Monday, September 5, 2016

मेलुहा के मृत्युंजय


परसों राखी है, क्यों न राखी पर एक और भी कविता लिखे, छोटी सी पर प्रेम भरी...

रंगबिरंगी
छूती दिल को
जाने कितने भाव समेटे
सजाती हैं कलाइयाँ
मनमोहक राखियाँ

दूर-दूर सफर तय करतीं
मीलों की दूरी को हरतीं
यादों के तारों को बुनतीं
मस्तक पर तिलक लगाए
सजाती हैं कलाइयाँ
मनमोहक राखियाँ

चमचम गोटे तारों वाली
सलमे और सितारों वाली
रेशम के धागों से बनी हैं
चमकीली मोती, माणिक से
सजाती हैं कलाइयाँ
मनमोहक राखियाँ

आज सुबह नींद खुली तो छह बजकर दस मिनट हो गये थे. रात को देर से सोई, सम्भवतः एक बजे..नन्हे ने जो किताब भेजी है The Immortal of Mehula, बहुत रोचक है, देर तक पढ़ती रही. सुबह घर की सफाई का काम पिताजी के साथ मिलकर किया, माँ दर्शक बनकर चुपचाप देखती रहती हैं, किसी काम में हाथ नहीं बंटाती, उनकी चेतना किसी और ही तल पर रहती है. शाम को क्लब जाना है और कल मृणाल ज्योति, वहाँ राखी का उत्सव मनाने. लेडीज क्लब का वार्षिक समारोह आने वाला है, उसके लिए थीम मांगी है. उसे तो एक ही शब्द याद आता है – निर्वाण NIRVANA, N - naturalness, I - intuition, R - rest, V - vitality, A - awareness, N - novelty, A – amazement. ज्ञान, करुना, समन्वय, स्थिरता और आनन्द का प्रदाता, जहाँ न कोई दुःख है न चिंता, केवल आनंद, मुक्ति सुख और शांति ! संतोष और जागरण का कालातीत अनुभव. निर्वाण और संसार दो नहीं हैं, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. संसार समस्या है तो निर्वाण समाधान है, सीमाहीन, अनंत आकाश की तरह मुक्त मन ही निर्वाण है. सतरंगी इन्द्रधनुष की तरह यह प्रेम, आनंद, सुख, पवित्रता, ज्ञान, शांति, ऊर्जा और ज्ञान के सप्तरंगों से बुना है.

 It is alluring! Untouched and virgin, pure state of mind. It is ultimate a human can feel. It is fullness of heart! It is unconditioned love! It is immense gratitude and great fullness! It is rejoicing in self without any conflict! Reposing in oneself without any sorrow! It is stilling, cooling and peace of mind. It is the highest happiness enduring happiness attained through knowledge rather than the happiness derived through impermanent things.


2 comments:

  1. राखी की कविता एक नए भाव लिये है और बहुत प्रभावी है. "मेलुहा के मृत्युंजय" के तीनों खंड मैं एक ही साँस में पढ़ गया था. सचमुच बहुत ही गहरे शोध के बाद बाँध लेने वाली शैली में लिखी गयी है यह शिवत्रयी.
    अभी पढ़ रहा हूँ "इक्ष्वाकु के वंशज"...
    निर्वाण की व्याख्या अच्छी लगी!

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  2. स्वागत व आभार सलिल जी !

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