आज सुबह वह चार बजे
ही उठ गयी, नन्हे का ट्यूशन नहीं था सो उसे उठाया साढ़े पांच बजे, क्रिया आदि करने
के बाद. वह बहुत नाराज हुआ, पिछली रात उसने कहा था, चार बजे उठाने के लिए, पर नूना
ने कहा, वह रात को जल्दी सोता तो है नहीं, इसलिए नहीं उठाया, वैसे उसे याद भी नहीं
रहा था. नाराज होकर गया था, सो सारी सुबह वह उसी के बारे में सोचती रही, पर स्कूल
से लौटा तो सामान्य था. कल शाम वह उसे सत्संग से सखी की जन्मदिन की पार्टी में ले
गया था. जून का फोन आया, उन्होंने अपनी शापिंग लिस्ट सुनाई, कल सुबह वे बहन के घर
जाने वाले हैं. कभी-कभी नन्हा और उसे उनकी कमी बहुत खलती है. आज एक परिचिता का फोन
बहुत दिनों के बाद आया. एक और दुखद समाचार मिला, असमिया सखी की माँ का स्वर्गवास
हो गया है, वह घर चली गयी है, अगले हफ्ते के अंत में आएगी. दोपहर को एक सखी आई,
आधा घंटा बैठी रही. शाम को एक सखी के साथ टहलने गयी. आजकल वह बाइबिल पढ़ रही है,
अच्छा लग रहा है. ईसा एक दिव्य पुरुष थे, उसे वह एक सद्गुरु लगते हैं जिन्हें लोग
समझ नहीं सके. उसे वह उतने ही प्रिय लगते हैं जैसे कृष्ण. बाइबिल की कहानियाँ
कितनी अद्भुत हैं, और कैसे होंगे वे लोग जो जीसस के प्रचारक बने, उनके निकट के
शिष्य. उसने सोचा, अन्य धर्मों के बारे में जाने बिना ही उनके बारे में धारणा बना
लेना कितना गलत है. सभी धर्म उसी एक की तरफ ले जाते हैं. ईश्वर एक है, जो सभी का
है, जो प्रेममय है. नन्हे शिशुओं की तरह निष्पाप आत्मा उसने सौंपी थी, पर वे उस पर
लोभ, क्रोध, बैर, वैमनस्य, पाप के धब्बे लगाते ही जाते हैं और फिर वह इतनी बदरंग
हो जाती है कि वे उससे बचना चाहते हैं. दूने जोश से स्वयं को प्रकृति में, जो
मृण्मय है, जोतते हैं, लेकिन चिन्मय आत्मा भीतर भीतर सजग तो रहती है. फिर ज्ञान के
जल से उसे धोकर, भक्ति के वस्त्र से उसे पोंछ कर गुरू की शरण में जाकर उससे पुनः
परिचित हुआ जा सकता है. उस आनंद का अनुभव होता है जिसे वस्तुओं के बोझ तले दबा
दिया था. वह आत्मिक ज्ञान उन्हें चारों ओर से घेर लेता है क्योंकि वही उनका
वास्तविक परिचय है.
सुबह जून को फोन
किया, वह नींद में थे, सो बात ज्यादा नहीं हुई. फिर ससुराल में माँ से बात हुई. कह रही थीं, यहाँ की बहुत याद आती
है. नन्हे ने उस मित्र को दोपहर लंच पर बुलाया था, जिसकी माँ घर गयी हुई हैं. शाम
को उसके पिता लेने आयेंगे. आज शाम को एक सखी उसे चाय के लिए क्लब ले जाएगी, जहाँ
ग्रीन फेयर है. कल शाम एक मित्र परिवार आया, उनके पिताजी भी साथ थे, अंकल के साथ
भक्ति और वेदांत पर थोड़ी चर्चा हुई, अच्छा लगा. ईश्वर है यह मानना ही तो पर्याप्त
नहीं, उन्हें उसका अनुभव करना है. उसके लिए पहले खुद को जानना है. स्वयं को जानकर
ही हृदय में कृतज्ञता का भाव जगता है फिर यही कृतज्ञता प्रेम में बदल जाती है और
फिर भक्ति का. भक्ति ज्ञान के बिना टिकती नहीं और ज्ञान भक्ति के बिना अधूरा है.
जब वह उनसे बात कर रही थी भीतर उसे लग रहा था की ईश्वर से प्रेम करना उसके लिए कितना
सहज है, स्वाभाविक है क्योंकि एक वही है जो प्रेम किये जाने के योग्य है. अब उसकी
चाहना है कि उसकी सृष्टि के प्रति भी वैसा ही सहज प्रेम जगे, वही प्रेम हृदय को
पूर्ण मुक्त करेगा, जब कहीं कोई दुराव नहीं रहेगा, कोई अपेक्षा भी नहीं, जीवन एक
उपहार बन कर हर दिन सम्मुख आएगा. पुकार-पुकार कर सुख की गुहार नहीं लगानी होगी, वह
स्वभाव ही बन जायेगा. ऐसा अखंड सुख जो पीड़ा को भी एक खेल बना देता है. ईश्वर कितना
महान है, उसका सामीप्य कितनी शक्ति से भर देता है, निर्भार कर देता है, उसकी बात
ही निराली है, वह सभी आत्माओं का आत्मा उसका कान्हा है !
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