रहती है, कभी जाने-पहचानी कभी नामालूम सी सी कोई खुशबू...परमात्मा एक रहस्य है और जो उसे प्रेम करे, उसे भी एक रहस्य बना देता है. आज ओशो का विज्ञान भैरव से लिया एक ध्यान किया. किसी वस्तु को प्रेम से देखो और उस वस्तु में ही सत्य की झलक मिलती है. वे कहने को तो स्वयं से प्रेम करते हैं पर अपनी देह के साथ कितनी नाइंसाफी करते हैं. न खाने योग्य पदार्थ खाकर वे उसे सताते हैं. देह की हर कोशिका एक प्रेम भरी दृष्टि की प्रतीक्षा में है. उनका मन भी विश्राम चाहता है, पर वे किसी न किस उधेड़बुन में उसे लगाये रखते हैं. चौबीस घंटे धडकता हुआ उनका हृदय भी सुकून ही तो चाहता है. पेट की मांग है, शीतलता, वह मिर्च-मसालों से जल रहा है. प्रेम की धार यदि निरंतर बहनी हो तो चाह के पत्थर मार्ग से हटाने होंगे.

6 comments:

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    1. स्वागत व आभार अनुराधा जी !

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27.9.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3107 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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    1. बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !

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  3. Replies
    1. स्वागत व आभार गगन जी !

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