Friday, September 9, 2016

सागर में नदियाँ


आज उसे अनुभव हुआ भीतर एक ज्वाला है जिसमें निरंतर हवन चल रहा है, कामनाओं की समिधा पड़ रही है, विचारों का धूना जल रहा है और हृदय ही वह हवन कुंड है जिसमें से प्रेम की सुगंधि चारों ओर फ़ैल रही है. भगवद गीता में कृष्ण कहते हैं ज्ञानी का हृदय सागर की तरह होता है, जिसमें चारों और से नदियाँ आकर गिरती हैं. वह अपनी मर्यादा नहीं छोड़ता. सत्व, रज और तम तीनों गुण उसके उर में समा जाते हैं. प्रकाश, प्रवृत्ति और मोह तीनों का आगमन उसे मोहित नहीं करता. उसका हृदय उस भूमि की तरह होता है जहाँ सारा कूड़ा-करकट आकर खाद बन जाता है और फूल उगाता है..सुगन्धि फैलाता है, उस आकाश की तरह होता है जहाँ बादल, कुहरा, गर्जन-तर्जन, बिजली, वर्षा, ओले, सूरज सब होते हैं पर वह ज्यों का त्यों रहता है..तपता नहीं, गलता नहीं..अग्नि की तरह होता है जिसमें सारे विकार आकर जल जाते हैं और..उस जल की तरह जो सब कुछ पावन कर देता है..आज जून आने वाले हैं परसों छुट्टी है कृष्ण जन्माष्टमी की..पंजाबी दीदी को कविता भेजेगी !

कल शाम और फिर रात्रि से ही कुछ छूट गया सा लगता है, जो खो जाये वह था ही नहीं, पर जो एक बार मिले और कभी न खोये ऐसा भी कहीं होता है यह तो अनंत यात्रा है और अनंत अनुभवों से भरी. प्रकाश, प्रवृत्ति और और मोह तीनों के अनुभव होते ही रहेंगे. कल शाम वे मार्केट गये, छोटी ननद ने जो सूट भेजा, उसे सिलने दिया. अब उसकी कलम आगे बढने से इंकार कर रही है. संस्कार कितने गहरे होते हैं और मन कितना बलशाली..बुद्धि की, ज्ञान की, विवेक की वहाँ एक नहीं चलती. इस संस्कार को मिटना ही होगा, वह यदि इस क्षण निर्णय कर ले तो कौन है जो रोकेगा. उसका ही अंतर्मन, अवचेतन मन, अचेतन मन, पूर्व जन्म की स्मृतियाँ..लेकिन आत्मा ही एकमात्र सत्य है, ये सब अनित्य हैं, आत्मा के सातों गुणों को भीतर धारण करे तो सारा नकार क्षण भर में बह जायेगा. सद्गुरू की वाणी को याद करे तो जो वह हैं वही वह है, वही यह सारा जगत है, एक ही तत्व से यह सारा संसार बना है, प्रेम का जितना विस्तार हो उतना अच्छा है..सारा जगत उनका अपना हो जाये, प्रेम ही आत्मा में ले जाता है, प्रेम ही बहता हुआ दरिया है..प्रेम को रोका तो वह सड़ेगा...दुर्गन्ध देगा. सहज होकर सभी को स्वीकारना है तभी मुक्ति है. स्वयं को मुक्त करके वे औरों को भी मुक्त कर देते हैं. स्वयं को बाँध कर रोककर वे दूसरों के लिए भी बाधा खड़ी कर देते हैं. दूसरे को अपना सा जानकर कभी उनके मार्ग में बाधा न बनें, यह भी सेवा है..जियो और जीने दो’ का सिद्धांत यही तो कहता है. उनके कारण किसी का विकास न रुके, सहज ही ईश्वर का प्रेम उनके भीतर से बहता रहे..बहता रहे..  

आज दो दिनों बाद डायरी खोली है, परमात्मा अपनी उपस्थिति हर क्षण ही प्रकट करता है, पर वे सोये रहते हैं तो उसे देख नहीं पाते, वे यानि उनका विवेक...विवेक जगता है तो आत्मा का अनुभव करता है..जिसका अर्थ है जीवन के हर क्षेत्र में सजगता...हर श्वास में सजगता, हर पल जागरूक होकर जीना..वर्ष का नौंवा महीना शुरू हो चुका है. इस वर्ष के शेष रह गये कार्यों को करने का अभी भी वक्त है. परिवार में सभी के साथ संबंध मधुर हों..समाज में जो प्रतिबद्धताएं हैं वे निभती रहें और मन सदा समता में रहे. गुरूजी को आज यू ट्यूब पर सुना, उनेक कितने रूप हैं. ‘हरि अनंत, हरि कथा अनंता’...एक व्यक्ति कितना विकास कर सकता है हजारों, लाखों ही नहीं यहाँ तो करोड़ों व्यक्ति उनसे सीख रहे हैं...परमात्मा उनके द्वारा स्वयं को व्यक्त कर रहा है. उन्हें स्वयं को हटाकर परमात्मा के लिए मार्ग छोड़ देना है...वह अनंत है..ज्ञान स्वरूप है..वह जीवन को सुगंध से भर देना चाहता है..प्रेम, शांति, ज्ञान और आनंद की सुगंध से..



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