Tuesday, July 31, 2012

तेरी गठरी में लागा चोर



पहले कामना, फिर पूरी न होने पर क्रोध अथवा पूरी हो जाने पर मोह, यही कारण है जो मानव को बुराई की ओर अग्रसर करता है. उसने मन ही मन गीता में पढ़ा यह वचन दोहराया. आज सुबह से बल्कि कल शाम से ही बादल बने हुए हैं पर बरस नहीं रहे. कल शाम वे घर पर बिना ताला लगाये लगभग एक घंटा घर से बाहर रहे, ईश्वर की कृपा से कुछ हुआ नहीं पर मन में एक डर अवश्य था, पिछले दिनों दूसरी नयी कालोनी में हुई चोरी की बात सुनकर, जिसमें कपड़े, गहने, बिस्तर सहित चोर खाने-पीनेकी वस्तुएं तक ले गए. क्या इन चोरों के पास हृदय नाम की कोई चीज नहीं होती, दूसरे को इतना नुकसान पहुँचा कर स्वयं धनवान बनने की सोचना ! चोरी से बढ़कर कोई दुष्कर्म नहीं.
उन्होने फिरसे पत्रिका क्लब खोलने का निर्णय लिया है. कल लाइब्रेरी से दो पुस्तकें और लायी है और दो पत्रिकाएँ भी. कल भाई-भाभी व माँ-पापा के पत्र मिले. नन्हा अब काफी बातें करने लगा है, बहुत से नए शब्द सीखे हैं उसने, अभी मुस्कुराते हुए उठेगा और उसके गले में बाहें डाल देगा फिर तुतलाते हुए कुछ बोलेगा आटो, या स्कूटर या फिर पापा.

टीवी का एंटीना तो लग गया पर दो घंटे काम करने के बाद फिर से तस्वीर गायब है. कल शाम की फिल्म शायद ही देख पाएँ. जून, पीछे वाले पड़ोसी और अन्य तीन-चार लोग थे कितनी मुश्किलों के बाद इतनी भारी रॉड को उठाकर वे सीधा खड़ा कर पाए और फिर जून छत से ही नहीं उतर पा रहा था. उसके बाद सबने एक और घर में लगाया अब तीसरी जगह लगाने गए हैं. नन्हा गली के उस ओर दाईं ओर के घर में गया है, वहाँ एक छोटी लड़की है आठ-दस साल की जो उसके साथ खूब खेलती है, तभी वह कुछ लिखने बैठी है. कल शाम से ही बिजली नदारद थी, अँधेरे में खेलते-खेलते नन्हा परेशान हो गया था बहुत झुंझला उठा था, ऐसे में जून भी उसे सम्भाल नहीं पाते. आज उसने पत्रों के जवाब दिए. वर्षा रुकने का नाम ही नहीं ले रही, लगता है महरी आज भी काम करने नहीं आयेगी.



Saturday, July 28, 2012

जीनिया के बीज



कल दिन भर वह खुश थी, आज का आरम्भ भी सुखद है. नवभारत टाइम्स में डॉ धर्मवीर भारती की फागुनी कवितायें पढ़ी हैं. मन में कितनी स्मृतियाँ सजीव हो उठीं, कितना अच्छा लिखते हैं वह. उनका टीवी बंद पड़ा है. चैनल नम्बर बदल जाने के कारण एंटीना बदलना पड़ेगा सो तब तक सिर्फ सुन सकते हैं, यानि टीवी टीवी न रहकर रेडियो हो गया है. अभी जून के ऑफिस जाने से पहले वे लोग अक्तूबर के उन दिनों की बातें कर रहे थे जब बड़े भाभी-भैया वहाँ आयेंगे और शायद मंझले भी. उसने सोचा अगर छोटा भाई व बहन भी आ सकें तो कितना अच्छा हो, बहन की चिट्ठी भी नहीं आयी. देवर का खत परसों आया था पर उस ट्रंक के बारे में जाने क्यों कुछ नहीं लिखा, कल दोपहर कुछ लिख तो नहीं पायी, इस वक्त भी प्रयत्न किया जा सकता है, प्रातःबेला, चिड़ियों की चहचहाहट और एकांत ! नन्हा अभी तक उठा नहीं है, किन्ही स्वप्नों में खोया होगा.

अभी-अभी गीता में पढ़ा भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं जिसको मान-अपमान, हानि-लाभ, सुख-दुःख नहीं व्यापते उसी की बुद्धि स्थिर है. हिंदी लिखने का अभ्यास छूटता जा रहा है, जरा सा कठिन शब्द आया तो कलम अटकने लगती है, उसने सोचा, जून से हिंदी का शब्दकोश लाने को कहेगी. आजकल उसे स्वप्न में रोज दीदी दिखाई देती हैं पता नहीं क्यों ? कल शाम उनकी लेन की मिसेज सेन के घर छोड़ कर जाने की बात सुनकर उसे बहुत आश्चर्य हुआ, कल ही वह पहली बार उनके घर गयी थी, नन्हें के स्वेटर के लिये उनकी सास से कोई नमूना पूछने. कल शाम को पहली बार उसने एक बड़ी सी लोहे की ट्रे में जीनिया के बीज डाले हैं, देखें कब तक निकलते हैं. माली को भिन्डी आदि सब्जियों के लिये भी कहा है.



Friday, July 27, 2012

नन्हें की ट्राई साइकिल



नया वर्ष आरम्भ हुए हफ्तों बीत गए, मन में विचार तो कई बार आया पर आज ही यह सुअवसर मिला है कि पेन उसके हाथ में है. उसे लिखना है यह भाव तो मन में कई बार जगा पर कार्यान्वित नहीं हो सका. वे एक महीने के लिये घर गए थे, वापसी में नन्हें को फिर सर्दी लग गयी, दिसम्बर में उत्तर भारत बहुत ठंडा होता है. उन्हें घर से आये भी दो हफ्ते हो गए हैं, पर उसका स्वास्थ्य पूरी तरह अभी तक ठीक नहीं हो पाया है. कल ससुराल से पत्र आया और आज मायके से. दोनों में उसका हाल पूछा है. इस समय दोपहर के ढाई बजे हैं और यह कोई माकूल वक्त नहीं है लिखने का. नन्हा और वह कुछ देर हुए उठे हैं सोकर, यदि आज शाम वर्षा नहीं हुई तो वे लोग अवश्य कहीं घूमने जायेंगे. आज दोपहर उनकी लेन के एक बंगाली महोदय की बात सुनकर हँसी भी आयी पर बाद में सोचा तो उन्हें सही पाया. वाकई उनका जीवन कितना बंधा-बंधाया है, एक ही ढर्रे का, कोई नयी बात महीनों तक नहीं होती. यहाँ ऐसा ही है. वे लाइब्रेरी जायेंगे कुछ अच्छी किताबें ही मिल सकती हैं, पर वर्षा रानी ने साथ दिया तभी तो.
दस बजने वाले हैं, उसका सभी कार्य हो चुका है, जो शेष है वह जून के आने पर ही होगा, वह फुलके उसके आने पर ही बनती है. पर आज सफाई कर्मचारी अभी तक नहीं आया. कई दिन बाद आज तेज धूप निकली है, सोनू अपनी ट्राईसाइकिल लेकर बाहर गया है, और उसे आवाजें दे रहा है, वह सड़क पर जाना चाहता है.
आज से उसने दिनचर्या में कुछ परिवर्तन किये है, फिर सोचा यदि ईश्वर सहायक रहा तो यह सफल होंगे वरना...किसी बच्चे के रोने की आवाज आ रही है, मन पर कैसा आघात होता है, फूट फूट कर रो रहा है वह. नन्हा अभी तक सोया है, तभी वह जून के जाने के बाद झाड़-पोंछ का कार्य निपटा कर स्नान कर सकी फिर गीता पाठ और योगासन और अब यह डायरी. पिछले कुछ दिनों से उसका मन बहुत उद्वगिन है, जो करना चाहती है वह हो नहीं पाता. परसों रात कितनी सुंदर कहानी सोची थी एक-एक वाक्य स्पष्ट था पर कल जब लिखने बैठी तो जैसे दिमाग की स्लेट ही पुंछ गयी हो. इतना जीवन बीत गया पर क्या किया इतने वर्षों में, कोई सार्थक उपलब्धि नहीं, बहुत गर्व था अपनी लेखनी पर कहाँ गए वे आन्दोलित करने वाले विचार, वह जेपी पर लिखी कवितायें, वे क्रांति की बातें. जीवन की दौड़ में उसका स्थान कहाँ है ?

