तू
ही रस्ता, तू ही मंजिल, तू ही राही है..!
कहाँ
जा रहा यह मानवदल, किसे ढूँढ़ते होता बेकल
सुबह-सवेरे
उठते ही क्यों, चिंता ने आ इनको घेरा
गगन,
फूल, कलियां तो छोड़ो, पंछी सुर न सुनते देखा
कदम-कदम
पर निशां हैं जिसके, ढूँढा करते जाकर मन्दिर
जिसके
कारण हैं दुनिया में, ढूँढा करते हैं उसका घर
कैसे
बेसुध दीवाने हैं, आग लगाते स्वयं ही मन में
कभी
क्रोध की, कभी ईर्ष्या, अकुलाते सुंदर जीवन में
स्वयं
जगाते तृष्णा, आशा, सुखी रहें करते अभिलाषा
सुख
से ही तो बने स्वयं हैं, थमकर न सीखें यह भाषा
तन
में एक आग जलती है, मन हारा चिन्तन कर करके
फिर
भी रुकना न जानें, क्या पाना कुछ साबित करके
पीना
और पिलाना सीखा, जीना न आया अब तक
चाहा
जिसको सदा भुलाना, मन वह वश में किया न अब तक
तन
के लिए सभी उपाय, दौड़, खुराक कभी जिम जाये
मन
पाता विश्राम जहाँ, उस निज घर जाना न आये
तन
पाता विश्राम नींद में, मन पाता आराम कहाँ
जाना
जिसने भेद वह ज्ञानी, मिलते उसको राम यहाँ
नैन
थके तो मुंद जाते हैं, श्रवण कहाँ सुनते निद्रा में
बैन
हुए चुप अधर शांत हैं, मन फिर भी दौड़े निद्रा में
घर
से निकले पहुंचे मंजिल, पैरों ने पाया विश्राम
मन
की गति न थमती देखो, कैसे हो हमको आराम
तन
के सेवक पांच इन्द्रियां, खुद के तीन सिपाही सच्चे
मन,
बुद्धि व अहंकार के, आगे होते अनगिन बच्चे
स्वयं
की महिमा स्वयं ही जाने, सेवक न बखान कर पाए
स्वयं
में टिक जाये पल भर तो, तीनों को तुष्टि मिल जाये
जीने
का है यही सलीका, लौट के कुछ पल घर में आये !
आज
क्लब में मीटिंग है, उसे संचालन का कार्य करना है. कल रात्रि देर तक ज्ञान
श्रृंखला सुनती रही. दोपहर को नींद आ गयी, उठकर एक नये ब्लॉग पर पूर्व की लिखी
कविताएँ डालीं. कल जून नई गाड़ी में उन्हें घुमाने ले गये, कुछ देर एक मित्र के
यहाँ रुके. परमात्मा जब तक अपना नहीं बन जाता तब तक जीवन से दुःख नहीं जाता, पर
उसे जो हर वक्त एक नामालूम सी ख़ुशी घेरे रहती है, लगता है वह आसपास ही है. सद्गुरू
के शब्दों में पास-पास. मन से परे, बुद्धि से परे एक और सत्ता है जो प्रेम से ही
बनी है, उसमें और नूना में दूरी नहीं है, वे दोनों एक ही हैं, कितना अद्भुत ज्ञान
है यह.
एक सच्चे पथ से भटके मानव को राह दिखाती कविता, जिसके शब्द शब्द अकाट्य सत्य है, बस आवश्यकता है उसे पहचानने, समझने और जीवन में उतारने की. बस फिर जीवन कितना सरल, सहज और सुन्दर हो जाएगा!
ReplyDeleteशत प्रतिशत सही..स्वागत व आभार !
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