Saturday, September 17, 2016

जय दुर्गा.. महामाया


अक्तूबर का आरम्भ हो चुका है. मौसम गर्म है. आज शाम को पौधों में पानी देना होगा, वर्षा के कारण पिछले कई हफ्तों से पानी डालने की जरूरत ही नहीं थी. पिताजी का स्वास्थ्य सुधर रहा है. माँ चुपचाप बैठी हैं, कुछ देर पूर्व किचन में आकर बोलीं, पिताजी चले गये..शायद उनके पास बात करने के लिए और कोई शब्द या वाक्य नहीं है, इसी वाक्य के सहारे वह बात करना चाहती हैं. कल रात ‘कॉमनवेल्थ खेलों’ के उद्घाटन समारोह का सीधा प्रसारण देखा, बहुत सुंदर था, भव्य और आकर्षक ! कल क्लब में सृजनी प्रोजेक्ट के अंतर्गत मृणाल ज्योति का स्टाल भी लगा था, उन्होंने कलात्मक दीये भी रखे थे. आज सुबह से ही शांत रस का अनुभव हो रहा है. एक गहन शांति, मौन जैसे चारों तरफ पसरा हुआ है. मन के भी कैसे अद्भुत रस और रंग हैं. सभी कुछ एक शून्य से उपजा है, आत्मा कहो या परमात्मा कहो, आत्मा वह जिसने देह की सीमा में कैद रहना चाहा, परमात्मा वह जो सदा मुक्त है, आत्मा ध्यान की अवस्था में उसी में लीन हो जाती है, तब दोनों एक ही हैं. कल एक मुस्लिम व्यक्ति का ब्लॉग देखा. हिंदी की शुद्धता की जिसे परख है. दीदी और छोटी ननद के विवाह की वर्षगांठ आ रही है, दोनों के लिए कविता लिखेगी.


आज प्रथम नवरात्र है. प्रकृति और पुरुष, शिव और शक्ति, राधा-कृष्ण सभी जगह तो देवी की उपस्थिति है. इस जगत को रचने के लिए ब्रह्म जिस योगमाया का आश्रय लेते हैं, वही शक्ति दुर्गा, उमा, पार्वती, काली आदि अनेक रूपों में पूजनीया है. तन में जो कुंडलिनी शक्ति के रूप में विद्यमान है, वही आदि शक्ति सनातनी जगज्ननी है. वही विश्वेश्वरी है, राजेश्वरी है, भुवनेश्वरी है, सर्वेश्वरी है, वही हृदयेश्वरी है ! वही कन्याकुमारी है. कर्म, इच्छा, ज्ञान शक्ति भी वही है. इड़ा भी वही है, माँ शारदा तथा लक्ष्मी भी उसी के रूप हैं. किन्तु नवरात्र में देवी के जिन नौ रूपों की पूजा की जाती है, वे शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, कुष्मांडा, चंद्रघंटा, स्कन्दमाता सिंहवाहिनी, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्दिदात्री आदि हैं. शैलवासिनी, क्षेमकरी, महाकाली, महादेवी भी वही है. अन्नपूर्णा, चन्द्रिमा, काली कपालिनी, विशालाक्षी, मंगला, विजया भी वही है, एक ही शक्ति के कितने विभिन्न नाम हैं ! ऋतु परिवर्तन के अवसर पर क्योंकि रोग होने का ज्यादा डर होता है, हल्का भोजन करना व जड़ी-बूटियों से शोधित जल पीना अच्छा है. उसने कल्याण में नवरात्र के बारे में पढ़ा, दुर्गा के एक-एक नाम का अर्थ सहित भाव के साथ कोई स्मरण करे तो उसमें भी ये दैवीय गुण आने लगते हैं. भारत में कितने उत्सव मनाये जाते हैं, जीवन एक उत्सव है यह यहीं कहा जा सकता है. दोपहर को वह नवरात्रि पर कविता लिखेगी. माँ ! तुझे प्रणाम ! शक्ति बिना शिव अधूरा, सृष्टि का कोई काम न पूरा ! हे दुर्गा, चण्डिके अम्बा, देवी भवानी जगदम्बा. वैष्णवी, माँ काली अंबे, ज्योतिर्मयी, जगत व्यापिनी ! मुखरित सारे स्वर पूजा के, शंख घंटनाद कहीं गूँजे. कहीं बलि दे विकृत करते संस्कृति को, सुंदर पंडालों से सजी धरा हुई सुखमय देखो, देवी का आगमन सुंदर, उतना ही भव्य प्रतिगमन, जगह-जगह जुलुस निकलते, करते बाल, वृन्द सब नर्तन ! 

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