Thursday, July 26, 2012

सर्दियों का सूरज




आज बुधवार है, पिछले बृहस्पतिवार उसे सर्दी लगी, जो जुकाम और कमजोरी में बदल कर सोमवार को भागी और इतवार की रात नन्हें को भी उससे सर्दी लग गयी. दिन भर स्वस्थ रहता है पर रात को उसका जुकाम बढ़ जाता है. ठंड भी तो कितनी बढ़ गयी है, पिछले दो-तीन दिनों से लगातार होती वर्षा के कारण. पर सोम, मंगल को भी डायरी न उठाने का कारण है जून की अनुपस्थिति, दो दिन के लिये वे खरसांग गए थे, कल शाम ही वापस आये हैं, कल दीवाली है इसलिए. वैसे भी वहाँ अभी कार्य नहीं था, एक बार फिर जाना होगा तीन-चार दिन के लिए. सुबह के समाचारों में अभी-अभी हुए आतंकवादियों के हमले के बारे में बताया जा रहा है. पता नहीं कब छूटेगा भारत इनके चंगुल से.
आज इंदिरा गाँधी का जन्मदिन है, अगर वह होतीं तो...कितने हफ्तों बाद डायरी उठाई है. सब कुछ व्यवस्थित लग रहा है. बस वह जून का पहले की तरह ध्यान नहीं रख पाती, नन्हें के साथ व्यस्त रहती है, उनके पास शाम का कुछ खाली समय रहता है, जिसमें कुछ कर सकते हैं उसने सोचा, वह उनसे किसी नए कार्य को शुरू करने की बात कहेगी. नन्हा आज देर से उठा अभी उसका स्नान नही हुआ है, वही रात का कुरता पहने है, अच्छा लगता है उसमें वह, शाम को उसकी वह बंगाली मित्र आपने माँ-पापा के साथ आ रही है. अब नन्हे ने ऊं ऊं शुरू कर दिया है.

नवम्बर का आखिरी दिन. सर्दियाँ अपने पूरे शबाब पर हैं. सुबह का सूरज बहुत सुखदायी है और गुलाब ज्यादा लाल हो गए हैं. अब जून को ठंड लग गयी है. धूप तेज हो गयी है वह बाहर से उठकर बरामदे में आ गयी. कल बड़े भाई का जन्मदिन है, उसने मन ही मन उन्हें शुभकामना दी.  




Wednesday, July 25, 2012

रोना, कभी नहीं रोना



आज सुबह अलार्म सुनाई दिया था पर आलस्यवश दस मिनट और लेटी रही, सुबह की नींद भी तो कुछ अलग होती है ठंड में कम्बल में सिकुड़े रहो बस. आज कोहरा छाया है, दूर के पेड़ दिखाई ही नहीं दे रहे. सर्दियों में तो कभी-कभी सामने वाला घर भी दिखाई न दे ऐसा कोहरा होता है यहाँ. सर्दियाँ बस आने ही वाली हैं. कल माँ का पत्र आया है उन्हें जून के वहाँ न जाने से कितनी निराशा  होगी, कल ही छोटी ननद और मंझले भाई का पत्र भी आया है. कल शाम नन्हा बहुत जिद कर रहा था, जून को उस पर गुस्सा आया. आज से वे उसे बारी-बारी से खिलाएंगे अर्थात ध्यान रखेंगे. उसकी बचपन की दो सखियों की कल शादी थी, एक का पता उसने खो दिया चाह कर भी पत्र नहीं लिख सकी. बड़ी बहन की शादी की वर्षगाँठ भी थी. इस बार घर जाने पर वह ‘शाक तथा पुष्प वाटिका’ से सम्बधित कोई किताब अवश्य लाएगी ऐसा उसने तय किया.

कल रात वे अलार्म देना ही भूल गए, सुबह चिड़ियों ने उठा दिया या फिर उस स्वप्न ने जिसमें जून के साथ उसकी बहस हो रही है, क्योंकि वे दोनों तो कभी बात को बढ़ाते नहीं, ज्यादातर पांच मिनट से ज्यादा नहीं चलती उनकी बात, और होती भी है तो नन्हें की देखभाल को लेकर. उसका रोना जून को जरा पसंद नहीं, वह बहुत जल्दी घबरा जाता है, खुद भी झुंझला जाता है. पर बच्चे उतना रोते भी हैं जितना हँसते हैं, यह नूना को पता है. वह कभी-कभी उसे जी भर कर रोने देना चाहती है. आकाश पर रुई के फाहों के से बादल बिछे हैं, कोहरे का कोई नामोनिशान नहीं. उसे याद आया नन्हें के कुछ वस्त्रों की सिलाई खुल गयी है, आज सबसे पहले वही ठीक करेगी.

कल उसने ‘सर्वोत्तम’ में एक लेख पढ़ा, भीतर के अलार्म से कैसे उठें, अमल भी किया, प्रभावशाली रहा. सुबह सवा पांच बजे वह उठ गयी, नन्हा कल दिन भर मस्त रहा, पर शाम होते ही छोटी सी बात पर रोने लगा, उन्हें कुछ और उपाय सोचना होगा, उनमें से एक को सदा उसके साथ रहना होगा उसके हर कार्य में. वह दिन भर उसका पूरा ध्यान पाता है शाम को उसके दूसरे कामों में व्यस्त होने पर या जब वे आपस में बात करने में व्यस्त हो जाते हैं तो वह किसी न किसी बात पर जिद करने लगता है. आज ही के दिन दीवाली है अगले सप्ताह, वे कुछ लोगों को बुलाएँगे. कल का मैच भारत ने जीत ही लिया.   

Tuesday, July 24, 2012

पौधे पर जोंक




आज एकाएक इतने दिनों बाद डायरी उठा लेने के पीछे कारण है, कल जून उसके लिये एक स्लैक्स लाए हैं जिसे पहन कर वह व्यायाम करेगी और एक अलार्म घड़ी, सुबह-सुबह उठाने के लिये. सुबह इतनी सुंदर होती है वह तो जैसे भूल ही गयी थी. प्रातः कालीन शांत वातावरण, शीतल हवा और रात की वर्षा के कारण धुला-धुला सा सब कुछ जैसे एक कविता लिखने का आमन्त्रण हो. सामने वाली उड़िया निवासिनी शायद अभी सो ही रही है उस दिन उसने कहा था कि सुबह पांच बजे वे दोनों साथ-साथ घूमने जायेंगे. जून अभी सोये हैं वह उठाकर तो आयी है पर नींद शायद टूटी नहीं. उनकी लेन में लगाये गए वृक्षों पर पहली बार फूल लगे हैं, बयार में धीरे धीरे झूल रहे हैं. आज शुक्रवार है क्लब में फ़िल्म का दिन, वे जायेंगे पर नन्हा आधा घंटा भी बैठने नहीं देता, उसे भला फिल्म में क्या रूचि हो सकती है. आजकल हर बात अपनी मनवाना चाहता है. जून परेशान हो जाते हैं. उसे भी कभी-कभी झुंझलाहट होती है पर अगले ही पल लगता है प्यार से ही समझाना होगा.

आज की सुबह कल की तरह शीतल नहीं है, वह उठकर बाहर आयी तो खिड़कियाँ खोल दीं व पंखा बंद कर दिया था कि सुबह की ताजी हवा कमरे में भर जायेगी, लेकिन बाहर हवा नहीं है सो उसने पुन पंखा चला दिया यह सोचकर कि नन्हे और जून को गर्मी लगेगी. तभी उसने देखा कि उड़िया लड़की साइकिल चलाकर लौट रही है, तो वह वजन घटाने के लिये यह करती है, इसका अर्थ हुआ कल भी वह सोयी नहीं थी. कल बड़ी भांजी को जन्मदिन कार्ड भेजा और आज चचेरी बहन को स्वेटर का पार्सल भेजना है. वातावरण की उमस उसे परेशान करने लगी, सुबह-सुबह तो मन शांत होना चाहिए, मधुरतम भावनाओं से भरा हुआ. उसे लगा वह भीतर से कठोर हो गयी है, लिखना छोड़ वह शेष कार्य करने भीतर चली गयी.

