Sunday, December 6, 2015

मित्रता की सुगंध


आज सुना..'भक्ति का आरम्भ वहाँ है जहाँ ईश्वर में जगत दिखता है और चरम वह है जहाँ जगत में ईश्वर दिखता है. पहले-पहल दिव्यता के दर्शन अपने भीतर होते हैं फिर सबके भीतर !’ वर्षा की झड़ी लगी है, भीतर का आसमान भी धुल गया हो जैसे ! सद्गुरू ने कहा, साधक उनका काम करें और वे उनका काम कर देंगे. सारी चिंता, दुःख, परेशानी उन्हें समर्पित कर दें और स्वयं साधना, सेवा तथा सत्संग में लग जाएँ. अपनी नजर को विशाल बनाएं, कोई पराया नजर ही नहीं आएगा, कोई बुरा भी नहीं दिखेगा. ठीक ही तो है, हर ऐसा व्यक्ति जो न करने योग्य कार्य करता है, स्वयं भी अज्ञान का दुःख भोग ही रहा है, उसे बुरा कहकर वे न तो उसका भला कर सकते हैं न अपना ही. जब उन्हें दोषी न मानकर शोषित मानते हैं जो अपने ही द्वारा शोषित हो रहा है, तो उसे दुःख से निकाल सकते हैं तथा स्वयं को भी धर्म ध्यान में रख सकते हैं, कर्म बाँधने से बच सकते हैं. संसार में सबके साथ रहना भी सीखते हैं. संगठन का गुण जगत में बड़े काम करने में सहायक है. राम कहते हैं, जो स्वयं अमानी रहकर दूसरों को मान देते हैं, वही कुछ करके जगत का कल्याण कर सकते हैं.

जो नश्वर को जानता है वह शाश्वत होता है, स्थायी होता है. वही वह है ! उसने अपने तन में होती संवेदनाओं को देखा, जो देखते-देखते नष्ट हो गयीं, क्योंकि वे नश्वर थीं. उनके मन में उठने वाली प्रत्येक भावना, कल्पना, विचार नश्वर है, वे जो उसके साक्षी हैं, शाश्वत हैं. वे व्यर्थ ही मन की कल्पनाओं को सत्य मानकर स्वयं को सुखी-दुखी करते रहते हैं. उन्हें तो इन्हें ये जब जैसी हैं वैसी मानकर आगे बढ़ जाना चाहिए.  

इस वक्त वह लॉन में झूले पर बैठी है, ठंडी हवा बह रही है. घास में, हरी घास में अद्भुत सुन्दरता है जो वे देख नहीं पाते पर ईश्वर उन्हें दिखाते हैं. वर्षा हो चुकी है सो सभी कुछ धुला-धुला सा है, हरा, निर्मल और शीतल..उसका हृदय भी ईश्वर के प्रेम से हरा-भरा है, निर्मल है और शांत है. सारी सृष्टि इस क्षण इतनी सुंदर लग रही है. पेड़ों की शाखाएँ व पत्ते हवा में सरसराहट उत्पन्न कर रहे हैं. रह रहकर कोई बूंद टप से गिरती है, दूर से घंटे की आवाज आई और फिर किसी पंछी की. उसकी किताब ‘इन्द्रधनुष’ छप कर आ गयी है. आज एक सखी की बेटी ने sms भेजकर कहा कि भगवद्गीता के लिए धन्यवाद तथा उसकी दोस्त भी पढ़ना चाहती है अंग्रेजी भाषा में. अच्छा लगा जानकर कि आज की पीढ़ी में भी ऐसे लोग हैं. नन्हे का मित्र आज चला गया, बेहद शांत व सभ्य विद्यार्थी, उस पर एक कविता लिखेगी. सबसे पहले उसने एक बुजुर्ग परिचिता को खबर दी किताब आने की, किताब में उसका फोटो ठीक नहीं आया है, उनका चुनाव ठीक नहीं था. आज दीदी व छोटी बहन दोनों से बात हुई, छोटे भाई की तबियत ठीक नहीं थी, उसके मन की पीड़ा ही उसे मजबूत बनाएगी. फुफेरी बहन से भी वह मिली, इतनी तकलीफ में भी हँस रही थी. ईश्वर उनमें से हरेक के साथ है, वही तो है, उनके दुःख उनके पथ के कांटे नहीं फूल बन जाते हैं, जब वे उन्हें उसी के द्वारा भेजा मानते हैं !

आज नन्हा वापस चला गया. कल शाम को जब सामान पैक करने का समय आया, जिसे वह जहाँ तक सम्भव हो टालता रहता है, तो वह उदास लग रहा था. नूना ने जब पैकिंग में सहायता करने की बात की तो पहले सदा की तरह मना किया पर बाद में मान गया. वह अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं करता, मन में ही छुपा कर रखता है. मित्रों के साथ बहुत उन्मुक्त व्यवहार करता है. अच्छा लगता है कि उसके इतने मित्र हैं और सभी के साथ एक सा प्रेम. इस बार जाते समय तथा सामान सहेजते समय नूना की आँखें भर आयीं, ये मोह के नहीं प्रेम के अश्रु थे, जिन्हें सद्गुरू बहुमूल्य बताते हैं. इस समय वह कोलकाता पहुँच चका है, कल बंगलूरू वहाँ से परसों कालेज चला जायेगा. उसका मित्र भी उन्हें सदा याद रहेगा, पहले स्कूल का एक मित्र फिर कोचिंग का और अब कालेज का, ये तीनों घर में आकर भाइयों की तरह रहे. भाई तो आपस में झगड़ते हैं पर इनमें कभी मनमुटाव होते नहीं देखा, मित्रता का रिश्ता निभना नन्हा खूब जानता है. वर्षा पुनः तेज हो गयी है, माली जो बाहर काम कर रहा था, गैराज में चला गया है. उसे घर में कल से सफाई का काम शुरू करना है और आज से पत्र लिखने का भी !


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