Thursday, September 1, 2016

काफिलों का दौर


बहन की डायरी के कुछ पन्ने पढ़े. हर व्यक्ति अपने भीतर कितना बड़ा संसार छिपाए रखता है. हर व्यक्ति एक अपार सम्भावना लिए इस दुनिया में आता है. उसे वह बचपन से जानती है, पर लगता है कितना कम जानती है. बचपन में माँ उसकी गोद में बहन को लिटा देती थीं और स्वयं घर के काम करती थीं. उसका स्कूल दोपहर बारह बजे का था, फिर याद आता है दीदी उसके लिए सुंदर वस्त्र बनाती थीं, जिन्हें पहनकर वह परी सी लगती थी. स्कूल जाने से बहुत डरती थी. याद है पलंग के नीचे छिप जाती थी, जबरदस्ती उसे स्कूल भेजना पड़ता था. फिर नये शहर में वे दोनों एक स्कूल में गयीं. टीचर उसे चाहती थीं और नूना की कक्षा की छात्राएँ भी उसे मिलकर खुश होती थीं. जब भाभी आ गयीं तब वही उसे तैयार करती थीं. इंटर कालेज में उसने सौन्दर्य प्रतियोगिता जीती थी, फिर मेडिकल की तैयारी और पांच वर्षों के लिए हॉस्टल चली गयी. नूना की शादी हो गयी थी जब वह कालेज में गयी. उसके बाद तो मिलना साल में कभी दो साल में एक बार ही होने लगा. कितना वक्त गुजर गया है. वह चाहती है उसकी डायरी पढ़कर नूना कोई कहानी लिखे, मानव मन की कहानी, उसकी इच्छाओं, कामनाओं की कहानी, पूर्णता को पाने की उसकी तड़प की कहानी, वह भी तलाश रही है लेकिन उसका मार्ग बौद्धिक है. वह चाहती है कि खुद भी बनी रहे और परमात्मा भी मिल जाये, लेकिन परमात्मा को पाने की शर्त यही है कि खुद को तो मिटना होगा, जो मिट गया स्वयं फिर उसकी कोई कहानी नहीं रहती. वह बचता ही नहीं. जून के लिए एक कविता लिखी तो है पर उसमें दर्द समा गया है, उत्साह भरी एक कविता और लिखनी होगी !

पिछले दो दिन कुछ नहीं लिखा. कल दोपहर मृणाल ज्योति गयी थी, कविता पढ़ी, तारीफ हुई, अच्छा लगा अर्थात जब अपमान होगा तब दुःख भी होगा. ब्लॉग पर जब कोई प्रतिक्रिया करे तो भी अच्छा लगता है, यह खतरनाक है, लेकिन तब भी कोई इस मन को देख रहा होता है, साक्षी सजग रहता है तब कोई खतरा नहीं...कल छोटी भांजी से बात की, उसे पिताजी का इतिहास चाहिए, यानि अपने नाना जी का. उसने याद किया, उनके पिता व का दादा-दादी का नाम, नाना-नानी का नाम भी. पाकिस्तान का एक जिला जन्मस्थान, स्कूल का नाम, विभाजन के समय सोलह वर्ष के थे, पचास किमी पैदल चलकर आये. दो जगह रुका उनका चालीस-पचास हजार लोगों का काफिला. बीच में बच्चे व बूढ़े थे. गाँव के लोग शामिल, हमले भी हुए, फौजियों की जीप साथ थी. पहली रात भोजन मिला, दूसरी रात सामान नहीं था. पानी की दिक्कत भी थी. छोटी बहन चार वर्ष की थी और भाई ग्यारह वर्ष का. उन पर लिखी कविता उसे भेज देगी. जून का मन जो घायल हुआ था अब धीरे-धीरे सहज हो रहा है, आज दोपहर वह कुछ पिघले, उसे उनका ज्यादा ख्याल रखना होगा. वह बहुत भावुक हैं और उनके लिए परिवार ही सर्वोच्च मायने रखता है. वह परिवार के लिए ही जीते हैं, उनका दिल बहुत कोमल है, कामना युक्त है पर वे जन्मों के संस्कार हैं. धीरे-धीरे वह भी स्वयं को जान लेंगे, तब तक उन्हें बहुत स्नेह और सहारे की जरूरत है. उसके जीवन का लक्ष्य तो पूरा हो चुका है अब जो भी प्रारब्ध शेष है वह पाना है और शेष लुटाना है. अनंत प्रेम, अनंत करुणा, अनंत स्नेह और अनंत खुशियाँ..भीतर अनंत खजाना है. परमात्मा उसके माध्यम से प्रकट होने को उत्सुक है, उसने स्वयं को खाली कर दिया है. सद्गुरु उसके माध्यम से गीत बनकर फूटना चाहते हैं. वह उनकी ही वाणी बोल रही है..भीतर एक सन्नाटा है और है अंतहीन फैलाव..जिसमें से ख़ुशी रिसती रहती है...टप टप टप टप...सारी दुनिया उस ख़ुशी की हकदार है और सबसे पहले जून पर उसका हक है..वह उसके जीवन में सर्वोच्च स्थान रखते हैं..उसके अन्तरंग के सहचर हैं..उनसे ही समाज में उसका नाम है. वह स्वस्थ रहें, सानंद रहें..आज तक उससे जो भी पीड़ा उन्होंने पायी है, शायद वह प्रारब्ध का खेल था..जब जागो तभी सवेरा..वह उसके लिए अब आराध्य हैं !


1 comment:

  1. परमात्मा से मिलने और स्वयं को खो देने की बात बहुत ही सुंदरता से जोड़ी है... लगा मेरे दिल की बात कह दी.

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