कल इतवार था वह उस पड़ोसन के साथ घूमने गयी थी, उन्होंने काफ़ी लम्बा चक्कर लगाया एक घंटा लग गया. आकर लेट गयी और पांच मिनट बाद ही जून भी उठ गए, सो लिख नहीं सकी, बाद में याद आया तो सोचा कि इतवार के लिये डायरी में जगह ही कहाँ होती है. आज वह हरसिंगार के फूल लायी है. जहाँ वह बैठी है उसकी चप्पल के पास एक जोंक का बच्चा है दो सेंटीमीटर लम्बा होगा  होगा. उस रात को जून के पैर पर एक जोंक चिपक ही जाती उसे पता चल गया. आज थोड़ी ठंड है अब हर दिन ज्यादा ही होती जायेगी, वे शिलांग से जो फूलों के पौधे लाए थे उन्होंने जमीन पकड़ ली है, अभी गुलाब की कलम में अंकुर नहीं फूटे हैं जीवन के. कल रात उनके बायीं ओर वाले पड़ोसी वापस आ गए पूरे पन्द्रह दिनों के बाद, अभी अभी गृहणी बाहर आयी थीं, लाइब्रेरी से वह दो पुस्तकें लायी थी, अभी पढ़ी नहीं हैं. 

Monday, July 23, 2012

गणपति बप्पा मोरया


कल बड़ी भाभी व माँ का पत्र आया, पता चला कि उसके सूट का माप खो देने के कारण दर्जी ने सूट सिले ही नहीं थे. अब माप फिर से दिया है सो सिलने पर वे भेज देंगी. उसके बाएं हाथ पर घमौरी हो गयी है, देखने में तो भद्दी लगती ही है, जलन भी होती है, उसे याद आया बचपन में सारे बदन पर बहुत घमौरियाँ निकलती थीं, बारिश में खूब नहाते थे तब, या बर्फ रगड़ते थे सब बच्चे.

नन्हे के माथे व बाँहों पर भी पहले लाल घमौरी निकल आयी थी अब ठीक हो गयी है. अब वह सहारे से चलने भी लगा है और सब बातें समझता है, एक मिनट भी स्थिर होकर बैठना नहीं चाहता अब. बस अभी बोल नहीं पाता. एक घंटा आया के साथ खेल कर वह थक गया होगा सो, सो गया, उसका सारा काम भी तब तक आराम से हो गया. अगले महीने वे शिलांग जायेंगे, तीन दिनों के लिये गेस्टहाउस में एक कमरा बुक करने को जून ने कल फोन पर कहा.

वही कल का समय है, अभी-अभी धोबी आकर कह गया है कि पूजा पर बख्शीश के लिये धोती लेगा, पांच रूपये दे देंगे उसे, उसने सोचा. माली ने वह पौधा गमले में लगा दिया है और खार भी सभी क्यारियों में डाल दी है. कल जून के दफ्तर में एक मीटिंग थी किसी अशोभनीय बात को लेकर, इतने बड़े पदों पर होते हुए लोग कैसे छोटे काम कर जाते हैं. आजकल वह एक रोचक किताब पढ़ रही है “The Festival Death”

कल गणेश चतुर्थी का अवकाश था जून के ऑफिस में. पड़ोस वाले घर में उड़िया समाज एकत्र हुआ था पूजा व भोज के लिये, कितना एका है यहाँ कुछ प्रदेशों के लोगों में, जैसे उड़िया, तेलेगु, तमिल आदि. कितनी जल्दी बीत गया यह सप्ताह, पता ही नहीं चला, कल फिर इतवार है, प्रथम प्रतिश्रुति का दिन.
  

Saturday, July 21, 2012

जन्मदिन ही याद दिलाता


सुबह के साढ़े नौ बजे हैं, नन्हा दिन की पहली निद्रा में मग्न है. सुबह के काम हो चुके हैं, वह जून का इंतजार करते हुए उसी किताब को पढ़ेगी. पिछली शाम वे क्लब गए, दोसा खाने, पर कल केवल सांबर बड़ा ही बना था, पहले की तरह बहुत अच्छा भी नहीं था. पिछली रात से आकाश ढल रहा है बीच-बीच में लगता है थम गया पर नन्ही नन्ही बूंदें कहीं न कहीं अधर में तब भी होंगी ही. उसने सोचा कि उसे कुछ महत्वपूर्ण बातों के बारे में लिखना चाहिए बजाय इन रोजमर्रा की इतर बातों के. ऐसा लगता है कि उसके चारों ओर ऐसा कुछ भी नहीं लेकिन उसके भीतर कुछ ऐसा जरूर है जिसे उसे जगाना होगा. वह अपने इस जीवन में इतना डूब गयी है कि खुद को एक अलग व्यक्ति के बारे में सोच ही नही पाती. वे आपस में इस तरह गुंथे हैं.

आज छोटी बहन का जन्मदिन है, उसे अवश्य ही उनका कार्ड मिल गया होगा. आधा घंटा पहले वह उसी मित्र के यहाँ से आयी है जिसका बेटा नन्हे की ही उम्र का है, वे दोनों डेढ़ घंटा आपस में खेलते रहे और वे दोनों उन्हें देखते हुए बातें करती रहीं. इस समय वह दिन की दूसरी निद्रा में खोया है. उसने फेमिना में भार-ऊँचाई की सूची देखी. उसके अनुसार उसका वजन ठीक है. उसने वह किताब भी आज सुबह पूरी पढ़ ली. इस समय वातावरण कितना शांत है, केवल चिड़ियों की चहचहाहट गूंज रही है, और थोड़ी देर बाद स्कूटर, मोटरसाइकिल, कारें, वैनेट सभी दौड़ने लगते हैं, आवाजें ही आवाजें रात होने से पूर्व तक. कल शाम भी वे किसी परिचित के यहाँ गए थे, कुछ बातें हुईं अन्य लोगों के बारे में, ज्यादातर नन्हे के बारे में, आज वे एक बच्चे को देखने जायेंगे, वह छोटा सा बच्चा कितनी बुरी तरह जल गया था, अब ठीक हो रहा है.

उसने जून से कहा था कि वह नियमित पत्र लिखेगी पर पहले की तरह फिर भूल गयी. आज छोटे भाई का जन्मदिन है, यानि तीन हफ्ते बीत गए पत्र उसे लिखे. अब जैसे-जैसे नन्हा बड़ा हो रहा है, उसकी नींद कम हो गयी है, और उस पर हर वक्त नजर रखनी पड़ती है, कितनी तेजी से वह घुटनों के बल इधर से उधर भाग जाता है, हर वस्तु उठाकर मुँह में डाल लेता है. सुबह के समय उसे नहाने व खाना बनाने का भी समय नहीं मिल पाता, सो कामवाली को उसने एक घंटा अलग से बुलाया है जब वह उसे संभालेगी, ताकि वह स्नान कर सके व भोजन बना सके. आज उसका पहला ही दिन था, उसका सब काम हो गया और लिखने का वक्त भी मिल गया.


 

Friday, July 20, 2012

गोलगप्पों का कार्यक्रम


देखते-देखते पूरा एक माह बीत गया. नन्हे का जन्मदिन आया और उससे एक दिन पहले माँ-पापा व छोटा भाई आये थे. उनका आना उन्हें बहुत आनंदित कर गया व उन्हें भी उनका घर देखकर अच्छा लगा. जन्मदिन की पार्टी भी अच्छी रही और उसके बाद वे जगह-जगह घूमने गए, तिनसुकिया, ज्योति होटल, ड्रिलिंग साईट. पापा दिगबोई भी देख आये. एल.पी.जी. प्लांट, ओ.सी.एस. सभी दिखाए उन्होंने. पापा ने कितनी अच्छी बातें बतायीं और माँ ने भी सुनाई अपनी कहानी. छोटा भाई भी कहता रहा बीच-बीच में आपने बैंक के अनुभव, खट्टे-मीठे. और अब वे लोग चले गए हैं, पीछे रह गयी हैं स्मृतियाँ ! जो उनके मनों में सदा सजीव रहेंगी. कल सभी को पत्र भी लिखे. लगता है नन्हे का इरादा आज देर तक सोने का है, वर्षा दो दिन लगातार होकर अभी-अभी रुकी है. सो जून बाइक से ऑफिस चले गए हैं, अभी सात भी नहीं बजे हैं, उसे ढेरों काम करने हैं.

ग्यारह बज चुके हैं, आज जून बस से गए हैं सो आने में देर होगी. उसके सुबह के सभी आवश्यक कार्य हो चुके हैं, आज भी सुबह से बादल बने हैं पर लगता है दिन में मौसम स्वच्छ रहेगा. कल शाम भी तेज वर्षा के कारण वे न घूमने जा सके न ही बाजार. आज सुबह जून से वह बेबात ही गुस्सा हो बैठी, और पता नहीं क्यों दाल में अदरक भी डाल दी जबकि उसे अदरक नापसंद है.

