जून कल दोपहर दो बजे
मुम्बई के लिए रवाना हुए, वह दिल्ली होते हुए रात्रि साढ़े दस बजे वहाँ पहुंचें.
उनकी याद कल दिन में कई बार आयी. शाम को वह टहलने गयी, दिन में आलमारी सहेजी.
सर्दियों के वस्त्र निकले, गर्मियों के रखे. बरामदे के गमले बाहर रखवाए थे, आज
माली ने निराई की. अभी कुछ देर पूर्व जून का फोन आया. उन्होंने भी ‘क्रिया’ की,
उसने भी सुबह पौने पांच बज उठकर वे सभी कार्य किये जो वे रोज करते हैं. सद्गुरु का
ज्ञान उसके साथ है. उसे लगता है यह देह कृष्ण का मन्दिर है, इसे स्वस्थ-सुंदर रखना
उसका कर्त्तव्य है, स्वस्थ रखना तो और भी आवश्यक है, मन में उसकी मूरत जो बसी है.
वह उसके इतने निकट है कि कभी-कभी उसका स्पर्श भी महसूस होता है, सारा जगत जैसे
अदृश्य हो जाता है, सिवाय एक उसकी स्मृति के वह अन्य किसी छोटी-बड़ी बात को स्थान
देना नहीं चाहती. वह नितांत अपने लगते हैं, पूर्व हितैषी, पुराने मित्र, जाने
पहचान से और बेहद प्रिय ! कृपा उसपर अवश्य हुई है अन्यथा इतने सारे सालों में पहले
तो ऐसा कभी नहीं हुआ.
आज सुबह चार बजे से
पहले ही नींद खुल गयी थी, वर्षा हो रही थी. स्नान-ध्यान आदि किया, समय की यदि कोई
कद्र करे तो समय भी संभालता है. आज ‘जागरण’ में ध्यान के सूत्र सुने. सरल शब्दों
में धीरे-धीरे बड़े प्यार से सद्गुरु ने कुछ बातें बतायीं, कि ध्यान करते समय यदि
शरीर में कहीं दर्द हो तो उसे गहराई से महसूस करना है, उसके भीतर जाना है. शरीर का
वह अंग उस बच्चे की तरह है जो माँ का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहता है. ध्यान धारणा
पर आधारित होना चाहिए, कल्पना पर नहीं. अपने शरीर के अंग-प्रत्यंग की भाषा को
सुनते हुए, श्वास-प्रश्वास पर अपना ध्यान टिकाते हुए जब मन एकाग्र हो जाये तो वही
ध्यान है. उसके बचपन से किये कितने ही छोटे-बड़े अपराध आजकल याद आते हैं और तब लगता
है इतना कलुषित था तब मन फिर भी ईश्वर की निकटता का अनुभव वह कर सकी, अर्थात उसका
आश्रय लो तो सारे कलुष धुल जाते हैं. वह स्वच्छ कर देता है. भीतर से भी बाहर से
भी. अपने सारे अपराधों की क्षमा मांगते हुए उसने कुछ आँसूं बहाये तो मन हल्का हो
गया और आश्चर्य तो इस बात का कि ज्यादातर ऐसे में सिर भारी लगता है. सदगुरुओं की कही
सारी बातें सच प्रतीत होती लगती हैं. उसके अंतर में लगा भक्ति का बीज अंकुरित हो
रहा है और यह बेल बढ़ती ही जाएगी. आज एक सखी का जन्मदिन है, शाम को उन्हें जाना है.
आज फिर तमस ने अपना
प्रभाव दिखाया. सुबह नींद नहीं खुली. नन्हे के मित्र ने फिजिक्स ट्यूशन पर जाने के
लिए पांच बजे फोन करके उठाया. नन्हा अब समझदार हो गया है, फौरन उठकर चला गया. कार ले
गया था, वापस आया तो स्कूल के लिए तैयार हुआ और दौड़ते हुए बस स्टैंड तक पहुंचा.
नूना की गलती की सजा उसे उठानी पड़ी, खैर अंत भला तो सब भला ! जून से फोन पर बात भी
की, आज वे वहाँ किसी संबंधी से मिलने वाले हैं.
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