वे कल घर लौट आये, अभी
यात्रा की थकान पूरी तरह नहीं गयी है. घर भी पूरी तरह पुनः व्यवस्थित नहीं हुआ है.
पेट में कैसी खलबली मची है. तरह-तरह के भोजन, जगह-जगह का पानी पीकर कुछ तो असर
पड़ना ही था. मौसम भी एकदम से बदल गया है, वहाँ गर्मी थी यहाँ ठंड जोरों पर है. आज
सुबह बहन व परिवार के अन्य सभी सदस्यों पर कविताएँ लिखीं, छोटी-छोटी तुकबन्दियाँ !
दोपहर को एक आलेख शुरू किया है, अभी दोएक दिन लगेंगे, मन में कितनी ही बातें हैं.
कल रात स्वप्न में यूएइ ही देखती रही, खबूस खायी. जो मन पर अंकित है, वही तो
पन्नों पर अंकित हो रहा है. यहाँ बगीचे में गुलदाउदी खिली है. शेष फूलों की पौध
अभी लगनी है. वर्ष का यह अंतिम महीना है.
आज सुबह पांच बजे उठे, ठंड काफी थी पर ऐसी ठंड में भी
उनकी नैनी बिना स्वेटर पहने ही रहती है, पता नहीं वह किस मिट्टी की बनी है. उसने
ठंड पर विजय पा ली है, यहाँ वह है दो स्वेटर पहने है, तिस पर भी धूप में बैठी है.
बरामदे में धूप आ रही है. भोजन बन गया है, सुबह के सभी आवश्यक कार्य भी हो चुके
हैं. नैनी की बेटी पढ़ने आती है पर आज अभी तक नहीं आई, उसकी माँ को पढ़ाई का महत्व
पता नहीं है, स्वयं अनपढ़ है सो क्या जाने कि पढ़ना-लिखना इन्सान के लिए कितना आवश्यक
है. नन्हा परसों आ रहा है, वे उसे लेने जायेंगे. कल शाम वे एक मित्र परिवार के
यहाँ गये, जन्मदिन की बधाई देने, वापसी में वह अपना पर्स वहीं भूल आई, दुबारा जाकर
लाना पड़ा, मन कितना बेहोशी में जीता है. मन तो जड़ है ही, वे सजग नहीं रह पाते,
मशीनवत काम करते हैं. मन कहीं और होता है, हाथ कुछ और कर रहे होते हैं. असजगता ही
बंधन है वही दुःख में डालती है.
साल का अंतिम दिन ! कल मैराथन में भाग लिया, जैसी
उम्मीद थी, प्रथम आई. रास्ते में एक बार लड़खड़ा गयी पर जैसे किसी ने सम्भाल लिया,
कुछ विशेष चोट भी नहीं लगी, न ही उसके कारण कोई आगे निकल पाया. दिन भर खूब आराम
किया. थोड़ी थकन अभी भी है तन में, पर मन तो जैसे है ही नहीं, प्रेम का अनुभव उसे
गलाये जा रहा है. प्रेम इन्सान को कितना महान बना देता है. एक क्षुद्र, अनपढ़ गाँव
का भोला व्यक्ति भी यदि अपने भीतर प्रेम का अनुभव करता है तो वह संसार का सबसे धनी
व्यक्ति होगा. वह सद्गुरू के प्रति, परमात्मा के प्रति और उसकी इस अनमोल सृष्टि के
प्रति असीम प्रेम का अनुभव करती है, भीतर जो संगीत गूंजता है, वह उसे भुलाने नहीं
देता जो सार्थक है, जो शाश्वत है और जो सत्य है, इस अस्तित्त्व से प्रेम करना जिसे
आ जाता है, अस्तित्त्व भी उससे प्रेम करता है. इस वर्ष उसकी चेतना और मुखर हुई है,
विकसित हुई है. अब इस बात का डर नहीं है कि कहीं पथ से विचलित न हो जाए, क्योंकि
अब भीतर कुछ जग गया है कुछ पनप गया है जो अब खुद जगायेगा. अब मन पहले से जल्दी ठहर
जाता है. इस वर्ष कवितायें भी कुछ अधिक लिखी गयीं, ऐसे कवितायें जो कुछ लोगों को
ख़ुशी दे गयीं. सभी के भीतर उसी परमात्मा को देखने का अभ्यास भी बढ़ा है और भीतर शांति
का झरना भी निरंतर बहता है. जाता हुआ साल ढेर सारी यादें देकर जा रहा है, पर अब
वर्तमान में रहने की इतनी आदत हो गयी है कि इस वक्त कुछ भी याद नहीं आ रहा !