आज भी सुबह-सुबह उसने डायरी खोली है. दिन भर तो किस तरह बीत जाता है पता ही नहीं चलता. कल उसने अपना वजन देखा कितनी तेजी से बढ़ रहा है, नियमित व्यायाम की आदत नहीं रही थी, फिर से डालनी होगी.

उस समय नन्हा उठ गया आजकल बहुत बातें करता है, हर वक्त चाहता है उसी को खिलाते रहें, देखते रहें, सुनते रहें, शाम के समय कुछ ज्यादा ध्यान चाहता है. अभी जून के आने में एक घंटा है. सुबह हुई वर्षा के कारण गोलगप्पों का कार्यक्रम तो स्थगित कर दिया था उन्होंने पर अब अच्छी खासी धूप निकल आयी है. पिछले कई दिनों से वे किसी परिचित के घर नहीं गए हैं सामाजिक शिष्टाचार के अंतर्गत. आजकल वह एक किताब पढ़ रही है- The President’s child अच्छी है, Fay Weldom की लिखी  हुई.


 

Thursday, July 19, 2012

मुस्कुराहट कायम है



मौसम ने फिर करवट ली है. कल दोपहर बाद से वर्षा आरम्भ हुई जो आज सुबह भी हो रही थी, शाम को कुछ देर के लिए थमी, वे घूमने गए, सामने वाली उड़िया पड़ोसिन ने उसका गुलाबी सूट अच्छा सिला है, वही पहना था. नन्हा नींद में कोई स्वप्न देख कर शायद डर गया था, रोने लगा वह स्नानघर में थी. फिर सो गया. आज उसने टाटा भी किया और फूल भी बोला, और भी कई शब्दों की नकल करता है कभी-कभी जैसे दादा, नाना, मामा. पापा अभी नहीं बोल पता. माँ के पत्र का जवाब उसने दे दिया है, जैसे इतने दिन बीत गए वैसे कुछ दिन और हैं उनके आने में. परसों उन्होंने नन्हें के जन्मदिन के लिये मेहमानों की सूची बनायी और मीनू भी. जून कहते हैं उसे स्टेशन नहीं जाना चाहिए पता नहीं गाड़ी कितनी लेट हो. आज कल आम बहुत सस्ते हैं वे रोज ही लाते हैं.

उसने लिखा, “न तो वह, वह है जो होना चाहती है और न ही वह जो वह वास्तव में है. एक मिश्रण है इन दोनों का, मिलावट जो आजकल हर शै में है, उसमें भी है शायद औरों में भी हो पर इस वक्त बात सिर्फ उसकी हो रही है”. जीवन चाहे कैसा भी हो मुस्कुराने की गुंजाइश तो हमेशा ही रहती है. कल छोटी ननद का पत्र आया था, वह बीए प्रथम वर्ष में दाखिला ले रही है. कभी वे भी थे विद्यार्थी, भला था वह जीवन.. लिखते-लिखते उसकी नजर सोनू पर गयी जो मस्ती से बिछौने पर खेल रहा था.  


 

Wednesday, July 18, 2012

बिल्ली के भाग से दही लगा



कल रात हुई वर्षा के कारण सुबह शीतल है और सुखद है पौधौं के पास बैठना, सभी कुछ धुला-धुला सा लगता है. पक्षियों का कलरव वातावरण में चेतना भर रहा है. कल रात लगभग साढ़े नौ बजे एक घोषणा हुई थी, पिछले तीन दिन से पहले बंद फिर घेराव के कारण कितनी हानि और कष्ट होता रहा है लोगों को, अवश्य ही उसी सिलसिले में यह घोषणा हुई होगी. सोनू और जून अभी सोये हैं, नन्हें ने आज सुबह ही सुबह बिस्तर गीला कर दिया है, जून का गला पिछले तीन-चार दिनों से खराब है, नाक भी बंद है, पर वह इलाज नहीं कराते. कल शायद घर से पत्र आये और उनके आने की खबर मिले. तभी उसे लगा कि इन सामान्य बातों के अलावा कुछ लिखना चाहे तो कितना प्रयास करना पड़ेगा. उसका दायरा भी तो कितना सीमित हो गया है. जब नए अनुभव नहीं होंगे तो नए विचार कहाँ से आएँगे. पर इतनी पत्रिकाएँ पढ़ती है उसका कुछ तो असर होना चाहिए था. पड़ोस के घर में जिस बिल्ली ने तीन बच्चे दिए थे, कल रात वह दही जूठा कर गयी है जबकि कल ही उन्होंने दूध न पीकर अधिक दही लगाया था. वह कहते हैं न बिल्ली के भाग से छींका फूटा.

अभी सुबह के पांच भी नही बजे हैं और वातावरण में इतनी गर्मी है. रात भर ही रहती आयी है. आकाश पर थोड़े से बादल हैं भी तो छितराए हुए, हवा का नाम नहीं. कल भाई का पत्र आया माँ पापा जुलाई में आ रहे हैं. नन्हें के जन्मदिन से एक दिन पहले. कल जून तिनसुकिया गए थे, उनके जूतों ने बिल्कुल ही जवाब दे दिया है. सामने वाले घर की उड़िया वासिनी घूमने के लिये निकली है, व्यायाम का यह भी एक तरीका है. आज भी दोनों बाप-बेटे सोये हैं. कल शाम वह अपनी बंगाली मित्र के घर गयी वह एक किताब पढ़ रही है ‘exodus’ बाद में वह भी पढ़ेगी. अभी तो जाकर अमिताभ बच्चन का इंटरव्यू पढ़ेगी जो धर्मयुग में छपा है. पर इसके पहले व्यायाम.

तेज धूप निकली है आज, इतनी कि धूप में चावल बना लो चाहे तो चाय बना लो. रात को स्वप्न में उसने पापा, मम्मी व छोटी बहन को देखा. वह स्वयं बी.एड. की पढ़ाई के लिये हॉस्टल जा रही है. उसने सोचा जब नन्हा बड़ा हो जायेगा तभी आगे की पढ़ाई के बारे में सोच सकती है.


Tuesday, July 17, 2012

भीषण गर्मी शीतल वर्षा


आज सुबह तो नहीं पर दोपहर को समय था लेकिन उसे याद ही नहीं आया कि लिखना है. दिन बेहद गर्म था, बेडरूम में दोपहर को धूप आती है, पर्दे लगाने के बावजूद तपन आती रहती है, सो वे बैठक में सोये, जून ने नीचे कम्बल बिछा दिया था, उसके ऊपर चादर, उसे नन्हें व उसकी भूख, प्यास व नींद का बहुत ध्यान रहता है. शाम को वे किन्ही परिचित से मिलने गए फिर क्लब. दक्षिण भारतीय व्यंजन वहाँ अच्छे मिलते हैं. सोनू वहाँ भी किलोल करता रहा, अपनी अटपटी भाषा में पता नहीं क्या-क्या बोल रहा था. क्लब से आते ही सो गया.

आज दोपहर वह एक चित्र बनाएगी, ऐसा भाव मन में आ रहा है. मौसम कितना सुहाना है, मंद-मंद मधुर पवन और आकाश पर बादल. जून आज बस से दफ्तर गए हैं, सो आने में थोड़ा देर होगी. उसने भोजन बना कर रख दिया है. उसका ध्यान अपनी कमर की तरफ गया, जो आजकल गायब होती जा रही है, नन्हें के होने के बाद ठीक से व्यायाम तो किया नहीं और खुराक ज्यादा. अब नियमित व्यायाम आरम्भ किया है पता नहीं कब फर्क दिखेगा, शायद छह महीनों तक या एक वर्ष बाद, पर कुछ तो करना पड़ेगा ही.
 
आज उसका जन्मदिन है, बहुत दिनों बाद डायरी का स्मरण हुआ है, पर कोशिश रहेगी कि रोज लिखेगी चाहे एक वाक्य ही, जून नेह बरसाते हुए दफ्तर गए हैं. आज उनका हाफ़ डे है. शाम को उन्होंने कुछ जलपान का प्रबंध किया है बस कुछ  ही लोगों के लिये.

कल दिनभर और रात भर की भीषण गर्मी के बाद अब वर्षा की शीतल बौछार कितनी राहत दे रही है. वह कुछ देर पूर्व ही उठकर बाहर आयी है और लगता है जून भी उठ गए हैं, नन्हा सोया है पर दस-पन्द्रह मिनट में ही वह भी उठ जायेगा, कितना प्यारा बच्चा है जब कोई उसे देखकर कहता है तो अच्छा लगता है मन को. कितना हँसाता है वह उन्हें, और कभी-कभी परेशान भी करता है. पर उसका तरह-तरह के चेहरे बनाना और नहीं-नहीं कहते हुए सिर को हिलाना देखते ही बनता है. अभी तक अपने आप चल नहीं पाता है. वर्षा रुक गयी है और दूर से मुर्गे की आवाज सुनाई दे रही है. बंद व घेराव के कारण अब शुक्रवार से पूर्व न तो चिट्ठी मिल सकती है न जा सकती है. माँ-पापा ने खत लिखा तो होगा. नन्हें का जन्मदिन भी निकट आ रहा है. जून शायद अंदर बैठकर कुछ पढ़ रहे हैं या तैयार हो रहे हैं, वह देखने चली गयी.   
 

