पिछले
पांच दिनों से डायरी नहीं खोली. आजकल कितनी ही पंक्तियाँ सहज ही मन में आती हैं पर
उस वक्त लिखने की सुविधा नहीं होती, बाद में भूल जाती हैं..पर उस क्षण तो वह
स्वान्तः सुखाय कुछ रच ही लेती है ! परसों कुछ पंक्तियाँ मन में आ रही थीं-
जीवन
एक मौका है
बीज
से वृक्ष बनने का
बूंद
से सागर और कली से पुष्प
होने
का..
मिटना
होगा बीज को इस प्रयास में
खोना
ही होगा अपना आप बूंद और कली को भी
चूक
जाते हैं हम इसी मोड़ पर
‘हमीं’
बनकर पाना चाहते हैं
आकाश
की ऊँचाइया
बने
रहकर पूर्ववत्
पा
सकेंगे क्योंकर
वृक्ष
सी विशालता, गहराई सागर सी
सौन्दर्य
फूल का..स्वयं बने रहकर
छोड़
दें ‘हम’ होने का लोभ
हो
जाएँ रिक्त अपने आप से
तो
भीतर जो अनछुआ बीज है
वह
पनपेगा..
बूंद
बह चलेगी सरिता बनकर
सागर
की तलाश में
और
सुप्त कलिका स्वप्न देखेगी प्रस्फुटन का..
पिछले
तीन दिन फिर यूँ ही निकल गये और डायरी नहीं खोली. अभी दीदी का ब्लॉग देखा, उनका
ब्लॉग पहली बार इतने लोगों ने पढ़ा, जीजाजी भी प्रसन्न होंगे, दीदी इतना अच्छा लिख
रही हैं. पंजाबी दीदी का भी जवाब आया है, वह सदा ही तारीफ करती हैं उसकी कविता की.
जून आज फिर पिताजी को अस्पताल ले गये, कुछ दिनों से उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है, उन्हें
कुछ दिन दवा लेनी होगी. माँ का हाल वही है, उन्हें आजकल दिन में लेटना जरा नहीं
भाता, बैठे-बैठे थक जाती होंगी पर कहने पर भी लेटना नहीं चाहतीं. आज उनके पड़ोसी जो
‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ के टीचर भी हैं, ‘मृणाल
ज्योति’
गये हैं, वह अध्यापिकाओं को ध्यान, प्राणायाम आदि के बारे में कुछ बतायेंगे.
सद्गुरु भी यही चाहते हैं. आज सुबह ध्यान में उनकी आवाज सुनी, जो उसकी स्मृति में
सुरक्षित है, अर्थात यह मन का ही खेल है. लेकिन प्रकाश के वे स्तम्भ तो मन का खेल
नहीं हो सकते, उनकी उपस्थिति को वह बिलकुल स्पष्ट अनुभव करती रही है. परमात्मा और
गुरू में कोई भेद नहीं है, वह सर्वव्यापी चेतना एक ही है, वह सदा उनके साथ है. इस
अनुभव के बाद अब लौटना नहीं होगा. कल शाम को कुछ पलों के लिए मन विचलित हुआ पर वह
ऊर्जा का अपव्यय ही था जैसे दर्पण में कोई प्रतिबिम्ब ठहरता नहीं है वैसे ही आत्मा
में कोई भाव टिकता नहीं है. वह जैसे पहले थी वैसे ही हो जाती है, केवल मन स्वयं को
उसमें देख लेता है. मन ने देखा कि उसे निंदा नहीं भाती, स्तुति भाती है. उन्हें
दोनों के पार जाना होगा, एक चाहिए तो दूसरा मिलेगा ही. उनका फोन खराब हो गया है,
एक तरह से तो शांति है पर साथ ही अशांति भी है क्योंकि वे भी फोन नहीं कर पा रहे
हैं, यहाँ सब कुछ जोड़े में मिलता है, मन का नाम ही द्वंद्व है. शुद्ध, निर्विकार,
अचिन्त्य आत्मा सदा एकरस, आनंद से पूर्ण है, शक्तिसंपन्नदृष्टि आता है दीदी को अवश्य उसकी बात समझ में आई होगी. कल
नन्हे से बात नहीं हुई, वह व्यस्त है आजकल.
सुन्दर ।
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