Thursday, May 21, 2015

लोहड़ी के गीत


दस बजे हैं सुबह के, अभी कुछ देर पूर्व ही ‘क्रिया’ की. सुबह अलार्म सुना तो था, पर ठंड के कारण और रात को सोने में देर हो जाती है, इस वजह से अथवा तो प्रमाद के कारण फौरन बिस्तर नहीं छोड़ा, फिर नन्हे को स्कूल भेजने के कार्य में व्यस्त हो गयी. नैनी, स्वीपर के जाने के बाद ही बैठी, महाभारत व भगवद् गीता का पाठ करने के बाद. सुबह जून से बात की. वह परसों पिताजी से मिलने जा रहे हैं. आज यहाँ ठंड बहुत ज्यादा है, कोहरा और बादल दोनों ही हैं, अभी तक धूप नहीं निकली है. सुबह सत्संग भी नहीं सुना, कुछ देर स्वयं का ही भागवद पाठ सुना. कृष्ण की कथा का अमृत है भागवद्, जिसे पढ़कर उसके हृदय में कृष्ण के लिए अथाह प्रेम उमड़ा था. वह इतनी प्यारी बातें कहते हैं अपने ग्वाल-बाल मित्रों से, गोपियों से, सखा उद्धव से और मित्र अर्जुन से कि बरबस उन पर प्यार आता है. वह सभी को निस्वार्थ प्रेम करते हैं, बिना किसी प्रतिदान की आशा के, एकान्तिक प्रेम और जो उन्हें प्रेम करता है उसे वह अभयदान देते हैं, वह उनके निकट आकर निर्भय हो जाता है. ध्यान में उसे उनके क्षणिक दर्शन होते हैं, क्योंकि उसका ध्यान टिकता नहीं है.. पर ऐसा होगा एक दिन अवश्य कि साक्षात वह उसे मिलेंगे. वह उसकी हर बात जानते हैं. उसकी सारी छोटी-बड़ी इच्छाएं उनपर उजागर हैं. उसकी सारी कमियों के वह साक्षी हैं. उसका प्रमाद व लापरवाही भी उनसे छुपी नहीं है और उसका प्रेम भी..वह तो प्रकट होने को आतुर हैं, वे ही ऐसे अभागे हैं कि मन को इतर विषयों से मुक्त नहीं कर पाते, मन में संसार प्रवेश किया रहे तो उसे बिठाये कहाँ ? मन की ही चलती है ज्यादातर, वे जो वास्तव में हैं पीछे ही कहीं छिपे रह जाते हैं. जैसे कोई अपने ही घर में सबसे कोने में दुबका रहे और घर पर पड़ोसी कब्जा कर लें, वही हालत उनकी है. दुनिया भर की फिक्रें वे करते हैं बिना किसी जरूरत के पर जो वास्तव में उन्हें करना चाहिए उसके लिए समय नहीं निकाल पाते. आत्मा में रहकर ही विशुद्ध प्रेम का अनुभव होता है. आज नन्हे की किताब में तीन कार्ड देखे जो उसके क्लास की लडकियों ने दिए थे, यह भी एक तरह का प्रेम है !

आज लोहड़ी है, स्नान करते समय बचपन में लोहड़ी पर गाए जाने वाले गीत याद आ रहे थे. एक सखी ने फोन करके मुबारकबाद दी. जून को अभी-अभी फोन किया, वह घर पहुंच गये हैं, चाय पी रहे थे. उन्होंने मिठाई भिजवाई है, अभी उस दिन उनका भिजवाया गया सामान ऐसे ही पड़ा है, उनके बिना खाने का नन्हा और उसका दोनों का ही मन नहीं करता. आज नन्हे का स्कूल बंद है, देर से उठे वे. नौ बजे थे, वह ‘क्रिया’ कर रही थी कि एक परिचिता मिलने आयीं, नन्हे ने कह दिया, माँ नहा रही हैं, यह भी एक तरह का मानसिक स्नान ही तो है. जैसे दिन भर में देह व वस्त्रों पर धूल जम जाती है, वैसे ही मन पर भी विकारों की मैल चढ़ जाती है, जिसे हर सुबह वे क्रिया के माध्यम से स्वच्छ करते हैं. स्वाध्याय के माध्यम से भी उसे सुंदर बनाते हैं जैसे वह मन पर लगाने वाले क्रीम, लोशन आदि है.

ठंड आज भी बहुत है, नन्हा ऐसी ठंड में साइकिल से कोचिंग के लिए गया है. वह यहाँ हीटर के पास बैठी है. जून अभी घर पर हैं, सुबह उनसे बात हुई. उन्होंने पिता और भाई की तरफ से उसके लिए कोट खरीदा है, नन्हे के लिए भी स्वेटर खरीदे हैं. पहले ही वह सामान भिजवा चुके हैं. वे कितना भी सोचें कि अब उन्हें और कुछ नहीं चाहिए, पर जब भी नया कुछ मिलता है तो उसे लेते समय झिझकते नहीं और कर्मों के बोझ सिर पर चढाये ही जाते हैं. दुनिया ऐसे ही चलती है और ऐसे ही वे बार-बार जन्म लेते रिश्ते बनाते व निभाते चले आते हैं. ज्ञान होता भी है तो थोड़े से सुख के लिए उसे अपनी सुविधानुसार मोड़ लेते हैं. जीवन ऐसे ही चलता चला जाता है. आज ध्यान करते-करते और गीता पाठ करते समय भी कृष्ण की बातें जैसे मन को भीतर तक छूना चाहती थीं पर मन तो फोन पर की बातों में उलझा था, मन टिकता नहीं एक जगह, जब वे उसे प्रलोभन का शिकार होने देते हैं. आज सद्गुरु ने बताया, जीवन जितना परमार्थ के लिए होगा, सामर्थ्य उतना ही बढ़ेगा, स्वकेंद्रित होकर वे अपनी ही हानि करते हैं, स्व का विस्तार करना होगा. गहराई से देखें तो वे सभी एक ही तत्व से बने हैं, एक ही तत्व की तरफ जा रहे हैं. सभी को एक उसी की तलाश है...

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