Monday, July 16, 2012

मार्च में सावन



परसों वे तिनसुकिया गए थे, खूब खरीदारी की. नन्हें के कपड़े, तकिये और भी कुछ वस्तुएं, हैंगर फ्रूट बास्केट आदि. सोनू आजकल उनके साथ ही सुबह उठ जाता है, इस समय सोया है सो उसने डायरी उठाई है, आज फिर बादल हो गए हैं, कल-परसों ही तो धूप निकली थी कई दिनों के बाद. जून कल शाम जोरहाट गए हैं, उन्हें एक सेमिनार में सम्मिलित होना है, देर रात तक लौट आएँगे. पानी अब झमाझम बरसने लगा है, मार्च से ही यहाँ सावन शुरू हो जाता है. जून के न रहने से घर कैसा खाली खाली लग रहा है. कभी-कभी कुछ क्षणों के लिये वे एक दूसरे से रुठ भी जाएँ फिर अपने आप ही मान जाते हैं, क्योंकि अपनी ही हानि नजर आने लगती है.

आज फिर उसे लग रहा है सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया है, तन भी और मन भी. हर बार, हर माह  कहीं कुछ गलत हो जाता है जैसे सिर भारी हो जाता है, आँखें दुखने लगती हैं. कल से नियम से गीता का अध्ययन करेगी तभी फिर से स्थिर हो पायेगी. कल से क्यों, आज से, अभी से क्यों नहीं..यही तो सिखाती है गीता कि हर परिस्थिति में सम रहो, सुख-दुःख, हानि-लाभ, मान-अपमान, यश-अपयश सभी को समान रूप से सहो.

उसने बहुत दिनों तक कुछ नहीं लिखा, अप्रैल का तीसरा हफ्ता है, जैसे-जैसे नन्हा बड़ा हो रहा है उसका सारा वक्त उसकी देखभाल में ही जाता है, कहीं चोट न लगा ले कहीं गिर न जाये यह ख्याल भी हर वक्त मन में रहता है. और कोई काम कुछ दिन न करो तो अभ्यास भी छूट जाता है, कभी वक्त मिला भी तो उसे समझ नहीं आया कि क्या लिखे. नन्हा बहुत प्यारा है पर सोते समय बहुत रोता है कभी-कभी, शायद कुछ दिनों बाद ऐसा न करे, जून आज बैडमिंटन खेलने गए थे, बहुत दिनों बाद खेलने से थकान हो गयी है, वह सोने की तैयारी कर रहे हैं, वह धर्मयुग के पन्ने पलट रही है, पढ़ेगी कल.
 
क्रमशः

Saturday, July 14, 2012

छोटी छोटी बातें



मार्च महीने का आरम्भ हो चुका है. कल इतवार था, उन्होंने कुछ वक्त घर की सफाई में लगाया, कुछ टीवी देखने में और कुछ घूमने में. उनकी प्रिय सड़क जिस पर अमलतास के कई पेड़ हैं, नन्हें के और भी फोटो उतारे. अब रील खत्म हो गयी है, इसी माह बन कर भी आ जायेगी शायद. लंच में वेज पुलाव बनाया और रायता. अभी सुबह ही है, सोनू के लिये अभी दिन नहीं हुआ है, शांत घर में रसोईघर से बूंद-बूंद पानी टपकने की आवाज आ रही है. आज जून को घर से समाचार अवश्य मिलेगा, कितना प्रसन्न होगा वह, और नूना भी उसे प्रसन्न देखकर.
कल रात ही उन्होंने लाउडस्पीकर पर घोषणा सुनी थी पर भाषा समझ में न आने के कारण समझ नहीं पाए थे. सुबह मालूम हुआ कि सुबह सात बजे से शाम सात बजे तक ‘बंद’ है, यानि दफ्तर, बाजार सब बंद. दोपहर के बारह बजे हैं, दोनों सोये हैं, उसे भूख लगी है पर जून के उठने पर ही वे भोजन करेंगे, जो वह अभी बनाने वाली है. आज सुबह से ही तेज हवा चल रही है बाहर.

आखिर चिर प्रतीक्षित पत्र व तार दोनों मिल गए, जून कितना खुश रहता है अब पहले की तरह. कल रात वे बहुत हँसे यूहीं छोटी-छोटी बातों पर, उसके जीवन में कितना रस घुल गया है उसके साथ से, कितना ख्याल रखता है वह उसका और नन्हें का. कल उन्होंने सभी आये हुए खतों के जवाब दे दिए. उसकी एक सखी उसके भाई के शहर जा रही है, उसने उससे कहा है कि वह भैया-भाभी से मिलने जाये वह एक पत्र व छोटा सा उपहार भेजेगी उनके लिये. महीना शुरू हुए चार दिन हो गए हैं पर अभी तक इस माह की तनख्वाह नहीं मिली है, सो दूधवाले, महरी किसी को भी पैसे नहीं दिए हैं.  हिंदी पत्रिका ‘वामा’ में एक प्रश्नावली है लिखना छोड़ वह उसी को पढ़ने व उत्तर देने लगी.

 

Friday, July 13, 2012

कच्चे बेल


कई दिनों से ससुराल के घर से चिट्ठी नहीं आयी है, जून ने तार भेजा है, उम्मीद है सोमवार तक जवाब आ जायेगा. छोटू जैसे-जैसे बड़ा हो रहा है समझ आती जा रही है उसे, ज्यादा ध्यान और समय माँगने लगा है. कल सारी दोपहर और शाम पांच बजे तक वह उसके साथ ही खेलती रही पर वह मान ही नहीं रहा था. इस समय सो रहा है, उसके लिये हरे मटर और फूलगोभी के चंद टुकड़े उबालने हैं. जून तिनसुकिया गया है, घर फोन करने का प्रयत्न किया, पर यह संभव नहीं हो सका, एक टेलीग्राम और भेजा है उसने, वह उदास है इस बात से. इसी हफ्ते पत्र आ जाये तो कितना अच्छा हो. आज सुबह से वर्षा हो रही है, कितना अन्धेरा है उस कमरे में, जहाँ नन्हा सोया है. माँ का पत्र आया है वे लोग यहाँ आएँगे ऐसा लिखा है, शायद मई, जून में या नन्हें के पहले जन्मदिन पर. चाची का पत्र भी आया है बहुत दिनों बाद. आज पहली बार टीवी पर दूरदर्शन में सुबह का नया कार्यक्रम देखा, ‘राजा रामन्ना’ का इंटरव्यू अच्छा था और कन्नड़ गीत भी.

एक नया दिन, सुबह के सात बजे हैं, अभी-अभी जून ऑफिस गया है, रात भर वह कितने सपने देखती रही. वह बैगन के पकौड़े तल रही है पर वे हैं कि खत्म होने को ही नहीं आते. एक बहुत बड़ा सा जुलूस निकल रहा है सड़क पर..कल वह बाजार से दो बेल के फल लायी थी. सोच रही है उसका शर्बत बनाएगी, लेकिन माँ कैसे बनाती थीं उसे याद ही नहीं आ रहा.

वही कल का सा समय है और कल का सा मौसम, कल दोपहर बाद ही बादल एकत्र हो गए और रात भर बहुत बरसे. रात दो बजे बादलों के शोर से नन्हा उठ गया और उसके बाद सोने का नाम ही नहीं, जून ने दूध बनाया वह उसे चुप कराती रही कितनी देर उसे सुलाने का प्रयत्न किया एक बार सोया फिर उठ गया, अब कैसे सो रहा है मस्ती से. पत्र आज भी नहीं आया न ही तार का जवाब, आज हो सकता है जून डाकघर जाकर पता करें. वे बेल तो कच्चे निकले.

