Thursday, July 12, 2012

जाने भी दो यारों


कल वह आगे नहीं लिख पायी, नन्हा उठ गया फिर सारी शाम उसके साथ ही बीती. आज बापू की पुण्यतिथि है, कभी विचारों में बहुत निकट लगते थे, आत्मीय हों जैसे, आजकल तो याद भी करती है तो सिर्फ दो अक्तूबर और तीस जनवरी को. टीवी पर युवामंच में एक कार्यक्रम हुआ था, ‘युवा पीढ़ी और गाँधी’. अच्छा लगा था उस दिन एक युवा, संजना के विचार सुनकर. गांधीजी की आत्मकथा फिर से पढ़नी चाहिए. आज वह गयी थी अपनी दक्षिण भारतीय सखी के यहाँ, वही कल रखकर गयी थी वह पैकेट, उसने घर पर बनायी थीं दोनों चीजें.
कल माह का अंतिम दिन था, एक माह कैसे बीत गया पता ही नहीं चला, समय तो अपनी चाल से ही चलता है. रात को कुंदन शाह की फिल्म देखी, ‘धुंधले साये’ वही जिनकी “जाने भी दो यारों” देखकर कितना हँसे थे वे. आज से उसने नयी महरी को रखा है, पुरानी का नाम मिनी है, जो थोड़ा गर्म दिमाग की है, देखें कल वह क्या कहती है.
कल जून देर से गए सांध्य भ्रमण को, नन्हा उठ गया सो वह कुछ नहीं लिख पायी. वक्त तो सुबह भी था, दोपहर को भी, धर्मयुग पढ़ती रही, इण्डिया टूडे तो अभी पढ़ना आरम्भ ही नही किया और लाइब्रेरी से भी जून उसके लिये दो किताबें लाए थे. सोनू अब अपने आप वाकर में घूमता है, कभी कभी इतनी तेजी से पूरे कमरे में चक्कर लगाता है और किलकारी भरता है, कि उन्हें डर लगता है, पर वह पल भर में पास से गुजर जाता है.
आज दिन भर धूप आती-जाती रही, ज्यादा समय बादलों की चली. इस समय भी बदली बनी है सो शाम कुछ ठंडी हो गयी है. उसकी आँखों में विशेषतया बायीं आँख में हल्का दर्द है, और दायीं ओर सर में भी थोड़ा, जून कहकर गए हैं कि सो जाये वह चुपचाप, पर वह जानती है नींद कहाँ आयेगी...हाँ यूहीं चुपचाप लेटा जा सकता है, ऐसा मौका कम ही मिलता है शामों को कि अपने आप से मिला जा सके. 
आज तीन पत्र आये, वे हर हफ्ते दोनों घरों पर व हर महीने अन्य सभी को पत्र लिखते आये हैं, हर हफ्ते किसी न किसी का पत्र आता ही है, और सबकी खबर लाता है. कुछ देर पहले वे तीनों घर के बाहर ही कुछ देर टहलते रहे, पश्चिम में आकाश गुलाबी था, और उनके सिर के ऊपर नीला आकाश और रुई के फाहों से सफेद बादल. नन्हा सात माह का हो गया, आज वह देदे, देदे तुतलाकर बार-बार  बोलने की कोशिश करता रहा. उसकी हरकतें देख देख कर वे खूब हँसे.  

क्रमशः

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