Wednesday, November 21, 2018

गुलदाउदी की कलियाँ



नवम्बर की सुहानी सुबह ! जून बाहर धूप में बैठे हैं, जैसे कभी पिता जी बैठते थे, जब वह छड़ी लेकर चलते हैं तो माँ का स्मरण हो आता है. पहले से बेहतर हैं. आज ही के दिन वे गोहाटी से आये थए, एक सप्ताह उन्हें विश्राम करते हो गया है. अभी कुछ देर में वे बाहर जाने वाले हैं, बैंक, दफ्तर तथा बाजार. नवम्बर का मध्य आ गया है पर अभी भी पंखा चला कर रहना पड़ रहा है. रात्रि में देखे स्वप्न अब याद नहीं रहते, दिन में खुद पर नजर रखने वाला मन रात्रि को भी सजग रहता है. अन्य के संस्कारों के साथ निबाह करना ही सबसे बड़ी साधना है. वे स्वयं के संस्कारों को बदल नहीं सकते और उम्मीद करते हैं कि दूसरे अपने संस्कारों को बदल लेंगे. वे अपने स्वभाव से जैसे ही हटते हैं, खाई या खड्ड में गिरते हैं. हर समस्या का हल आत्मा में है और हर समस्या का जन्म आत्मा से हटने पर है. अभी-अभी जून के पुराने ड्राइवर का फोन आया, उनका हाल-चाल लेने के लिए. नैनी को सुबह आकर ‘हरे कृष्णा’ बोलना सिखाया पर वह भूल जाती है. उसका यह संस्कार नहीं है, परमात्मा का नाम सहज ही अधरों पर आ जाये, इसके लिए कोई प्रयास न करना पड़े तभी सार्थक है. आत्मा में रहना भी ऐसा ही सहज हो जाये तभी बात बनती है.

दोपहर के ढाई बजे हैं. महीनों बाद झूले पर बैठकर लिखने का सुअवसर मिला है. धूप पेड़ों से छनकर आ रही है. हवा में हल्की धुंए की गंध है, कहीं किसी माली ने पत्तों को सुलगाया होगा. बगीचा साफ-सुथरा है, आज के बाद इसे तीन हफ्ते बाद देखेंगे वे, पौधे बड़े हो जायेंगे तब तक, अभी जो नन्हे-नन्हे हैं. गेंदे के फूल शायद तब तक मुरझा जाएँ जो इस समय पूरे निखार पर हैं, गुलदाउदी कलियों से भर जाए. जून इस समय ऑफिस गये हैं. आज उनके यहाँ एक कर्मचारी की विदाई थी. लंच वहीं था. उनको चलने में तकलीफ होती है फिर भी दफ्तर जाते हैं. उनमें जीवट बहुत है, अपने अधिकारों के प्रति भी सजग हैं और कर्त्तव्यों के प्रति भी. आज आचार्य सत्यजित को सुना. कह रहे थे, कोई जिनसे ज्ञान लेता है, उनके पुण्य बढ़ते हैं और लेने वाले का कर्माशय क्षीण होता है. यदि वह उस ज्ञान का उपयोग करे और बांटे तो उसके पुण्य भी बढ़ सकते हैं. मन को सदा समता में रखना तथा आत्मा में स्थित रहना सबसे बड़ी साधना है. जिसे ध्यान में रहना अधिक भाता है, उसके भीतर कैसी सी शांति बनी रहती है किन्तु यदि इस शांति का भी भोग करना उसने आरम्भ कर दिया तो पुण्य क्षीण ही होने लगेंगे. इसे भी साक्षी भाव से स्वीकारना होगा’. कल उन्हें यात्रा पर निकलना है. घर से बाहर ज्यादा सजगता की आवश्यकता है और ज्यादा समझदारी की भी !   

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