 

Thursday, July 12, 2012

जाने भी दो यारों


कल वह आगे नहीं लिख पायी, नन्हा उठ गया फिर सारी शाम उसके साथ ही बीती. आज बापू की पुण्यतिथि है, कभी विचारों में बहुत निकट लगते थे, आत्मीय हों जैसे, आजकल तो याद भी करती है तो सिर्फ दो अक्तूबर और तीस जनवरी को. टीवी पर युवामंच में एक कार्यक्रम हुआ था, ‘युवा पीढ़ी और गाँधी’. अच्छा लगा था उस दिन एक युवा, संजना के विचार सुनकर. गांधीजी की आत्मकथा फिर से पढ़नी चाहिए. आज वह गयी थी अपनी दक्षिण भारतीय सखी के यहाँ, वही कल रखकर गयी थी वह पैकेट, उसने घर पर बनायी थीं दोनों चीजें.
कल माह का अंतिम दिन था, एक माह कैसे बीत गया पता ही नहीं चला, समय तो अपनी चाल से ही चलता है. रात को कुंदन शाह की फिल्म देखी, ‘धुंधले साये’ वही जिनकी “जाने भी दो यारों” देखकर कितना हँसे थे वे. आज से उसने नयी महरी को रखा है, पुरानी का नाम मिनी है, जो थोड़ा गर्म दिमाग की है, देखें कल वह क्या कहती है.
कल जून देर से गए सांध्य भ्रमण को, नन्हा उठ गया सो वह कुछ नहीं लिख पायी. वक्त तो सुबह भी था, दोपहर को भी, धर्मयुग पढ़ती रही, इण्डिया टूडे तो अभी पढ़ना आरम्भ ही नही किया और लाइब्रेरी से भी जून उसके लिये दो किताबें लाए थे. सोनू अब अपने आप वाकर में घूमता है, कभी कभी इतनी तेजी से पूरे कमरे में चक्कर लगाता है और किलकारी भरता है, कि उन्हें डर लगता है, पर वह पल भर में पास से गुजर जाता है.
आज दिन भर धूप आती-जाती रही, ज्यादा समय बादलों की चली. इस समय भी बदली बनी है सो शाम कुछ ठंडी हो गयी है. उसकी आँखों में विशेषतया बायीं आँख में हल्का दर्द है, और दायीं ओर सर में भी थोड़ा, जून कहकर गए हैं कि सो जाये वह चुपचाप, पर वह जानती है नींद कहाँ आयेगी...हाँ यूहीं चुपचाप लेटा जा सकता है, ऐसा मौका कम ही मिलता है शामों को कि अपने आप से मिला जा सके. 
आज तीन पत्र आये, वे हर हफ्ते दोनों घरों पर व हर महीने अन्य सभी को पत्र लिखते आये हैं, हर हफ्ते किसी न किसी का पत्र आता ही है, और सबकी खबर लाता है. कुछ देर पहले वे तीनों घर के बाहर ही कुछ देर टहलते रहे, पश्चिम में आकाश गुलाबी था, और उनके सिर के ऊपर नीला आकाश और रुई के फाहों से सफेद बादल. नन्हा सात माह का हो गया, आज वह देदे, देदे तुतलाकर बार-बार  बोलने की कोशिश करता रहा. उसकी हरकतें देख देख कर वे खूब हँसे.  

क्रमशः

Tuesday, July 10, 2012

कहाँ से आये शक्कर पारे


पिछले तीन दिन वह व्यस्त रही, जून का दफ्तर बंद था, परसों शनिवार था फिर इतवार और सोमवार को गणतन्त्र दिवस. शनि की शाम वे किन्हीं परिचित के यहाँ गए, बहुत सुंदर लगा उनका घर, सजा-सजाया घर था, एक-दो माह बाद वह भी अपने घर के लिये कुछ कलात्मक वस्तुएं खरीदेगी उसने सोचा. इस समय वही पहले की सी शाम है, नन्हा सोया है और जून घूमते हुए लाइब्रेरी गया है. उसी दिन उन्होंने आलू चिप्स बनाये थे, अब तो पूरी तरह सूख गए हैं. सोनू उठकर नीचे कालीन पर बैठ गया है, ठंड कुछ बढ़ गयी सी लगती है, उसको मोज़े पहनाने हैं, टोपी वह पसंद नहीं करता. मुँह से कैसी-कैसी आवाजें निकलता है, बहुत तरह की आवाजें, बच्चे जाने किस मस्ती में रहते हैं. जून ने आज उसे चार बेर लाकर दिए, पहले खट्टे फिर कसैले लगते हैं.

संध्या के सवा पांच बजे हैं, जून रोज की तरह टहलने गए हैं और नन्हा भी किसी स्वप्नलोक में विचरण कर रहा होगा. वह लिखने बैठी है दिन भर की कुछ घटनाएँ. सुबह सामान्य थी, उनके किचन गार्डन में गाजर की फसल बहुत अच्छी हुई है इस बार, पड़ोसन को देने गयी, वह कुकिंग प्रतियोगिता में भाग लेने वाली थी पर देर से पहुंचने के कारण भाग नहीं ले पायी. दोपहर को जून के जाने के बाद उसने कुछ देर स्वेटर बनाया नन्हें के साथ खेला, फिर वह अपना भोजन करके सो गया तो किचन साफ किया, फिर कुछ देर को सो गयी. दोनों उठे तो सवा दो बजे थे, तैयार होकर बाहर घूमने निकले, सोचा टैटिंग का कोई नया डिजाइन लेगी अपनी मित्र से, पर धागा खत्म हो गया था. असमिया मित्र के यहाँ गयी जिसका बेटा नन्हें से मात्र एक माह बड़ा है. वापस आयी तो देखा एक पैकेट पड़ा है, सोचा कोई सब्जी रख गया होगा शायद उनका ही माली. पर आये हैं शक्करपारे और नमकीन, पता नहीं कौन रख गया है. जून और वह अपने सभी परिचितों के नाम गिन चुके हैं. किसी के भी इस तरह का पैकेट रख जाने की सम्भावना नहीं दिखती. 
क्रमशः

नदी तट पर पिकनिक



उसने बहुत दिनों बाद एक पत्र लिखा, उनकी शादी की सालगिरह थी, जून रोज की तरह ऑफिस गए थे. सोचा कुछ तो अलग होना चाहिए, मन में उथल-पुथल मची थी कि ऐसा कुछ लिखे जिससे उसके दिल का हाल वह जान ले. समय कितना जल्दी बीत जाता है, अभी उस दिन की ही तो बात है जब अपने कमरे में बैठकर वह उसका पत्र पढ़ रही थी. और अब तो वह सदा के लिये यहाँ आ गयी है, और उसके बाद आया नन्हा, उनका छोटा सा परिवार बना. उसे लगता है बचपन में वह भी इतना ही प्यारा लगता होगा, गोलमटोल, गोरा-गोरा और गुदगुदा. उसे हँसी आयी कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है मन, उसे याद आये शुरू के दिन उनकी बातें ही खत्म नहीं होती थीं. फिर कुछ दिनों के लिये वे अलग हुए थे वह कितना याद करती थी उसे. उसने सोचा कि वह रोज उसे जल्दी उठने के लिये  कहती है, व्यायाम करने के लिये कहती है, इतवार की सुबह नाश्ते के बाद जब वह फिर से सो जाता है तो टोकती है, साहित्य में रूचि जगाने के लिए कहती है, किताब पढ़ने को कहती है, यह सब पत्र में अच्छी तरह समझा कर लिखा.
आज जून कुछ देर से गया है सांध्य भ्रमण पर, पर माहौल वही है. शाम घिर आयी है, नन्हा सो रहा है, किसी किसी दिन वह खूब सोता है जैसे आज सुबह उठने का नाम ही नहीं ले रहा था, उसे
उठाना पड़ा. पेड़ों की पत्तियाँ देखकर कितना खुश होता है वह. आज सुबह वह कुछ लिखने का प्रयास कर रही थी कुछ लाइनें ही लिख पाई. पंजाब के बारे में रोज वही समाचार सुनते हैं, पढ़ते हैं, हत्या, आतंकवाद ने किस तरह अपने शिकंजे में जकड़ लिया है पंजाब प्रान्त को. क्या सोचते होंगे वहाँ के वासी. उसे अलका की याद हो आयी, उसकी मित्र तथा दीदी की भतीजी जिसकी शादी पंजाब में हुई है. उसने सोचा दीदी से कहकर उसका पता मंगवाएगी पंजाब के कुछ दूसरे समाचार तो जानने को मिलेंगे.
आज नेता जी की ९०वीं जयंती है, कुछ माह पूर्व उसने दो खंडों में एक पुस्तक पढ़ी थी, ‘मैं सुभाष बोल रहा हूँ’, पहली बार मालूम हुआ था कि नेता जी ने वास्तव में कितने साहस के साथ एक महान कार्य का बीड़ा उठाया था. जून आज तिनसुकिया गया है, वह नन्हें के साथ एक सखी के यहाँ गयी थी, वह पूरा एक घंटा चुपचाप खेलता रहा जरा भी परेशान नहीं हुआ. जून ने बताया है कि अगले महीने उसके विभाग के सभी लोग परिवार सहित पिकनिक पर जायेंगे, वे भी जायेंगे किसी नदी तट पर.

