Friday, May 15, 2015

लोकल बस का सफर


आज फलाहार का दिन है, मन में शांति का अनुभव हो रहा है और तन भी हल्का है. सद्गुरु को कल भी सुना था, मन आनंद से छलक उठा और सारा दिन जैसे एक सुखद स्वप्न की तरह बीता. आज भी सुबह उनकी बातें सुनीं, सीधी सच्ची बातें जैसे वे लोग करते हैं आपस में और उनके शिष्य दिल खोलकर हँस रहे थे. मन को जैसे भीतर तक साफ करके लौटती हैं उनकी बातें. वे सहज हैं जैसे काश वे भी सदा वैसे ही सहज रह पायें. वे भूल जाते हैं और  और व्यर्थ के चिंतन में मानसिक ऊर्जा को व्यय कर बैठते हैं. सद्गुरु ऐसे में झकझोर कर जगाते हैं. उनमें अग्नि की भांति पवित्रता, धरती की भांति सहिष्णुता, गगन की तरह विशालता, वायु की भांति सूक्ष्मता, और जल की भांति शीतलता हो तो वे ईश्वर की निकटता का अनुभव कर सकते हैं. उसके प्रेम का अनुभव तो वे हर पल करते हैं. हर श्वास जो ग्रहण करते हैं उसी का प्रसाद है और श्वास जो वे छोड़ते हैं उसके प्रति उनकी कृतज्ञता है. प्रकाश जो उनकी आँख में है उसी की देन है. पंच तत्वों से देह बनी है, चेतना भी उसी का अंश है.

आज उसने सुना, जिसे अपने पता नहीं है उसे ही अभिमान, ममता, लोभ सताते हैं. मन का यह नाटक तब तक चलता रहता है जब तक वे अपने शुद्ध स्वरूप को नहीं जानते. खुद को जानना ही जीने की कला है. वे स्वयं के कण-कण से परिचित हों, मन और तन में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों के प्रति सजग रहें. कब कौन सा विकार मन में उठ रहा है इसके प्रति तो विशेष सजग रहें. आधि, व्याधि और उपाधि के रोग से वे सभी ग्रसित हैं, जो क्रमशः मन, तन और धन के रोग हैं, इनका इलाज समाधि है. समाधि में मन यदि समाहित रहे तो कोई दुःख नहीं बचता. क्रोधित होते हुए भी भीतर कुछ ऐसा बचा रहता है, जिसे क्रोध छू भी नहीं पाता, भीतर एक ठोस आधार मिल जाता है, चट्टान की तरह दृढ़. उन्हें कोई भयभीत नहीं कर सकता न किसी को उनसे भयभीत होने की आवश्यकता रहती है. जीवन तभी शुरू होता है. अपने भीतर उस परमात्मा की उपस्थिति को महसूस करते ही सारे अज्ञान और अविद्या से पर्दा हट जाता है. तब देह की उपयोगिता इस आत्मा को धारण करने हेतु ही नजर आती है, सुख पाने हेतु नहीं ! मन सात्विक भावों को प्रश्रय देने का स्थल बन जाता है विकारों की आश्रय स्थली नहीं. तन के रोग हों या मन की पीड़ा अभी का अंत उसका आश्रय लेने पर हो जाता है. सद्गुरु के बिना यह ज्ञान नहीं मिलता, वे उनके सच्चे स्वरूप के दर्शन कराते हैं, उसके बाद तो वह सांवला सलोना स्वयं ही आकर हाथ थाम लेता है, उसको एक बार अपने मान लें तो फिर वह स्वयं से अलग होने नहीं देता !

आज नन्हा दिगबोई गया था, लोकल बस से और वापस भी उसी से आया. साथ में आया उसका एक मित्र, वही जिसकी बहन की शादी का सीडी उसने कल देखा था. दोनों मित्र अच्छी तरह से रह रहे हैं, कल सुबह वापस जायेंगे, एक दिन नन्हे को भी वहाँ रहना होगा. सुबह दीदी को फोन किया, चाचीजी का नम्बर चाहिए था, चाचीजी व बुआजी दोनों से बात हुई. चाचाजी के पैर का घाव ठीक नहीं हो रहा है. ईश्वर की दुनिया में न्याय है. अपराधी यदि दुनिया के कानून से बच भी जाये तो भी उसके कानून से नहीं बच सकता. उन्हें हर क्षण सजग रहना होगा. कायिक, मानसिक, वाचिक किसी भी तरह का अपराध उनसे न हो, न किसी अन्य के प्रति न स्वयं के प्रति. सभी में उसी का वास है. जो पीड़ा में हैं उनके प्रति हृदयों में करुणा का भाव जगे, दूसरों को वे उसी प्रकार माफ़ करें जैसे ईश्वर उन्हें करता है. वह उनके हजार अपराध माफ़ करता है फिर भी वे चेतते नहीं हैं. ज्ञान ही मुक्ति का उपाय है, ज्ञान ही भक्ति का प्रेरक है.    


No comments:

Post a Comment