Saturday, September 3, 2016

हर्मन हेस की किताब - सिद्धार्थ


आज जून का जन्मदिन है. सुबह उन्हें कहा कि जितने वर्ष के हो गये अपने भीतर उतने गुणों की तलाश करें. वह करें या न करें, उसने सोचा वह ही कर लेती है- सहनशीलता, धैर्य, वात्सल्य, स्नेह, ममता, आदर, अनुशासन, अध्ययन, अनुशासन, संयम, सजगता, प्रेम, निर्भयता, अभय, क्षमा, दया, करुणा, सहानुभूति, दान, सहयोग, उदारता, ईमानदारी, सत्यता, स्वच्छता, पारदर्शिता, प्रसन्नता, उत्साह, आनंद, मिलनसारिता, दूरदर्शिता, मेधा, बुद्धि, वाकपटुता, व्याख्यान करने की कला, व्यायाम, नई भाषा सीखना, हास्य, अनुकरण, स्मृति, परोपकार, विश्वास, आत्मसम्मान, आस्था, भक्ति, साधना, समर्पण, कुशल क्रेता, शीघ्रता, मैत्री....

आज कई हफ्तों के बाद झूले पर बैठ कर लिख रही है. सामने गुलमोहर पर लाल फूल उग आये हैं, लॉन की घास कटी है, गुड़हल में एक लाल चटख फूल खिला है. आकाश में पीले, सलेटी, नीले बादल छाये हैं. अस्त होते हुए सूर्य की रोशनी उन पर पड़ रही है. मौसम बेहद सुहावना है. अगस्त माह की शीतल शाम बस ढलने को है. पिताजी गमलों में पानी डाल रहे हैं. माँ कुर्सी पर रोज की तरह बैठी हैं, वह चुप ही रहती हैं ज्यादातर, भोजन में भी रूचि घटती जा रही है. जून भीतर बैठे डायरी लिख रहे हैं, उनके मध्य संबंध पूर्ववत् हो गये हैं, सहज स्नेह भरे. आज गुरूजी के अष्टावक्र गीता पर दिए गये प्रवचन के बारे में कुछ मेल पढ़े, शेष कल पढ़ेगी, उन दिनों जब वे यह प्रवचन दे रहे थे नहीं पढ़ पायी थी. आज एक लेखिका का ब्लॅाग देखा, कितना सजाते हैं लोग, लेकिन बात पर उतना ध्यान नहीं देते. कुछ लोग उससे भी और अच्छा लिखने की उम्मीद रखते हैं. अभी-अभी बिजली चली गयी है, अच्छा हुआ कि वह पहले से ही बाहर है, अभी दिन थोड़ा शेष है. आज मृणाल ज्योति से कोई जीवन सदस्यता के फार्म दे गया.


अगस्त माह भी बीतने ही बीतने को है. समय का रथ अविराम चलता जा रहा है. वे रुक कर देखते भी नहीं कि कहाँ जा रहे हैं, किधर जा रहे हैं, कहाँ जाने के लिए निकले थे, कहाँ उन्हें पहुंचना था, रास्ता ठीक है या नहीं, राह दिखने वाला साथ है या नहीं ? जून के साथ बैठकर उसने अगले पांच वर्षों की एक योजना बनायी. संभव हुआ तो तो वे ये बारह कार्य करेंगे. बंगलूरू में एक घर खरीदना है, पुरानी कार बेचकर नई खरीदनी है. नन्हे के विवाह की तैयारी करनी है. बंगलूरू आश्रम में एडवांस कोर्स करना है और इगतपुरी में विपासना कोर्स. छोटी बहन की किताब पूरी करवानी है. कविताओं को  नई किताब में संकलित करना है. फोटोग्राफी की कला विकसित करनी है. सेवा का कार्यक्षेत्र बढ़ाना है. लेख लिखने हैं. ब्लॉग पर लिखना है. यूरोप की यात्रा करनी है. 


पिछले कई दिनों से डायरी नहीं खोली. आज समय मिला है. शाम के सात बजे हैं. जून आज दोपहर  एक सप्ताह के लिए बाहर गये हैं. सुबह वे जल्दी उठे, प्रातः भ्रमण को गये, रविवार की सफाई का कार्यक्रम स्थगित किया कल तक के लिए. दोपहर को संडे स्कूल के बच्चों के साथ राखी का उत्सव मनाया. पिछले दिनों हर्मन हेस का उपन्यास सिद्धार्थ पढ़ा, अच्छा है, एक बार फिर पढ़ना होगा, नदी की बातें समझने के लिए ! संसार और परमात्मा एक ही हैं, दो नहीं हैं, यही अद्वैत इसका सार है और यह अनुभव में जब भी उतरता है तो भीतर प्रेम भी पनपता है, सहज प्रेम जो सारी सृष्टि के लिए होता है, ऐसा प्रेम पाना ही उनमें से हरेक का लक्ष्य है और उन्हें उसी की तलाश भी है. 

1 comment:

  1. फ़िल्म सिद्दार्थ देखी है मैंने... मेरी पसंदीदा फिल्मों में से एक. पढने का अवसर नहीं मिला. और हाँ, जितने गुण यहाँ गिनाए हैं उनमें से कुछ तो मैंने अपनाई है और अपने व्यतित्व का अंग बनाया है, लेकिन बहुत सारे छूट रहे हैं. देखूं कब तक इन्हें आत्मसात कर पाता हूँ.
    अगस्त मेरे लिये तो बस हस्पताल के चक्कर लगाते ही बीता और अंतत: डॉक्टर ने ३१ अगस्त को मुझे स्वस्थ करार दिया!

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