Monday, July 9, 2012

नए वर्ष में


नया वर्ष आया और पांच सूरज दिखा भी गया, आज छह तारीख है, दोपहर को सोयी नहीं आज, कितने सारे काम हो गए. कपड़े प्रेस किये, साड़ी को फाल लगायी और अब सोच रही है कि शाम को  नाश्ते में कुछ ऐसा बनाये जो पहले कभी न बनाया हो. नन्हा खेल कर थक कर सो गया है.

दिन की शुरुआत सामान्य ढंग से, मौसम अच्छा था, कल दिन भर छाए बादलों की तुलना में बिल्कुल उल्टा यानि धूप निकली थी. दोपहर का खाना उसने अकेले ही खाया, जून अपने साथ किन्हीं मित्र को लाए थे, उनके जाने के बाद वह नन्हें को सुलाने का प्रयत्न कर रही थी कि पास में रहने वाली एक नवविवाहिता परिचिता आ गयी, उसके ही शहर की रहने वाली है, शायद छोटी बहन के साथ पढ़ी भी हो. पूरी दोपहर उसी के साथ बातें करते बीती, नन्हा खेलने में मग्न हो गया. अब बैठने भी लगा है, कुछ महीनों में चलना भी सीख जायेगा और फिर बोलना भी. उसके जाने के बाद ही सोया. जून के आने पर भी वह सो रहा था. वह घूमने गए हैं. घर से पत्र आया है, छोटा भाई जयपुर चला गया है. पिता जी का भी तबादला पुराने शहर हो गया है.

मौसम आज भी खुशगवार, दोपहर पूर्व सोनू को लेकर पार्क में गयी तो धूप बहुत तेज थी. लौटते समय उसकी समान उम्र के दो बच्चों से मिली, रिक्की के सर में दायीं ओर चोट लग गयी है, ऊपर से पता नहीं चलता अंदरूनी चोट है उसकी माँ ने बताया, नन्हा भी दो-तीन बार गिर चुका है, उसका ख्याल रखना होगा, उसने मन में तय किया.   
क्रमशः

Saturday, July 7, 2012

घड़ी का अलार्म


अभी-अभी वे लोग घर वापस आये हैं, इतवार की अलसाई सी दोपहरी है. गए थे किसी परिचित के घर, पर वे भी शायद इसी तरह कहीं निकले हुए थे, थोड़ा सा घूमघाम कर वापस आ गए. नन्हा रास्ते में ही सो गया था. जून सोने जा रहे हैं. नूना को कोई काम नजर नहीं आ रहा था, सोचा डायरी ही लिखे. आज ठंड भी ज्यादा नहीं है. कौवे की आवाज बार-बार आ रही है और शायद कोई नल भी ठीक से बंद नहीं हुआ है पानी टपकने की आवाज भी रह रह कर आ रही है. और सब शांत है उसके मन की तरह. कोई उद्वेग नहीं, कोई हिलोर नहीं. सोया हुआ कितना अच्छा लगता है मानव, उसने दोनों को सुख की नींद सोये हुए देखा. कल उसके सर में दर्द था, लगभग हर माह ऐसा होता है. आज वह ठीक है. ज्यादा काम जून ने ही किया. महरी भी छुट्टी पर है, ठंड भी कल ज्यादा थी, सूर्य के दर्शन तो आज हुए हैं, आज भी धूप आंखमिचौली खेल रही थी. यहाँ घर पर धूप बस दो बजे तक ही रहती है, उसके बाद न आगे न पीछे. दिसम्बर का एक दिन और शेष है फिर आरम्भ होगा नया वर्ष.

वर्ष का अंतिम दिन. मौसम अच्छा है, धूप कितनी सुहा रही है, कच्ची और गुनगुनी धूप. सोनू नींद में कुनमुना कर फिर सो गया है. आज से एक सप्ताह के लिये क्लब में कार्यक्रम है पर वे नन्हें के साथ बहुत देर नहीं रुक सकते वहाँ. जून आज पहले अर्ध में दफ्तर नहीं गया, वर्ष के अंत में सभी बची-खुची छुट्टियाँ खत्म करते हैं. उनकी घड़ी में अलार्म नहीं है सो नींद भी आज छह बजे के बाद खुली. कल नए वर्ष के तीन गुलाबों वाले कार्ड मिले. धूप फिर चली गयी है सो बाहर बैठने से कोई लाभ नहीं वह उठकर अंदर चली गयी.

Friday, July 6, 2012

दाल का पानी


नन्हा देर से सोया है सो अभी तक जगा नहीं है, नूना के मन का अश्व विचारों की धूल उड़ाता जा रहा है. उसे समझ में नही आता क्या उचित है क्या अनुचित, सब कुछ जैसे अपने आप हो रहा है, उनका कोई अधिकार ही नहीं, वे पर चले जा रहे हैं बस यूँ ही... जैसे बहे जा रहे हों नदी की धारा में. वह पल भर भी बैठ कर सोच नहीं पाती कि क्या करना चाहिए. क्या थे वे और क्या  हो गए हैं, कोई व्यवस्था नहीं रह गयी है. वर्ष समाप्त होने को आया है. अगले महीने उनके विवाह की वर्षगाँठ है, पिछले वर्ष उसने जून से कहा था कि बहुत अच्छी तरह मनाएंगे वे यह दिन पर अब उसे लगता है कि किसी को भी नहीं बुला पाएंगे. मन में बातें उठती ही चली जाती हैं बिन बुलाए मेहमान की तरह या फिर बिन बुलाई नदी की बाढ़ की तरह. उसने सोचा आज दोपहर वह सोयेगी नहीं, बस चुपचाप बैठकर सोचेगी कुछ. आज धूप तेज है मन होता है बाहर धूप में बैठे थोड़ी देर, उसने सोचा जून भी आने वाले होंगे.

कल क्रिसमस है, बचपन में सभी त्योहारों को मनाने का कितना चाव होता है. वे क्रिसमस ट्री सजाया करते थे, और दिन भर यीशू के गीत गाते थे. आज इस समय वह जो डायरी लेकर बैठी है उसका कारण वही यादें हैं. अभी सुबह ही है सोनू खेल रहा है बीच-बीच में शोर मचाता है. रेडियो सीलोन से बौद्ध संदेश सुनाया जा रहा है पर उसे कुछ भी समझ में नहीं अ रहा है. क्योंकि उनका ट्रांजिस्टर थोड़ा अस्वस्थ है. नन्हा अब करवट लेकर सोने लगा है, बड़ा हो रहा है. मैच आरम्भ हो गया है भारत और श्रीलंका के मध्य. उसने खाना तो बना लिया है पर स्नान नहीं किया महरी कपड़े धो रही है. रोज सुबह का वही क्रम है ऐसे जाने कितने दिन गुजर गए और कितने और गुजर जायेंगे. एक दिन वे सोचेंगे कि सारा जीवन बीत गया इसी उहापोह में, कुछ तो किया ही नहीं. सचमुच सिर्फ अपने तन-मन की चिंता ही व्यस्त रखती है हर पल. और कुछ कहाँ सोच पाते हैं, यह जो दुनिया में इतनी बातें होती हैं उन्हें  पता ही नहीं चलता. कितना दुःख है दुनिया में पर साथ में कितनी खुशी भी तो है कहाँ मिलती है उन्हें उसकी झलक भी ज्यादा. हाँ, अपने में व्यस्त तो वे खुश हैं बेहद खुश. जून, नूना और नन्हा बस तीन प्राणी, छोटा सा संसार है उनका. उसे ध्यान आया दाल उतारनी है कहीं कुकर में पानी खत्म ही न हो जाये. 
क्रमशः

खेल-खिलौने


कल जून के साथ एक छोटी सी दुर्घटना घट गयी, उसकी बाइक मोड़ते समय फिसल गयी. जल्दी आ गए थे वे, नूना उस समय बाहर वाले कमरे में कपड़े प्रेस कर रही थी. नन्हा पास ही खेल रहा था कि देखा उसके दायें बाजू में पट्टी बंधी है, पर उसने कहा मामूली खरोंच है और उसके बाद आज सुबह तक रोज की तरह सभी कार्य किये. कल तक तो वे बिल्कुल ठीक हो जायेंगे. कल घर से चिट्ठी आयी, सबसे मीठी चिट्ठी माँ का होती है, अब उनकी यात्रा में केवल पांच दिन रह गए हैं.

