Thursday, May 21, 2015

रीठा-आंवला-शिकाकाई


अभी कुछ देर पूर्व ध्यान करते समय उसे कृष्ण की झलक दिखी, कुछ क्षण के लिए ही मन के विचार थमे और एक मंजुल मूर्ति के दर्शन हुए पर वह कितना कम समय के लिए था, जैसे बादलों में बिजली चमके और छिप जाये ! आज सुबह सवेरे जून ने फोन किया, वे परसों यहाँ आयेंगे. आज भी बढ़ी हुई ठंड के कारण नन्हा अपने कमरे में ब्लोअर चला कर बैठा है और उसने जून का ऊनी हाउस कोट भी पहन रखा है. उसने भी हीटर जलाया है पर नैनी इतनी ठंड में बिना शिकायत किये ठंडे पानी से सारा काम करती है, उसने ठंड पर विजय पा ली है. उसके मुँह का जायका कुछ ठीक नहीं लग रहा, अभी मेडिकल गाइड पढ़कर देखेगी. जून की भेजी मिठाई बहुत स्वादिष्ट है शायद उसका असर हो अथवा तो लाल मिर्च पाउडर जो उस दिन नन्हा कोपरेटिव से लाया है. आज उसने रीता-आंवला-शिकाकाई से बाल धोए. जनवरी भी आधा बीत गया, नया वर्ष आया और तेज रफ्तार से चल रहा है. अगले महीने नन्हे की परीक्षाएं हैं फिर नई कक्षा और बोर्ड की तैयारी. सुबह ‘क्रिया’ की तो तन कितना हल्का लगने लगा था. सद्गुरु के प्रति मन कृतज्ञता के भावों से भर जाता है. कृष्ण की गीता पढ़ी, ज्ञान, भक्ति, कर्म योग की कितनी अद्भुत व्याख्या की है. जो मार्ग भाये उसी पर चलकर उस तक पहुंचा जा सकता है. निष्काम भाव से, ज्ञान को हृदय में धारण करते हुए भक्तिमय कर्म करना ही उसका ध्येय है. उसका जो भी कर्म हो, सभी कुछ अर्थमय हो, सत्य पर आधारित हो और निस्वार्थ भाव से किया गया हो, उसमें लोकमंगल की भावना छिपी हो अथवा तो व नित्यकर्म हो, शरीर का धर्म हो.

आज बाबाजी ने बड़े मजे की बात सुनायी. “सौ की कर दो साठ, आधा कर दो काट, दस देंगे, दस छुडायेंगे, दस को जोड़ेंगे हाथ !” अर्थात यदि सौ विकार हैं तो चालीस आसानी से दूर किये जा सकते हैं, फिर साठ के आधे दूर करने में थोडा सा श्रम और लगेगा, बचे तीस, दस परमात्मा को अर्पण कर देंगे,  उन्हें दे देंगे, दस को अधिक श्रम से दूर करेंगे और दस के सामने हाथ जोड़ देंगे. उसे लगता है, भावना यदि पवित्र होगी तो छोटा सा कार्य भी भक्ति में बदल जायेगा. हृदय में एक ही अवस्था रह सकती है, जब सुख है तो दुःख रहेगा ही नहीं ! कृष्ण की मंद-मंद मुस्कान को सदा याद रखते हुए मन को मधुर भाव से पूरित करना होगा. उसकी कृपा हो और अपना प्रयास तो मंजिल मिलने में देर नहीं लगती. जब कोई कृतघ्न होकर उसे भुला बैठता है तभी अंतर में विषाद का प्रवेश होता है. जहाँ उसका नाम है वहाँ दुःख टिकेगा कैसे, जब खाली होता है मन तो वह धीरे से आता है, उसकी झलक ही आनंद से पूर्ण करती है, वह अनुभव कैसा होगा जब...क्या इस जन्म में उसे वह अनुभव होगा जब पूर्ण साक्षात्कार होगा ! सद्गुरु और कृष्ण की कृपा रही तो अवश्य ही मिलेगा !

एयरपोर्ट से जून का फोन आया, कोहरा घना है शायद फ्लाईट देर से उड़ेगी. जून आज दस दिनों के बाद घर आ रहे हैं, मन बहुत उत्साहित है. इतने दिनों व रातों को उन्हें समय पर भोजन व नींद आदि का न मिल पाना स्वाभाविक ही है. सर्दी की वजह से परेशानी भी हुई होगी पर यात्रा का अपना एक अलग रोमांच है और परिवर्तन भी तो मन पसंद करता है, फिर भी घर आकर उन्हें सुकून मिलेगा. यहाँ आज धूप के दर्शन सुबह ही हो गये थे. परसों से उसने ‘लियो टालस्टाय’ की एक पुस्तक पढ़नी शुरू की है. सुबह भगवद्गीता का पाठ सुना, चित्त को राग-द्वेष ही मैला करते हैं, जो सभी जगह उसी को देखता है, उसका चित्त निर्मल रहेगा. मन में कोई दौड़ बाकि न रहे, विचारों का अनवरत चलता प्रवाह रुक जाये अथवा तो साक्षी भाव से उसे देखना सीखे, उससे जुड़े नहीं, मकड़ी की तरह अपने ही बनाये जल में स्वयं न फंसे..जल में कमल की भांति उपर रहे..मुक्त..निस्सीम और ज्ञान में स्थित !


3 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को शनिवार, २३ मई, २०१५ की बुलेटिन - "दी रिटर्न ऑफ़ ब्लॉग बुलेटिन" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद।

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  2. स्वागत व आभार तुषार जी..

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