Friday, September 16, 2016

समय की धारा


आज नेट पर ‘सुदर्शन क्रिया’ एक नया पेज देखा फेसबुक पर, उसमें कई सुंदर भजन व प्रवचन भी हैं. पहले सुनती-पढ़ती थी कि बच्चों को नेट का, कम्प्यूटर का व्यसन हो जाता है, शायद उसे भी ऐसा ही होने लगा है. अभी सचेत हो जाना ठीक होगा, अब सप्ताह में एक या दो दिन से ज्यादा नेट पर नहीं बैठेगी. ध्यान में मन टिकता नहीं, एक अजीब सी हालत मन की होती जा रही है, साधक को कहीं भी अटकना नहीं चाहिए, अति हर चीज की बुरी होती है. दोपहर को टीवी देखा, सचमुच इडियट बॉक्स है, एक ‘हॉरर शो’ आने वाला है, उसका विज्ञापन दिखाया जा रहा है, सबको पता है नाटक है, लेकिन फिर भी सभी वास्तविक मानकर देखेंगे. ऐसी ही है यह दुनिया. दिल्ली में कॉमनवेल्थ खेल होने वाले हैं, पता नहीं क्या होगा. अयोध्या का मामला भी अटका हुआ है. बारिश है रुकने का नाम नहीं ले रही. नन्हे की कम्पनी का काम भी ‘एसएमएस’ बैन के चलते रुक गया है.

कल रात पिताजी का स्वास्थ्य ज्यादा बिगड़ गया, अस्पताल ले जाकर इंजेक्शन लगवाया. आज बेहतर है. बुढ़ापे का रोग है, समय लगेगा ठीक होने में. कोई जब तक समर्थ है तभी तक जो करने योग्य है कर लेना होगा. जीवन की संध्या जब आती है, समय कब हाथ से रेत की तरह फिसल जाता है पता ही नहीं चलता. कल रात भर और आज सुबह भी बहुत वर्षा हुई. इस वर्ष रिकार्ड वर्षा हुई है. दीदी ने स्वामी विवेकानन्द की बात लिखी है. उनका सत्य उनके काम आया होगा पर यह सत्य जब किसी के भीतर से निकलेगा तभी उसके मार्ग को प्रकाशित करेगा.

दीदी ने पूछा है, उसने वह कविता ‘तुम’ किस भाव दशा में लिखी – तुम हर पल मुझे बुलाते हो !

कल ‘आवाज’ में अपनी कविता व संस्मरण पढ़कर अच्छा लगा, सम्भवतः बहन-भाइयों में किसी और की भी नजर जाये ! कल लताजी का जन्मदिन है और छोटी भतीजी का भी. उसने सोचा इस बार उनके लिए भी कविता लिखेगी. आज उसे इस बात का फिर आभास हुआ कि उसकी वाणी कठोर है. दरअसल वह अपने चारों और एक दीवार बना लेती है वाणी की कठोरता से कि कोई उसके ज्यादा निकट न आ जाये क्योंकि वहाँ कोई है ही नहीं. अभी पिताजी दोनों ननदों के आने की बात करने आए. उसने कहा, आना उन्हें है, टिकट वे अपनी सुविधा से ही करवाएँगे न कि आपके कहने से. बात सही थी पर कहने का ढंग अलग भी हो सकता था. वह भोजन बना रही थी, कहने आये उनके लिए सब्जी में चने कूट देने होंगे, आज से पूर्व कभी नहीं कहा था, उनके दातों की समस्या हल नहीं हो पायी है. माँ एक ही मुद्रा में घंटों कुर्सी पर बैठी रहती हैं, कहने पर भी नहीं उठतीं.


जून पिताजी को लेकर डिब्रूगढ़ गये हैं. घर में रंगरोगन का काम चल रहा है. बाहर तेज धूप है, गद्दे बाहर ही डाल दिए हैं. एक ही दिन में कमरा व गुसलखाना दोनों हो जायेंगे, हो ही जाने चाहियें. कल रात को समाचार मिला बंगाली सखी के पिता जी का देहांत हो गया है, काफी दिनों से अस्वस्थ थे, कई तरह के डर समा गये थे उनके मन में. मानव स्वर्ग-नर्क सब इसी धरती पर भोग लेता है. दीदी का मेल आया है, उन्हें ‘तुम’ के जवाब में ‘वह’, ‘मैं कौन हूँ’ तथा ‘जीवन’ पढ़कर अपने सवाल का जवाब मिल गया. आज धूप का अहसास हो रहा है क्योंकि घर में मजदूर काम कर रहे हैं और वे आराम से एसी चलाकर नहीं सो गये हैं, लोग जो रोज ही धूप में काम करते हैं, कितना सहते होंगे, या अभ्यस्त हो गये होंगे.   

2 comments:

  1. व्यसन की भली कही. हालाँकि मैं चेतन भगत को पसंद नहीं करता, किन्तु मेरी बेटी के स्कूल में उसने जो बात कही टीवी के व्यसन की वह अच्छी लगी. उसने कहा कि जब हम किताबों में कहानियाँ पढते थे तो जो भी विवरण दिया होता था उसे अपनी कल्पना में देखने की कोशिश करते थे. लेकिन टीवी पर सभी कुछ दिखाए जाने से हमारे बच्चों की कल्पनाशीलता समाप्त हो गयी है. मुझे सिनेमा का व्यसन है.
    पिताजी का स्वास्थय सुधर गया इस बात की खुशी. और वाणी की कठोरता के विषय में जो कहा वो बिलकुल सही है.

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  2. स्वागत व आभार ! वाकई किताबें जादुई होती हैं..उनके साथ मन जाने किस लोक में नहीं पहुंच जाता

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