Monday, October 15, 2018

लहर और बादल



आठ बजने को हैं. आज भी मौसम ठंडा ही रहा. बदली बनी रही. वे अभी-अभी बाहर टहल कर आये हैं. आकश पर सफेद बादलों के मध्य पूर्णिमा से एक दिन पूर्व का सुंदर चाँद चमक रहा था. कल यहाँ लक्ष्मी पूजा का उत्सव है, उत्तर भारत में दीपावली के दिन यह उत्सव होता है. यहाँ उस दिन काली की पूजा होती है. सुबह वह मृणाल ज्योति गयी, चाइल्ड प्रोटेक्शन कमेटी की मीटिंग थी. बच्चों द्वारा रंगे कुछ सुंदर दीए खरीदे. कम्प्यूटर ठीक हो गया है, ब्लॉग पर नई पोस्ट प्रकाशित की. कल सुबह डिब्रूगढ़ डाक्टर के पास जाना है, जून के घुटने में दर्द है.
शनिवार व इतवार कैसे बीत गये पता ही नहीं चला. इस समय शाम के चार बजे हैं. जून एक दिन के लिए आज देहली गये हैं, देर शाम तक पहुंचेंगे, परसों लौटेंगे. परसों शाम उन्होंने यूरोप के सभी चित्र टीवी की बड़ी स्क्रीन पर दिखाए, भव्य इमारतें और सुंदर बगीचे. कल शाम को वह थोड़ा परेशान हो गये थे जब उसने कहा कि काजीरंगा जाने का समय वह केवल अपने लिए तय कर सकते हैं, अन्यों के लिए नहीं. बाद में उसे समझ में आ गया कि अपने-अपने संस्कारों के वशीभूत होकर वे क्रिया-प्रतिक्रिया करते हैं. उसके बाद उनके मध्य पुनः सकारात्मक ऊर्जा बहने लगी. ऊर्जा का आदान-प्रदान सहज होता रहे, यही तो साधना है. सुबह वे घर में ही कुछ देर टहले, डाक्टर ने उन्हें दो दिन आराम करने को कहा है, आज वह अपना घुटना आराम से मोड़ पा रहे थे. उनकी कम्पनी और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान कितना सहायक सिद्ध हुआ है, उसका मन कृतज्ञता से भर गया. कुछ देर पहले मृणाल ज्योति से ईमेल आया, टीचर्स की जानकारी थी. अब वे उनके लिए भली-प्रकार योजना बना सकते हैं. वे इस समय जहाँ खड़े हैं, वहाँ से उन्हें आगे लेकर जाना है. उसने क्लब की एक परिचित सदस्या को, जो असमिया लेखिका भी है, प्रेरणात्मक वक्तृता के लिए कहा है.
आज सुबह वह उठी तो आँखें खुलना ही नहीं चाहती थीं, कुछ देर के लिए ऐसे ही बैठ गयी, बाद में सुदर्शन क्रिया करते समय भी अनोखा अनुभव हुआ. शांति की अनुभूति इतनी स्पष्ट पहले कभी नहीं हुई थी. वह इस देह के भीतर प्रकाश रूप से रहने वाली एक ऊर्जा है जिसके पास तीन शक्तियाँ हैं, मन रूप से इच्छा शक्ति, बुद्धि रूप से ज्ञान शक्ति तथा संस्कार रूप से कर्म करने की शक्ति. यदि ज्ञान शुद्ध होगा, तो इच्छा भी शुद्ध जगेगी, और उसके अनुरूप कर्म भी पवित्र होंगे. उनके पूर्व के संस्कार जब जगते हैं और बुद्धि को ढक लेते हैं तब मन उनके अनुसार ही इच्छा करने लगता है. हर संस्कार भीतर एक संवेदना को जगाता है, उस संवेदना के आधार पर उनका मन विचार करता है. यदि संवेदना सुखद है तो वह उस वस्तु की मांग करने लगता है, यदि दुखद है तो द्वेष भाव जगाकर विपरीत विचार करता है. अपने संस्कारों के प्रति सजग होना होगा तथा नये संस्कार बनाते समय भी जागरूक होना होगा. वे स्वयं ही अपने भाग्य के निर्माता हैं. वह ऊर्जा ही इस देह पुरी का शासन करने वाली देवी है, उसे स्वयं में संतुष्ट रहकर इस जगत में परमात्मा की दिव्य शक्ति को लुटाना है.
आज स्कूल जाने के लिए तैयार हुई पर ‘बंद’ के कारण नहीं जा सकी, बच्चे शायद उसकी प्रतीक्षा करते होंगे, सोचकर एक पल के लिए मन कैसा तो हो गया पर ज्ञान की एक पंक्ति पढ़ते ही स्मृति आ गयी और शांति का अनुभव हुआ. वे स्वयं को ही भूल जाते हैं और व्यर्थ के जंजाल में पड़ जाते हैं. जीवन उनके चारों और बिखरा है और वे उसे शब्दों में ढूँढ़ते हैं. करने को कितना कुछ है, दीपावली का उत्सव आने वाला है, एक सुंदर सी कविता लिखनी है.

सागर की गहराई में शांति है,
अचल स्थिरता है, हलचल नहीं..
लहरें जो निरंतर टकराती हैं तटों से,
उपजी हैं उसी शांति से..
भीतर उतरना होगा मन सागर के
आकाश की नीलिमा में भी बादल गरजते है,
टकराते हैं, उमड़ते-घुमड़ते आते हैं और खो जाते हैं !
आकाश बना रहता है अलिप्त.
पहचानना है लहर और बादल की तरह मन के द्वन्द्वों को
जो जीवन का पाठ पढ़ाते हैं.
लहर और बादल को मिटने का दर्द भी सहना होगा
अवसर में बदलना होगा चुनौतियों को
और पाना होगा लक्ष्य-शाश्वत सत्य !   

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