लगभग एक माह पश्चात उसने पुनः डायरी खोली है. कुछ दिन यात्रा में निकल गए कुछ उसकी तैयारी में फिर वापस आकर पुनः घर सहेजने में. नन्हा आज पांच माह का हो गया उसे ट्रिपल एंटीजन व पोलियो की तीसरी खुराक देने आज अस्पताल ले गए थे. सुबह जब वापस आया तो ठीक था पर दोपहर से ही बेहद परेशान है. पहली बार इतना रोया है. जून उसे इस हालत में छोड़कर ऑफिस भी नहीं जाना चाहते थे. इस समय सोया है. जो भी घर में आता है उसे देखकर बहुत खुश होता है. सभी के बुलाने पर हंस देता है, अपनी प्यारी सी हँसी. उसे कुछ होता है तो वे दोनों कितने परेशान हो जाते हैं. लगता है उसका पेट भी ठीक नहीं है. कल परसों उसे आलू खिलाया था व बिस्किट भी, शायद इसी का असर होगा, अभी तक तो वह सिर्फ दूध व सेरेलक पर था.

आज नन्हा ठीक है, कल रात वह कई बार उठा पर जल्दी ही सो जाता था. इस समय पेट के बल लेट कर सामने पड़े खिलौने को पकड़ने की कोशिश कर रहा है, इस तरह लेटने से वह जल्दी ही थक जाता है. अब वह सीधा होकर सर्वोत्तम से छीना-झपटी कर रहा है, पढ़ने का या कुछ भी करने का उसका एक ही तरीका है, वस्तु को सीधे मुँह में ले जाना ऐसा न कर पाने पर शोर मचा कर गुस्सा दिखाता है. सोया रहे तो उठते ही खिलौना उठा लेता है. वे यदि दूसरे कमरे में हुए तो उसके खिलौने की आवाज से ही समझ जाते हैं कि वह उठ गया है.
क्रमशः

Wednesday, July 4, 2012

असम बंद


नवम्बर का आरम्भ हो चुका है. दीवाली का उत्सव आया और उन्हें हँसा कर चला भी गया. कितने कितने दिन बीत जाते हैं कुछ पढ़ाई लिखाई किये बिना, यदि वह सचमुच चाहे तो रोज ही ऐसा कर सकती है. कभी वक्त सचमुच फिसल जाता है, कभी याद नहीं रहता और कभी आलस्य वश.. दिन बीतते जा रहे हैं, कुछ दिनों में नन्हा चार महीने का हो जायेगा. इसी माह उन्हें घर जाना है. मौसम में बदलाव तो आया है पर अभी भी दिन में धूप तेज होती है, रातें ठंडी हो गई हैं. सोनू जग गया है और बड़ी-बड़ी आँखें कर इधर उधर कुछ देख रहा है. सुबह-सुबह उसकी मालिश और स्नान का नियम अभी तक तो टूटा नहीं है, जब ठंड बढ़ जायेगी तो सम्भवतः सोचना पड़ेगा.

आज असम बंद है. जून का ऑफिस भी बंद है. न कोई कार्यालय खुला है न कोई सवारी चल रही है. मोटरसाइकिल, कार सब बंद है. उन्हें नन्हें को लेकर अस्पताल जाना था आज ही उसे दूसरा ट्रिपल एंटीजन का इंजेक्शन लगना था और पोलियो ड्रॉप्स भी दिलवानी थी. सुबह से जून इसके लिये प्रयत्न कर रहा था और आखिर वह उसे स्कूटर पर ले ही गया. सुबह जल्दी उठे थे वे. रात को हुई वर्षा के कारण बाहर सभी कुछ धुला-धुला था, लॉन, पेड़-पौधे, आकाश सभी कुछ. कल छोटे फूफा जी का पत्र आया. कुछ दिन बाद वे घर जायेंगे तो सबसे मिलेंगे. सोनू से सब पहली बार मिलेंगे. आज कल कुछ लिखने के लिये डायरी उठाने पर उसे समझ नहीं आता कि क्या लिखे, कोई अच्छी सी बात मन में आती ही नहीं क्योंकि पढ़ना छूट गया है. विचार से विचार जन्मते हैं.

Tuesday, July 3, 2012

पटाखों की गूंज


जब भी पिछले दिनों उसने सोचा कि कुछ लिखे या पढ़े, नन्हें मियां ने आवाज दे दी, अब उसके जगते हुए ही वह लिख रही है, अभी तो चुपचाप खेल रहा है, पर पता नहीं कब ऊँ ऊँ आ आ शुरू कर दे, और चाहे कि उसके साथ बातें करो. मौसम ठंडा हो गया है. सर्दियाँ आ ही गयी हैं. उसने सोचा कि उसके लिये एक और स्वेटर तो बना ही लेना था अब तक. हो सकता है आज कल में माँ का भेजा पार्सल मिल ही जाये.
जून लाइब्रेरी गए हैं और नन्हा सो रहा है यानि नूना फुरसत में है, ऐसे पल कहाँ मिलते हैं आजकल तभी तो आज उसने आठ खत लिखे. वैसे छह बज चुके हैं किसी भी क्षण वह आ जायेंगे. नन्हें के लिये कितने सुंदर स्वेटर भेजे हैं माँ ने, उसकी आँख की समस्या ज्यों की त्यों है अब घर जाने पर ही उसका इलाज होगा.
परसों दीवाली है ज्योति उत्सव, और कल है भारत की प्रिय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की पुण्य तिथि. उन्हें इस दुनिया से विदा हुए कितना समय बीत गया है पर उनकी स्मृति अभी भी ताजा है. जून का परीक्षाफल अच्छा रहा वह एक ग्रेड ऊपर चढ़ गये हैं. आज बहुत दिनों बाद इसी खुशी में नूना ने पूरा खाना बनाया है. उसके आने से पहले मेज सजा कर रखी है. नन्हे को भी शायद आभास हो गया कि माँ व्यस्त है वह आराम से सोया. कल उसे लेकर वे अपने दो मित्र परिवारों के यहाँ गए, उसने गुलाबी स्वेटर पहनाया था, बहुत खिल रहा था उस पर. जून ने उसके कितने फोटो खींचे हैं, जब बन कर आएँगे कितना अच्छा लगेगा. दीवाली के दिन वह नूना के भी खींचने वाला है. यदा-कदा  पटाखे कई दिनों से बजने लगे हैं, उनकी आवाज से सोया हुआ छोटू चौंक जाता है.   

Sunday, July 1, 2012

प्याज के पकौड़े


चार बज गए हैं, जून अभी तक नहीं आये हैं, कोई काम होगा नहीं तो...दोपहर को आये थे एक बार सामान रखने. नूना दस-पन्द्रह मिनट बाहर बरामदे में खड़ी होकर उनकी राह देख रही थी फिर सोचा इतने समय में कुछ लिख लिया जाये. कितने-कितने दिन निकल जाते हैं हाथ में कलम उठाये. क्या यह वही है जो लेखिका बनने का स्वप्न देखा करती थी. आज उसकी चचेरी बहन का जन्म दिन है पहले याद आया होता तो कार्ड जरूर भेजती और पत्र भी भेजती. उसे याद आया कि इस हफ्ते कोई खत भी नहीं आया है. आज उनका घर फिर से साफ और सुंदर दिख रहा है कल दोनों ने मिलकर सफाई की थी पहले के दिनों की तरह, जब उनकी नई-नई शादी हुई थी. आजकल कितनी जल्दी अँधेरा हो जाता है, जून को पता है कि शाम को नन्हें को घुमाना भी है, वह और तेजी से उसका इंतजार करने लगी. जैसे कि इस तरह वह जल्दी आ जायेंगे. अगले महीने ननद की शादी है पर अभी तक वे निश्चय नहीं कर पाए हैं कि इतने छोटे बच्चे के साथ इतना लम्बा सफर वे कैसे करेंगे, जून के अकेले जाने पर भी तो सभी को निराशा होगी...

उस शाम अचानक बदली घिर आयी थी. कहीं जाने का सवाल ही नहीं था, जून को प्याज के पकौड़े बनाने का जोश सवार हो गया. पहले बोले प्याज कम है, प्याज और डाला तो बेसन कम हो गया, फिर बेसन ज्यादा हो गया तो पानी और डाला. और फिर इतने सारे ...पर बेहद कुरमुरे पकौड़े बने थे. रात का भोजन वैसे ही पड़ा रहा उन्हीं से काम चल गया.